हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Tuesday, 24 August 2010
बेगाना सा रहता हूँ
अपनों के बीच बेगाने की तरह रहता हूँ, कोई क्यों जाने क्या क्या सहता हूँ, वो पतझड़ समझते हैं जो बसंत कहता हूँ।
2 comments:
अच्छी रचना .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
रक्षाबंधन की बधाई……………।सुन्दर रचना
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