Friday 31 December, 2010

कलेंडर के अलावा क्या बदला

श्रीगंगानगर--आओ मन बहलाएं, बदल कर एक कलेंडर नया साल मनाएं । कलेंडर के अलावा आज क्या बदला है? कुछ भी तो नहीं। हजारों घरों में तो कलेंडर भी नहीं बदला होगा। देश- दुनिया के साथ हम अपनी कल वाली सोच लिए वैसे ही तो हैं जैसे कल थे। संभव है बहुत से लोग इसको नकारात्मक कह कर नजर फेर लें। इसके बावजूद दो और दो का जोड़ चार ही होगा तीन या पांच नहीं । सच्चाई यही है कि कलेंडर ही बदला जाता है। हम और कुछ बदलना चाहते ही नहीं। डेट,वार,दिन रात का छोटा बड़ा होना,गर्मी,सर्दी,बरसात,पतझड़,आंधी,तूफान के आने जाने ,उनका अहसास करवाने के लिए प्रकृति कलेंडर बदलने का इंतजार नहीं करती। वह यह सब पल पल ,क्षण क्षण करती ही रहती है। ऐसा तब से हो रहा है जब कलेंडर बदलने का रिवाज आया भी नहीं होगा। जिस नए का अनुभव हमें आज हो रहा है वह नया तो होता ही रहता है। किन्तु हम इसको तभी मन की आँख से देख पाते हैं जब कलेंडर बदलते हैं। जिन घरों में कलेंडर नहीं बदले जाते वहां भी प्रकृति के वही रंग रूप होते हैं जैसे अन्य स्थानों पर। जहाँ कलेंडर बदले जाते हैं संभव है वहां भौतिक साधनों से प्रकृति के असली रंग रूप को अपनी पसंद के अनुरूप ढाल लिया जाता हो। सृष्टी का सृजन करने वाली उस अदृश्य शक्ति के पास तो बहुत कुछ नया है। वह तो इस नए पन से रूबरू भी करवाता रहता है। हम खुद इसे ना तो देखना चाहते हैं ना मिलना। जो नयापन वह शक्ति ,प्रकृति हम हर रोज प्रदान करती है उसको महसूस हम तब करते हैं जब पुराना कलेंडर उतारते हैं। नया कलेंडर ही अहसास है नए साल का। यह अहसास होता नहीं तो करवाया जाता है उनके द्वारा जिनके लिए यह एक बाज़ार के अलावा कुछ नहीं। ये भावनाओं का बाज़ार इस प्रकार से सजाते हैं कि आँखोंऔर दिल को नया ही नया लगता है। बहुत बड़ा बाज़ार हर उत्सव,वार और त्योहार की तरह। ऐसा बाज़ार जहाँ गंजे भी कंघी खरीदने को अपने आप को रोक ना सकें।एक कवि की इन पंक्तियों के साथ बात को विराम दूंगा--रेगिस्तानों से रिश्ता है बारिश से भी यारी है,हर मौसम में अपनी थोड़ी थोड़ी हिस्सेदारी है। अब बैंगलोर से विनोद सिंगल का भेजा एस एम एस --वडी सुखी सी जिन्दगी जदों पानी दे वांग चल्दे सी, हुण नित तूफान उठदे ने जदों दे समन्दर हो गए।
---गोविंद गोयल

