Monday, 27 October 2008

इधर उधर से संग्रहित

इस नगर के लोग फिरते हैं मुखौटे ओढ़ कर,
सही लोगों को यहाँ खोजना mushkil है।
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जैसा bhee है इसमे नकली pan to नहीं
ये मेरा चेहरा है,बाबा तेरा क्या।
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इश्क ना जाने bavla जाने इतनी बात
जो अपना सब यार का khaali अपने हाथ।
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साहिब है अपनी जगह ma का अपना मान
फ़िर साहिब को janana pahle ma को जान।
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kathputali हर shakhs है साँस है लम्बी डोर
khub nachakar वो hame khinche अपनी or।

2 comments:

Girish Kumar Billore said...

sahee hai

अजित वडनेरकर said...

दीप पर्व की मंगलकामनाएं...