श्रीगंगानगर-परीक्षा अब आतंक बना दी गई है। इसे आतंक बनाने में सभी का हाथ है,मीडिया का भी। किसी का कम तो किसी का तोला-मासा अधिक। स्कूल,टीचर से लेकर घर तक यही आतंक पसरा है इन दिनों। समझ से परे हैं कि पहले क्या कभी परीक्षा नहीं हुई? कोई अफसर नहीं बना! इंजीनियर नहीं हुए! बढ़िया डॉक्टर्स निकल कर नहीं आए! अच्छे नागरिकों की कमी थी! जो आज है वह पहले भी था। फिर जरा से बच्चे से लेकर किशोर सभी इतने परीक्षा से अब इतने आतंकित क्यों हो गए। साथ में डरे सहमें हैं उनके पेरेंट्स। आराम, खाना-पीना,घूमना,मस्ती,उमंग सब के सब इस आतंक की भेंट चढ़ चुके हैं। घरों में परीक्षा का तनाव है। पिछड़ जाने का अंजाना भय है। रैंक में गिरावट की चिंता है।इन सबकी वजह से स्वास्थ्य को तो हम बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। अब कौन समझाए कि सेहत ही ठीक नहीं होगी तो चलोगे कैसे। दिलो दिमाग पर परीक्षा हावी होगी तो जो पढ़ोगे, वह याद कितना रहेगा। बस,किताब आंखों के सामने और दिमाग कहीं ओर। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रतियोगिता के इस दौर में कोई किसी से पिछड़ना नहीं चाहता। पिछड़ना चाहिए भी नहीं। किन्तु इसका ये मतलब तो नहीं कि इस उम्र में ही जिंदगी के आनंद,उल्लास को ही खो दें। फिर आने वाले समय में तो वैसे भी अनेक प्रकार के आतंक हर इंसान की जिंदगी में रहेंगे। कम से कम यह उम्र तो बिना डर के निकले। परीक्षा बोझ ना बने। वह भी पढ़ाई की तरह एक सामान्य बात हो। परीक्षा का आतंक न हो दिलो दिमाग पर इसीलिए परीक्षा से कुछ दिन पहले स्कूलों में वार्षिक उत्सव होते है। बड़ी कक्षा को विदाई पार्टी दी जाती है। यह सब इसीलिए ताकि विद्यार्थी साल भर की पढ़ाई से हट मनोरंजन से अपने दिमाग को रिचार्ज कर लें। मन को प्रफुल्लित करें... खूब हंसे...मस्ती करें और फिर परीक्षा की तैयारी में जुट जाएं। बिना किसी बोझ के। ऐसा ही भाव विदाई पार्टी का होता है। परंतु समय ने कितना बदल दिया यह सब । आज कितने पैरेंट्स होंगे जो अपने बच्चों को परीक्षा के आतंक से मुक्त रखते होंगे। होगा कोई अपवाद। वरना तो यह मौसम “पढ़ ले...पढ़ ले” कहने का ही है। खेलने...घूमने...फिल्म...टीवी देखने का नाम लेते ही पेरेंट्स के मुखड़े का डिजायन बदल जाता है। घरों से टीवी केबल तक हटवा देते हैं ताकि बच्चे टीवी से दूर रहें। ऐसा करने से बच्चे पढ़ाई में बहुत आगे निकल जाएंगे ये संभव नहीं। पढ़ाई तो ठीक है। परंतु केवल और केवल पढ़ाई उचित नहीं। हर समय....उठते,बैठते,आते,जाते,खाते,पीते बस पढ़ाई! कब तक कोई झेल सकता है। ये पंक्ति पढ़ो दिल बहल जाएगा....मैडम जिस पर लट्टू है,वह सरकार निखट्टू है। जो मैडम को प्यारा है,वह “सरदार” नकारा है।
हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Thursday, 28 February 2013