Tuesday 28 December, 2010

पहले दो थे अब जितने नेता उतने गुट


श्रीगंगानगर-किसी ज़माने में यहाँ कांग्रेस में दो गुट हुआ करते थे एक राधेश्याम गंगानगर का,दूसरा उनके विरोधियों का। विधानसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस में ऐसा रहा। जब तक ऐसा रहा तब तक राधेश्याम गंगानगर उर्फ़ बाऊ जी ने कांग्रेस में दूसरे की पार नहीं पड़ने दी। वो तो नियम थोड़ा सख्त हो गए इसलिए बाऊ जी के दिन कांग्रेस में खत्म हो गए वरना....... । जब से बाऊ जी का ह्रदय परिवर्तन हुआ है तब से कांग्रेस में दो गुटों वाली परम्परा बीते ज़माने की बात हो गई। कांग्रेस में जो जो नेता बाऊ जी का विरोधी था अब उन सब के अलग अलग गुट बन चुके हैं। राजशाही के अंदाज में कहें तो कांग्रेस के चक्रवर्ती नेता बाऊ जी के विदा होते ही उनके सब विरोधी स्वतन्त्र हो गए। जब किसी का राजनीतिक डर नहीं रहा तो सभी ने अपने गुट बना लिए। हर गुट का अपना नेता। पिरथी पाल सिंह, राज कुमार गौड़, शंकर पन्नू, संतोष सहारण, गंगाजल मील आदि आदि। पिरथी पाल सिंह ने जिलाध्यक्ष के नाते जयपुर दिल्ली के कांग्रेसी राजनीतिक गलियारों में पहचान बने। पद के साथ साथ सादुलशहर के जगदीश शर्मा ने इनके लिए दिल्ली में बड़े नेताओं से लोबिंग की। श्री शर्मा का वहां खुद का एक नेटवर्क है जो कांग्रेस राजनीति में पिरथी पाल सिंह के साथ खड़ा दिखाई देता है। विधान सभा चुनाव के बाद गौड़ की कांग्रेस में अप्रोच बढ़ी है। इसके बावजूद उनको भरोसा केवल अशोक गहलोत पर है। सांसद रहे पन्नू को दिल्ली - जयपुर में नेता जानते हैं मगर इन्होने ने भी अपनी डोर श्री गहलोत जी के हाथ में दे रखी है। संतोष सहारण को कांग्रेस में अपने रिश्तेदार परस राम मदेरणा/मही पाल मदेरणा का सहारा है। गंगाजल मील के पास राजस्थान जाट महासभा है। दो साल में ये दोनों नेता पार्टी की ना तो दिल्ली,जयपुर में किसी बड़ी लौबी से जुड़े दिखे ना इन्होने यहाँ मजबूत गुट दिखाया। जगतार सिंह कंग गत दो साल में कई चुनाव हारने के बाद कहीं के नहीं लगते। के सी बिश्नोई,विजय लक्ष्मी बिश्नोई, सोहन नायक,को वक्त ने पीछे कर दिया। दुलाराम तो ऐसे लगता है जैसे भूतकाल हो गए हों। वर्तमान तो उनका बेटा है। इन्दौरा परिवार के लिए यह सब गौण है। बात कांग्रेस की हो रही है इसलिए मंत्री गुरमीत सिंह कुनर,सभापति जगदीश जांदू के बारे में अधिक कुछ कहना ठीक नहीं । श्री कुनर तो मंत्री हैं इसलिए जयपुर से दिल्ली तक उनके सम्बन्ध पहले से बढे हैं। जांदू का भी एक ग्रुप है। बात फिर बाऊ जी की। पहले उन्होंने कांग्रेस में अपने पर अपने विरोधियों की पार नहीं पड़ने दी अब बीजेपी में। यूँ राजनीति में कभी भी किसी भी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। सन्नी सिंह ने एसएमएस से भेजा है परीक्षा का नया पैट्रन --जनरल वर्ग -सभी प्रश्न करो। ओ बी सी --कोई एक प्रश्न करो। एस सी--केवल प्रश्न पत्र पढो। एस टी--परीक्षा में आने का शुक्रिया। गुर्जर--दूसरों को परीक्षा देने की अनुमति प्रदान करने के लिए थैंक्स। अब एक संत से सुनी बात, भारत की राष्ट्रपति हिन्दू,उप राष्ट्रपति मुसलमान,प्रधानमंत्री सिख और सोनिया गाँधी पारसी/ईसाई।
---गोविंद गोयल
हिन्दूस्तान का राष्ट्रपति हिन्दू। उप-राष्ट्रपति मुसलमान। प्रधानमंत्री सिख। यू पी ए की अध्यक्ष सोनिया जी पारसी/ईसाई। लो जी सार्थक हो गया हमारा नारा- हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई , आपस में हैं भाई भाई।

