श्रीगंगानगर-पांच
दिन का निराला,अलबेला महापर्व
दिवाली। एक ऐसा त्यौहार जिसके समकक्ष कोई और हो ही नहीं सकता। यूं तो हर त्यौहार
की अपनी कथा है। उसका धार्मिक,सामाजिक महत्व है। लेकिन दिवाली की बात ही अलग
है। धरती का जर्रा जर्रा इसके उत्साह से सराबोर हो जाता है। राज हो या रंक सभी के
दिलों में यह उमंग भर देता है। उत्साह का संचार करता है। बच्चे से लेकर बड़े तक के
पैरों में जैसे घुंघरू बांध देती है प्रकृति। कई दिन पहले साफ सफाई। थोड़ी बहुत
ख़रीदारी। जिसके पास दस रुपए वह दस रुपए खर्च करेगा । जिसके पास करोड़ों वह करोड़ों
खर्च करता है। हर परिवार,इंसान
दिवाली पर खर्च करता है अपनी जेब के हिसाब से। घर घर में पता ही नहीं कितने जाने
अंजाने ऐसे काम,ख़रीदारी होती है
जिसको “दिवाली पर करेंगे” और फिर किया जाता है। पांचों दिन का अलग
धार्मिक,पौराणिक महत्व साथ में
प्रकृति के स्वरूप को बनाए रखने का काम भी। दिवाली पर जो उत्साह,उमंग,खुशी का संचार हर दिल में हुआ है। वह हर पल हर क्षण आपके अंदर बना रहें।
जीवन की हर खुशी,हर आनंद हर दिन
आपके घर दिवाली बन के आती रहे। आपकी लाइफ का हर क्षण एक त्यौहार हो। गणपति देव
आपकी हर विध्न,बाधा को हर ले।
लक्ष्मी माँ की अपार कृपा आप पर,आपके परिवार पर,आपके शुभचिंतकों और सगे संबंधियों पर हमेशा बनी रहे। किसी
भी प्रकार के अभाव का भाव कभी किसी चेहरे पर महसूस ना हो। अंधेरा किसी भी प्रकार
का हो वह दिवाली के दीपों की रोशनी में गुम हो जाए। हर इंसान के अंदर इतने दीप रोशन
हों कि उसे कभी किसी अंधेरे का सामना ना करना पड़े। थोड़े में अधिक बरकत हो। घर से
लेकर समाज में सभी के बीच आपसी भाईचारा हो। सबसे बढ़कर एक दूसरे के प्रति प्रेम की
भावना हो। क्षेत्र में शांति और सौहार्द का वातावरण हो। क्योंकि शांति के अभाव में
तो सब कुछ बेकार है। क्षेत्र का विकास हो। किसी को किसी प्रकार का अभाव ना रहे।
पेट में रोटी हो। तन पर लंगोटी हो और रहने के लिए कोठी हो चाहे छोटी हो। रोटी,कपड़ा और मकान से कोई महरूम ना रहे। जैसी जिसकी
जरूरत हो वह पूरी हो। बच्चों में संस्कार हों। बुजुर्गों का आदर मान हो। उनके अनुभव का सम्मान हो। सभी की सभी बढ़िया
कामना पूरी हो। किसी से किसी की दुश्मनी न हो। लेकिन यह सब केवल हमारे लिख देने और
आपके पढ़ देने मात्र से नहीं होगा। इसके लिए प्रयास प्रयास करने पड़ते हैं। कर्म
प्रधान है सब कुछ। वो तो करना ही पड़ेगा। दीपक में तेल डाल दिया। बाती लगा दी। वह
अपने आप नहीं जलता। उसको जलाना पड़ता है।
ऐसी ही ये जीवन है। इसको चलाना है।कहते भी हैं कि जीवन चलने का नाम। बस, जिस तरफ चल रहें हैं वह दिशा सही हो तभी सभी की
दशा शानदार,जानदार और दमदार
होगी। दीपक अंधेरे में जले तभी उजियारा होगा। यही जीवन है। कदम सही दिशा में बढ़े
तभी काम। वरना तो समय और मेहनत दोनों बेकार। यही करना है। दीपक बन कर जलना बहुत
मुश्किल है। आज के दिन यही दुआ है कि अगर किसी के जीवन में थोड़ा सा भी अंधेरा किसी
कोने में है तो वहाँ प्रकाश पहुंचे। अंधेरा समाप्त हो। उजियारा हो सब के दिलों
में। सब के घरों में। याद रहे,
अंधेरे का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। अंधेरा तभी है जब रोशनी ना हो। जैसे ही
दीपक जलता है अंधेरा समाप्त। इसलिए रोशन करना है सब कुछ। आज ही नहीं...हर क्षण। सभी को दिवाली
की मंगलकामना।
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