Sunday, 31 May 2009

श्रीगंगानगर में जंगल राज


यह श्रीगंगानगर के एक आम आदमी का दर्द है जो यहाँ के "प्रशांत ज्योति" नामक अख़बार में एक पत्र के रूप छापा गया है।बॉर्डर से लगे इस जिला मुख्यालय पर एक समान जंगल राज है। आप की सुरक्षा आप को ही करनी है। अधिकारियों को बता भी दें तो कुछ होने की उम्मीद नहीं होती। यूँ तो पुलिस की गश्त भी होती है,हर गली मोहल्ले के लिए बीट अधिकारी होता है। लेकिन इसके बावजूद आवारा लोग सांड की तरह से दनदनाते घूमते हैं। कहने को तो यहाँ लोकतंत्र के वे सभी प्रकार के जनप्रतिनिधि भी हैं जो अन्य नगरों में पाए जाते हैं। यहाँ तो नेताओं और अधकारियों का ऐसा गठजोड़ होता है कि उसमे चुप्प रहा कर मीडिया भी अपना रोल शानदार ढंग से निभाता है। वह लल्लू पंजू, छोटे कर्मचारियों के खिलाफ तो लिख कर वाहवाही लूट लेते हैं। जिला कलेक्टर,एसपी के कामकाज पर कोई टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। उनकी नजरों में तो सब को भला बने रहना है। इसी कारण से श्रीगंगानगर के हालत दिन पर दिन बिगड़ रहें हैं ।

Saturday, 30 May 2009

श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र

कौरवों-पांडवों का महाभारत समाप्त हो चुका था। विजयी पांडवों में अब यह बात घर कर गई कि वे सबसे अधिक बलवान हैं। उन्होंने ना जाने कितने ही रथी,महारथी,वीर,महावीर,बड़े बड़े लड़ाकों को मृत्यु की शैया पर सुला दिया। मगर फैसला कौन करे कि जो हैं उनमे से श्रेष्ठ कौन है। सब लोग श्रीकृष्ण के पास गए। उन्होंने कहा, मैं भी मैदान में था, इसलिए किसी और से पूछना पड़ेगा। वे बर्बरीक के पास गए। जिन्होंने पेड़ से समस्त महाभारत देखा था। श्रीकृष्ण बोले, बर्बरीक बताओ क्या हुआ, किसने किस को मारा। बर्बरीक कहने लगा,मैंने तो पूरे महाभारत में केवल श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही देखा जो सब को मार रहा था। मुझे तो श्रीकृष्ण के अलावा किसी की माया, शक्ति,वीरता नजर नही आई। बर्बरीक का भाव ये कि जो कुछ महाभारत में हुआ वह श्रीकृष्ण ने ही किया। हाँ नाम अवश्य दूसरों का हुआ।
चलो अब हिंदुस्तान की बात करें। मनमोहन सिंह की सरकार बन गई। मंत्रियों को उनके विभाग दे दिए गए। लेकिन समझदार मीडिया बार बार यह प्रश्न कर रहा है कि राहुल गाँधी मंत्री क्यों नहीं बने? राहुल मंत्री कब बनेगें? अब कोई इनसे पूछने वाला हो कि भाई जो ख़ुद सरकार का मालिक है उसको छोटे मोटे मंत्रालय में बैठाने या बैठने से क्या होगा?जो समुद्र में कहीं भी जाने आने, किसी भी जलचर को कुछ कहने का अधिकार रखता है उसको पूछ रहें हैं कि भाई तुम तालाब में क्यों नहीं जाते? क्या आज के समय प्रधानमंत्री तक राहुल गाँधी को किसी बात के लिए ना कह सकते हैं? और राहुल गाँधी ने जिसके लिए ना कह दिया उसको हाँ में बदल सकते हैं? बेशक राहुल गाँधी किसी को कुछ ना कहें, मगर ये ख़ुद सोनिया गाँधी भी जानती हैं कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं जो राहुल गाँधी को इग्नोर कर सके। आज हर नेता राहुल गाँधी का सानिध्य पाने को आतुर है ताकि उसका रुतबा बढे। एक टीवी चैनल पर पट्टी चल रही थी। " शीश राम ओला राहुल गाँधी से मिले। ओला ने राहुल के कान में कुछ कहा। " श्री ओला राजथान के जाट समुदाय से हैं। उनकी उम्र राहुल गाँधी की उम्र से दोगुनी से भी अधिक है। जब ऐसा हो रहा हो तब राहुल गाँधी को किसी एक महकमे के चक्कर में पड़ने की क्या जरुरत है। हिंदुस्तान की समस्त धरती, आकाश उनका है। वे किसी झोंपडी में सोयें या महल में क्या अन्तर पड़ता है। ये तो जस्ट फॉर चेंज। मनमोहन सिंह सरकार के प्रधान मंत्री हैं, कोई शक नही। सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष और यू पी ऐ की चेयरपर्सन हैं। मगर इस सबसे आगे राहुल गाँधी सीईओ हैं। आज के ज़माने में सीईओ से महत्व पूर्ण कोई नहीं होता। इसलिए राहुल गाँधी मंत्री बनकर पंगा क्यों लेने लगे। भाई सारा जहाँ हमारा है। समझे कि नहीं।

