साजन जैसे हरजाई है
सावन के काले बादल,
रो रो कर यूँ बिखर गया
नैनों का सारा काजल।
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यादों की तरह छा जाते हैं
मानसून के मेघ,
काँटों जैसी लगती है
हाय फूलों की सेज।
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हिवड़ा मेरा झुलस रहा
ना जावे दिल से याद,
सब कुछ मिटने वाला है
जो नहीं सुनी फरियाद।
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नींद उड़ गई रातों की
उड़ गया दिन का चैन,
बादल तो बरसे नहीं
बरसत हैं मेरे नैन।
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गोविन्द गोयल
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