Saturday 25 December, 2010

सी एम के मोहल्ले का आदमी

थानों में जब से डिजायर से नियुक्ति होने लगी है तब से टाइगर बिना दन्त और नाख़ून के हो गया। उस से केवल जनता डरती और घबराती है थाने वाले नहीं। एक थाना अधिकारी तो सी एम से नीचे बात ही नहीं करता। कहता है, मैं तो जोधपुर में सी एम के मोहल्ले में रहता हूँ। उनके रिश्तेदार के किसी बच्चे से फोन पर भी कुछ कहूँ तो मेरी बात सी एम तक पहुँच जाती है। लोग तो जयपुर जायेंगे, समय लेंगे तब कहीं अपना पक्ष रख पाएंगे, मेरा पक्ष यहाँ बैठे बैठे फोन पर ही उनके पास पहुँच जाता है। तो अब क्या किया जाये? नगर की जनता को कांग्रेस के नेताओं की चौखट पर जाने के स्थान पर इस थाना अधिकारी के पास जाना चाहिए। सी एम से इतनी सीधी और दमदार अप्रोच किसी कांग्रेसी की तो है नहीं। इलाका वासियों हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। गंगा हमारे घर चल के आई है। मेरी राय में तो एस पी के पास ज्ञापन लेकर जाने इस थाना अधिकारी के पास अपनी अलख जगाएं। नगर यू आई टी की अध्यक्षी के तलबगार भी प्लीज़ इस सुपरपावर थानाधिकारी से संपर्क करें। कुछ अधिक ही हो गया। रोजनामचे में रपट दाल दी तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। इसलिए श्री कैलाश दान जी को सॉरी बोलने में ही भलाई है। रवीन्द्र कृष्ण मजबूर कहते हैं--चलते जग के चलते खाते,मतलब निकले बदले नाते,"मजबूर" हकीकत कहते आये,बाकी रहा गुबार है। एसएमएस के डोडा का जो हिमाचल में रहते हैं। ताजी हवाओं में फूलों की महक हो, पहली किरण में चिड़ियों की चहक हो, जब भी खोलें आप अपनी पलक, उसमे बस खुशियों की झलक हो।

Monday 20 December, 2010

आज के इस युग में जब दमड़ी के बिना चमड़ी काम नहीं करती वहां डी एम एक एसएमएस पर कार्यवाही करवाता है। हम किसी और जिले के डी एम की नहीं हमारे जिले के डी एम सुबीर कुमार की चर्चा कर रहे हैं। किसी विनीत नाम के शख्स का एस एम एस जिला कलेक्टर को मिला-" बड़े दुःख की बात है कि रिद्धि सिद्धि के बाहर हनुमानगढ़ रोड पर गंदगी का साम्राज्य कायम है। कोलोनाइजर कालोनी की सारी गंदगी वहां पर रोजाना डाल रहे हैं।क्या सार्वजनिक स्थान पर प्राइवेट कालोनी वालों को इसकी छूट आपके राज में यूँही जारी रहेगी। पैनल्टी का कोई प्रावधान नहीं है क्या?