Saturday, 1 November 2008

हिरणी की आंख में काजल

हुस्न को जरुरत क्या है सजने और संवरने की
हिरणी की आँख में काजल नहीं होता।
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बुरा ना मानो अगर यार कुछ बुरा कह दे
दिलों के खेल में खुद्दारियां नहीं चलती।
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झूठी काया झूठी माया आख़िर मौत निशान
कहत कबीर सुनो भाई साधो, दो दिन का मेहमान।
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अलग ही मजा है फकीरी का अपना
न पाने की चिंता है न खोने का डर है।
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मैं नदी हूँ यही है मुकद्दर मेरा
एक दिन समन्दर में खो जाउंगी।

1 comment:

Anonymous said...

BAHUT HI SUNDAR ABHIVYAKTI. DHANYAWAD.