हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Friday 31 December, 2010
कलेंडर के अलावा क्या बदला
---गोविंद गोयल
Tuesday 28 December, 2010
पहले दो थे अब जितने नेता उतने गुट
श्रीगंगानगर-किसी ज़माने में यहाँ कांग्रेस में दो गुट हुआ करते थे एक राधेश्याम गंगानगर का,दूसरा उनके विरोधियों का। विधानसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस में ऐसा रहा। जब तक ऐसा रहा तब तक राधेश्याम गंगानगर उर्फ़ बाऊ जी ने कांग्रेस में दूसरे की पार नहीं पड़ने दी। वो तो नियम थोड़ा सख्त हो गए इसलिए बाऊ जी के दिन कांग्रेस में खत्म हो गए वरना....... । जब से बाऊ जी का ह्रदय परिवर्तन हुआ है तब से कांग्रेस में दो गुटों वाली परम्परा बीते ज़माने की बात हो गई। कांग्रेस में जो जो नेता बाऊ जी का विरोधी था अब उन सब के अलग अलग गुट बन चुके हैं। राजशाही के अंदाज में कहें तो कांग्रेस के चक्रवर्ती नेता बाऊ जी के विदा होते ही उनके सब विरोधी स्वतन्त्र हो गए। जब किसी का राजनीतिक डर नहीं रहा तो सभी ने अपने गुट बना लिए। हर गुट का अपना नेता। पिरथी पाल सिंह, राज कुमार गौड़, शंकर पन्नू, संतोष सहारण, गंगाजल मील आदि आदि। पिरथी पाल सिंह ने जिलाध्यक्ष के नाते जयपुर दिल्ली के कांग्रेसी राजनीतिक गलियारों में पहचान बने। पद के साथ साथ सादुलशहर के जगदीश शर्मा ने इनके लिए दिल्ली में बड़े नेताओं से लोबिंग की। श्री शर्मा का वहां खुद का एक नेटवर्क है जो कांग्रेस राजनीति में पिरथी पाल सिंह के साथ खड़ा दिखाई देता है। विधान सभा चुनाव के बाद गौड़ की कांग्रेस में अप्रोच बढ़ी है। इसके बावजूद उनको भरोसा केवल अशोक गहलोत पर है। सांसद रहे पन्नू को दिल्ली - जयपुर में नेता जानते हैं मगर इन्होने ने भी अपनी डोर श्री गहलोत जी के हाथ में दे रखी है। संतोष सहारण को कांग्रेस में अपने रिश्तेदार परस राम मदेरणा/मही पाल मदेरणा का सहारा है। गंगाजल मील के पास राजस्थान जाट महासभा है। दो साल में ये दोनों नेता पार्टी की ना तो दिल्ली,जयपुर में किसी बड़ी लौबी से जुड़े दिखे ना इन्होने यहाँ मजबूत गुट दिखाया। जगतार सिंह कंग गत दो साल में कई चुनाव हारने के बाद कहीं के नहीं लगते। के सी बिश्नोई,विजय लक्ष्मी बिश्नोई, सोहन नायक,को वक्त ने पीछे कर दिया। दुलाराम तो ऐसे लगता है जैसे भूतकाल हो गए हों। वर्तमान तो उनका बेटा है। इन्दौरा परिवार के लिए यह सब गौण है। बात कांग्रेस की हो रही है इसलिए मंत्री गुरमीत सिंह कुनर,सभापति जगदीश जांदू के बारे में अधिक कुछ कहना ठीक नहीं । श्री कुनर तो मंत्री हैं इसलिए जयपुर से दिल्ली तक उनके सम्बन्ध पहले से बढे हैं। जांदू का भी एक ग्रुप है। बात फिर बाऊ जी की। पहले उन्होंने कांग्रेस में अपने पर अपने विरोधियों की पार नहीं पड़ने दी अब बीजेपी में। यूँ राजनीति में कभी भी किसी भी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। सन्नी सिंह ने एसएमएस से भेजा है परीक्षा का नया पैट्रन --जनरल वर्ग -सभी प्रश्न करो। ओ बी सी --कोई एक प्रश्न करो। एस सी--केवल प्रश्न पत्र पढो। एस टी--परीक्षा में आने का शुक्रिया। गुर्जर--दूसरों को परीक्षा देने की अनुमति प्रदान करने के लिए थैंक्स। अब एक संत से सुनी बात, भारत की राष्ट्रपति हिन्दू,उप राष्ट्रपति मुसलमान,प्रधानमंत्री सिख और सोनिया गाँधी पारसी/ईसाई।
---गोविंद गोयल
Saturday 25 December, 2010
सी एम के मोहल्ले का आदमी
Monday 20 December, 2010
Tuesday 14 December, 2010
ऐसी भी हो सकती है सी एम की प्रेस वार्ता
श्रीगंगानगर--जयपुर का पिंक सिटी प्रेस क्लब। दोपहर का समय। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आ चुके है। गले में बेतरतीब सा मफलर ऐसे पड़ा है जैसे उनका मंत्री मंडल। खुश हैं। पत्रकारों की भरमार है। सबसे मिलते हुए उस ओर कदम बढ़ा रहे हैं जहाँ प्रेस वार्ता होनी है।उन्होंने जिस पत्रकार को नाम लेकर पुकारा उसने अपनी कॉलर ऊँची की। जिसका हाथ मिलाते हुए हाल चाल पूछा उसकी चाल बदल गई। जिस पत्रकार ने अपना परिचय खुद दिया उससे केवल यही कहा, अच्छा अच्छा और चलते रहे। कई मिनट के बाद मुख्यमंत्री जी और प्रेस दोनों आमने सामने थे। गहलोत जी ने एक नजर चारों तरफ दौड़ाई और कहा, पूछो क्या पूछना है। प्रेस बोली ,सर आप बताइए। हमारे पास बताने के लिए कुछ होता तो कब का बता चुके होते। हँसते हुए कहने लगे, बोलो तो सही। प्रेस को और तो कुछ सुझा नहीं, उपलब्धियां बताने को कहा। सी एम का चेहरा चमक गया। उपलब्धियां! सी एम बोलने लगे, उपलब्धियां बहुत है। सबसे बड़ी उपलब्धि तो ये कि हम ९६ से १०५ हो गए। हमारे व्यवहार, नीति, सदभाव और राज्य के प्रति प्रेम को देख पांच विधायकों ने कांग्रेस का झंडा पकड़ कर संख्या १०५ तक पहुंचा दी। कई निर्दलीय विधायकों को मंत्री बना कर समर्थन जुटाया। वर्तमान में जब भाई भाई का दुश्मन है, ऐसे में किसी को अपना बनाना कोई कम उपलब्धि नहीं है। आते समय जिसको गहलोत ने ज्यादा भाव नहीं दिया था उसने प्रश्न करने की कोशिश की तो वह पत्रकार बीच में आ गया जिसका हाल चाल मुख्यमंत्री ने पूछा था। कहने लगा,यार पहले गहलोत जी को बात तो पूरी कर लेने दो। हाँ सर आप क्या कह रहे थे। सी एम अपनी उपलब्धियां बता रहे थे। गोलमा को अपने साथ रखना, उसके नखरे सहना केवल हम ही जानते हैं। विपक्ष करके दिखाए ये सब। कितने ही मंत्री अपनी मन मर्जी करते हैं। ये हमारी उपेक्षा नहीं उनको दी गई स्वायतता है। करप्शन.... भीड़ में से दबी सी आवाज आई। वैरी गुड प्रश्न। सी एम ने कहा । वे बोले, आजकल तो बड़े पत्रकारों के नाम भी इसमें शामिल हो गए हैं। ये ख़ुशी की बात है। करप्शन का दायरा बढ़ा है। एक पत्रकार बोला, सर आपके राज में करप्शन की बात। बेकार के प्रश्न क्यों पूछते हो। वह पत्रकार बोला जिसे नाम लेकर सी एम ने बुलाया था। सी एम जारी थे, विपक्ष ने बहुत अधिक करप्शन किया। सबकी जांच चाल रही है। देखना नतीजा आएगा। सर कोई और उपलब्धि । कोई धीरे से बोला। हाँ हैं ना। सी एम ने कहा, हमें जैसे ही कहीं से किसी अधिकारी की शिकायत मिलती है हम उसका तबादला दूसरी जगह कर देते हैं। दूसरी से तीसरी जगह, इसी प्रकार चौथी,पांचवी.... । ऐसा किसी सरकार ने नहीं किया होगा। और कभी नहीं भी करते, एक पत्रकार दूसरे के कान में फुसफुसाया। गहलोत जी ने वातावरण अपने पक्ष में देख थोडा खुलना शुरू किया। कहने लगे, हमने सी पी जोशी की नजर के बावजूद अपनी कुर्सी बचाए रखी ताकि प्रदेश की सेवा कर सकूँ। आपको डर लगता है क्या जोशी से? एक पत्रकार ने हिम्मत दिखाई। गहलोत बोले, वे दिल्ली की बजाये राजस्थान में अधिक रहते हैं। इसके बाद भी हमने अपनी कुर्सी पर आंच नहीं आने दी। वैसे डर सबको लगता है गला सबका सूखता है....सी एम थोडा मुस्कराए। गला सबका सूखता है कि बात से सबको कुछ याद आ गया। प्रेस वार्ता समाप्त। जैसे जिसके सी एम से सम्बन्ध वैसी उसकी टिप्पणी। पिंक सिटी में उसके बाद क्या हुआ जरुर बताता। मगर इस बीच फोन की घंटी ने कल्पनाओं की प्रेस वार्ता की इतिश्री कर दी। हम तो यही सोचते रहे कि क्या ऐसा हो सकता है!
ओशो ने कहा है -आप बच्चे की सारी आवश्कताएं पूरी कर दें। उसे दुनियां की सभी आरामदायक चीजें दें। लेकिन यदि आप उसे आलिंगन नहीं करते तो उसका कभी सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। अब एक एस एम एस नरेन् का--एक बच्चा चोकलेट खा रहा था। एक आदमी ने उसे टोका, बोला इतनी चोकलेट खाना ठीक नहीं। बच्चा बोला, मेरे दादा जी १०५ साल जिए। आदमी--वो चोकलेट खाते थे? बच्चा--नहीं, वो केवल अपने काम से काम रखते थे बस।
--- गोविंद गोयल
Monday 6 December, 2010
सी एम यूँ ही तो नहीं कहते
Friday 3 December, 2010
आज रोने का मन किया
रोने को मन किया,
मां के आँचल में सर
छुपा के सोने का मन किया,
दुनिया की भाग दौड़ में
खो चुके रिश्ते सब,
आज उन रिश्तों को सिरे से
संजोने का मन किया,
किसी दिन भीड़ में
देखी थी किसी की आँखें ,
ना जाने क्यूँ आज उन आखों में
खो जाने का मन किया,
रोज सपनों से बातें
करता था मैं,
आज ना जाने क्यूँ उनसे
मुंह मोड़ने का मन किया,
झूठ बोलता हूँ
अपने आप से रोज मैं,
आज ना जाने क्यूँ खुद से
एक सच बोलने का मन किया,
दिल तोड़ता हूँ सबका
अपनी बातों से मैं,
आज एक टूटा हुआ दिल
जोड़ने का मन किया।
-----
यह कविता मेरे मित्र और साहित्यप्रेमी आनंद मयसुत ने भेजी थी एस एम एस के द्वारा। खुद शिक्षक हैं। इनके पिता श्री मोहन आलोक राजस्थानी के जाने माने साहित्यकार हैं।
Sunday 28 November, 2010
किस्से में खबर, खबर में किस्सा
अब बात एस पी की कर लें। रुपिंदर सिंह बहुत अच्छे, धर्म परायण इन्सान हैं। लेकिन एस पी के रूप में उनका कोई रोब कहीं न तो दिखता है ना महसूस होता है।एसपी के रूप में उनकी पकड़ कहीं नजर नहीं आती। कोई कुछ भी करने को स्वतंत्र है। पुलिस वाले भी और नियम कानून को अपनी उँगलियों पर नचाने वाले भी। जो कोई भी एस पी से मिलने गया , उसकी बात उन्होंने तसल्ली से सुनी, मिलने वाले को भरोसा भी हुआ। किन्तु उसका परिणाम कुछ नहीं निकलता। कुछ दिन पहले कांग्रेस पार्टी के नेता अपने मुख्यमंत्री से इस बारे में मिले थे। ये कहा और सुना जा रहा है कि एसपी रुपिंदर सिंह का तबादला होने वाला है। एस पी साहेब से इतना ही कहना है कि आपके दफ्तर में लगे एक बोर्ड पर वो नाम हैं जो आपसे पहले यहाँ एसपी रहे हैं। लेकिन आम जन को वही नाम याद हैं जिन्होंने अपराधियों में डर पैदा कर आम आदमी का भरोसा जीता। आप केवल इस बोर्ड पर ही अपना नाम लिखा देखना चाहते हैं या लोगों के दिलो दिमाग पर भी,यह आप पर निर्भर है। हमें तो एस पी दूसरा मिल ही जायेगा। ना भी मिले तो भी क्या है! सहेल गाजीपुरी का शेर है---उस से उसके दोस्त भी नाराज होते जायेंगे, जिस को सच्ची बात कहने का हुनर आ जायेगा। अब साथी पत्रकार राकेश मितवा का मोबाइल सन्देश--श्वास का हर फूल अर्पण कर अमन को, प्यार का हर दीप पीड़ा के शमन को, है तू स्वयं परमात्मा का अंश भू पर, तू जहाँ भी है वहीँ महका चमन को।
---गोविंद गोयल
Monday 22 November, 2010
सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए चिंतन
जुबां फिसली तो फिसलती ही गई--अग्रवाल सम्मलेन कीराष्ट्रीय कार्यकारिणी के स्वागत समारोह में नेताओं की जुबां फिसली तो स्वागत का स्वाद रात तक कडवा रहा। छोटे बड़े अग्रजन हर कार्यक्रम में इस कड़वाहट को एक दूसरे के सामने बाहर निकालते दिखे। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जुबां इस लिए फिसली कि उनको वक्ताओं को बुलाने,उनके स्वागत का क्रम गरिमा के अनुकूल नहीं लगा। उपाध्यक्ष श्याम सुन्दर अग्रवाल को इसमें अपना अपमान महसूस हुआ। बी डी अग्रवाल को उपाध्यक्ष का बर्ताव सहन नहीं हुआ। लिहाजा उनकी जुबां भी फिसलने नहीं बच सकी। मामला अधिक बिगड़ गया। इसी वजह से दो पदाधिकारी प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बैठे। उसके बाद हुए हर कार्यकर्म में यही समीक्षा होती रही कि कौन सही था कौन गलत। जिला कार्यकारिणी का स्वागत समारोह तो छोटा था बात बड़ी हो गई। संभव तय बड़ी बात मुश्किल से ही छोटी होगी। बेचारी आयोजक संस्था ये सोच सोच कर परेशान है कि आखिर यह सब कैसे और क्यों हुआ। वाली आसी का शेर है--आ मेरे यार एक बार गले लग जा, फिर कभी देखेंगे क्या लेना है क्या देना है। आर ए एस अधिकारी का मोबाइल सन्देश--दसना तुसी वी नी ते कहना असी वी नी। सदना तुसी वी नी ते आना असी वी नी। बोलना तुसी वी नी ते बुलाना असी वी नी। पर एक गल पक्की है के भुलना तुसी वी नी ते भुलाना असी वी नी।
