Friday, 25 March 2011

चेहरे पर धूल है

श्रीगंगानगर--हिन्दूस्तान भागां वाला है जिसे प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह जैसा हीरा मिला। श्रीगंगानगर जिला अपने आप पर इसलिए इतरा सकताहै कि उसके यहाँ रुपिंदर सिंह जैसा भला इन्सान एस पी है। देश का प्रधानमंत्री नहीं जानता कि उसकी मण्डली क्या क्या गुल खिला रही है। हमारे एस पी को भी इस बात की कोई जानकारी नहीं होती कि कौन आ रहा है,कौन जा रहा है। दोनों बहुत ही सज्जन इन्सान हैं। बच्चे की तरह एकदम मासूम,निर्दोष। गाँधी जी के पद चिन्हों पर या तो मुन्ना भाई चला या ये चल रहे हैं। मुन्ना भाई से भी बढ़ कर हैं ये। बुरा मत देखो,बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो को इन्होने आत्मसात कर लिया है। इनको कोई कुछ बताता नहीं तो ये भी उनसे कुछ पूछते नहीं। हिसाब बराबर। हालाँकि प्रधानमंत्री और एस पी को कोई मेल नहीं हैं। लेकिन क्या करें? भारत-पाक सीमा से सटे इस जिले में गाड़ियाँ हथियार लिए लोगों को लेकर दनदनाती रही। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पार करके आगे और आगे चले गए। किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। संभव है पुलिस को यह अचम्भा ना लगे, मगर एक आम आदमी तो यह सोचता ही है कि कमाल है, डोली लेकर आने वाली गाड़ी को तो रोक कर ईनाम की इच्छा जताई जाती है। ट्रकों को रुकवा कर उनसे माल लेकर ही जाने दिया जाता है। पता नहीं कौन कौनसा विभाग बोर्डर पर जाँच पड़ताल करता है। इसके बावजूद ये बिना किसी की जानकारी में आये चले गए। चलो मान लो ये विभाग अब बिलकुल ऐसा नहीं करते। आजकल किसी से टोका टाकी नहीं की जाती। फिर पुलिस का ख़ुफ़िया तंत्र तो है। पुलिस के अतिरिक्त और भी हैं जो खुफियागिरी करते हैं। जब उनमे से किसी को यह पता ही नहीं चला तो फिर काहे की खुफियागिरी! ऐसा राम राज्य! दूसरे राज्य की पुलिस ने सूचना नहीं दी! नहीं दी तो नहीं दी। आप कार्यवाही करते। उनको अपना रुतबा दिखाते। जब उनको यहाँ के ढोल में पोल का पता लग गया तो वो इसकी परवाह क्यों करने लगे। जरुरत पड़ी तो सूचना हो गई वरना अपने बन्दे लेकर चले जाते। किसको खबर होनी थी। एस पी हैरान हैं कि दूसरे राज्य की पुलिस बिना सूचना दिए आ गई। हम इसलिए हैरान,परेशान हैं कि हमारी पुलिस को पता ही नहीं चला कि कई लोग हथियार लेकर सड़कों पर "घूम" रहे हैं। ये तो ग्रह-नक्षत्र ठीक थे। पडौसी थे। खुदा ना करे इनके स्थान पर दूसरी साइड वाले पडौसी होते तब क्या होना था! तब यह कहते कि हमें पडौसियों ने बताया नहीं कि हम आ रहे हैं। इस प्रकार की भलमनसाहत से परलोक भी नहीं सुधरता। क्योंकि परलोक भी तभी सुधरता है जब इस लोक में आप लोगों का यही लोक सुधारने,संवारने में अपने आप को लगा दें। वह हो नहीं रहा। किसी ने कहा है,--इल्जाम आइने पर लगाना फिजूल है, सच मान लीजिये चेहरे पर धूल है।