ओ त्तेरी की! परीक्षा तो आतंक बन गई
श्रीगंगानगर-परीक्षा अब आतंक बना दी गई है। इसे आतंक बनाने में सभी का हाथ है,मीडिया का भी। किसी का कम तो किसी का तोला-मासा अधिक। स्कूल,टीचर से लेकर घर तक यही आतंक पसरा है इन दिनों। समझ से परे हैं कि पहले क्या कभी परीक्षा नहीं हुई? कोई अफसर नहीं बना! इंजीनियर नहीं हुए! बढ़िया डॉक्टर्स निकल कर नहीं आए! अच्छे नागरिकों की कमी थी! जो आज है वह पहले भी था। फिर जरा से बच्चे से लेकर किशोर सभी इतने परीक्षा से अब इतने आतंकित क्यों हो गए। साथ में डरे सहमें हैं उनके पेरेंट्स। आराम, खाना-पीना,घूमना,मस्ती,उमंग सब के सब इस आतंक की भेंट चढ़ चुके हैं। घरों में परीक्षा का तनाव है। पिछड़ जाने का अंजाना भय है। रैंक में गिरावट की चिंता है।इन सबकी वजह से स्वास्थ्य को तो हम बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। अब कौन समझाए कि सेहत ही ठीक नहीं होगी तो चलोगे कैसे। दिलो दिमाग पर परीक्षा हावी होगी तो जो पढ़ोगे, वह याद कितना रहेगा। बस,किताब आंखों के सामने और दिमाग कहीं ओर। इसमें कोई शक नहीं है कि प्रतियोगिता के इस दौर में कोई किसी से पिछड़ना नहीं चाहता। पिछड़ना चाहिए भी नहीं। किन्तु इसका ये मतलब तो नहीं कि इस उम्र में ही जिंदगी के आनंद,उल्लास को ही खो दें। फिर आने वाले समय में तो वैसे भी अनेक प्रकार के आतंक हर इंसान की जिंदगी में रहेंगे। कम से कम यह उम्र तो बिना डर के निकले। परीक्षा बोझ ना बने। वह भी पढ़ाई की तरह एक सामान्य बात हो। परीक्षा का आतंक न हो दिलो दिमाग पर इसीलिए परीक्षा से कुछ दिन पहले स्कूलों में वार्षिक उत्सव होते है। बड़ी कक्षा को विदाई पार्टी दी जाती है। यह सब इसीलिए ताकि विद्यार्थी साल भर की पढ़ाई से हट मनोरंजन से अपने दिमाग को रिचार्ज कर लें। मन को प्रफुल्लित करें... खूब हंसे...मस्ती करें और फिर परीक्षा की तैयारी में जुट जाएं। बिना किसी बोझ के। ऐसा ही भाव विदाई पार्टी का होता है। परंतु समय ने कितना बदल दिया यह सब । आज कितने पैरेंट्स होंगे जो अपने बच्चों को परीक्षा के आतंक से मुक्त रखते होंगे। होगा कोई अपवाद। वरना तो यह मौसम “पढ़ ले...पढ़ ले” कहने का ही है। खेलने...घूमने...फिल्म...टीवी देखने का नाम लेते ही पेरेंट्स के मुखड़े का डिजायन बदल जाता है। घरों से टीवी केबल तक हटवा देते हैं ताकि बच्चे टीवी से दूर रहें। ऐसा करने से बच्चे पढ़ाई में बहुत आगे निकल जाएंगे ये संभव नहीं। पढ़ाई तो ठीक है। परंतु केवल और केवल पढ़ाई उचित नहीं। हर समय....उठते,बैठते,आते,जाते,खाते,पीते बस पढ़ाई! कब तक कोई झेल सकता है। ये पंक्ति पढ़ो दिल बहल जाएगा....मैडम जिस पर लट्टू है,वह सरकार निखट्टू है। जो मैडम को प्यारा है,वह “सरदार” नकारा है।
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