क्या इसके लिए सी एम तक जाना पड़ेगा? कृपया इसे गंभीरता से लें।" कलेक्टर ने एस एम एस मिलते ही सम्बंधित विभाग को निर्देश दिए। विभाग के अधिकारियों,कर्मचारियों ने मौके पर जाकर जिला कलेक्टर को वस्तुस्थिति की जानकारी दी। ना कलेक्टर के पास के पास जाने की जरुरत ना अर्जी लिखवाने का झंझट। सीधा एस एमएस टू कलेक्टर और काम मिनट में। ऐसा होना उस जिले के लिए अच्छी बात है जहाँ सी एम सबसे अधिक करप्शन बताते हैं।---फ्लाई ओवर के कारण सम्पति के दाम में काफी फर्क पड़ने लगा है। एक सच्चे सौदे की जानकारी इसी संदर्भ में। लक्कड़ मंडी चौराहे पर एक दुकान का सौदा हुआ साढ़े तीन करोड़ का। दस लाख रूपये साई पेटे दिए गए। दोनों पार्टियाँ एकदम पायेदार,साफ सुथरी बिज़नस फैमिली। सौदा के समय फ्लाई ओवर का ज़िक्र नहीं था। बाद में सम्पति की कीमत कम आंकी गई। पहले वाला सौदा रद्द कर दिया गया। खरीदार ने साढ़े तीन करोड़ में दुकान लेने से इंकार कर दिया। बाद में यही दुकान उसी ने साढ़े दो मतलब ढाई करोड़ में ली। साई के दस लाख रूपये भी इसी अडजस्ट किये गए। फ्लाई ओवर ने एक को एक करोड़ की बचत करवा दी दूसरे को नुकसान। इस सौदे की पूरे बाजार में चर्चा है। वैसे फ्लाई ओवर के चक्कर में सूरतगढ़ रोड पर बनी लोहा मंडी में दुकानों के भाव एक दाम से ही बढ़ा दिए गए। लक्कड़ मंडी के पूर्व और पश्चिम की तरफ की सम्पतियों की देखभाल आरम्भ हो गई है।----प्याज बहुत महंगा है। लेकिन इसकी बात करने की बजाय चांदी की महंगाई पर चर्चा कर लेते हैं। शेयर बाजार और एनसीडीएक्स पर निगाह या रूचि रखने वाले कई दिनों से चांदी के भाव में काफी तेजी आने का एलान कर रहे हैं। इस प्रकार का कारोबार करने वाले चांदी की खरीदारी भी करने लगें हैं। मगर इसमें संभाल कर कदम बढ़ाने की आवश्यकता होती है। वरना सबकुछ सफ़ेद होते देर नहीं लगती। हाथ से रकम तो जाती ही है कई बार इज्जत भी चली जाती है। कई सप्ताह पहले ऐसा हो भी चुका है। एक जानदार,शानदार,दमदार परिवार के समझदार आदमी ने बड़ा सौदा कर लिया। जोर से झटका इस प्रकार लगा कि गूंज पूरी बिरादरी और बाजार में अभी तक सुनी जा रही है। किस्मत से जान बच गई। इसलिए जरा संभाल के। मजबूर का शेयर है--"इश्क है तो साथ ही चले चलो,प्रीत यादों से मेरी ना जताए कोई।" aanand मायासुत का एसएमएस --एक सास अपने तीन दामादों को प्यार देखने के लिए दरिया में कूद गई। एक दामाद ने उसे बचा लिया, सास ने उसको कार दी । दूसरे दिन सास फिर दरिया में। दूसरे दामाद ने बचाया तो उसको मोटर साईकल मिली। तीसरे दिन वही कहानी । तीसरे दामाद ने सोचा अब तो साईकल ही बची है क्या फायदा। सास डूब गई। अगले दिन दिन ससुर ने उसको मर्सडीज कार और एक मकान दिया।

