श्रीगंगानगर-रिश्ते!...अब तो रिश्ते आर्थिक,सामाजिक हैसियत और राजनीतिक,प्रशासनिक अप्रोच देख कर बनाए जाते हैं। उससे भी राम रमी मजबूरी होती है जिसका दबदबा हो....अगर ये “क्वालिटी” आप में नहीं है तो आप अपने घर में खुश रहो....आपका परिचय देना भी मेरे लिए मुश्किल है। समझ गए ना... किसी प्रकार का वहम किसी से रिश्तेदारी या मित्रता का मत रखना। बेकार में मन दुखी होगा। रिश्तों की गिरती गरिमा पर अफसोस करोगे। किन्तु हासिल कुछ भी नहीं होना। माहौल ही ऐसा है। कोई इसमें बुरा माने तो माने। जैसे ही किसी को पता लगा कि आप सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक,प्रशासनिक....आदि में बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति होने वाले हैं या हैं।शासन-प्रशासन में आपका दखल है। आपको देखा और पहचाना जाता है। आपकी बात सुनी जाती है। समझो, आप अपने रिश्तेदारों,मित्र मंडली और उनके आगे के रिश्तेदारों और मित्रमंडली के लिए बहुत अधिक खास बन गए। इसके लिए किसी को कुछ कहने,बताने की जरूरत नहीं। आपका लगातार बजने वाला फोन ये आपको समझा देगा। मिलने के लिए आने वाले व्यक्ति और आपको बुलाने की चाह भी संकेत करेगी कि आप अब पहले जैसे नहीं रहे। आपके बारे में दूसरों को इस रूप में बताया जाएगा....”अरे वो! वो तो अपने एकदम निकट हैं।कोई काम हो तो बताना,अपने करवा लेंगे.... ।“ कोशिश होगी कि उसे आपके साथ सब लोग देख लें। दूर से दूर का रिश्तेदार आपको अपना निकट का रिश्तेदार बताएगा। कई पीढ़ी दूर कोई व्यक्ति आपको अपने परिवार का कह कर मान बटोरने की कोशिश करेगा। जो सालों से ना मिले होंगे वे आपके बचपन के मित्र बन जाएंगे। मतलब ये कि आप पर वे अपना अपनत्व लुटायेंगे जो कभी आपके निकट नहीं रहे। वे आप पर हक जताएंगे जिन्होने कभी आपको कोई हक नहीं दिया। वे आपके सबसे निकट होने के प्रूफ पेश करेंगे जो किसी प्रकार की दुख की घड़ी में आपका हाल तक जानने नहीं आए। ये कब तक होगा?जब तक आप वर्तमान स्थिति में हैं। जैसे ही समय बदला। धीरे धीरे सब के सब एक एक करके मंच से गायब होने लगेंगे। उनका अपनत्व किसी और पर निछावर होने लगता है। वे जो कल आपके थे आज किसी और के हो चुके होंगे। इस भौतिक युग की यही परंपरा है। इसलिए टेंशन नहीं। सभी के साथ ऐसा होता है। यह है आज के रिश्तों की नई परिभाषा। यह लिखी है बदलते सामाजिक परिवेश ने। बदली हुई सोच ने। जब रिश्ते बदलते हैं तो शब्द भी बदल जाते हैं सम्बोधन के।
हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Thursday, 22 November 2012
अब बदल चुकी है रिश्तों की परिभाषा........
श्रीगंगानगर-रिश्ते!...अब तो रिश्ते आर्थिक,सामाजिक हैसियत और राजनीतिक,प्रशासनिक अप्रोच देख कर बनाए जाते हैं। उससे भी राम रमी मजबूरी होती है जिसका दबदबा हो....अगर ये “क्वालिटी” आप में नहीं है तो आप अपने घर में खुश रहो....आपका परिचय देना भी मेरे लिए मुश्किल है। समझ गए ना... किसी प्रकार का वहम किसी से रिश्तेदारी या मित्रता का मत रखना। बेकार में मन दुखी होगा। रिश्तों की गिरती गरिमा पर अफसोस करोगे। किन्तु हासिल कुछ भी नहीं होना। माहौल ही ऐसा है। कोई इसमें बुरा माने तो माने। जैसे ही किसी को पता लगा कि आप सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक,प्रशासनिक....आदि में बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति होने वाले हैं या हैं।शासन-प्रशासन में आपका दखल है। आपको देखा और पहचाना जाता है। आपकी बात सुनी जाती है। समझो, आप अपने रिश्तेदारों,मित्र मंडली और उनके आगे के रिश्तेदारों और मित्रमंडली के लिए बहुत अधिक खास बन गए। इसके लिए किसी को कुछ कहने,बताने की जरूरत नहीं। आपका लगातार बजने वाला फोन ये आपको समझा देगा। मिलने के लिए आने वाले व्यक्ति और आपको बुलाने की चाह भी संकेत करेगी कि आप अब पहले जैसे नहीं रहे। आपके बारे में दूसरों को इस रूप में बताया जाएगा....”अरे वो! वो तो अपने एकदम निकट हैं।कोई काम हो तो बताना,अपने करवा लेंगे.... ।“ कोशिश होगी कि उसे आपके साथ सब लोग देख लें। दूर से दूर का रिश्तेदार आपको अपना निकट का रिश्तेदार बताएगा। कई पीढ़ी दूर कोई व्यक्ति आपको अपने परिवार का कह कर मान बटोरने की कोशिश करेगा। जो सालों से ना मिले होंगे वे आपके बचपन के मित्र बन जाएंगे। मतलब ये कि आप पर वे अपना अपनत्व लुटायेंगे जो कभी आपके निकट नहीं रहे। वे आप पर हक जताएंगे जिन्होने कभी आपको कोई हक नहीं दिया। वे आपके सबसे निकट होने के प्रूफ पेश करेंगे जो किसी प्रकार की दुख की घड़ी में आपका हाल तक जानने नहीं आए। ये कब तक होगा?जब तक आप वर्तमान स्थिति में हैं। जैसे ही समय बदला। धीरे धीरे सब के सब एक एक करके मंच से गायब होने लगेंगे। उनका अपनत्व किसी और पर निछावर होने लगता है। वे जो कल आपके थे आज किसी और के हो चुके होंगे। इस भौतिक युग की यही परंपरा है। इसलिए टेंशन नहीं। सभी के साथ ऐसा होता है। यह है आज के रिश्तों की नई परिभाषा। यह लिखी है बदलते सामाजिक परिवेश ने। बदली हुई सोच ने। जब रिश्ते बदलते हैं तो शब्द भी बदल जाते हैं सम्बोधन के।
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