Friday, 18 March 2011

फाल्गुन है ही कुछ ऐसा

श्रीगंगानगर-अहा! फाल्गुनवाह!फाल्गुनफाल्गुन कुछ है ही ऐसाठंडी बयार हर उस प्राणी को मदमस्त कर देती है मन फाल्गुन को जानता होकहते भी हैं कि फाल्गुन में तो जेठ भी देवर लगता हैऐसे ही निराले मौसम में जब पंचायती धर्मशाला में होली का कार्यक्रम हुआ तो मोर पीहू पीहू करने लगे और लोग लगे थिरकनेधर्मशाला की हर ईंट गारे को यह सुहानी शाम याद रहेगी अगले फाल्गुन तककार्यक्रम बेशक तय समय से लेट शुरू हुआ मगर हुआ खूबचंग धमाल पहले हुआमेहमान लेट आयेउनको होली पर श्रद्धांजलि, सॉरी बड़े लोग थे इसलिए श्रद्धांजली के में बड़ी मात्रा ठीक रहेगी,दी गईयह प्राप्त करने वालों में अधिकृत रूप से पूर्व सांसद शंकर पन्नू, प्रमुख पति हंस राज पूनिया, बार संघ के अध्यक्ष इंदरजीत बिश्नोई,व्यापार मंडल के अध्यक्ष नरेश शर्मा, सभापति जगदीश जांदू, पूर्व विधायक हेतराम बेनीवाल ,कैप्टेन राजेन्द्र सिंह, शेखावटी विकास समिति के सुभाष तिवाड़ी और पत्रिका के अरविन्द पांडे थेइनको "हार" पहनाये गएजनवादी महिला समिति की दुर्गा स्वामी को माला पहनाने की जिम्मेदारी एडवोकेट भूरा मल स्वामी को दी गईजब वो फूलों की माला लेकर चले तो किसी ने एक माला दुर्गा स्वामी को भी थमा दीदोनों ने एक दूसरे को माला पहना कर सबके सामने अपनी शादी को री न्यू कियागंजों के प्रतिनिधि के रूप में वहां आये समाज सेवी वीरेंद्र वैद और एडवोकेट चरनदास कम्बोज को भी नमन किया गयाशेखावटी विकास समिति के कलाकारों ने अपनी हर अदा से सभी को मोहित कियाचंग पर थाप हो या धमालनाचने का अंदाज हो या मोर की पीहू पीहूसब कुछ एकदम परफेक्ट थाउनकी प्रस्तुतियों ने कौन ऐसा था जिसको उनके साथ थिरकने के लिए मजबूर, नहीं मजबूर नहीं, लालायित नहीं कियावरिष्ठ पत्रकार कमल नागपाल कहा करते थे कि हर इन्सान में एक कलाकार होता ही हैयही तो यहाँ दिखाई दियाहेतराम बेनीवाल ने अपनी उम्र के हिसाब से ठुमके लगाएहंस राज पूनिया ने ढफ यूँ पकड़ा जैसे कलाकार पकड़ते हैंउनके कदम उसी के अनुरूप थिरकेबाद में उन्होंने कुछ लाइन भी गाईऐसा लगा जैसे उनका संकोच खुले,मौका मिले तो धमाल मचा सकते हैंके सी शर्मा के निराले डांसिंग अंदाज ने आनंदित किया उनके चुटकुले से ठहाके गूंजेनरेश शर्मा ,रमेश नागपाल भी मजेदार नाचेफिर तो एक एक करके सबको नचाया गयाजिनकी पत्नी भी थी [ वहां मौके पर] वे जोड़े से नाचेकिसी और ने होली की मस्ती जानकर हाथ पकड़ने की कोशिश की तो उसको निराशा हुईसंपत बस्ती की एक महिला ने नृत्य कियाउनके लिए बार कौंसिल के अध्यक्ष नवरंग चौधरी ने भूरा मल स्वामी के कहने पर मंच पर विराजित मेहमानों से ईनाम इकट्ठा कियाउस महिला की तो होली बढ़िया हो गईमनीष- सिमरन ने बहुत आकर्षित कियाउनको भी नकद ईनाम मिलाइस चक्कर में जो तवज्जो चंग धमाल के कलाकारों को मिलनी चाहिए थी वह उनको नहीं मिल पाईफिर भी यह शाम तो उनकी ही थी सो उनके ही नाम रहीकार्यक्रम ख़तम होने के बाद मैंने ११ साल के बेटे से पूछा , कैसा लगा प्रोग्राम? उसका कहना था, चंग धमाल कम बाकी सब अधिक थाजबकि उसको यह समझ नहीं आया था कि वो गा क्या रहे हैंहोली की कुछ लाइन--रंगों में भीगी सखियाँ ,मुझसे यूँ बोली, साजन के संग बिना री,काहे की होलीघर घर धमाल मचाए ,सखियों की टोली, साजन परदेश बसा है कैसी ये होली

Thursday, 17 March 2011

होली,पिचकारी,साजन,सजनी

लगा गुलाल
गया मलाल
मन में उमड़ा
प्रीत का ज्वार
दोनों मिले
बाहें पसार

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आया भरतार
लगाया ना रंग ,
प्यासी गौरी
लग गई अंग

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रंग छोड़ के
अंग लगा ले
हो जाउंगी लाल रे,
मौका और
दस्तूर भी है
तू
बात ना मेरी टाल रे

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झीने कपड़ों पर
साजन ने मारी
प्रेम भरी पिचकारी ,
सकुचा कर
अपने आप में
सिमट गई सजनी
सारी की सारी
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Monday, 14 March 2011

काले घोड़े की नाल की मार्केटिंग

श्रीगंगानगर --वो जमाना और था जब कोई बेहतर सामान बिना किसी अधिक एड और पीआर शिप के बिकता थामार्केटिंग का कोई दवाब नहीं थाअब वक्त बदल चुका हैआप को अपने सामान की बढ़िया से बढ़िया मार्केटिंग करनी होती हैउसमे भी तरीके रोचक,नए हों तो बात अधिक लोगों तक पहुँचती हैपत्रकारिता में प्रोडक्ट को बेचने के फंडे पढाए और समझाए नहीं जातेयहाँ तो ज़िक्र करेंगे काले घोड़े की नाल बेचने के नए ढंग काकाले घोड़े की नाल का तंत्र,मन्त्र,ज्योतिष में बहुत अधिक महत्व हैकई प्रकार के टोटके उस से किये जाते हैंबहुत से इन्सान इसको घर के बहार टांगते हैंबहुत से छल्ला बनाकर अंगुली में पहनते हैंइसका मिलना मुश्किल होता हैअब इसको आसन बना दिया है एक तरकीब नेगत कई सप्ताह से शहर के अलग अलग इलाके में किसी सड़क के किनारे एक या दो काले घोड़े खड़े दिखाई देते हैंउनके साथ होते हैं उनके पालक युवकघोड़े के पास ही एक दो नाल पड़ी होती हैंएक युवक घोड़े के खुर को पकड़ कर ऐसा कुछ कर रहा होता है जैसे खुर से अभी अभी नाल गिरी हो और वह उसके स्थान पर दूसरी नाल लगा रहा हैआज घर घर में टेंशन हैहर प्राणी थोड़े या अधिक अवसाद में हैमुस्कुराना भूल गया हैपरेशानी से छुटकारा पाने की चिंता उसे हर पल लगी रहती हैऐसे में जैसे ही उसे काला घोडा,नाल दिखाई देती है तो उसके कदम,वाहन धीमे हो जाते हैंवह देखता हैयही तो घोड़े वाले चाहते हैंसबके सामने है,काला घोडा, असली नालमोल भाव शुरू होता हैजैसी सूरत वैसे दामढाई सौ से आरम्भ होकर सौ रूपये तक जाते हैंबहुत मुश्किल से खोजबीन ,लम्बे इंतजार के बाद भी जो असली घोड़े की नाल मिलनी आसान ना हो वह बिना किसी प्रयास के सुलभ हो जाये तो इन्सान उसे खरीद ही लेता हैऐसा हो भी रहा हैमीरा मार्ग,रवीन्द्र पथ,भगत सिंह चौक, भगत सिंह चौक और गंगा सिंह चौक के बीच सहित अनेक इलाकों में इस प्रकार घोड़े की नाल बेचीं जा रही हैइस से बढ़िया किसी वस्तु की मार्केटिंग और क्या हो सकती है! इसको कहते हैं जानदार,शानदार,दमदार पीआर शिपज्योतिष के लिहाज से यह नाल कितनी पुरानी होनी चाहिए इसको लेने और देने वाले जानेबेचने वाला तो क्या जाने उसको तो अपना माल बेचना हैहम ये नहीं कहते कि वह किसी से कोई धोखा कर रहा हैवह तो बस लोगों की भावनाओं को अपने लिए कैश कर रहा हैवैसे ज्योतिष विद्या के माहिर लोगों का ये कहना है कि घोड़े की नाल जितनी पुरानी हो उतना ही बढ़ियाऐसा नहीं कि एक दिन चलाई और उतारकर बेच दीऐसी नाल अधिक असरदार हो ही नहीं सकतीयह नाल अधिक से आधिक घिसी हुई होनी चाहिएघिस घिस कर घोड़े की नाल का रंग एक दम चमकने लगता है ऐसे जैसे कि वह लोहा नहीं स्टील होवैसे किसी के भाग्य को कोई बदल नहीं सकताकई बार अच्छी दवा काम नहीं करती एक चुटकी राख से मर्ज ठीक हो जाता है

