Sunday, 14 March 2010

मंदिर मंदिर धोक खाता रहा

बेवफा बता
बद दुआ
देता है वो,
और मैं
उसके लिए
मंदिर मंदिर
धोक खाता रहा।
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बिन बुलाये
वक्त बेवक्त
चला आता था,
अब तो
मुड़कर भी ना देखा
मैं आवाज लगाता रहा।
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एक सुरूर था
दिलो दिमाग पर
अपना है वो,
देखा जो गैर के संग
तो नशा उतर गया।

2 comments:

Apanatva said...

aaj ka sach ye hee hai gardish me to saya bhee sath nahee deta............
shubhkamnae..........

manish.misra said...

bahut achhi kavita hai ,,,,,,, par aakhiri line me aap nasha utar gaya... ke sthaan par "nasha jata raha" likhte to ,,,aap ki kavita lay na khoti .