Sunday 21 November, 2010
चार बेटियों सहित आत्महत्या
Friday 19 November, 2010
Monday 15 November, 2010
Tuesday 9 November, 2010
मुश्किल डगर पर पहला कदम
Thursday 4 November, 2010
करोड़ों कृषि शरणार्थी होंगे इस देश में
Wednesday 3 November, 2010
कौन देता मेरा साथ
मेरे मासूम
सवालों के
झूठे थे तेरे
सभी जवाब,
तेरी चाहत की
दीवानगी में
गुम हो गए
मेरे सभी ख्वाब।
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अमावस का हूँ
अँधेरा, जो था
पूनम की रात,
दीप की भांति
जलो तो
बन जाये बात।
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तुम्हारी तुला
तोलने वाले भी
तुम्हारे ही हाथ,
ऐसे में कोई
क्यूँ देने लगा
मेरा साथ।
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***गोविंद गोयल
Sunday 31 October, 2010
परम्पराओं से भरा जीवन
सरदार पटेल को याद करें
Saturday 30 October, 2010
श्रीगंगानगर में पत्रकारिता
Thursday 28 October, 2010
श्रीगंगानगर में "गुंडे' की दहशत
Tuesday 26 October, 2010
एक दिन की चांदनी
हमको तो
समझ आती है
यही एक बात,
बस, एक
दिन की चांदनी
फिर अँधेरी रात।
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एक दोस्त है, सालों से पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखता है। बड़ा प्रभावित रहा आज तक। कितना मान करता है पत्नी का। उसके साथ खुद भी भूखा रहता है। बहुत प्रशंसा करता उसकी। कल रात को भी की थी। असली कहानी आज समझ आई। वह व्रत अपनी मर्जी से या पत्नी की सहानुभूति के लिए नहीं रखता। व्रत रखना उसकी मज़बूरी है। क्योंकि पत्नी या तो सजने संवरने में लगी रहती है या व्रत भंग ना हो, इस वजह से कुछ काम नहीं करती। तब पति क्या करता। एक दो साल तो देखा। बाज़ार में कुछ खाया। लेकिन बात नहीं बनी । उसके बाद उसने भी व्रत रखना आरम्भ कर दिया। मैंने खुद देखा सुना। पति बोला, सुनो मेरी शर्ट में बटन लगा दो ऑफिस जाना है। पत्नी कहने लगी, मेरा तो आज करवा चौथ का व्रत है। सुई हाथ में नहीं लेनी या तो खुद लगा लो या फिर दूसरी शर्ट पहन लो। ऐसी स्थिति में कोई क्या करे! व्रत करे और क्या करे। पत्नी भी खुश शरीर को भी राहत।
Sunday 24 October, 2010
मियां बीबी का रिश्ता मतलब वीणा की तार
Saturday 23 October, 2010
रस्सी से घिस जाता पत्थर
जब हवा थमे आगे चल दो,तेरी मुट्ठी में होगा कल।
तुम डटे रहो अपने पथ पर,रस्सी से घिस जाता पत्थर।
अथ धैर्यम शरणम् गच्छामि, भज ओशो शरणम् गच्छामि।
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लगता होगा बहुत बार,कुछ लोग नहीं सुनते तुमको।
घायल हो जाता अहंकार,दुःख पागल कर देता मन को।
मत कथा गढ़ो या चिल्लाओ,नूतन अनुरोध किये जाओ।
अनुरोधम शरणम् गच्छामि,भज ओशो शरणम् गच्छामि।
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ये पंक्तियाँ ओशो की है। मेरे मित्र नरेंद्र शर्मा ने मुझे दी। हम इनको जन जन पहुँचाने से अपने आप को नहीं रोक सके। उम्मीद है ओशो के अनुयायी इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
Friday 22 October, 2010
Wednesday 20 October, 2010
साधू,संत,सैनिक कहाँ से आयेंगें
राधाकृष्ण ने कहा कि नारी स्वतंत्रता की बातें बहुत होती हैं। बड़े बड़े सम्मलेन होते है। किन्तु कपड़ों के अलावा नारी की स्वतंत्रता कहीं दिखाई नहीं देती। एकता,स्वतंत्रता के नाम पर नारी को प्रदर्शन की वस्तु बना दिया गया है। घर में देवरानी-जेठानी एक नहीं होती। उन्होंने घूंघट को सौन्दर्य का संकोच बताया। उनका कहना था कि दायरे में रहने से कद बढ़ता है। आज कल पता ही नहीं लगता कि सास कौनसी है बहु कौनसी। उन्होंने कहा कि घर की बहू जेठ को देख कर घूंघट करती और जेठ उसको देख दूर से निकल जाता। ये था कायदा। इस से दोनों का कद बढ़ता। इसके बाद वे कहने लगे मैं कितना भी कहूँ रहना तो आपने वैसा ही है। राधाकृष्ण ने खेती के लिए बैल को सबसे उपयोगी बताया। उनका कहना था कि बैल से जुताई करने से खेत उपजाऊ होते हैं। उन्होंने अपने मायरे के दौरान प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग ना करने का सन्देश दिया। राधाकृष्ण ने कहा कि कथा में आना तभी सार्थक होता है जब कोई उसे समझे,सीखे और माने। उन्होंने ने कहा कि रसोई में जो कुछ बनता है वह सब को मिलना चाहिए। परोसने में भेद भाव हो तो अन्नपूर्णा का अपराधी बन जाता है परोसने वाला। राधाकृष्ण ने यह सब किसी न किसी प्रसंग के समय कहा। हालाँकि कई बार उनकी बात विनोद के अंदाज में थी ,किन्तु निरर्थक नहीं। कथा कहने का उनका अंदाज जितना अनूठा है उतना ही निराला है उनका नृत्य। कथा के बाद जब नर नारी घरों को लौटने की जल्दी में होते हैं तब शुरू होता है उनका नाच। उनकी लम्बी छोटी से लेकर उनके पैरों का ऐसा नृत्य कि कोई भी कुछ क्षण के लिए अपने आप को भूल जाये। भक्ति भाव का नृत्य कैसा होता है उनसे सीखा जा सकता है। उनसे मुलाकात करने से पहले उनका नृत्य देखा होता तो ये जरुर पूछता कि महाराज आपने नृत्य किस से सीखा?
