Saturday 30 March, 2013

मौन



मेरे मन का मौन
अब सुनेगा कौन,
हर चेहरा ताकता है
मन में कौन झांकता है,
तू ही कोई सपना बुन
मौन हो मेरा मौन सुन,
तुझे मीत  बताता है
तेरे गीत गाता है,
अपने मन को झिंझोड़
उसे मेरे मन से जोड़,
मौन का मौन से
अब होने दे संवाद
इस वाचाल जमाने को
कुछ तो रहे याद।

Friday 29 March, 2013

मच गया बवाल



बाई के कारण घर में मच गया बवाल
पति अड़ गया,बोला बाई को घर से निकाल,
बाई रहेगी तो मैं नहीं आऊंगा
घर छोड़ कहीं दूर चला जाऊंगा,
पति ने थोड़ी  हिम्मत दिखाई
पत्नी की दुखती रग दबाई,
जा निकल,पत्नी बोली
शाम को झक मार के आएगा,
बाई गई तो तुरंत कोई दूसरा ले जाएगा,
तुझे निकलना है तो जल्दी से निकल
बाई तो ना आज जाए, ना जाए कल,
पति का क्या एक जाएगा हजार आएंगे
बाई चली कहीं चली गई तो कहां से लाएंगे,
पत्नी ने पति को आइना  दिखा दिया
क्या हैसियत है उसकी  मिनटों में बता दिया,
अब बाई जब कभी छुट्टी पर जाती है
पत्नी उसके सारे काम पति से करवाती है।

Tuesday 26 March, 2013

होली की चुटकी



आओ आज होली की बात करें। कुछ नई शुरुआत करें। पुरानी बातों को याद करें। वे बात जब इस दिन क्षेत्र के जाने माने व्यक्तियों को कुछ टाइटल दिये जाते थे। समय बदला। नाराजगी काज डर सताने लगा। परंपरा छूटने लगी....टूटने लगी। इसे जोड़ने की कोशिश करते हैं। इस उम्मीद के साथ कि होली पर कुछ हास्य के रंग सभी पर बिखरें। केवल हास्य को ध्यान में रख यह “चुटकियाँ” आई हैं। ये श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ क्षेत्र के प्रेमियों को आनंद प्रदान करेंगी।
कांडा किसका यार है
जांदू भी तैयार है,
गौड़ केवल शोर है
बाऊ असली  ज़ोर है।
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कुन्नर का क्या ज़ोर है
असली मंत्री ओर है।
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जिला कलक्टर तो
चोरडिया  बताते हैं,
कलक्टरी एडीएम
यादव चलाते हैं।
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एसपी साहब मस्ती में
आग लगे बस्ती में।
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बी डी के इर्द गिर्द
भांडों का टोला,
सबकी इच्छा एक
मेरा रंग दे
बसंती चोला।
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बी डी के साथ है मीडिया की फौज
जो दूर रहेगा उनसे ,नहीं मिलेगी मौज।
[26.3.13]

