हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Saturday 23 April, 2011
Friday 22 April, 2011
श्रीगंगानगर--घर लौटने के बाद जगदीश जांदू एंड कंपनी राजनीति गणित के एक उत्तर से उलझन में हैं। इस उलझन ने घर आने की ख़ुशी के मीठे में कसेला डाल दिया। राजनीति के गणितज्ञ रेखा,बीज,अंक गणित के सभी सूत्र लगाकर देख चुके। उत्तर एक ही आता है, जीरो। ये क्या हो गया? सभी फारमूले अप्लाई कर दिए। इनको,उनको,सबको अलग अलग प्रकार से जोड़,गुणा,भाग,माइनस,वर्गमूल करके देख लिया। उत्तर बार बार ,हर बार जीरो का जीरो। इस जीरो ने जगदीश जांदू के दिलो दिमाग से घर वापसी के जश्न का खुमार उतार दिया। इलाके की राजनीति के गुरु राधेश्याम गंगानगर ने अपने चेले को भले ही सब कुछ सिखाया,पढाया। परन्तु राजनीति में पलटी कब मारनी चाहिए, ये गुर नहीं दिया। यह नहीं सीखा तभी तो उत्तर जीरो आ रहा है। चेले ने यह पाठ समझा होता तो वह इस वक्त अपने घर नहीं लौटता। जांदू ने घर आकर राजनीतिक सौदे बाजी का अवसर ख़तम कर लिया। यह कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं है कि जांदू विधायक बनना चाहते हैं। श्रीगंगानगर से टिकट उनको मिलनी नहीं। सादुलशहर में संतोष सहारण की टिकट कटनी नहीं। तो जांदू जी क्या करेंगे? अब इनके पास तो कोई विकल्प है नहीं। या तो फिर से बगावत करो, या किसी और के लिए वोट मांगो। दोनों ही परिस्थितियों में कोई उनपर विश्वास नहीं करेगा। जांदू जी अपने गुरु को याद करो! ठाकर को देखो! क्या मौके पर पलटी मारी थी। बल्ले बल्ले हो गई। घर आने के बाद जांदू जी का स्टेटस तो बढ़ा नहीं। हाँ जिम्मेदारी जरुर बढ़ गई। पार्टी के कई प्रकार के प्रोटोकोल अलग से। पार्टी के नियम,कायदे तो हैं ही। चंदा चिटठा भी देना ही पड़ता है, पार्टी चलाने,उसके कार्यक्रम के लिए। निर्दलीय थे तो कोई चिंता नहीं। काम हुआ, हुआ, नहीं हुआ तो नहीं हुआ। कह देते सरकार नहीं करती। बयान ही तो देना था कि गौड़ -जसूजा अड़चन डालते हैं। सभापति का पद कोई छीन नहीं सकता था। अब ऐसा नहीं हो सकता। चाहे सरकार ना करे। गौड़- जसूजा सच में अडंगा लगायें। जांदू जी सारे आम कुछ नहीं कह सकते। काम नहीं हुआ तो कार्यकर्त्ता नाराज। बात ऊपर तक जाएगी। चुनाव आते आते कई नए विरोधी पैदा होने का अंदेशा। राजनीतिक विश्लेषक बेशक सार्वजानिक रूप से कुछ ना कहें लेकिन उनकी चर्चा से लगता है कि श्रीगंगानगर में राजकुमार गौड़ को राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए जगदीश जांदू को इस्तेमाल किया गया है। जांदू जी इस्तेमाल हो भी गए। इस समय जब चारों तरफ लोग कांग्रेस से नाराज हैं। बीजेपी के सत्ता में आने की खबर आम है। जगदीश जांदू का घर आना उनकी राजनीति अपरिपक्वता को दर्शाता है। संभव है यह बात भीड़ में उनको ठीक ना लगे। किन्तु चिंतन मनन करेंगे तो समझ आ जायेगा कि उन्होंने घर आकर क्या खोया,क्या पाया? पहले एक शेर-इस अंजान शहर में पत्थर कहाँ से आ लगा, लोगों की इस भीड़ में कोई अपना जरुर है। एस एम एस पत्रकार साथी राकेश मितवा का ,जो उस दिन मिला जिस दिन जांदू जी घर लौटे थे। एस एम एस पढ़े--जांदू जयंती पर शुभकामनाएं।
Thursday 14 April, 2011
प्रशासन नहीं जानता जनाब
Sunday 10 April, 2011
तुम्हारी तस्वीर में
ना जाने
कहाँ से
एकदम
सामने आ गई,
आँखों से होकर
दिल में समा गई,
ऐसा कहाँ है
हमारी तकदीर में
कि हम भी हों
तुम्हारी तस्वीर में।
Saturday 9 April, 2011
भैंस लाठी वाले की
हिन्दूस्तान में अन्ना हजारे के पक्ष में चली आंधी से सरकार थोड़ी डगमगाई। आज वह हो जायेगा जो अन्ना चाहते हैं। इस आन्दोलन से जुड़े लोग खुशियाँ मनाएंगे। एक दो दिन में अन्ना को भूल कर आई पी एल में खो जायेंगे। यही होता आया है इस देश में। आजादी मिली। हम सोचने लगे ,अब सब अपने आप ठीक हो जायेगा। क्या हुआ? कई दश पहले " हाय महंगाई..हाय महंगाई " वाला गीत आज भी सटीक है। गोपी फिल्म का गाना " चोर उचक्के नगर सेठ और प्रभु भगत निर्धन होंगे...जिसके हाथ में होगी लाठी भैंस वही ले जायेगा..... " देश के वर्तमान हालत की तस्वीर बयान करता है। लोकतंत्र। कहने मात्र से लोकतंत्र नहीं आ जाता। देखने में तो भारत में जनता की,जनता के लिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकारे ही आई हैं। किन्तु लोकतंत्र नहीं आया। भैंस बेशक किसी की रही मगर लेकर वही गया जिसके हाथ में लाठी थी। कहीं ऐसा ही हाल इस आन्दोलन का ना हो जाये। इसलिए अन्ना हजारे के आन्दोलन से जुड़े हर आदमी को सजग ,सचेत रहना है। जो कुछ चार दिनों में जंतर,मंतर पर हुआ उसका डर सरकार को बना रहे। मकसद जन लोकपाल विधेयक नहीं ,करप्शन मुक्त भारत है। विधेयक पहली सीढ़ी है। इसके बन जाने से ही करप्शन ख़तम नहीं हो गया। होगा भी नहीं। अभी तो केवल शुरुआत है। देश में माहौल बना है। आम आदमी के अन्दर करप्शन के प्रति विरोध,आक्रोश मुखर हुआ है। वह सड़क पर उतरा है। यह सब कुछ बना रहना चाहिए। बस यह चिंगारी बुझे नहीं। ऊपर राख दिखे तो दिखे। कुरेदो तो चिंगारी नजर आनी चाहिए जो फूंक मारते ही शोला बन जाने का जज्बा अपने अन्दर समेटे हो, सहेजे हो। वरना सब कुछ जीरो।