सहज,सरल और आडम्बर से दूर राधाकृष्ण की कथा में भी यह साबित हो गया कि मां के आँचल के अलावा सब जगह सब बराबर नहीं होते। इसका अहसास आयोजन से जुड़े व्यक्तियों को उन्होंने कई बार करवाया मगर भीड़ देखकर बोराए वे लोग बार बार वही करते रहे जो राधाकृष्ण महाराज को पसंद नहीं आ रहा था। उन्होंने कथा आरम्भ होने के कुछ मिनट बाद उनसे कहा, चलो आपके नए कुर्ते देख लिए बहुत अच्छे हैं, अब गैलरी से हट जाओ, जहाँ हो वहीँ बैठ जाओ। बाद में मंच पर चढ़ते हुए इनको कई बार रोका। नीचे उतारा। एक कार्यकर्त्ता को तो यहाँ तक कह दिया कि जब मैंने मायरे के लिए सामान ना लेने के लिए कह दिया था तो क्यों इकट्ठा कर रहे हो, वापिस करो। एक महिला को उन्होंने आवाज देकर उसका सामान वापिस किया। उन्होंने इशारों इशारों में कार्यकर्ताओं से विशिष्टता न दिखाने को कहा, संकेत दिया। इसके बावजूद कोई खास असर देखने को नहीं मिला। आयोजन जबरदस्त था। पुरुषो की संख्या नारियों से एक चौथाई रही। ये आश्चर्यजनक था कि महिलाओं ने कथा के दौरान आपस में बात चीत नहीं की। सबका ध्यान व्यास गद्दी की ओर ही रहा।
कृपा शंकर शर्मा "अचूक" की लाइन हैं --मंजिले हैं कहाँ यह पता कुछ नहीं,सिर्फ आदी हुए लोग रफ़्तार के। जिंदगी एक पल में संभाल जाएगी, गर समझ लें सलीके जो व्यवहार के। ---
Tuesday 19 October, 2010
मुलाकात महाराज राधाकृष्ण से
महाराज जी ने कहा कि नानी बाई कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। यह सच्ची कथा है। इसे आम बोल चाल की भाषा में सुनाता हूँ तो सबके मन में बस जाती है, रस और भाव आते हैं। कथा में कोई चुटकुले,टोटके किसी प्रसंग को समझाने के लिए इस्तेमाल हों तो ठीक। केवल हंसाने के लिए हो तो अच्छा नहीं माना जाता।
राधाकृष्ण ने कहा कि मैं तो एक आम आदमी ही बना रहना चाहता हूँ। विशिष्ट नहीं बनना मुझे। विशिष्ट होने के बाद कई झंझट गले पड़ जाते हैं। राधाकृष्ण गौड़ ब्राहम्ण परिवार से हैं। खानदान में इनके अलावा कोई और इस लाइन में नहीं है। घर के पास मंदिर था, वहां जाया करता था। मन कृष्ण में ऐसा लगा कि बस इसी में राम गया। वे कहते हैं , यह मेरा व्यवसाय नहीं सेवा है। कथा करने का कुछ भी नहीं लिया जाता। अगर कोई देता भी है तो वह जन और गाय की सेवा में लगा देते हैं। मुलाकात के लिए उन्होंने काफी लम्बा समय दिया मगर उनका मोबाइल फोन इसमें से कुछ भाग ले गया। उनकी फोन पर बात चीत से ऐसा लगा कि अप्रैल तक उनके सभी दिन बुक हैं। कहीं श्रीमदभागवत है कहीं नानी बाई का मायरा। जोधपुर में २१-२२ अक्टूबर को कोई बड़ा कार्यकर्म करने की योजना भी है। राधाकृष्ण पहली बार श्रीगंगानगर आये हैं। उनका कहना था कि श्रीगंगानगर में मायरा करने में आनंद ही आनंद होगा ऐसा पहले दिन की भीड़ से लगता है। नर नारी कथा को भाव से सुनने के लिए आये थे। बातें बहुत थी। मगर यहाँ इतना काफी है। रमा सिंह की लाइन है--मैं तुझमे ऐसी रमी, ज्यों चन्दन में तीर, तेरे-मेरे बीच में, खुशबू की जंजीर। किसी कवि की दो लाइन महाराज जी के लिए--" शख्स तो मामूली सा था, दुनिया जेब में थी, हाथ में पैसा न था। ----गोविंद गोयल
Monday 18 October, 2010
राज राज की स्थापना हो गई
तो इसमें क्या बात है। ऐसा तो कोई किसी राज्य में नहीं करता। गलत, बिलकुल गलत। हमारे यहाँ तो कोई भी ऐसा कर सकता है। श्रीगंगानगर में कई प्राइवेट वाहन हैं जिस पर लाल प्लेट लगाकर मंत्रालयों के नाम लिखे हुए हैं। कई वाहनों पर लिखा है "इस्पात मंत्रालय", इस्पात मिनिस्टरी। कई बार तो इनमे से एक वाहन पर लाल बत्ती भी लगी होती है। दो कारों पर वित्त मंत्रालय लिखा हुआ है। ये दोनों कारें बैंक से सम्बंधित हैं। इनको कोई पुलिस वाला नहीं रोकता। मंत्री आने पर पुलिस को सूचना होती है। दोनों मंत्रालय केंद्र के हैं। हैरानी इस बात की है कि किसी ने इनको आज तक नहीं रोका,टोका। ये बोर्डर वाला जिला है। प्रेस लिखे वाहनों में कारोबारी माल ढोया जाता है। जिनका कपडे प्रेस करने का काम तक भी नहीं वे भी प्रेस लिखे वाहनों का प्रयोग करते हैं। पत्रकारों ने एक साथ इस बारे में एसपी को बताया था।
आधी रात के बाद सड़कों पर पुलिस की गश्त नहीं आवारा लड़कों की मटरगश्ती होती है। शराब के नशे में ये लोग हुड़दंग मचाते हैं। एसपी साहेब कोई शिकायत नहीं करेगा। किसकी हिम्मत है जो इनसे पंगा ले। छोटी छोटी चोरी वाले तो थानों तक पहुँचते ही नहीं। क्या होगा, कुछ भी तो नहीं।
डीएम ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में कब्जों के खिलाफ कार्यवाही तुरंत करने की बात कही थी। उन्होंने अपनी बात पूरी की। सड़कों पर सुबह शाम लगने वाली फल सब्जी की रेहड़ियों को हटवा दिया। बेचारे गरीब लोग थे। सड़कों,सरकारी जमीन पर मकान दुकान बनाने का सिलसिला जारी है। हर इलाके में अंडर ग्राउंड बन रहे है। शहर को खोखला किया जा रहा है। प्रकृति ने एक झटका दिया तो नगर गुजरात बन जायेगा। मगर हम किसी को कुछ नहीं कहेंगे। इतने डीएम आये किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा, हम क्यों कहें। यही हाल छोटे अफसरों का है। आम आदमी को झटके देने में कोई अफसर चूक नहीं करता। मिडिया में वाह वाही होती है। बड़े को सब सलाम बजाते हैं। क्योंकि इनकी बेगारें भी तो यही पूरी करते हैं। कोई रेहड़ी वाला किसी अफसर को क्या ओब्लाईज कर सकता है।
