Monday, 16 July 2012

टाइगर को पता लगी मीडिया की बेबसी,लाचारी



श्रीगंगानगर-शेर वन का राजा होता है। उसके लिए कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं होता। उसने आप को साबित किया होगा तभी वह राजा है।मीडिया ने भी पूरे देश में अपने आप को ताकतवर साबित करवाया। परंतु यहां ऐसा नजारा  देखना पड़ा जो कभी कल्पना नहीं की थी। एसपी के बुलावे पर मीडिया कर्मियों की भीड़,इतनी कि कुर्सी कम पड़ गई। एसपी ने डीजीपी के कहने पर बुलाया था पत्रकारों को। एसपी के अनुसार कुछ पत्रकार डीजीपी से मिले थे कि एसपी उनसे बात नहीं करता। पत्रकार पहुँच गए। कहने लगे .....हाय  कोतवाल फोन नहीं अटेण्ड करता....सी ओ फोन नहीं सुनता.....अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बात नहीं करता....एसपी केवल तीन चार अखबार वालों के फोन उठाते हैं। सालों से मीडिया का अहम हिस्सा बने पत्रकारों ने एसपी के समक्ष अपनी लाचारी,बेबसी प्रकट की। या ऐसे कहें कि छोटे छोटे अधिकारियों के बारे में प्रलाप किया। संभव पत्रकार ये पढ़कर मुझसे ही खुन्नस रखने लग जाएं...क्योंकि मीडिया छोटे छोटे अधिकारियों की शिकायत करे तो यह लाचारी,बेबसी,कमजोरी ही है। सबसे भ्रष्ट तंत्र में से एक मानी जाने वाली पुलिस का कोई अधिकारी मीडिया को भाव ना दे और मीडिया बजाए उसको आइना दिखाने  के उसकी शिकायत करे...तो यह कमजोरी,लाचारी  ही है मीडिया की। वरना एक पुलिस अधिकारी की इतनी हिम्मत कि वह मीडिया से बात ना करे। एसपी को कहना पड़े। डीजीपी को बताना पड़े। डीजीपी के बाद....किसको कहेंगे। जनता तो मीडिया को कहती है और मीडिया अपने आप को कमजोर मान कर एसपी से गुहार लगाता है। जनता में मीडिया की इमेज क्या बनेगी? श्रीगंगानगर का वह  मीडिया से जिसकी चमक और धमक दिल्ली जयपुर तक जानी जाती है।  आज इतनी लाचार हो गई कि छोटे छोटे अधिकारी उसके बस में नहीं आते। मीडिया को डीजीपी की शरण में जाना पड़ता है ये कहने के लिए कि एसपी हमे बुलाता नहीं। अरे नहीं बुलाए तो नहीं बुलाए.....अपनी शक्ति दिखाओ। परंतु ये संभव नहीं। मीडिया में ही इतने विचार हैं कि क्या कहने....सबके सामने कुछ कहेंगे और अकेले में अफसर की करेंगे लल्ला लोरी। मीडिया के दूसरे साथी की करेंगे आलोचना....आलोचना भी क्या निंदा। बस,अफसर समझ जाता है कि उसे क्या रणनीति अपनानी है। तभी तो ये स्थिति आती है। जितने  मीडिया कर्मी उतनी आवाज...जब आवाज अलग अलग हो तो फिर कैसी ताकत। तभी तो एसपी ने उपदेश दिया कि खबर से अखबार तो बिक सकता है, देश नहीं बन सकता। पहले देश के नागरिक हैं उसके बाद पत्रकार और एसपी। यह सब इसलिए कि यहां कई तरह का मीडिया है। एक वो जो अखबारों के मालिक हैं। दूसरा वो जो उनमें काम करता है। फील्ड में रहता है। खबर के लिए मारा मारी करता है। तीसरा टीवी चैनल वाला मीडिया। राजा कौन है...कहना मुश्किल....एक शेर बनने की कोशिश करता है तो  दूसरा दहाड़ मारता है....दूसरा सामने आता है तो पहला टांग खींच लेता है। मीडिया तो ताकतवर है...लेकिन यह ताकत बट गई।वरना यूं एसपी के सामने थानाप्रभारी और डीजीपी के सामने एसपी की शिकायत करने की नौबत नहीं आती। बात फिर वही कि शेर जंगल का राजा होता है...वह राजा होने के लिए जानवरों का मोहताज नहीं है।मीडिया भी शेर है....किन्तु यहां उसके नाखून और दाँत निकाल कर रख दिये गए हैं। उसका इस्तेमाल वे नहीं कर पाते जो फील्ड में रहते हैं।सैफी सिरोंजी का शेर है....उम्र भर करता रहा हर शख्स पर मैं तबसरे,झांक कर अपने गिरेबाँ में कभी देखा नहीं।   

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