याद नहीं क्या क्या देखा था
सारे मंजर भूल गए
उसकी गलियों से जब लौटे
अपना घर भी भूल गए
तुझको भी जब अपनी कसमे
अपने वादे याद नहीं
हम भी अपने ख्वाब तेरी
आंखों में रखकर भूल गए।
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खेत को खा गई
खेत की मुंडेर
बेटे की करतूत देख
बाप हो गया ढेर
समय का फेर देखो
गली के कुत्तों ने
शेर को लिया घेर।
1 comment:
अच्छी रचना है.
आपको दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.
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