चलो बहुत हो गया। कल ही तो लंकापति के कुल को समाप्त कर राम राज्य की स्थापना की है। जब राम राज हो तो फिर किस को किस बात का डर। सब एक समान है। सब कोई सब काम करने को स्वतंत्र है। इसलिए एक कवि की दो लाइन पढो-" पुलिस पकड़ कर ले गई,सिर्फ उसी को साथ, आग बुझाने में जले जिसके दोनों हाथ।" एक एसएमएस -- भिखारी मंदिर के बाहर भीख मांगता है और सेठ मंदिर के अंदर।
Sunday 17 October, 2010
दशहरा पूजन किया घर में
राम राज को आयेंगे
वो रावण
भी नहीं रहा,
ये भी
मारे जायेंगे,
तू उदास
मत हो
रे मना
राम राज
को आयेंगें।
पत्रकार साथियों को शोक
श्रीगंगानगर के एक और पत्रकार श्री संजय सेठी की माता श्रीमती माया देवी का भी इसी रात को निधन हो गया। उनके परिवार ने उनकी मृत देह मेडिकल कॉलेज को दान कर दी।
हम दोनों आत्माओं को नमन कर परिवार को यह शोक सहन करने की प्रार्थना इश्वर से करते हैं। नारायण नारायण।
Friday 15 October, 2010
अष्टमी पर माँ की आरती
Thursday 14 October, 2010
खबर के अन्दर खबर
----- राजस्थान में पंचायत विभाग को बहुत ही ताकतवर बना दिया गया है। पांच विभाग और उसके सुपुर्द हो गए हैं। जो विभाग पंचायत की झोली में डाले गए हैं उनके मंत्रियों का वजन कम होना स्वाभाविक है। शिक्षा मंत्री भंवर लाल मेघवाल की मनमर्जी सब जानते हैं। मुख्यमंत्री क्या उनके तबादलों के कारनामे तो प्रधानमंत्री तक पहुँच गए हैं। [ऐसा एक मंत्री ने मुझे बताया था।] कई मंत्री आपस में उलझे रहते हैं। मतलब की मंत्री परिषद् में सब ठीक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इसमें फेरबदल होना संभव है। कब होगा इसके लिए कोई डेट निश्चित नहीं की जा सकती। इस प्रकार की "घटनाएँ" कभी भी हो सकती हैं। जिले के एक मात्र मंत्री गुरमीत सिंह कुनर बने रहेंगे। उनका विभाग बदल सकता है।वैसे वो बड़ा विभाग ना लेना चाहे तो अलग बात है। उनके पास अभी जो विभाग है वह असल में तो मार्केटिंग बोर्ड है। उसको मंत्रालय बना दिया गया है। उसमे से भी सड़कों का काम अब सार्वजनिक निर्माण विभाग को दे दिया जिस से वह और छोटा हो गया। चलो इंतजार करते हैं जादूगर के जादू का।
----- अभी कुछ दिन पहले अग्रवाल समाज की शोभायात्रा का आयोजन हुआ। श्रीगंगानगर के इतिहास में अग्रवाल समाज के लोग इतनी बड़ी संख्या में एक साथ कभी सड़कों पर नहीं आये। इस आयोजन के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर आरम्भ है। इस बात की चर्चा होना स्वाभाविक है कि विकास डब्ल्यू एस पी के बी डी अग्रवाल विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनकी सहानुभूति बीजेपी के साथ है। बताते हैं कि उनकी बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया से भी मुलाकात हुई है। श्री अग्रवाल श्रीमती राजे को श्रीगंगानगर लाने की योजना बना रहे हैं। अभी तक तो यहाँ के विधायक राधेश्याम गंगानगर को श्रीमती राजे के निकट माना जाता रहा है। अब ये नए समीकरण राधेश्याम की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं। हालाँकि राधेश्याम गंगानगर इलाके के ऐसे राजनेता हैं जो कुछ भी कर सकने में संभव हैं। लेकिन संघ से उनकी पटरी नहीं बैठ रही। दूसरा सालों से वसुंधरा जी के आस पास रहने वाले नेता ये कब सहन करने लगे कि कल बीजेपी में आया राधेश्याम उनसे आगे निकल जाये। चुनाव में अभी तीन साल है। यहाँ की राजनीति कई रंग बदलेगी ऐसा आभास होने लगा है।
----- अग्रवाल समाज की शोभा यात्रा के समय विधायक राधेश्याम गंगानगर ने महाराजा अग्रसेन जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया। यह एक सामान्य बात है। जनप्रतिनिधि ऐसा करते ही हैं। अग्रवाल समाज के एक व्यक्ति, जो यहाँ अधिकारी हैं ने एतराज जताया। उन्होंने शोभा यात्रा के साथ चल रहे अग्रबंधुओं से कहा कि वे अरोड़ा समाज के राधेश्याम को उस वाहन पर मत चढ़ने दें जहाँ अग्रसेन महाराज की फोटो रखी है। यह अधिकारी वही हैं जो राधेश्याम के विधायक बनने बाद उनसे मिलने को आतुर था। अपने एक कर्मचारी की मार्फ़त जो सहायक के रूप में विधायक के साथ था। नरेश गोयल नामक इस अधिकारी ने अपनी एक किताब का विमोचन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से करवाया। हैरानी की बात ये कि उसी किताब का विमोचन उससे पहले इन्होने श्रीगंगानगर में एक समारोह में करवा लिया था।
Wednesday 13 October, 2010
Wednesday 6 October, 2010
अग्रवाल होंगे सम्मानित
विशेष आग्रह व सूचना
राजस्थानवासी अग्रवाल समाज के सभी छात्र -छात्राओं को सूचित किया जाता है कि अग्रवाल सेवा समिति द्वारा राजस्थान के समस्त अग्रवाल समाज के विद्यार्थियों को सम्मानित करने के लिए निम्नलिखित योजना है।
