Monday, 3 November 2008

खवाब बेहतर है हकीकत से

ख्वाब बेहतर है हकीकत से
शर्त ये है की नींद न टूटे।
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सियासत की अपनी अलग एक जुबां है
लिखा हो जो इकरार तो इंकार पढ़ना।
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बस्ती बस्ती भय के साये
कहाँ मुसाफिर रात बिताये।
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जो काँटों के पथ पर आया
फूलों का उपहार उसी को
जिसने मरना सीख लिया
जीने का अधिकार उसी को।
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चाह गई चिंता मिटी मनवा बेपरवाह
जिसको कुछ न चाहिए वही शहंशाह।

1 comment:

Anonymous said...

Aapki Baat To Chhote Teer Ghav Ghambhir Ko Charitaarth Karte Hain.