हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Sunday 25 January, 2009
देश प्रेम का मौसम आ गया
मेरे दिल में शहीद भगत सिंह की आत्मा ने प्रवेश कर लिया है। वह जय हिंद का नारा बुलंद कर रही है। जी करता है पाक में जाकर उसकी मुंडी मरोड़ कर किस्सा ख़तम कर दूँ। कमशब्दों में कहूँ तो मेरे अन्दर फिल्मी स्टाइल वाला देशप्रेम का जज्बा पैदा हो गया है। ना, ना, ना , ग़लत मत सोचो, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे कोई दौरा नहीं पड़ा और ना ही मैंने कोई देशप्रेम से ओत प्रोत फ़िल्म देखी है। यह भाव तो आजकल अख़बार पढ़ कर आ गए। जिनमे इन दिनों इस प्रकार के लेख छप रहे हैं कि मेरे जैसे एक पाव वजन वाले इन्सान केमुहं से इन्कलाब जिंदाबाद के नारे बुलंद हो रहे हैं। चिंता की कोई बात नहीं,ये भाव स्थाई नहीं है। ये तो कल तक हवा हो जायेंगें। अगर दो चार दिन देशप्रेम के लेख से ऐसे भाव स्थाई रहते तो देश की ऐसी हालत तो नहीं होती। पहले गोरे थे, अब काले हैं,जन जन के हाल तो वही पुराने वाले हैं। देश में पहले चार मौसम हुआ करते थे,फिल्मो ने पांचवा मौसम प्यार का कर दिया और अब छठा मौसम देशप्रेम का हो जाता है २६ जनवरी और १५ अगस्त के आस पास। इस बीच पाकिस्तान हिम्मत कर दे तो ऐसा मौसम तब भी बन जाता है। इसको मजाक मत समझो यह गंभीर बात है। किसी में एक घटना से देश प्रेम पैदा हो जाए ऐसे बच्चे पैदा करने वाली कोख है क्या? देश प्रेम को मजाक के साथ साथ बाज़ार बना दिया गया है। बच्चों में देश के प्रति प्रेम,समर्पण तभी आएगा जब हम उनको हर रोज इस बारे में बतायेंगें। किसी ने कहा भी है--करत करत अभ्यास तो जड़ मति होत सूजान,रस्सी आवत जात तो सिल पर पड़त निशान। स्कूलों में इस प्रकार की व्यवस्था हो कि बच्चा बच्चा अपने देश और उसके प्रति उसके क्या कर्तव्य हैं,उसके बारे में जाने। उसके टीचर,सरकारी कर्मचारी,नेता,मंत्री और समारोहों में बोलने वाले खास लोग ऐसा आचरण करें जिस से बच्चा बच्चा उनसे प्रेरणा ले सके। आज हम केवल दो चार दिन में लेख लिख कर,देशप्रेम वाले फिल्मी गाने सुनकर,सुनाकर ये सोच लें कि हमारे देश में देशप्रेम का समुद्र बह रहा है तो ये हमारी गलतफहमी है। भला हो पाकिस्तान का जो इसको तोड़ता रहता है। थोड़ा लिखा घणा समझना।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment