Tuesday, 22 February 2011

क्रांति की बात बस! और कुछ नहीं

श्रीगंगानगर --मिश्र,लीबिया सहित अरब देशों की जनक्रांति की ख़बरें देख सुन पढ़े लिखे लोगों के दिल में ये उम्मीद जगी है कि यहाँ भी ऐसा ही कुछ हो सकता हैनहीं होगाऐसा कुछ होने वाला नहींसम्पूर्ण क्रांति तो क्या क्रांति भी नहीं होने वालीकिस के दिल में है ऐसी चिंगारी जो शोला बनकर पहले खुद जलाने को आगे आएजिस देश का प्रधानमंत्री भावहीन चेहरा लेकर बार बार ये कहे कि वह मजबूर हैजिस देश की जनता को प्याज,दाल, रोटी का जुगाड़ करने के लिए पूरा दिन खपाना पड़ता होहजार नहीं लाखों करोड़ों के घोटाले होते होआम आदमी की शासन ,प्रशासन में सुनवाई का सवाल ही पैदा ना होता होवोट बैंक देश के दुश्मनों से असल में किये जाने वाले बरताव को प्रभावित करता होनेताओं से विश्वास उठ गया होसभी राजनीतिक दल, सत्ता और विपक्ष के नेताओं का नाता घी-खिचड़ी होऔर भी बहुत कुछ ऐसा है जो यह बताता है कि देश के अनेक हिस्से तो ऐसे हैं जहाँ यह आभास ही नहीं होता कि वहां सरकार नाम की कोई चीज हैकम शब्दों में सच्ची बात ये कि किसी को ये समझ नहीं रहा कि देश में हो क्या रहा है? किसकी सरकार है? कौन चला रहा है? जवाबदेही किस पर है? किस के लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाये? जिस से बात करो वही पल्ला झाड कर यह कह देता है कि मैं तो बेकसूर हूँ! मैं मजबूर हूँ! अरब देशो में के हालत भी ऐसे ही रहे होंगेतभी वहां के लोग अपने काम छोड़कर सड़कों पर आए और दुर्दशा के दोषी नेताओं को चलता कर दियायहाँ ऐसा नहीं हो सकताबात नकारात्मक सोच या निराश होने की नहीं हैक्रांति जैसी जज्बा उन लोगों में होता है जिनके अन्दर कोई चिंगारी होफिर उसमे कोई फूंक मारेतब कहीं क्रांति की सूरत उभरती हैहम ये नहीं कहते कि यहाँ के लोगों के दिलों में चिंगारी नहीं हैहै, मगर वह शोला बनने से पहले ही बुझा दी जाती हैयहाँ के राजनीतिक दलों के संचालक जनता से अधिक समझदार हैंउन्होंने देश में ऐसा सिस्टम बनाया कि किसी के अन्दर की चिंगारी शोला बनकर क्रांति में तब्दील ना होये सब जनता की आँखों के सामने होता हैइसमें सबकी भागीदारी हैइस सिस्टम का नाम है चुनावयहाँ की जनता पांच साल में अपने अन्दर की चिंगारी को मतदान बूथ पर ठप्पा लगाते हुए, बटन दबाते हुए कई बार बुझाती हैबूथ से हर कोई यह सोच कर ख़ुशी ख़ुशी बाहर आता है कि अब सब ठीक हो जायेगाकिन्तु नहीं होतावह फिर आहें भरता हैहर रोज तिल तिल मरता हैबेबसी पर रोता हैफिर कोई चिंगारी उसके अन्दर जन्म लेती हैइस बीच फिर कोई चुनाव जाता हैवही बूथवही मशीनजो चिंगारी बनी वह फिर से बुझ गईश्रीगंगानगर में देख लो२००८ में विधानसभा चुनाव२००९ में पहले लोकसभा और फिर नगर परिषद के चुनाव२०१० में पंचायत चुनावइतने से समय में जनता को अपने अन्दर की भड़ास तीन बार निकालने का मौका मिल गयाभड़ास निकल गई तो चिंगारी कहाँ से आएगीचिंगारी नहीं तो शोला नहींशोला नहीं तो आग और क्रांति की बात केवल दिल को बहलाने के लिए एक अच्छे ख्याल के अलावा कुछ भी नहीं हैवैसे भी हम तो डरे सहमे लोग हैंजो हर बात पर यही कह कर अपना फ़र्ज़ पूरा कर लेता ही कि कोई नृप होए हमें क्या हानि! सब अपने नफे नुकसान तक सीमित हैंजब सबका यही हाल है, यही सोच है तो फिर क्रांति का तो सवाल ही पैदा नहीं होताक्रांति तो तब जन्म लेती है जब जन जन को देश की फ़िक्र हो

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