१-भारतीय प्रशासनिक सेवाओं आईएएस/आईपीएस तथा आईआरएस में वर्ष २०१० तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति गोल्ड मैडल से सम्मानित करेगी।
२-राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं आरएएस/आरपीएस तथा आरजेएस में वर्ष २०१० में तथा इसके बाद के वर्षों में चयनित परीक्षार्थियों को समिति सिल्वर मैडल से सम्मानित करेगी।
३-अखिल भारतीय स्तर पर [ सीबीएसई/ एनसीईआरटी] तथा राजस्थान राज्य माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा सैकेंडरी तथा सीनियर सैकेंडरी परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले विद्यार्थी को समिति गोल्ड मैडल तथा दूसरा स्थान पाने वाले को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
४-अखिल भारतीय स्तर पर आईआईएम ,आईआईटी ,एआईआईएमएस ,सीपीएमटी तथा राजस्थान में राज्य स्तर पर पीएमटी की प्रवेश परीक्षा तथा सी ए फ़ाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले परीक्षार्थियों को गोल्ड मैडल, दूसरा स्थान पाने वाले विद्यार्थी को सिल्वर मैडल दिया जायेगा।
५-पिछले दो साल में एमबीए ,सीए किये तथा कैम्पस भर्ती के इच्छुक विद्यार्थी जो बैंकों में सर्विस के इच्छुक हो को योग्यता के आधार पर सर्विस दिलवाने का प्रयास किया जायेगा। कृपया सभी पात्र अपना बायोडाटा ई मेल या डाक द्वारा निम्न पते पर भेजे।
बी डी अग्रवाल [मुख्य सरंक्षक ]
अग्रवाल सेवा समिति ,विकास दाल मिल परिसर
नई धान मंडी गेट नंबर २,
श्रीगंगानगर ३३५००१
फोन ०९४१३९३४६४४ , ई मेल- beedeeagarwal@gmail.com
निवेदक
बी डी अग्रवाल,प्रबंध निदेशक
विकास डब्ल्यू एस पी लिमिटेड
श्रीगंगानगर
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विकास डब्ल्यू एस पी के प्रबंध निदेशक श्री बी डी अग्रवाल राजस्थान का तो पता नहीं श्रीगंगानगर में पहले ऐसे आदमी है जिन्होंने अपने समाज के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। कुछ दिन पहले इन्होने समिति के माध्यम से कई लाख रूपये की सहायता अग्रवाल समाज के उन विद्यार्थियों के लिए डी जो अपनी फीस जमा नहीं करवा पाए थे। श्री अग्रवाल ने कल प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि यह सब हमारे जाने के बाद भी चलता रहेगा, इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है।
Tuesday 5 October, 2010
बेचारे मास्टर जी
Saturday 2 October, 2010
तुझे पराई क्या पड़ी
ओरों के घर
के झगड़े
ए रावण
ना छेड़ तू,
तुझे पराई
क्या पड़ी
अपनी
नीबेड़ तू।
Thursday 30 September, 2010
Friday 24 September, 2010
आयोजन ही आयोजन
नगर के लोगों को इस बात से कोई लेना देना नहीं कि हमारे यहाँ किसी भी रेल फाटक पर पुल नहीं है। हम लोग इस बात की भी परवाह नहीं करते कि श्रीगंगानगर में सिवरेज नहीं है। बरसात का पानी शहर की हालत बिगाड़ देता है। सड़कें ख़राब हैंइस बारे में सरकार सोचे , हम क्यों अपना दिमाग ख़राब करें। शहर ऐसा मस्त हुआ है जैसे इन आयोजनों के बाद नगर में कोई समस्या रहेगी ही नहीं।
Wednesday 22 September, 2010
Wednesday 15 September, 2010
सीमावर्ती का विमोचन
Monday 13 September, 2010
गणपति बाबा हमारे घर
Wednesday 8 September, 2010
हस्ताक्षर को गणपति का रूप देने वाला कलाकार
Friday 3 September, 2010
गोरी राधा, सांवरे श्याम
Thursday 26 August, 2010
आम आदमी से मुलाकात
आम आदमी ने अपना कर्म करके कुछ रकम जोड़ी, पांच सात तोला सोना बनाया। सोचा, घर जाऊंगा ले जाऊंगा। परिवार के काम आयेंगे। बहिन की शादी में परेशानी कम होगी। घर जाने से पहले ही चोर इस माल को ले उड़ा। थाने में गया, परन्तु मुकदमा कौन दर्ज करे? चलो किसी तरह हो गया तो चोर के बारे में बताने,उसे पकड़ने की जिम्मेदारी भी इसी की। घर में इतना सामान क्यों रखा? इस बारे में जो सुनना पड़ा वह अलग से। मोहल्ले वालों ने बता दिया। इस बेचारे ने समझा दिया। पुलिस पुलिस है, समझे समझे,ना समझे ना समझे। बेचारा आम आदमी क्या कर सकता है। जिस पर शक है वह मौज में है। इसी मौज में वह वहां चला जायेगा जिस प्रदेश का वह रहने वाला है। आम आदमी अब भी कुछ नहीं कर पा रहा बाद में भी कुछ नहीं कर पायेगा।
पेट काट कर सरकारी कालोनी में भूखंड लिया। सोचा मकान बना लूँ। बैंक आम आदमी के लिए होता है। यह सोचकर वह वहां चला गया उधार लेने। किसी ने एक लाख उधार पर साढ़े तीन हजार मांगे किसी ने तीन हजार। कोई जानता नहीं था इसीलिए किसी ने उसकी सूनी नहीं, मानी नहीं। यह रकम देनी पड़ी। लेकिन मकान का निर्माण इतनी आसानी से तो शुरू नहीं हो सकता ऐसे आदमी नक्शा बनना पड़ेगा। वह पास होगा। तब कहीं जाकर आदमी मकान की नीव भर सकता है। सरकारी कालोनी थी। कब्ज़ा पत्र लिया था। वह गुम हो गया नक्शा पास करवाने की जो फाइल ऑफिस में थी वह ऑफिस वालों से इधर उधर हो गई। सरकारी,गैर सरकारी जितनी फीस लगती है उससे डबल फीस देनी पड़ी। अब यह क्या जाने की किस काम के कितने दाम लगते हैं। कई दिन तक घर ऑफिस के बीच परेड होती रही, काम नहीं हुआ। होता भी कैसे आम आदमी जो ठहरा। उस पर आवाज ऐसी मरी मरी जैसे कोई जबरदस्ती बुलवा रहा हो। यह तो उसकी कई दिनों की कहानी है। टटोले तो अन्दर और भी दर्द हो सकते हैं। मगर हमें क्या पड़ी है। ऐसे आदमी का पक्ष लेने की जिसको कोई नहीं जानता। उस से जान पहचान करके भी क्या फायदा! देश में पता नहीं ऐसे कितने प्राणी है जो इस प्रकार से अपने दिन कटते हैं। इसके लिए तो यही कहना पड़ेगा--कैसे तय कर पायेगा, वो राहें दुशवार,लिए सफ़र के वास्ते, जिसने पाँव उधार। नारायण नारायण।