Sunday, 13 March 2011

छोटी छोटी बातें

श्रीगंगानगर--जिंदगी में छोटी छोटी बातें भी बहुत रस प्रदान करती हैंरस कैसा! ये पढ़ने,सुनने वाले पर निर्भर करता हैकहते हैं -जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत ........... । जयपुर से रींगस के बीच आजकल अलौकिक दृश्य मन को पुलकित कर देता हैयह दृश्य है खाटू श्याम,खाटू नरेश के प्रति श्रद्धा रखने वालों कायात्रियों के रेले के रेले श्याम के रंग में रंगे खाटू के दरबार में जा रहे होते हैंइनके पास होती हैं बड़ी बड़ी ध्वजाएंअलग अलग रंगों की ये पताकाएं ऐसा आभास दिलाती हैं जैसे प्रकृति के सभी सुन्दर और शुभ रंग इनमे समाहित हो गए होंफाल्गुनी बयार में जब ये लहरातीं है तो उस सड़क से गुजरने वाले लोगों के दिलों में श्रद्धा,आस्था,भक्ति का समन्दर उमड़ने लगता हैजी करता है कि वह भी इन पथिको के साथ पथिक हो श्याम के रंग में रंग जायेलेकिन सभी तो बाबा के दरबार में पहुँच नहीं सकतेकहते हैं जिसको बाबा बुलाते हैं वही जाते हैंखाटू नरेश के इन बन्दों के लिए थोड़ी थोड़ी दूर पर ठहरने,चाय,पानी,अल्पाहार,भोजन की व्यवस्था हैबड़े बड़े सेठ सेवादार बनकर इन पथिकों को खिलते नहीं बल्कि मनुहार करके परोसते हैंजिनके पास ऐसा कुछ नहीं वह अपने घर के सामने से गुजरने वाले इन यात्रियों का पथ सुगम करने के लिए सबरी की तरह पथ साफ़ कर देता हैकिसी के प्रति आस्था,श्रद्धा का इस से बड़ा सबूत और क्या हो सकता है
जयपुर की ही एक और बात कर लेते हैंपुलिया कंट्रोल रूम के सामने तिराहे पर कई यातायात पुलिस के को बन्दे ड्यूटी पर हैंकई वाहनों के साइड में यह कह कर करवाते हैं कि उन्होंने ने नियमो का पालन नहीं कियावे ये भी कहते हैं कि ऐसा वे नहीं कहते बल्कि कंट्रोल रूम वाले इधर उधर लगे कैमरे में देख कर बताते हैंउनको रोका है तो चालान भी होगाबचने के रास्ते भी हैंएक बाइक वाले ने इंचार्ज से पूछा, क्या लगेगा? दो सौ, यातायात कर्मी बोलासाइड में आओ, बाइक वाले ने गरिमा दिखाईपुलिस वाला बेशर्मी दिखाता हुआ बोला, यहीं दे दोमेरे पास बहुत हैकोई चिंता नहींबाइक वाले ने वहीँ दो सौ रूपये दिएपुलिस वाले ने ठाठ से जेब गर्म कीपुलिस कंट्रोल रूम के सामनेजहाँ कैमरे लगे हुये हैंइन कैमरों में इस प्रकार के दो सौ रूपये तो शायद ही नजर आते होंरोका तो हमें भी थालेकिन यह कहकर कि आप तो काम के आदमी हो जाने दियाअब ये अभी तक समझ नहीं आया कि जो कैमरे नियमों का पालन ना करने की बात कर रहे थे वे ठीक कैसे हो गए?
नगर विकास न्यास की चेयरमैनी के लिए अनगिनत लोग सपने देख रहे हैंकिस के भाग में क्या है कौन जानता हैकिन्तु यह तो परम सत्य ही है कि गुरमीत सिंह कुनर के सम्बन्ध मुख्यमंत्री से बहुत की घनिष्ट हैंएक तरफ से नहीं दोनों तरफ सेसरकार में जिले के एक ही मंत्री हैइसके बावजूद चेयरमैनी के किसी भी तलबगार ने श्री कुनर से सम्पर्क नहीं किया हैचेयरमैनी के लिए मुख्यमंत्री श्री कुनर से बात करें या ना करें , ये अलग बात हैमगर इस में तो कोई संदेह नहीं कि श्री कुनर किसी नाम की सिफारिश करेंगे तो उस पर गौर तो अवश्य होगाविचार हमने दे दिया अब विमर्श वो कर लें जो न्यास का चेयरमैन बनने के प्रयास में हैंकिस के हाथ से क्या मिल जाये कौन जानता हैचलो होली की कुछ लाइन पढोये मेरी अपनी हैं। --" आया भरतार , ना लगाया रंगप्यासी गौरी ,लग गई अंग। "

