हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Wednesday, 25 March 2009
बुरे बनोगे,मजे करोगे
क्यों, बुरा लगा ना पढ़कर। लोग भला बनने के लिए कहतें हैं, नारदमुनि बुरे के गीत गा रहें हैं। चलो घर से शुरू करतें हैं। घर में जो बालक-बालिका बिल्कुल सीधे,आज्ञाकारी,अनुशासित रहतें हैं उनकी फ़िक्र कम होती है। इसके विपरीत लड़ाकू,खब्ती,शरारती की पूछ अधिक। इसलिए ताकि घर में शान्ति रहे। इनका मूड देखकर बात की जाती है।ऐसी वैसी बात करने से पहले घर वाले कई बार सोचतें हैं। यही फार्मूला हर जगह लागू होता है। मीडिया में उस पत्रकार को सर्वाधिक महत्व मिलता है जो किसी का भी बुरा करने में देर ना लगाता हो। सब यही कहतें हैं- अरे पहले उसको बुला लो,अरे , उस से बात हो गई ना, उसको निमंत्रण भेज दिया ना,अरे देखना उसको मत भूल जाना... आदि आदि। जबकि इसके विपरीत दूसरों के बारे में यही कहा जाता है, चलो कोई बात नहीं,फोन कर लेंगें। राजनीति में तो हम हर रोज देखतें हैं। राजस्थान की बात हो या देश की वही नेता कामयाब हैं जो बुरा बनकर अवसर का लाभ उठातें हैं। सरकारी ऑफिस,पुलिस विभाग में ऐसे ही व्यक्ति अन्दर और बहार पूजनीय होतें हैं। हर आदमी की मदद करने वालों को तो यह कहा जाता है,मुर्ख है,भोला है,दुनियादारी जानता ही नहीं।टीवी पर आने वाले विज्ञापन देख लो। अधिकांश नकारात्मक होतें हैं। जैसे--अरे देख लग रहा है क्या... । अब लग गया। हमें मीठे पानी की जरुरत नहीं अरविन्द की मम्मी को उसकी जरुरत है। फलां गोली से जुबान बंद रहती है, हाथ नहीं। और बाप लड़के के थप्पड़ मारता है। अपराध की ख़बर पहले पेज पर होती है किसी ने अच्छा काम किया हो तो उसको अन्दर के पेज पर डाल दिया जाता है। अपराधी की फोटो के लिए पत्रकार ख़ुद पुलिस की लल्लालोरी करते है। समाज में बढ़िया कुछ करने वालों को अपनी फोटो ख़ुद देकर आनी पड़ती है,वह भी डरते डरते।वर्तमान का सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगें लोग। जिसको यह रोग लग गया। उसका कुछ नहीं हो सकता। " कुछ तो लोग कहेंगें लोगों का काम है कहना"....याद रखने वाले मजे में रहतें हैं।
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