Tuesday 24 August, 2010
बेगाना सा रहता हूँ
बेगाने की तरह
रहता हूँ,
कोई क्यों जाने
क्या क्या
सहता हूँ,
वो पतझड़
समझते हैं
जो
बसंत कहता हूँ।
Sunday 22 August, 2010
स्वाति महासचिव
Monday 16 August, 2010
पीपली लाइव के संग
Thursday 12 August, 2010
सात दिन बाद आई बड़ी खबर
१३ अगस्त १९८२ को श्रीगंगानगर के सैसन जज रणवीर सहाय वर्मा ने अशोक चांडक,पीडी लूथरा,जसजीत सिंह और सुनील भाटिया को कातिलाना हमले का मुजरिम करार देकर चारों को चार चार साल की कैदे बामशक्कत की सजा सुनाई थी। सैसन जज के इस निर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करीब २७ साल तक लंबित रही। १३ जनवरी को हाई कोर्ट ने अपील ख़ारिज करते हुए निचली अदालत का फैसला बहाल रखा था। गत २८ सालों में अशोक चांडक और पीडी लूथरा ने अपने अपने क्षेत्रों में काफी नाम और दाम कमाया। आज दोनों जेल में हैं।
Wednesday 11 August, 2010
डाकू जी प्रणाम
Sunday 1 August, 2010
छोड़ सभी तकरार रे
रिमझिम रिमझिम
बूंदें पड़ती
ठंडी चले
बयार रे,
आजा अब तो
गले लग जा
छोड़ सभी
तकरार रे।
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आज फ्रेंडशिप डे है।
Saturday 31 July, 2010
हंगामा तोड़फोड़ और कारोबार
एक काल्पनिक घटनाक्रम।
Friday 30 July, 2010
Thursday 29 July, 2010
सी पी जोशी
केंद्र सरकार के मंत्री हैं श्री सीपी जोशी। इनके पास ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग है। केंद्र के मंत्री के नाते इन पर पूरे देश की जिम्मेदारी है। लेकिन हाय रे मन! इनका अधिक समय राजस्थान में बीतता है। २००८ में इनको राजस्थान में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता था। केवल एक वोट से चुनाव हार गए। उसके बाद इनको भीलवाड़ा से लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया। जीतने के बाद केंद्र में मंत्री बन गए। ऐसा लगता है कि जितना समय इन्होने मंत्री के रूप में अपने ऑफिस में नहीं बिताया होगा उतना राजस्थान में बिता दिया। राजस्थान के अख़बार देख लो आप को पता लग जायेगा कि जोशी राजस्थान के किस हिस्से में हैं। अख़बार में ना हो तो ई टीवी राजस्थान देख लेना, आपको उनकी पल पल की खबर मिल जाएगी। शायद ही कोई दिन ऐसा होगा जब ये मंत्री राजस्थान में ना होते हों। इनके पास राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी है। जोशी जी को चाहिए तो ये कि वे देश के ग्रामीण इलाकों का भ्रमण कर वहां के हालत देखें, किन्तु मन का क्या करे। वह तो राजस्थान में पड़ा हुआ है, मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहा है। सपने देखना तो अच्छी बात है, देखो, मगर उनके सपने तो पूरे करो जिनका मंत्रालय आपके पास है जनाब। आज जोशी जी का जन्मदिन है। उनको इस ये संकल्प लेना चाहिए कि वे आज से राजस्थान के साथ साथ देश भर के ख्याल करेंगे, उन गांवों की संभाल करेंगे, जिनके बारे में ये कहा जाता है वहां असली हिन्दूस्तान रहता है। ये ऐसा नहीं करते तो फिर सोनिया मैडम को कुछ करना चाहिए।
Friday 23 July, 2010
गाँव का कार्यकर्म,सरपंच नहीं
Thursday 15 July, 2010
Monday 12 July, 2010
चैनल पर चर्चा
Thursday 8 July, 2010
सरकार से भी बड़े डीएम
एक बात और, नव दम्पति विवाह का पंजीयन करवाने के लिए डीएम [मैरीज रजिस्ट्रार ] के समक्ष पेश होते हैं। ये जोड़े वहां से कोई अच्छी याद अपने साथ लेकर नहीं जाते। पेडणेकर जी पहले तो उनको लम्बा इंतजार करवाते हैं। जोड़े इंतजार के दौरान वहां आने आने वालों की नज़रों से अपने आप को असहज महसूस करते हैं। बहरहाल, यागल जब उनके दरबार में पहुँचते हैं तो डीएम उनसे उनके नाम पता यूँ जैसे नव विवाहित दम्पति नहीं बंटी-बबली जैसे कोई शातिर मुजरिम हों। या शादी करके उन्होंने कोई गुनाह कर लिया हो। पहले तो इंतजार के कारण मूड ऑफ़ उस पर पुलिसिया स्टाइल की पूछताछ । कोई कुंवारा साथ हो तो शादी करने से तोबा कर ले। साहब जी हमारी सलाह मानो तो ऐसे दम्पतियों को स्नेह से कुर्सी पर बिठाओ,उनका मुहं मीठा करवाओ। मिठाई ना हो तो मिश्री इलायची चलेगी। उनको दूधो नहाओ, पूतो फलो का आशीर्वाद दो। फिर देखो। कहने को तो ये केवल बात है। आपके मुहं से निकलेगी तो उनके लिए सोगात हो जाएगी। वे बाहर आकर हर जगह आपके गीत गायेंगे। अपने बच्चों को आपके बारे में बताएँगे। उनका ही नहीं आपका सुना चेहरा भी खिल उठेगा। डीएम जी बड़े वही होते हैं जो बड़ा पन दीखते हैं। वरना तो बड़े दही में पड़े होते है।