Monday, 7 March 2011

मजाक मजाक में बीते कई साल

बोफोर्स मामला बंद करने का
कैसे आया ख्याल,
आपकी मज़बूरी की
नहीं इस से बड़ी मिसाल।
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मजाक मजाक में बीत गए
कई अमूल्य साल,
सच बतलाना मनमोहन जी
ये कैसे किया कमाल।

Saturday, 5 March 2011

अपना लगे शैतान

अन्दर से डर जाता हूँ
देख भला इन्सान ,
अपना सा लगने लगा
जो बैरी था शैतान।
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यही सोच कर सबके सब
होते हैं परेशान,
भ्रष्टाचार का कोई किस्सा
अब करता नहीं हैरान।
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गली गली में बिक रहा
राजा का ईमान ,
सारी उम्मीदें टूट गईं
राज करें बेईमान।


Friday, 4 March 2011

भ्रष्टाचार पर ताली


अशोक चव्हाण
सुरेश कलमाड़ी
ए राजा
पी जे थामस
बी एस लाली ,
प्रधानमंत्री तो
मजबूर हैं
बाकी तो
बजाओ ताली।

Wednesday, 2 March 2011

रसोई,महंगाई, और कमाई

डिब्बी से डिब्बे
और
कनस्तर से पीपे
तक ,रसोई के
कौने कौने में
फ़ैल गई महंगाई,
जिन्दगी की तरह
पल पल सिकुड़
रही है
आम आदमी की कमाई।

