Thursday, 28 June 2012

कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो जरूर है......



श्रीगंगानगर-चमत्कार होते हैं और संयोग भी। इनके बारे में पढ़ा भी और सुना भी। सृष्टि में कहीं न कहीं कुछ ना कुछ ऐसा जरूर है जो केवल अपनी मर्जी करता है। उसकी मर्जी में हमारा, तुम्हारा, इसका, उसका,किसी का कोई दखल नहीं। वह जो भी है विभिन्न प्रकार से अपने होने का एहसास करवाता रहता है। मौन रहकर घटनाओं के माध्यम से साबित करता है की कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में मेरा अस्तित्व जरूर है। वह चेताता है...मैं हूं। कोई मानता है...कोई नहीं। कोई मज़ाक उड़ाता है कोई श्र्द्धा प्रकट कर उसकी लीला को प्रणाम करता है। ताजा घटना क्या है....संयोग,चमत्कार,,,,,,उसके होने का सबूत। पाकिस्तान की कोट लकपत जेल में सालों से कैद सरबजीत सिंह और सुरजीत सिंह। कोई ऐसा नहीं जो सरबजीत सिंह के नाम से अंजान हो। ऐसा एक भी नहीं जिसने सुरजीत सिंह के बारे में सुना हो। कहीं कोई जिक्र तक नहीं उसका...उसके परिवार का।  पाक सरबजीत की रिहाई की घोषणा करता है। तब भी सुरजीत सिंह को कोई जिक्र नहीं। कुछ घंटे बाद अचानक पाक घोषणा करता है की सरबजीत को नहीं सुरजीत को छोड़ा जाएगा। जो खुशियां थोड़ी देर पहले सरबजीत सिंह के परिवार के यहां बरसी....उनका रुख बदल गया। वे सुरजीत सिंह के घर छप्पर फाड़ कर आईं। अचानक...एकदम से। जो परिवार सालों से सरबजीत सिंह की रिहाई की कोशिश में लगा था उसका घोषणा के बावजूद कुछ नहीं हुआ। जिसके परिवार का कभी कोई नाम तक नहीं सुना वे अंतर्राष्ट्रीय फीगर बन गए। किसने सोचा था..नाम बादल जाएंगे। किसको पता था की सरबजीत सिंह के साथ कोई सुरजीत सिंह भी है। इस घटना को कोई भी नाम दिया जा सकता है। संयोग....चमत्कार...। जो यह संकेत करती है कि होगा वही जो मेरी इच्छा है। बेशक किसी भी घटना,दुर्घटना,संयोग का माध्यम तो यह संसार ही है...परंतु अंत में होना क्या है वह उसके सिवा कोई नहीं जानता जिसको किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। अब सबके सामने है कि जिसकी कभी चर्चा नहीं उसको आजादी मिल गई। जिसके लिए लंबे समय से यहां से वहाँ तक आवाज बुलंद की जा रही है, उसकी रिहाई घोषणा के बावजूद रुक गई। तो आज ...इस बात से इंकार कौन करेगा कि कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो है जो इस संसार से भी ऊपर है। अब कोई ना माने तो ना माने.... । शायर मजबूर कहते हैं...खुदी को बुलंद कर तो रहा हूं मजबूर, डरता हूं,खुदा मुझसे शरमाये ना कोई।  

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