" कहना है इतना कुछ, मगर कह नहीं सकते,फितरत है अपनी भी चुप रह नहीं सकते।"
Monday 5 July, 2010
मां का आँचल
मां के आँचल
में सोने का सुख
अगली पीढ़ी
नहीं ले पायेगी,
क्योंकि
जींस पहनने वाली
मां आँचल
कहाँ से लाएगी।
मेरे मित्र राजेश कुमार द्वारा भेजा गया एक एस एम एस।
Saturday 26 June, 2010
Friday 25 June, 2010
Wednesday 16 June, 2010
चुटकिय
प्रणब
अर्जुन
पवार,
ये किस
मिट्टी के
बने हैं
मेरे यार।
----चुटकी-----
जिन्ना
बोतल
में बंद,
जसवंत सिंह
फिर हुए
बीजेपी के संग।
Monday 14 June, 2010
न्याय नहीं फैसले होते हैं
आजकल
पीड़ित लोग
इसलिए
रोते हैं,
क्योंकि
अब
पंचायत में
न्याय नहीं
फैसले होते हैं।
Sunday 13 June, 2010
Saturday 5 June, 2010
Saturday 22 May, 2010
चार साल बाकी हैं मेरे यार
---- चुटकी---
एक साल में
खूब पड़ी
महंगाई की मार,
पर अभी भी
चार साल
बाकी हैं
मेरे यार।
Friday 21 May, 2010
कहानी इस बार जरा लम्बी है
साहब जी, चूँकि ज्ञान, बुद्धि और संस्कार में हम आपका मुकाबला नहीं कर सकते इस वजह से ये तो नहीं जानते की आपने जो किया वह सही है या गलत हाँ इतना जरुर पता है कि किसी को किसी के सामने नंगा कर देने से बड़ी जलालत उस आदमी के लिए तो हो ही नहीं सकती। भारतीय संस्कृति में तो नंगा नहाना भी पाप है,किसी के सामने नंगा होना या किसी को अपने सामने नंगा होने के लिए मजबूर करना तो हट के है। आज आप आई पी एस हैं, वक्त आपके साथ है। जो करोगे सब कानूनन सही कहलायेगा। कल का क्या पता । वक्त किसी दूसरे के पास जा सकता है। मुलजिमो को दुबारा अपराध करने से रोकने के लिए बहुत कुछ है। आपकी फाइल मजबूत हो तो अपराधी सजा से बच ही नहीं सकता। किन्तु आपका तो अपराध समाप्त करवाने का नजरिया ही हट के है। ऐसे में किसी और कानून की तो जरुरत ही नहीं। आज आप उस पोजीशन में हैं जहाँ आप पर कोई पाबन्दी नहीं। कानून! कानून तो वही है जो आप कहें और जो आप करें। किस की मजाल जो आपके हुकम की पालना में जय हिंद ना कहे। मजबूर के ही शब्दों में "कहने को तो सब कुछ कह डाला,कुछ कहते हैं कुछ कह नहीं सकते।" आप मुझे अपना तो मान ही नहीं सकते। इसलिए आपका गोविंद गोयल लिखना तो ठीक नहीं।
चुनांचे केवल -गोविंद गोयल
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यह श्रीगंगानगर में नियुक्त एक आई पी एस को समर्पित है।
Thursday 20 May, 2010
अँधेरा है,रोशनी नहीं है
अँधेरे का अपना
कोई
अस्तित्व नहीं है,
बस,
रोशनी नहीं है
इसलिए अँधेरा है,
वरना तो
जिधर देखो
उधर
सवेरा ही सवेरा है।
Wednesday 19 May, 2010
तुम क्या हो
मैं नहीं जानता
तुम क्या हो और
क्या बनना चाहते हो,
लेकिन तुम से
इतना अवश्य कहूँगा
तुम जो हो वही रहो
वो बनने की कोशिश
मत करो
जो तुम नहीं हो,
कहीं ऐसा ना हो कि
भविष्य का कोई झोंका
तुम्हारे वर्तमान अस्तित्व
कि मिटा दे,और
बाद में तुम
अपने अतीत को
याद करके अपनी
करनी पर पछताते रहो।
Saturday 15 May, 2010
कुछ पाने के लिए सब कुछ खोया
ठीक है कुछ पाने के लिए
कुछ ना कुछ
खोना ही पड़ता है,
मगर ये नहीं जानता था कि
मैं, कुछ पाने के लिए
इतना कुछ खो दूंगा कि
मेरे पास कुछ और पाने के लिए
कुछ भी तो नहीं बचेगा,
और मैं थोडा सा कुछ
पाने के लिए
अपना सब कुछ खोकर
उनके चेहरों को पढता हुआ
जो मेरे पास कुछ पाने की
आस लिए आये हैं,
लेकिन मैं उनको कुछ देने की बजाए
अपनी शर्मसार पलकों को झुका
उनके सामने से
एक ओर चला जाता हूँ
किसी और से
कुछ पाने के लिए।
Friday 14 May, 2010
एक व्यापारी ऐसा भी
हमारी गली में
एक व्यापारी
आता है,
खुशियों के बदले
सबके
गम ले जाता है।
सौदा घाटे का
करता है,
मगर खाते में
मुनाफा दिखाता है,
Thursday 13 May, 2010
तुम्हारी किताबों की किस्मत
किताबों की किस्मत
जिन्हें हर रोज तुम
अपने सीने से लगाती हो,
मेरे बालों से भी
अधिक खुशनसीब हैं
तुम्हारी किताबों के पन्ने
जिन्हें तुम हर रोज
प्यार से सहलाती हो,
मेरी रातों से भी हसीं हैं
तेरी इन किताबों की रातें
जिन्हें तुम अपने
पास सुलाती हो,
इतनी खुशनसीबी देखकर
तुम्हारी इन किताबों की
मेरी आँखे सुबह शाम
बार बार बस रोती हैं,
क्योंकि हर नए साल
तुम्हारे सीने से लगी
एक नई किताब होती है,
और वो पुरानी किताब
पड़ी रहती है
अलमारी में एक तरफ
गोविंद की तरह
इस उम्मीद के साथ कि
एक बार फिर उठाकर
अपने सीने से लगा लो
शायद तुम उस किताब को ।
Wednesday 12 May, 2010
साथी तू बिछड़ गया,तोड़ी दोस्ती
एक बार मैंने उसके घर फोन किया, उसकी मम्मी ने फ़ोन उठाया। मैंने कहा,आंटी हरी से बात करवाना। आंटी ने कहा-हरी तो गोविंद के साथ फिल्म देखने गया है। मैंने बताया कि मैं गोविंद ही बोल रहा हूँ। तब आंटी को गुस्सा आया और मुझे हंसी। शाम को जनाब मिले, उससे कहा भई तूने फिल्म जाना था तो मुझे बता तो देता ताकि तेरा झूठ सच बना रहता। आज भी यह बात हम लोग भूले नहीं हैं। मगर अब वह नहीं जिसके साथ इस बात को लेकर चुहल बाजी किया करते थे। उसके दो मासूम लड़कों को देखने की हिम्मत नहीं हुई, उनसे बात करने का हौसला तो होते होते ही होगा।