Thursday 30 October, 2008

मेरा कुछ भी नहीं है

-जब तक विवाद रहा
तब तक आबाद रहा मैं।
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देख लिया ना सूरज बनकर
अब सूरज की तरह जलाकर।
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दुःख की नगरी कौन सी
आंसू की क्या जात,
सारे तारे दूर के
सबके छोटे हाथ।
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भाषा भाव पंगु बन जाते
कहने को आभार तुम्हारा।
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पाक गईं आदतें बातों से दूर होगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं।


1 comment:

Unknown said...

"jab tak vivad raha tab tak aabad raha mai" bahut sudar rachna."http://pinturaut.blogspot.com/" http://janmaanas.blogspot.com/