हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Sunday 27 February, 2011
सौ बहाने ,सौ अफसाने
चर्चाओं में
तेरे-मेरे
सौ अफसाने हैं,
पर मिलने
के
भी
तो
मेरी जां
सौ बहाने हैं।
Saturday 26 February, 2011
राजनेताओ से सीख मिलना
आज के राजनीतिज्ञों से कुछ भी नहीं सीखा जा सकता। वे किसी के आदर्श नहीं हो सकते। जनता,समाज को देने के लिए उनकी झोली में आश्वासनों के आलावा कुछ नहीं है। यह कहना और सुनना दोनों गलत है। उनको शान में गुस्ताखी है। धरती पर जो भी जीव या निर्जीव हैं ,उनमे से शायद ही कोई हो जिससे कोई कुछ सीख या प्राप्त नहीं कर सकता। ये अलग बात है कि हम उसके बारे में जानते ना हों। जब सबसे सीखा जा सकता है तो फिर राजनेता से क्यों नहीं! ये तो हमारे अपने हैं। हम इनसे ले सकते हैं सब से मिलने की कला। कट्टर से कट्टर विरोधी से भी हाथ,गले मिलने का दर्शन। राजनीतिक दुश्मन से हंस हंस के बात करने की अदा। एक दूसरे की जड़ काटने वालों का आपस में यूँ मिलना जैसे उनसे पक्की दोस्ती किसी में नहीं होगी। पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर की पोती की शादी में इसी प्रकार के सीन देखते हुए अन्दर ही अन्दर कई बार मुस्कुराने का मौका मिला। अचरज भी हुआ कि कार्यकर्त्ता तो एक दूसरे के प्रति गांठ बाँध लेते हैं और उनके नेता सामाजिक रिश्तों का निर्वहन करते हैं। यही तो सीखने की बात है। यह कोई छोटी बात नहीं सीखने की। बहुत बड़ी है। जब नेता सबको बुलाते हैं। सबके जातेहैं। कार्यकर्त्ता भी करें ऐसा। उनको क्या परेशानी है। नेता से कार्यकर्त्ता नहीं होते । कार्यकर्ताओं से नेता बनते हैं।
वैसे राजनीतिक दृष्टी से देखें तो राधेश्याम गंगानगर को बीजेपी वालों ने अधिक अहमियत नहीं दी। कोई बड़ा बीजेपी नेता उनके समारोह में नहीं आया। आने की बात तो वसुंधरा राजे सिंधिया के भी थी। ये भी सुना जा रहा था कि वसुंधरा राजे सिंधिया के दाएं -बाएं राजेन्द्र सिंह राठौड़ और दिगम्बर सिंह का आना तो तय ही है। मैडम वसुंधरा राजे ने तो क्या आना था दाएं बाएं भी कहीं नजर नहीं आये। हाँ , यूँ उनके यहाँ मंत्री,पूर्व मंत्री,विधायक तो आये ही।
Friday 25 February, 2011
मौन तोड़ेगा कौन
एक क्षण में
एक बार नहीं
कई बार
मोबाइल फोन
टटोलता हूँ, फिर
अपने आप से
बोलता हूँ
किसका आएगा
किसके पास जायेगा
फोन,
एक एक करके
सब तो चले गए
बात करने वाला
रहा है कौन?
सबके सामने है
अहम् की दीवार
अपना मौन
तोड़ेगा कौन!
Wednesday 23 February, 2011
कलेक्टर की जनसुनवाई
जिला कलेक्टर। अर्थात ,जिले का मालिक। सरकार का जिले में सबसे बड़ा प्रतिनिधि। जिस से मंत्री तक को काम पड़ता है। उसके पास कोई कब जायेगा? तभी ना जब किसी को लगेगा कि अब तो बस कलेक्टर पर ही उम्मीद है। आने वाले सच्चे भी होंगे,झूठे भी। इसका पता लगा उचित कार्यवाही करना कलेक्टर का काम है। एक तरफ तो कलेक्टर सरकारी दफ्तरों में छापे मार कर यह निरीक्षण करते हैं कि कितने कर्मचारी उपस्थित हैं। दूसरी तरफ कलेक्टर उस शहरी को निरुत्साहित कर रहीं हैं जो लिखित में उनको बता रहा है कि फलां कर्मचारी कभी आता ही नहीं। डीएसओ गैस उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए नए नए फंडे इस्तेमाल करते हैं और कलेक्टर मैडम जनसुनवाई में ये कहती हैं कि गैस एजेंसी वाले लोगों से दुखी हैं। कलेक्टर मैडम गलत हैं । सीधे सीधे ये कहने की हिम्मत तो नहीं हैं। लेकिन अगर वे अपने पास फरियाद लेकर आये किसी इन्सान के सामने ही दूसरे का पक्ष लेंगी तो फिर उनके पास कोई जायेगा ही क्यों? वे जाँच करवाएं। पता लगवाएं। अगर शिकायत करने वाला गलत है तो उसको चेतावनी दें। उसके विरुद्ध कार्यवाही करें। उसको सबक सिखाएं ताकि वह आइन्दा किसी की झूठी शिकायत कर कलेक्टर जैसे अधिकारी का समय ना ख़राब करे। शिकायत करते ही अपना फैसला सुना देना तो उसके साथ अन्याय है जो चल कर आपके दरबार में आया है कलेक्टर मैडम। रामसनेहीलाल शर्मा"यायावार" का शेर है--हमने शीशे के घरोंदे पर अभी चन्दन मला है ,और उनके हाथ में पत्थर नहीं पूरी शिला है।