Tuesday, 1 March 2011

पोतड़े भी मंत्री की नजर में

श्रीगंगानगर--देश भर में बजट प्रस्तावों पर बहस हो रही है सत्ता पक्ष बल्ले बल्ले और विरोधी थल्ले थल्ले कर रहा है आम आदमी से थोड़े ऊपर की हैसियत वाले से लेकर बड़े बड़े व्यापारी, अर्थशास्त्री,विश्लेषक बजट का पोस्टमार्टम कर रहे हैं यह आदत भी है और करना जरुरी भी या यूँ समझो कि यह सब भी बजट का ही एक हिस्सा है फिर भी डायपर्स इन सबकी नजर से बच गया डायपर्स! नहीं समझे! अरे! पोतड़ा वही पोतड़ा, जो दिन में कई कई बार बदला जाता था उसी को अब डायपर्स कहते है ऐसे भी समझ सकते है कि गरीब शिशु चड्डी की जगह जो लपेटता है वह पोतड़ा होताहै और पैसे वालों का शिशु जिसको पहनता है वह डायपर्स वित्त मंत्री ने जो बजट प्रस्ताव पेश किये हैं उसके अनुसार डायपर्स सस्ते हो जायेंगे अर्थात मंत्री जी को बजट बनाते समय पैसे वालों के वो शिशु भी याद रहे जो डायपर्स में हगनी,मूतनी करते हैं पोतड़ा तो सस्ता महंगा होता ही नहीं घर में जो बेकार, पुराने ,मजबूत कपडे होते हैं,वही पोतड़ा बनता है पोतड़ा डायपर्स नहीं जिसको यूज करके थ्रो किया जाये संभव है जो पोतड़ा बाप ने पहना हो वही उसके बेटे को भी मिल जाये इसलिए इसको बजट में किसी भी रूप में शामिल करने की कोई तरकीब थी ही नहीं संभव है यह सबको मजाक लगे लेकिन हम उतने ही गंभीर हैं जितने वित्त मंत्री जी हमें तो यह नहीं पता कि देश में कितने बच्चे डायपर्स का इस्तेमाल करते हैं उन्होंने तो हिसाब लगाया या लगवाया ही होगा कि डायपर्स सस्ते करने से कितने करोड़ परिवारों को राहत मिलेगी! ताकि उनके वोट तो अपने पाले में गिने जा सकें सवाल ये नहीं कि कितने घरों में इसका इस्तेमाल होता है प्रश्न ये कि आखिर ये हो क्या रहा है जिसकी जेब में पैसा है उसको कोई तकलीफ सरकार की किसी भी घोषणा से नहीं है उधर गरीब आदमी सरकार के हर बजट के समय अपनी जेब संभालने की कोशिश ही करता रह जाता है डायपर्स हो या पोतड़ा उतना जरुरी नहीं जितना पेट में रोटी,दूध। आज कुछ करोड़ लोगों को छोड़ कर अन्य रोटी,दूध के लिए किस प्रकार से सुबह से शाम तक खटते हैं यह किसी से पर्दा नहीं है। पोतड़े लायक मेम्बर के अलावा सभी इसी काम में लगते हैं, तब भी कभी पूरी रोटी नहीं तो कभी दूध नहीं। काले,सफ़ेद धन की बात से दूर एक साधारण परिवार किस तरह से अपना घर चलाता है ये किसी मंत्री को क्या पता! आज के दिन करोड़ों परिवारों में शिक्षा,स्वास्थ्य उतना महत्व नहीं रखता जितना रोटी। उनके दिमाग से रोटी की चिंता मिटेगी तब कुछ और सोचेंगें। वित्त मंत्री डायपर्स में अटक गए। जैसे इसके बिना जिंदगी बेकार है। ये ना हो तो पोतड़े से काम चल सकता है। जिनके पास पोतड़े तक का इंतजाम नहीं होता,उनके बच्चे भी जिंदा रहते हैं। किन्तु रोटी,दूध के बिना जीवन की गाड़ी अधिक दूर तक नहीं जा सकती। यह ईंधन है। भूखे पेट तो भजन भी नहीं हो सकते। इसलिए रोटी की चिंता थोड़ी आप भी करो सरकार। कुछ ऐसा करो ताकि जिंदगी महंगाई के सामने बौनी ना लगे। वरना तो ....... जैसा चल रहा है चलेगा ही। समर्थ का कौन कुछ बिगाड़ सकता है। जिसकी यहाँ बात हो रही है वह तो ना तीन में ना तेरह में। अंत में वर्तमान मौसम पर दो पंक्तियाँ--रिमझिम-रिमझिम बूंदे पड़ती,ठंडी चले बयार रे, आजा अब तो गले लग जा छोड़ सभी तकरार रे।