Friday 19 June, 2009

पी,पी,पी और एक और पी


पब्लिक,पुलिस,प्रेस और पॉलिटिकल लोग। मतलब चार पी। आम तौर पर ये कहा,सुना जाता है कि इनमे आपस में खूब ताल मेल होता है। एक दूसरे के पूरक और एक दूसरे की जरुरत हैं,सभी पी। हाँ, ये जरुर हो सकता है कि कहीं कोई दो पी में अधिक घुटती हैं,कहीं किसी दो पी में। ऐसा तीन पी के साथ भी हो सकता है,चार पी के साथ भी। श्रीगंगानगर के बारे में थोड़ा बहुत हम समझने लगे हैं। सम्भव है हमारी सोच किसी और से ना मिलती हो। हमें तो ये लगता है कि हमारे यहाँ पुलिस और प्रेस का मेल मिलाप बहुत बहुत अधिक है। यूँ कहें कि इनमे चोली दामन का साथ है,दोनों में जानदार,शानदार,दमदार समन्वय,सामंजस्य है। यह सब लगातार देखने को भी मिलता रहता है।श्रीगंगानगर की पुलिस कहीं भी कोई कार्यवाही करे,केवल जाँच के लिए जाए,छापा मारी करे, प्रेस भी उनके साथ होती है। कई बार तो ऐसा होता है कि पुलिस कम और प्रेस से जुड़े आदमी अधिक होते हैं। कभी पुलिस आगे तो कभी प्रेस। कई बार तो ये भ्रम होता है कि पुलिस के कारण प्रेस वाले आयें हैं या प्रेस के कारण पुलिस। अब जहाँ भी ये दोनों जायेंगें,वहां के लोगों में घबराहट होना तो लाजिमी है। इन दो पी में ऐसा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है। प्रेस का तो काम है,एक्सक्लूसिव से एक्सक्लूसिव फोटो और ख़बर लाना,उसको अख़बार में छापना। काम तो पुलिस भी अपना ही करती है,लेकिन प्रेस के कारण उसको इतनी अधिक मदद मिलती है कि क्या कहने। एक तो अख़बारों में फोटो छप जाती हैं। दूसरा, प्रेस पर अहसान रहता है कि उनको मौके की तस्वीर पुलिस के कारण मिल गई। तीसरा,पुलिस अपराधी पर दवाब जबरदस्त तरीके से बना पाती है। सबसे खास ये कि पुलिस किसी नेता या अफसर का फोन सिफारिश के लिए आए तो उसे ये कह कर टरका सकती है-सर,आप जैसा कहो कर लेंगें मगर यह सब अख़बारों में आ गया। सर, अख़बारों में फोटो भी छप गई,पता नहीं प्रेस को कैसे पता लगा गया कार्यवाही का। सर....सर....सर..... । इसके अलावा अन्दर की बात भी होती है। जैसे,पुलिस जिनके यहाँ गई उनको ये कह सकती है कि भाई, प्रेस साथ में हैं हम कुछ नहीं कर सकते। अब कार्यवाही के समय कौनसी फोटो लेनी है, कौनसी नहीं। कौनसी व्यक्तिगत है,कौनसी नहीं, ये या तो पुलिस बताये[ कई बार संबंधों के आधार पर पुलिस ऐसा बताती भी है। तब प्रेस को फोटो की इजाजत नहीं होती] या फ़िर प्रेस ख़ुद अपने विवेक से निर्णय ले। पब्लिक को तो पता ही नहीं होता कि प्रेस कौनसी फोटो छाप सकता है कौनसी नहीं। इन सब बातों को छोड़कर इसी मुद्दे पर आतें हैं कि श्रीगंगानगर में प्रेस-पुलिस का आपसी प्रेम [ एक और पी] बना रहे। अन्य स्थानों के पी भी इनसे कुछ सीखें। इन पी को हमारा सलाम।

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