Wednesday, 23 May 2012

घरों में प्रताड़ित तो सास भी कम नहीं होती आजकल


श्रीगंगानगर-वह जमाना और था जब नाई,पंडित या घर का मुखिया लड़का-लड़की का रिश्ता तय कर देता था। उन रिश्तों की गरमाहट हमेशा रहती। समय बढ़ा...रिश्ते करने का ढंग बदला...खटपट होती...होती रहती...रिश्ते निभते...निभाए जाते...घरों की आन,बान शान के लिए। समय तेजी से आगे चला...बहुओं को प्रताड़ना मिलने लगी...कथित रूप से मारा जाना लगा। कानून बना उनकी सुरक्षा के लिए। अब तो बात ही अलग है। प्रताड़ना बहू को नहीं सास-ससुर को दी जाती है। मज़ाक नहीं सही है। कितने ही परिवार हैं जो बहू की प्रताड़ना का संताप झेल रहें हैं। बहू मनमर्जी करती है। उसकी हर जरूरी गैर जरूरी मांग को पूरा करने की कोशिश की जाती है। शिकायत किसको करे! करें तो घर की इज्जत पर आंच आती है। लोग क्या कहेंगे! भिन्न भिन्न प्रकार की बात होगी। बात एक से अनेक व्यक्तियों तक जाएगी। रिश्तेदारों को पता चलेगा। बस,रिश्तेदारों और समाज के डर से अनेक परिवार बहू की प्रताड़ना को घुट घुट कर सहने को मजबूर हैं। हाय, बहू कुछ कर ना ले....हाय बहू कोर्ट कचहरी ना दिखा दे....हे भगवान पीहर वाले थाने में शिकायत ना कर दें। इस आशंका के कारण सास ससुर भीगी बिल्ली बने बहू की हां में हां मिलाने को बेबस हैं। क्योंकि कुछ अनहोनी हो गई तो गया पूरा परिवार अंदर। कोई सुनवाई नहीं...कोई सफाई नहीं। पैसा गया...इज्जत गई साथ में चला जाता है कारोबार...मन की शांति। कानून,पुलिस तो जैसी है,है। समाज को,सामाजिक संगठनों को तो कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे इस प्रकार के परिवारों को सहारा मिले। बहुओं से प्रताड़ित परिवार अपने मन की आशंकाओं को उनके साथ सांझा कर सुकून प्राप्त करें। ये किसी एक समाज की बात नहीं है। लगभग हर समाज में ऐसे घर हैं जहां एक बहू से पूरा घर प्रताड़ित है। कोई तो हो जो इस प्रकार के परिवारों को घुट घुट कर मरने से बचा सके। जिसकी लड़की जाती है या परेशान रहती है। उनको भी तसल्ली मिले। उनके आंसुओं की भी कद्र हो....उनकी भावनाओं को समझा जाए...उनको न्याय मिले। परंतु यह सब किसी और के साथ नाइंसाफी की कीमत पर ना हो। और यह सब समाज कर सकता है...क्योंकि जैसा समाज होता है वैसे ही हम होते हैं। इस पर जल्दी विचार नहीं हुआ तो समाज में अच्छा बहुत कम होगा। दो लाइन हैं...कोशिश करके देख आरसी पौंछ सके तो आंसू पौंछ,बाँट सके तो दर्द बाँट ले,पीर सदा बेगानी लिख।

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