आज से ७८ साल पहले इसी दिन की शाम को अंग्रेजी हकुमत ने सरदार भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढा दिया था। सब ग़लत और दो नंबर के काम अंधेरे में होते हैं। यही किया अंग्रेजों ने २३ मार्च १९३१ की शाम ७-३० बजे। जनता के आक्रोश के डर से पुलिस ने उनके मृत शरीर उनके परिजनों को नहीं सौंपे। डरी सहमी सरकार ने आधी रात को सतलुज नदी के किनारे इन शहीदों के मृत शरीरों का दाह संस्कार किया। तब वहां यह ऐलान किया गया " जनता को सूचित किया जाता है कि भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के मृत शरीरों को,जिन्हें कल शाम[२३ मार्च] फांसी दे दी गई थी,जेल से सतलुज के किनारे ले जाया गया है, जहाँ सिख और हिंदू धर्मविधि के अनुसार उनका दाहसंस्कार कर दिया गया। उनके अवशेसनदी में प्रवाहित कर दिए गए।"
आज इनके शहीद दिवस पर इनको याद करके हम इनपर कोई अहसान नहीं कर रहे। यह हमारा धर्म भी है और कर्तव्य भी। क्योंकि यही वे लोग थे जिन्होंने बिना किसी निजी स्वार्थ के देश के लिए काम किया। आज अपने बच्चों को यह बताने का दिन है कि ये महान युवक कौन थे और हमारे लिए आदरणीय किस कारण हैं। हम मन,कर्म और वचन से उनको श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
आज इनके शहीद दिवस पर इनको याद करके हम इनपर कोई अहसान नहीं कर रहे। यह हमारा धर्म भी है और कर्तव्य भी। क्योंकि यही वे लोग थे जिन्होंने बिना किसी निजी स्वार्थ के देश के लिए काम किया। आज अपने बच्चों को यह बताने का दिन है कि ये महान युवक कौन थे और हमारे लिए आदरणीय किस कारण हैं। हम मन,कर्म और वचन से उनको श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।
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shaheedo ko salam.vande matram
jaihind
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