हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Thursday, 31 March 2011
रात को निकला जीत का दिन
श्रीगंगानगर-कमाल है,खेल खेल में भारत एकता के सूत्र में बंध गया। क्रिकेट ने वह कर दिखाया जो राजनेताओं की अपील,धर्मगुरुओं के उपदेश, टीचर्स की क्लास नहीं कर सकी। देश के कण कण से एक ही स्वर सुनाई दे रहा था, हम जीत गए। भारत विजयी हुआ। जाति,धर्म,समाज,पंथ सब गौण हो गए। रह गया तो भारत और उसकी पाक पर विजय का उल्लास। दिन के समय किसी काले पीले तूफान के कारण गहराती शाम का दृश्य तो याद है। लेकिन आधी रात को दिन जैसा मंजर पहली बार देखा। १९८३ में भी हमारी टीम रात को ही वर्ल्ड कप जीती थी। ऐसा कोलाहल तो तब भी नहीं दिखाई,सुनाई दिया। तीन दशक में क्रिकेट बादशाह होकर हम पर राज करने लगा। क्रिकेट खेलों का राजा हो गया। इसके आगे कोई नहीं ठहरता। क्रिकेट जन जन के दिलों में धड़कता है। वह उम्मीद है। जीवन है। जुनून है। कारोबार है। ग्लेमर है। उसकी जीत भारत के अलग अलग कारणों से परेशान जनता को खुश कर देती है चाहे कुछ देर के लिए ही सही। इससे अधिक और कोई खेल किसी को दे भी क्या सकता है। जो क्रिकेट दे रहा है, वह तो तमाम खेल मिल कर भी नहीं दे सकते। इसे क्रिकेट की महानता कहो या जनता का पागलपन,दीवानगी। क्रिकेट ऐसा ही रहेगा। अन्दर तक जोश भर देने वाला। सभी आवश्यक कामों को मैच के बाद तक टाल देने वाला। क्रिकेट मैच की जीत जनता के अन्दर नवजीवन का संचार करती है। हार मायूसी। खिलाडी हार के बाद उतने मायूस नहीं होते जितने लोग। क्रिकेट मैच ने कई घंटे तक सबको एक जगह रुकने के लिए मजबूर कर दिया।सरकार ने मैच देखने के आदेश नहीं दिए थे। कोई टोटका भी नहीं था कि मैच देखने से जीवन में खुशहाली आएगी। इसको देखने से कोई ईनाम भी नहीं मिलना था। इसके बावजूद सब व्यस्त थे। मैच के अंतिम क्षणों में जब भारत की जीत साफ दिखाई दी तो हल्ला गुल्ला शुरू हो गया। जैसे ही पाकिस्तान हारा भारत की जीत का उल्लास घरों के कमरों से लेकर सड़कों पर उतर आया। टीं,पीं,पों ,हुर्रे,हूउ...... के मस्ती भरे कोलाहल ने कई घंटे से पसरे सन्नाटे की गिल्लियां उड़ा दी। जो सड़क,गली सुनसान थी वहां पटाखों के शोर ने विजय के तराने गाए। गलियों में भारत माता की जय का उदघोष करती टोलियाँ घरों की चारदीवारी,बालकोनी में खड़े बच्चों को जोश दिला रही थी। फिर ना तो माता पिता की डांट की परवाह ना सुबह होने वाली परीक्षा की चिंता। सबके स्वर एक हो गए। विजय का उदघोष और तेज होकर वातावरण को आह्लादित करने लगा। कई घंटों से ठहरा हुआ भाव रूपी जल लहरें बन ख़ुशी से नृत्य करने लगा। क्रिकेट की अ,आ,इ ..... नहीं जानने वाला पूरे माहौल को अचरज से देख रहा था। उसके चेहरे पर ख़ुशी थी। ख़ुशी इस बात की कि वह जानता है कि यह भारत में ही संभव है जहाँ खेल खेल में अनेकता को एकता में बदला जा सकता है। क्रिकेट तो एक बहाना है। असल में यह हमारे संस्कार है। हमारी संस्कृति है। जिस पर युगों युगों से हमें गर्व है और हमेशा रहेगा।
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