हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Tuesday, 3 May 2011
तोतों के सहभोज के बीच एक कप चाय का आनंद
श्रीगंगानगर—विनाबा बस्ती मे,सिंधियों के मंदिर के थोड़ा आगे। सुबह एक घर के सामने टांय टांय करते तोतों को देख हैरत हो सकती है। कई दर्जन तोते एक साथ। हमें नहीं बताया गया होता तो हमें भी हैरानी होती। परंतु हम तो आए ही इसलिए थे की उन तोतों को देख सकें। जिस मकान के सामने तोते आए थे वह है आयकर अधिकारी अशोक किंगर का। किंगर दंपती चबूतरे पर बैठे थे ओर तोते ले रहे थे अपना दाना पानी। किंगर दंपती सुबह सुबह सबसे पहले इन तोतों से ही मिलते हैं। साढ़े पाँच बजे तोतों के लिए मूँगफली के दाने रख दिये जाते हैं। तोते आ चुके हैं। पहले एक तोता आएगा। दाना चुगेगा। बिजली की तार पर जा बैठेगा। उसके बाद भीड़ मे से आठ –आठ,दस-दस तोते बारी बारी से आते हैं। चुग्गा लेते हैं। जा बैठते हैं। कोई हाय तौबा नहीं। लड़ाई नहीं। लगभग एक घंटे तक तोतों का यह सह भोज चलता है। किंगर दंपती अपनी दिनचर्या मे व्यस्त हो जाते हैं और तोते उड़ जाते हैं कल फिर आने के लिए। यह कर्म लंबे समय से चल रहा है। किसी समय अशोक किंगर कबूतरों के लिए ज्वार डालने जाया करते थे। जहां जाते थे वहाँ कुछ मनमाफिक नहीं लगा तो घर की चारदीवारी पर इंतजाम किया। एक दिन किसी ने मूँगफली के दानों के बारे मे बताया। वहाँ रखे। कई दिन तो पाँच सात तोते ही आए। फिर इनकी संख्या बढ़ती चली गई। अब तो कभी कभी सौ तोते भी वहाँ दिखाई पड़ जाते हैं। जब किंगर दंपती यहाँ नहीं होते तो तोतों के भोजन की ज़िम्मेदारी किसी को सौंप का जाते हैं। एक बार शुरू हुआ यह सिलसिला जारी है। संभव है आईटीओ के रूप मे श्री किंगर की पहचान कुछ अलग प्रकार की हो परंतु पक्षियों के प्रति ऐसा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है। श्रीगंगानगर मे जहां जहां पक्षियों के लिए ज्वार,बाजरा डाला जाता है वहाँ इतनी संख्या में कोई पक्षी दिखाई नहीं दिया। एक घर मे इतनी संख्या मे तोतों का आना बहुत बड़ी बात है। ऐसा ही दृश्य मरघट मे देखने को मिला था। सुबह और दोपहर के बीच का समय था। किसी के अंतिम संस्कार मे शामिल होने गया था। एक आदमी छोटा सा थैला लेकर छत पर गया। पीछे मैं भी। उसके छत पर पहुँचते ही बड़ी संख्या मे कौए वहाँ मंडराने लगे। उसने थैले मे रोटी निकाली और कौए को डाली । कुछ ही क्षणों मे वहाँ और कौए आ गए। काफी देर तक वहाँ कौए भोजन करते रहे। ये दोनों कभी किसी अखबार मे नहीं गए अपनी खबर छपवाने। उनको तो यह पढ़कर मालूम होगा कि हमारे तोतों,कौए की खबर आई है। पहले एक शेर फिर एसएमएस। आ मेरे यार फिर इक बार गले लग जा,फिर कभी देखेंगे क्या लेना है क्या देना है। राजेश अरोड़ा का एसएमएस—अध्यापक—हिन्दी की पहली साइलेंट फिल्म
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