Monday, 23 July 2012

नर सेवा से पुलिस के चेहरे को निखार रहा है कांस्टेबल प्रमोद



श्रीगंगानगर- पूरी तरह से कुष्ठ रोगी। शरीर पर जगह जगह हुए घाव में रिस्ता तरल पदार्थ। जिन पर हर  वक्त मक्खियाँ की भिनभिनाहट। कुष्ठ के कारण हाथ पैर खुर रहें हैं। आँखों से क्या लगभग पूरे शरीर से लाचार। ट्राईसिकल पर ही गुजरती है उसकी जिंदगी। इसका ठिकाना है गंगा सिंह चौक। कोई भी व्यक्ति उसके निकट एक पल बिताने से पहले सोचे। परंतु एक व्यक्ति ऐसा भी है जो इसकी सेवा को अपना अहोभाग्य मानता है। व्यक्ति भी कौन! पुलिस का सिपाही। जी, उसी पुलिस का सिपाही, जिसके बारे में बुरी से बुरी बात कहने में कोई संकोच नहीं करता। हां,डरता जरूर है। यह सिपाही शनिवार अथवा इतवार को सुबह गंगासिंह चौक पहुंचता है। उसकी ट्राईसिकल को खुद ठेलता हुआ पुराने हॉस्पिटल लाता है। फिर शुरू होती है उसकी सेवा। उसे साइकिल से उठाकर एक पत्थर पर बैठाता है। उसे मल-मल कर नहलाता है। जैसे कोई माँ अपने बालक को स्नान करवाती है। उसके घावों पर मरहम लगाएगा। उसको देने वाली दवाई देगा। कपड़ों को धोएगा। ट्राईसिकल का सामान व्यवस्थित करेगा। लगभग एक से ढेढ घंटा उसको इस काम में लगता है। फिर उसको उसी प्रकार गंगा सिंह चौक पर छोड़ के आएगा। रास्ते में एक खोखा पर वह बाल्टी-मग रख देगा जो आते समय उसने ली थी। मजाल है जो इस सेवा के समय सिपाही के चेहरे या जुबान पर कोई खिझ,झुंझलाहट,हिचकिचाहट,घिन दिखाई दे या किसी को महसूस हो। उसे कोई देख रहा है तो कोई बात नहीं नहीं देख रहा तो कोई फर्क नहीं। उसकी सेवा इसी प्रकार होती है। कई माह से सिपाही चुपचाप यह सब उस दौर में कर रहा है जिस दौर में कोई किसी को एक रुपया भी दे तो बजा कर कर देता है ताकि सभी को पता लग जाए। यह सिपाही.....शांत मन से बिना किसी को बताए...लगा है ऐसे व्यक्ति की सेवा में जिसे वक्त ने हर प्रकार से मोहताज बना दिया। प्रमोद नामक यह सिपाही एसपी ऑफिस में है। प्रमोद जी ने ढाबे पर इस व्यक्ति के खाने का इंतजाम कर रखा है। प्रमोद जी कहते हैं....सभी के लिए तो कुछ करने की सामर्थ्य नहीं...एक की ज़िम्मेदारी ईश्वर ने मेरे निमित की है। देखें कितने दिन यह सेवा कर पाऊँगा। प्रमोद जी ने विनम्रता से आग्रह किया कि यह सब किसी को पता ना लगे। लेकिन आग्रह ना मानने को विवश हूं। क्योंकि ऐसे व्यक्ति के बारे में सबको पता लगना चाहिए जो निस्वार्थ भाव से किसी लाचार की सेवा कर रहा है ताकि कोई तो उससे प्रेरित हो सके। आज भी प्रमोद जी अपना काम करके चुपचाप चले जाते अगर वे हॉस्पिटल में डॉ नरेश बंसल से इंजेक्शन के सिलसिले में ना मिलते। डॉ बंसल ने मुझे बताया और मुझे अवसर मिला प्रमोद को यह सेवा करते हुए देखने का। प्रमोद जी की सेवा को कोई भी नाम,ईनाम,सम्मान देने से प्रमोद का नहीं बल्कि उस सम्मान,इनाम और नाम का मान बढ़ेगा। क्योंकि कुछ इंसान ऐसे होते हैं जिनके पास जाकर मान,सम्मान,ईनाम खुद गौरवान्वित होते हैं। [सॉरी प्रमोद जी मुझे लिखना पड़ा।]


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