हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Sunday, 5 April 2009
धर्मराज के दरबार में नारदमुनि
धर्मराज का दरबार। महामहिम धर्मराज अपने सिंहासन पर विराजमान थे। देवी देवता,यक्ष,सहित सभी अपने अपने स्थान पर मौजूद थे। धर्मराज का चेहरा भाव हीन था। देवी-देवताओं के मुखमंडल पर चिंता की लकीरें देखी जा रही थी। इन्द्रलोक,स्वर्ग ,नरक के टीवी न्यूज़ चैनल और अखबारों के बड़े बड़े रिपोर्टर अपने अपने हथियारों के साथ अपना अपना स्थान पहले ही रोक चुके थे। टीवी वाले तो चिल्ला चिल्ला कर लाइव दिखा रहे थे। अचानक सब लोग एक ओरदौड़े। यम के दूत नारदमुनि को ला रहे थे। नारदमुनि के हाथ में हथकड़ी पैरों में बेड़ियाँ थी। जुबान पर वही एक मात्र नारायण नारायण का नाम। जैसे ही दूत नारदमुनि को लेकर धर्मराज के सामने हुए,चित्रगुप्त बोले, नारदमुनि को लाने में इतना समय कैसे लगा? ये हिंदुस्तान की संसद नहीं जहाँ समय की कीमत नहीं समझी जाती। दूत ने कांपते हुए बताया कि इन दिनों इस रोड पर ट्रैफिक बहुत अधिक था इसलिए देर हुई। धर्मराज के संतुष्ट होने के बाद नारदमुनि को बताया गया कि उनको इस प्रकार से क्यों लाया गया था। उन पर अपनी मौत की झूठी ख़बर लिखने का आरोप है। धर्मराज ने कहा- अगर नारदमुनि ऐसा करेगा तो फ़िर विश्वास किस पर किया जाएगा। नारदमुनि को अपनी बात कहने का अवसर दिया गया। नारदमुनि बोले-- महाराज जिस लोक में मैं आजकल रहता हूँ वहां बच्चे से लेकर बूढे तक के चेहरे से मुस्कान गायब हो चुकी है। हँसी ठट्ठा भी संता बंता के नाम से किया जाता है। लोग किसी कि खुशी में खुश नही होते। लोग एक दूसरे को जिन्दा ओर खुशहाल देखकर अन्दर ही अन्दर मरते रहते हैं। इस लिए मैंने अपनी मौत की बात की। वह भी पहली अप्रैल को।आप मेरा ब्लॉग देख लो इसी झूठ पर कई जने मुस्कुराये। महाराज मैंने किसी ओर को हंसने-हँसाने का पात्र नहीं। इसके लिए मैंने अपने आप को प्रस्तुत किया। महाराज किसी ओर पर हंसना गुनाह हो सकता है अपने आप पर नहीं।नारदमुनि की बात पर दरबार में काना फूसी शुरू हो गई। कुछ टिप्पणियां भी धीमे धीमे आने लगी। भारत की तरह न्यूज़ वालों को यहाँ कहीं भी आने की आजादी नही थी। इसलिए वे दरबार से बाहर अपनी अपनी तरह से इस ख़बर का प्रसारण कर रहे थे।नारदमुनि ने अपनी बात ख़तम कर धर्मराज की ओर देखा। धर्मराज ने कुछ क्षण चित्रगुप्त से बात की। उसके बाद उन्होंने फैसला कल सुनाने की बात कह कर कार्यवाही समाप्त कर दी। उनके प्रवक्ता ने आकर मीडिया को यह जानकारी दी। उसके बाद भी टीवी वाले अपने अपने अनुमान फैसले के बारे में बताते और सुनाते रहे। जो तेज थे उन्होंने एक्सपर्ट अपने स्टूडियो में बुला लिए और बहस आरम्भ कर दी। बेले दर्शकों से राय मांगी जाने लगी। सारा दिन इसी में निकल गया।
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1 comment:
करारा तमाचा! जो समझ सकता है समझ ले!
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