Sunday, 26 October 2008

इधर उधर की कतरने

याद नहीं क्या क्या देखा था
सारे मंजर भूल गए
उसकी गलियों से जब लौटे
अपना घर भी भूल गए
तुझको भी जब अपनी कसमे
अपने वादे याद नहीं
हम भी अपने ख्वाब तेरी
आंखों में रखकर भूल गए।
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खेत को खा गई
खेत की मुंडेर
बेटे की करतूत देख
बाप हो गया ढेर
समय का फेर देखो
गली के कुत्तों ने
शेर को लिया घेर।

1 comment:

Unknown said...

अच्छी रचना है.
आपको दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.