Tuesday 14 December, 2010


ऐसी भी हो सकती है सी एम की प्रेस वार्ता

श्रीगंगानगर--जयपुर का पिंक सिटी प्रेस क्लब। दोपहर का समय। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आ चुके है। गले में बेतरतीब सा मफलर ऐसे पड़ा है जैसे उनका मंत्री मंडल। खुश हैं। पत्रकारों की भरमार है। सबसे मिलते हुए उस ओर कदम बढ़ा रहे हैं जहाँ प्रेस वार्ता होनी है।उन्होंने जिस पत्रकार को नाम लेकर पुकारा उसने अपनी कॉलर ऊँची की। जिसका हाथ मिलाते हुए हाल चाल पूछा उसकी चाल बदल गई। जिस पत्रकार ने अपना परिचय खुद दिया उससे केवल यही कहा, अच्छा अच्छा और चलते रहे। कई मिनट के बाद मुख्यमंत्री जी और प्रेस दोनों आमने सामने थे। गहलोत जी ने एक नजर चारों तरफ दौड़ाई और कहा, पूछो क्या पूछना है। प्रेस बोली ,सर आप बताइए। हमारे पास बताने के लिए कुछ होता तो कब का बता चुके होते। हँसते हुए कहने लगे, बोलो तो सही। प्रेस को और तो कुछ सुझा नहीं, उपलब्धियां बताने को कहा। सी एम का चेहरा चमक गया। उपलब्धियां! सी एम बोलने लगे, उपलब्धियां बहुत है। सबसे बड़ी उपलब्धि तो ये कि हम ९६ से १०५ हो गए। हमारे व्यवहार, नीति, सदभाव और राज्य के प्रति प्रेम को देख पांच विधायकों ने कांग्रेस का झंडा पकड़ कर संख्या १०५ तक पहुंचा दी। कई निर्दलीय विधायकों को मंत्री बना कर समर्थन जुटाया। वर्तमान में जब भाई भाई का दुश्मन है, ऐसे में किसी को अपना बनाना कोई कम उपलब्धि नहीं है। आते समय जिसको गहलोत ने ज्यादा भाव नहीं दिया था उसने प्रश्न करने की कोशिश की तो वह पत्रकार बीच में आ गया जिसका हाल चाल मुख्यमंत्री ने पूछा था। कहने लगा,यार पहले गहलोत जी को बात तो पूरी कर लेने दो। हाँ सर आप क्या कह रहे थे। सी एम अपनी उपलब्धियां बता रहे थे। गोलमा को अपने साथ रखना, उसके नखरे सहना केवल हम ही जानते हैं। विपक्ष करके दिखाए ये सब। कितने ही मंत्री अपनी मन मर्जी करते हैं। ये हमारी उपेक्षा नहीं उनको दी गई स्वायतता है। करप्शन.... भीड़ में से दबी सी आवाज आई। वैरी गुड प्रश्न। सी एम ने कहा । वे बोले, आजकल तो बड़े पत्रकारों के नाम भी इसमें शामिल हो गए हैं। ये ख़ुशी की बात है। करप्शन का दायरा बढ़ा है। एक पत्रकार बोला, सर आपके राज में करप्शन की बात। बेकार के प्रश्न क्यों पूछते हो। वह पत्रकार बोला जिसे नाम लेकर सी एम ने बुलाया था। सी एम जारी थे, विपक्ष ने बहुत अधिक करप्शन किया। सबकी जांच चाल रही है। देखना नतीजा आएगा। सर कोई और उपलब्धि । कोई धीरे से बोला। हाँ हैं ना। सी एम ने कहा, हमें जैसे ही कहीं से किसी अधिकारी की शिकायत मिलती है हम उसका तबादला दूसरी जगह कर देते हैं। दूसरी से तीसरी जगह, इसी प्रकार चौथी,पांचवी.... । ऐसा किसी सरकार ने नहीं किया होगा। और कभी नहीं भी करते, एक पत्रकार दूसरे के कान में फुसफुसाया। गहलोत जी ने वातावरण अपने पक्ष में देख थोडा खुलना शुरू किया। कहने लगे, हमने सी पी जोशी की नजर के बावजूद अपनी कुर्सी बचाए रखी ताकि प्रदेश की सेवा कर सकूँ। आपको डर लगता है क्या जोशी से? एक पत्रकार ने हिम्मत दिखाई। गहलोत बोले, वे दिल्ली की बजाये राजस्थान में अधिक रहते हैं। इसके बाद भी हमने अपनी कुर्सी पर आंच नहीं आने दी। वैसे डर सबको लगता है गला सबका सूखता है....सी एम थोडा मुस्कराए। गला सबका सूखता है कि बात से सबको कुछ याद आ गया। प्रेस वार्ता समाप्त। जैसे जिसके सी एम से सम्बन्ध वैसी उसकी टिप्पणी। पिंक सिटी में उसके बाद क्या हुआ जरुर बताता। मगर इस बीच फोन की घंटी ने कल्पनाओं की प्रेस वार्ता की इतिश्री कर दी। हम तो यही सोचते रहे कि क्या ऐसा हो सकता है!