Tuesday 22 February, 2011
क्रांति की बात बस! और कुछ नहीं
Friday 18 February, 2011
Thursday 17 February, 2011
मनमोहन सिंह नहीं जनता मजबूर है
श्रीगंगानगर- "पापा इतने बिजी होते हैं कि हमें उनसे मिलने के लिए सुबह छः बजे उनके पास पहुंचना पड़ता है। उसके बाद उनसे दिन भर मुलाकात नहीं हो सकती।" यह बात देश के मजबूर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने जयपुर में एक पत्रकार से कही थी। ये बात यहाँ लिखना इसलिए जरुरी हो गया कि मीडिया प्रधानमंत्री की मज़बूरी को प्रेस कांफ्रेंस बता रहा है। जबकि ऐसा है नहीं। वह तो तरस खाकर प्रधानमंत्री ने संपादकों को ओब्लाइज कर दिया अपने साथ बैठाकर। वरना उनके पास समय ही कहाँ है देश की बात सुनने का। मनमोहन सिंह ने तो दिल खोलकर कह दिया कि मैं मजबूर हूँ। उन्होंने सौ मजबूरियां गिना दी। संपादक तो यह भी नहीं कह सके। ऐसे मजबूर प्रधानमंत्री के साथ बात करने की उनकी पता नहीं क्या मज़बूरी थी। संसार के सबसे शानदार,दमदार,जानदार लोकतंत्र के लिए विख्यात भारत के प्रधानमंत्री बार बार ये कहे कि वो मजबूर हैं, मजबूर हैं। इस से ज्यादा बड़ी बात और क्या हो सकती है। ये तो सब जानते और समझते हैं कि जब समाज में कोई बार बार ये कहता है कि मैं मजबूर हूँ तो हर कोई आपको यही कहता सुनाई देगा--चलो छोड़ो यार बेचारा मजबूर है। देश का आम आदमी तो आज मजबूर है किन्तु ताकतवर देश का प्रधानमंत्री ये कहे कि वो मजबूर है तो फिर कोई क्या कर सकता है। दिमाग तय नहीं कर पा रहा कि मजबूर प्रधानमंत्री की इस मज़बूरी पर हँसे,रोए,अफ़सोस करे या ईश्वर से उनकी मज़बूरी दूर करने की प्रार्थना करे। देश इस बात पर विचार तो करे कि प्रधानमंत्री की क्या मज़बूरी हो सकती है। जिस देश का प्रधानमंत्री ही मजबूर है तो उस देश का क्या होगा? कौन उसकी बात को मानेगा,सम्मान करेगा,गंभीरता से लेगा। मजबूर प्रधानमंत्री से बारी बारी से एक सवाल पूछ कर या अपना परिचय दे कर देश के मीडिया का प्रतिनिधित्व करने वाले टी वी चैनलों के संपादकों/मालिक को कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना है। कैसी विडम्बना है कि प्रधानमंत्री अपने आप को मजबूर बता कर एक समान रहम की भीख मांग रहा है। "हे! संपादकों मेरी मज़बूरी समझो। मेरा साथ दो। मैंने मक्खन नहीं खाया। मैं तो मजबूर हूँ मक्खन खा ही नहीं सकता। कोई खा रहा है तो उसको रोक नहीं सकता। क्योंकि मैं मजबूर हूँ। चूँकि मैं मजबूर हूँ इसलिए दया,रहम को हकदार हूँ।"
मनमोहन सिंह जी आप तो क्या मजबूर हैं , मजबूर तो हम हैं जो आपको ढो रहे हैं। देश की इस से बड़ी मज़बूरी क्या होगी कि वह सब कुछ जानता है इसके बावजूद कुछ नहीं कर पा रहा। एक लाइन में यह कि हमारा दुर्भाग्य तो देखो कि हमारा प्रधानमंत्री खुद अपने आप को मजबूर बता रहा है। जिस देश का प्रधानमंत्री मजबूर हो उस देश की जनता की मज़बूरी का कोई क्या अंदाजा लगा सकता है। मजबूर के शब्द हैं-अब तुम ही कहो क्या तुमसे कहें, वो सहते हैं जो सह नहीं सकते।
Wednesday 16 February, 2011
पी एम ही मजबूर है
पी एम
मजबूर है,
उनका यही
सबसे बड़ा
कसूर है।
दे दो इस्तीफा
छोड़ दो पद
सोनिया का घर
कौनसा दूर है ।
Monday 14 February, 2011
वो प्यार है
घोला जाए
फूलों का शबाब
उसमे फिर
मिलाई जाए
थोड़ी सी शराब
होगा वो
नशा जो तैयार
वो प्यार है........
Sunday 13 February, 2011
Saturday 12 February, 2011
दोस्ती ऐसे टूटती है
I Am Fine Here Please keep in touch with me.... Ha Ha Ha Ha ... Have a Nice Day....