Thursday 14 March, 2013

क्षेत्र में बरसाती मेंढकों की टर्र टर्र


श्रीगंगानगर-बरसात तो काफी दूर है लेकिन इधर उधर बरसाती मेंढकों की टर्र-टर्र सुनाई देने लगी है। शायद इनको पता है कि अब वह मौसम शुरू होने ही वाला है। इसीलिए वे अपनी उपस्थिति साबित करने के लिए टर्र टर्र करते हैं। टर्र टर्र करना  स्वभाव है मेंढकों का। आम दिनों में तो इक्का-दुक्का मेंढक ही टर्राते दिखते हैं। बरसात में इनकी संख्या बढ़ जाती है। जगह जगह मेंढक। कोई बिना रंग का कोई एक रंग का। किसी के दो रंग तो किसी ने तीन रंग लगा रखे हैं। इनको इस प्रकार से भाग दौड़ करनी ही पड़ती है,आगे निकलने के लिए। एक कौने से दूसरे कौन तक भागमभाग। किसी ने देखा तो ठीक ना देखा तो दिल में थोड़ी कसमसाहट। फिर भी हिम्मत नहीं हारते। बस लगे हैं टर्राने। एक दूसरे से तेज आवाज में टर्र टर्र करने की हौड़  है इनमें। अनेक ने तो पिछली बार जब बरसात आई थी तब भी टर्र टर्र की थी। लेकिन किसी ने कान ही नहीं धरे। बेचारे टर्रा टर्रू के थक गए तो आराम के लिए इधर उधर दुबक गए।  आराम करने के बाद अब फिर शुरू हो गई उनकी वही पुरानी टर्र टर्र। सुनी सुनाई टर्र टर्र को सुन मज़ाक भी बनते हैं...लेकिन ऐसा तो होता रहता है। अब बरसात के मौसम में टर्र टर्र तो करनी ही पड़ेगी। क्या पता कोई सुन ही ले। बेशक ये सभी मेंढक हैं। लेकिन ये होते अलग अलग रंग,रूप और स्वभाव के हैं। एक दूसरे को देख कर प्रेम से टर्र टर्र जरूर करते हैं। किन्तु ये मेंढक इतने समझदार हैं कि दूसरे की मन की बात पढ़ मन ही  मन कुछ अलग प्रकार की टर्र टर्र करते हैं। इनको बरसाती मेंढक भी कहा और सुना जाता है। क्योंकि ये बरसात के आस पास ही टर्र टर्र करते हैं। फिर भी ये बुरा नहीं मानते। इसी बहाने इन मेंढकों का जिक्र तो हो ही जाता है। इन दिनों इस प्रकार के मेंढकों की संख्या बढ़ रही है। सब एक दूसरे की टर्र टर्र सुन उसकी ताकत का  आंकलन कर रहे हैं। कौन सा मेंढक किसके साथ जाता है। कौन कौन  किसकी टर्र टर्र में अपनी टर्र टर्र मिलाता है। किसकी टर्र टर्र सुन  किस कौने से अधिक टर्र टर्र की आवाज आती है। कितने किसके  साथ आकर उसकी टर्र टर्र को दमदार बताते हैं। यही चल रहा है चारों तरफ। जैसे जैस बरसात का मौसम निकट आता जा रहा है वैसे वैसे मेंढकों का काम बढ़ रहा है। बरसात से पहले टर्र टर्र करने वाले ये मेंढक किसी ना किसी प्रकार से अपने आपको स्थापित करने की कोशिश में हैं। जैसे ही बरसात होगी कइयों की टर्र टर्र किसी और की टर्र टर्र में मिल जाएगी। बरसात समाप्त तो फिर आराम....दूसरी किसी बरसात का इंतजार। जो रहेंगे उनकी टर्र टर्र सुननी पड़ेगी ही,अच्छी लगे चाहे बुरी। बस बरसात का इंतजार है।

Wednesday 6 March, 2013

पांच लाख रुपए में पड़ा नेताओं का “न्याय”


श्रीगंगानगर-आपके संस्थान में चाहे वह स्कूल,दुकान,हॉस्पिटल,ऑफिस,होटल,घर कुछ भी हो,कोई हादसा हो जाए तब आपको कई लाख रुपए देने ही पड़ेंगे। आपका कसूर है या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कह दिया सो कह दिया....आपको अंटी तो ढीली करनी है, यही है हमारे नेताओं के न्याय का मॉडर्न तरीका। नहीं तो भीड़ आपके दरवाजे पर होगी। वह  कुछ भी करने में सक्षम है। वह आपके  संस्थान की चिंदी चिंदी कर सकती है, साथ में आपकी इज्जत की भी । इसलिए जो नेता कहें मान लो। ऐसा ही करवाया कांग्रेस नेता राज कुमार गौड़,पूर्व सभापति महेश पेड़ीवाल,ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक कांडा,कृषि उपज मंडी समिति के उपाध्यक्ष राजेश पोखरना,कच्चा आढ़तिया संघ के अध्यक्ष पुरुषोत्तम गोयल,सारस्वत कुंडिया समाज के अध्यक्ष बजरंग औझा सहित कई नेताओं ने। स्कूल में बच्चों की मारपीट हुई। एक बच्चा घायल हुआ। मारपीट करने वाले भी पकड़े गए। कसूर! पूरा का पूरा कसूर स्कूल संचालकों,टीचर्स और स्टाफ का। इसके लिए देना होगा आर्थिक सहयोग{इलाज का पूरा खर्चा तो अलग है ही।}वरना तो....श्री गौड़ और श्री पेड़ीवाल कांग्रेस और बीजेपी की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, बहुत लंबा राजनीतिक जीवन है इनका। एक नागरिक को  इनसे कोई   सवाल करने का हक नहीं है। फिर डरते डरते गुस्ताखी कर ही लेता हूं । सवाल ये कि आखिर उन्होने स्कूल पर  पांच लाख रुपए का दंड किस बात का लगाया ? अगर स्कूल कसूरवार है तो क्या पांच लाख रुपए में उसका कसूर माफी लायक हो गया? कसूर है तो स्कूल को फांसी पर लटकाओ। पांच लाख रुपए में उसे माफ करने वाले ये नेता कौन होते हैं। दूसरा सवाल जिन बच्चों पर मारपीट का आरोप है उनके परिजनों पर क्या दंड लगाया इन नेताओं की पंचायत ने। उनको कानून सजा देगा! जो कानून उनको सजा देगा वह स्कूल को भी दो दे सकता है। उनको तो इन नेताओं ने अपनी इस पंचायत में बुलाया तक नहीं। न्याय की क्या शानदार मिसाल पेश की है इन हमारे नेताओं ने!शुक्र करो ये नेता विधानसभा नहीं पहुंचे वरना तो न्याय की परिभाषा ही बदल जाती। क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की कोई कमी नहीं है। बच्चों में छोटे मोटे विवाद भी स्वाभाविक बात है। ऐसे विवादों को निपटाने ये नेता पहुँच गए तो उसी को न्याय मिलेगा जिसकी जेब में दाम होंगे। कितनी हैरानी की बात है कि जनता इन नेताओं को अपना शुभचिंतक,हितचिंतक,न्यायप्रिय,संवेदनशील,शुभचिंतक समझती है। सलाम ऐसा न्यायप्रिय नेताओं को और भीड़ को जिनके दम पर ये कैसा भी न्याय करने की शक्ति प्राप्त करते हैं।शान

