Saturday 26 February, 2011

राजनेताओ से सीख मिलना


आज के राजनीतिज्ञों से कुछ भी नहीं सीखा जा सकता। वे किसी के आदर्श नहीं हो सकते। जनता,समाज को देने के लिए उनकी झोली में आश्वासनों के आलावा कुछ नहीं है। यह कहना और सुनना दोनों गलत है। उनको शान में गुस्ताखी है। धरती पर जो भी जीव या निर्जीव हैं ,उनमे से शायद ही कोई हो जिससे कोई कुछ सीख या प्राप्त नहीं कर सकता। ये अलग बात है कि हम उसके बारे में जानते ना हों। जब सबसे सीखा जा सकता है तो फिर राजनेता से क्यों नहीं! ये तो हमारे अपने हैं। हम इनसे ले सकते हैं सब से मिलने की कला। कट्टर से कट्टर विरोधी से भी हाथ,गले मिलने का दर्शन। राजनीतिक दुश्मन से हंस हंस के बात करने की अदा। एक दूसरे की जड़ काटने वालों का आपस में यूँ मिलना जैसे उनसे पक्की दोस्ती किसी में नहीं होगी। पूर्व मंत्री राधेश्याम गंगानगर की पोती की शादी में इसी प्रकार के सीन देखते हुए अन्दर ही अन्दर कई बार मुस्कुराने का मौका मिला। अचरज भी हुआ कि कार्यकर्त्ता तो एक दूसरे के प्रति गांठ बाँध लेते हैं और उनके नेता सामाजिक रिश्तों का निर्वहन करते हैं। यही तो सीखने की बात है। यह कोई छोटी बात नहीं सीखने की। बहुत बड़ी है। जब नेता सबको बुलाते हैं। सबके जातेहैं। कार्यकर्त्ता भी करें ऐसा। उनको क्या परेशानी है। नेता से कार्यकर्त्ता नहीं होते । कार्यकर्ताओं से नेता बनते हैं।
वैसे राजनीतिक दृष्टी से देखें तो राधेश्याम गंगानगर को बीजेपी वालों ने अधिक अहमियत नहीं दी। कोई बड़ा बीजेपी नेता उनके समारोह में नहीं आया। आने की बात तो वसुंधरा राजे सिंधिया के भी थी। ये भी सुना जा रहा था कि वसुंधरा राजे सिंधिया के दाएं -बाएं राजेन्द्र सिंह राठौड़ और दिगम्बर सिंह का आना तो तय ही है। मैडम वसुंधरा राजे ने तो क्या आना था दाएं बाएं भी कहीं नजर नहीं आये। हाँ , यूँ उनके यहाँ मंत्री,पूर्व मंत्री,विधायक तो आये ही।

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