ओशो ने कहा है -आप बच्चे की सारी आवश्कताएं पूरी कर दें। उसे दुनियां की सभी आरामदायक चीजें दें। लेकिन यदि आप उसे आलिंगन नहीं करते तो उसका कभी सम्पूर्ण विकास नहीं हो पायेगा। अब एक एस एम एस नरेन् का--एक बच्चा चोकलेट खा रहा था। एक आदमी ने उसे टोका, बोला इतनी चोकलेट खाना ठीक नहीं। बच्चा बोला, मेरे दादा जी १०५ साल जिए। आदमी--वो चोकलेट खाते थे? बच्चा--नहीं, वो केवल अपने काम से काम रखते थे बस।

--- गोविंद गोयल

Monday 6 December, 2010

सी एम यूँ ही तो नहीं कहते

दुविधा भी है और डर भी। कहीं ऐसा ना हो जाये, कहीं वैसा ना हो जाये। आज के इस दौर में किसी बड़े अफसर के बारे में लिखना,छापना कम हिम्मत का काम नहीं है। सब को याद होगा कुछ दिन पहले मीडिया में श्रीगंगानगर जिले में करप्शन की स्थिति के बारे में छपा था। करप्शन इस देश के कण कण में है। जन्म से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए कैश या काइंड के रूप में किसी ना किसी को कुछ देना पड़ता है। फिर सी एम ने यहीं के कलेक्टर क़ो क्यूँ इस बारे में कुछ कहा? कोई तो कारण जरुर होगा।। मुख्यमंत्री कोई बात बेवजह तो नहीं कहते। इसकी वजह है उनका श्रीगंगानगर में आना। उसके बाद यहाँ के प्रभावशाली नेताओं का सी एम के समक्ष रोना। सी एम को वह सब कुछ बताया गया जो नेताओं ने सुना था। सी एम ओ के एक बड़े अधिकारी के खास होने के कारण उनकी नियुक्ति हो गई तो हो गई। अब क्या हो सकता था। ऐसा कौन है जो उनको तुरंत वापिस भेजने की हिम्मत करता। इसलिए माँ -मायत के आगे रोया ही जा सकता था, रो लिए । वो जमाना और था जब तत्कालीन मंत्री गुरजंट सिंह बराड़ ने श्रीगंगानगर में एस पी का चार्ज लेनेआ रहे के एल शर्मा का चार्ज लेने से पहले ही तबादला करवा दिया था। श्री शर्मा तब सीकर ही पहुंचे थे कि उनकी जगह आलोक त्रिपाठी को एस पी लगाने के आदेश सरकार ने दिए। अब बात और है। मंत्री गुरमीत सिंह कुनर का इस मामले में अधिक मगजमारी नहीं करते । जो आ गया वही ठीक है। जब नियुक्तियों में उनका अधिक हस्तक्षेप नहीं है तो प्रशासन उनसे डरता भी नहीं। या यूँ कहें कि वे प्रशासन को डराते ही नहीं। मंत्री होने के बावजूद श्री कुनर के जिले में रहने का अधिकारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ना उनको मंत्री के घर जाना पड़ता है ना उनके आगमन पर सर्किट हाउस । वे खुद भी किसी को नहीं बुलाते। आजकल बिना बुलाये कोई आता भी नहीं। इस से भला मंत्री और कहाँ मिलेगा। इसलिए सब के सब मजे में है सिवाय आम जन के।----अग्रवाल समाज की एक संस्था ने समाज के बुजुर्गों का सम्मान किया। अपने जिला कलेक्टर को भी बुलाया गया था। उनके पिता श्री को तो बुलाना ही था। कलेक्टर तो नहीं आये। उनके बिना ही कार्यक्रम करना पड़ा। कलेक्टर के गुणी पिताश्री मदन मोहन गुप्ता ने एक बात बड़े ही मार्के की कही। वे बोले, मुझे यहाँ इसलिए बुलाया गया है क्योंकि मेरा बेटा यहाँ का कलेक्टर है। वरना मुझे यहाँ कौन आमंत्रित करता। उन्होंने अपनी बात को विस्तार दिया, सभी को अपने बच्चों को पढ़ा कर इस लायक बनाना चाहिए ताकि परिवार को सम्मान मिल सके। बात तो सच्ची है। बेटा कलेक्टर है तभी तो मंच पर विराजे, नहीं तो उनके जैसे बुजुर्गों की श्रीगंगानगर में कोई कमी थोड़ी थी।-----राज्य के मंत्री गुरमीत सिंह कुनर इस बारे जिले के लम्बे दौरे पर हैं। उनसे मिलना कोई मुश्किल नहीं है। जल्दी उठने वाले सुबह दस- साढ़े दस बजे तक उनसे गाँव में मिल सकते हैं। उसके बाद श्रीकरनपुर विधानसभा क्षेत्र में लगने वाले किसी शिविर में। जहाँ प्रशासन आया हुआ होता है। पता चला है कि श्री कुनर कम से कम एक सप्ताह तो यहाँ हैं ही। इस बार पहले एस एम एस। भेजा है राकेश मितवा पत्रकार ने वह भी बिना एडिट किये--"बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस पर कल पी आर ओ ऑफिस में एक प्रोग्राम होगा। प्लीज़ सभी मीडिया कर्मियों कोआमंत्रित करो ई टी वी सहित। मेरी पत्नी बाबा साहेब पर लेक्चर देगी।--कलेक्टर। " अब एक शेर शकील शमसी का--शाम के वक्त वो आते ही नहीं छत पै कभी, आपने इनको नहीं चाँद को देखा होगा।

Friday 3 December, 2010

आज रोने का मन किया

आज ना जाने क्यूँ
रोने को मन किया,
मां के आँचल में सर
छुपा के सोने का मन किया,
दुनिया की भाग दौड़ में
खो चुके रिश्ते सब,
आज उन रिश्तों को सिरे से
संजोने का मन किया,
किसी दिन भीड़ में
देखी थी किसी की आँखें ,
ना जाने क्यूँ आज उन आखों में
खो जाने का मन किया,
रोज सपनों से बातें
करता था मैं,
आज ना जाने क्यूँ उनसे
मुंह मोड़ने का मन किया,
झूठ बोलता हूँ
अपने आप से रोज मैं,
आज ना जाने क्यूँ खुद से
एक सच बोलने का मन किया,
दिल तोड़ता हूँ सबका
अपनी बातों से मैं,
आज एक टूटा हुआ दिल
जोड़ने का मन किया।
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यह कविता मेरे मित्र और साहित्यप्रेमी आनंद मयसुत ने भेजी थी एस एम एस के द्वारा। खुद शिक्षक हैं। इनके पिता श्री मोहन आलोक राजस्थानी के जाने माने साहित्यकार हैं।