Tuesday 5 March, 2013

मौत,आक्रोश,गुस्सा,हंगामा,वार्ता और समझौता


श्रीगंगानगर-एक बकरी उम्मीद से थी। उसे गायनी के पास लाया गया। हालत खराब हो गई। सीजेयरीयन डिलीवरी से ट्विन हुए।  स्थिति और बिगड़ गई। खूब कोशिश की हॉस्पिटल वालों ने...लेकिन जो ईश्वर को मंजूर। ट्विन बच गए। जैसे ही परिजनों को पता लगा हंगामा हो गया। बात एक से होती हुई दूसरे,तीसरे....आगे बढ़ी। बात आगे बढ़ी तो उसकी सूरत बदल गई। बकरी की नसल का सवाल आया। रंग की पूछताछ हुई। जिसकी थी,वह किस समुदाय और जाति का है इसका पता लगाया गया। धर्म के बारे में पूछा। ट्विन की स्थिति कैसी है...ये जानकारी ली गई। हॉस्पिटल के बाहर भीड़ अधिक हो चुकी है। नगर में चर्चाओं का बाजार गरम....अफवाहों का दौर.... पुलिस हॉस्पिटल पहुंची। प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे। चुनाव आने वाले थे। अनेकानेक नेता हॉस्पिटल पहुँच गए। मालिक को ढांढस बंधाया। ट्विन के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए फोटो ले मीडिया को दिये गए। कोई बिस्कुट लेकर आया था कोई नर्म मुलायम चारा। एक ने बिन माँ के ट्विन के चारे का सहयोग करवाने का वादा किया। दूसरा सत्तारूढ पार्टी का था उसने सीधे सरकार को फैक्स कर घटना की जानकारी दे मुआवजा मांग लिया। तीसरा हॉस्पिटल के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करने लगा। डॉक्टर की गिरफ्तारी की बात हुई। भीड़ और अधिक हो गई। कुछ उत्तेजित लोग हॉस्पिटल के गेट की  तरफ बढ़े। पुलिस मुस्तैद हुई। उस पर मिली भगत के आरोप लगे....पुलिस की हाय हाय हुई..।  भीड़ में चर्चा होने लगी, क्या जरूरत थी बकरी को इधर लाने की....और कहीं ले जाते.....मुआवजा क्या होता है....बच्चे तो रूल गए....माँ कहाँ से आएगी....गरीब मालिक कैसे संभाल पाएगा....इसी दौरान जो नेता कुछ देर पहले बकरी,उसके ट्विन,मालिक की चिंता फिक्र कर रहे थे वे हॉस्पिटल के अंदर वार्ता का माहौल तैयार करने लगे। नेता अंदर गए तो बाहर नारेबाजी तेज हो गई। बकरी की डैड बॉडी ले जाने से मना कर दिया भीड़ ने। आवाज आई...जब तक नहीं लेकर जाएंगे जब तक न्याय नहीं मिलता। प्रशासन इस परिवार को अकेला ना समझे। मालिक कभी इधर देखे,कभी उधर...भीड़ तो बहुत लेकिन अपना कोई ना दिखे। कई घंटे के बाद समझौता वार्ता हुई। ट्विन्स के लिए उम्र चारे का इंतजाम कुछ नकदी पर समझौता हो गया। एक नेता ने मृतक के नाम सड़क का नाम रखने की घोषणा कर दी। भीड़ को बता दिया गया। भीड़ एकता के नारे लगती हुई चली गई। हॉस्पिटल वालों ने मालिक से पूछ लिया कि डैड बॉडी वह ले जाएगा या ठेकेदार। मालिक ने मना कर दिया तब हॉस्पिटल ने मृत पशुओंको उठाने ठेकेदार को सूचना दी। उसने बकरी की डैड बॉडी रेहड़ी पर डाली और उसे ले गया। पुलिस भी रवाना हो गई। नेताओं ने हॉस्पिटल संचालकों से हाथ मिलाए....कहा, चलो नक्की हुआ। सड़क पर आवागमन रोज की तरह हो गया। हॉस्पिटल में सामान्य काम काज होने लगा। ट्विन्स की उसके बाद किसी ने खैर खबर नहीं ली। बिन माँ के कब तक रहते मासूम...चले गए माँ के पास। फिर चुनाव आ गए। दैट्स ऑल। [एक व्यंग्य]