Thursday, 28 May 2009

हीरे और लोहे में अन्तर

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई। उसके चेहरे आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था। उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,लेकिन बालिका नहीं मानी। संत ने कहा, बोलो बालिका क्या बात है?। बालिका ने कहा,महाराज घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे,कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो,यहाँ मत जाओ,घर जल्दी आ जाओ। आदि आदि। संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराने लगे। उसके बाद उन्होंने कहा, बालिका तुमने कभी लोहे की दुकान के बहार पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी,गर्मी,बरसात,रात दिन इसी प्रकार पड़े रहतें हैं। इसके बावजूद इनकी कीमत पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में। अब तुम चलो एक जोहरी की दुकान में। एक बड़ी तिजोरी,उसमे फ़िर छोटी तिजोरी। उसके अन्दर कोई छोटा सा चोर खाना। उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा। डिब्बी में रेशम बिछा होगा। उस पर होगा हीरा। क्योंकि वह जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है। हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसका और उसके परिवार के पास कुछ नहीं रहता। बस यही अन्तर है लड़ियों और लड़कों में। इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक करता है।इसी के संदर्भ में है आज की पोस्ट। जिन परिवारों की लड़कियां प्लस टू में होती हैं। उनके सामने कुछ नई परेशानी आने लगी है। होता यूँ है कि कोई भी कॉलेज वाले स्कूल से जाकर लड़कियों के घर के पते,फ़ोन नम्बर ले आता है। स्कुल वाले भी अपने स्वार्थ के चलते अपने स्कूल की लड़कियों के पते उनको सौंप देतें हैं। उसके बाद घरों में अलग अलग कॉलेज से कोई ना कोई आता रहता है। कभी कोई स्टाफ आएगा कभी फ़ोन और कभी पत्र। यह सब होता है शिक्षा व्यवसाय में गला काट प्रतिस्पर्धा ले कारण। स्कूल वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वह लड़कियों के पते,उनके घरों के फोन नम्बर इस प्रकार से सार्वजनिक करें। ये तो सरासर अभिभावकों से धोका है। ऐसे तो ये स्कूल लड़कियों की फोटो भी किसी को सौंपने में देर नहीं लगायेंगें। जबकि स्कूल वालों की जिम्मेदारी तो लड़कियों के प्रति अधिक होनी चाहिए। अगर इस प्रकार से स्कूल, छात्राओं की निजी सूचना हर किसी को देते रहे तो अभिवावक कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। आख़िर लड़कियां हीरे की तरह हैं, जिनकी सुरक्षा और देखभाल उसी के अनुरूप होती है। नारदमुनि ग़लत है क्या? अगर नहीं तो फ़िर करो आप भी हस्ताक्षर।

Sunday, 24 May 2009

अधिकारियों का माफिया ग्रुप

राजस्थान में जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा,पुलिस सेवा और राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं उनमे से अधिकांश एक बार अपनी पोस्टिंग श्रीगंगानगर जिले में होने की तमन्ना रखते हैं। इसके लिए मैंने ख़ुद अधिकारियों को नेताओं के यहाँ हाजिरी लगाते,मिमियाते देखा है। कितने ही अधिकारी हमारे जिले में सालों से नियुक्त हैं। सरकार किसी की हो,ये कहीं नहीं जाते। वैसे तो ये सरकार की ओर से जनता की सेवा और उनके काम के लिए होतें हैं। अधिकारी की कोई जाति भी नहीं होती, क्योंकि उनको तो सब के साथ एक सा व्यवहार करना होता है। किंतु श्रीगंगानगर में ये सब कुछ नहीं रहता। यहाँ इन अधिकारियों की जितनी मनमर्जी चलती है उतनी राजस्थान में कहीं नहीं चलती। यहाँ एक दर्जन से अधिक दैनिक अख़बार निकलते हैं,इसके बावजूद अधिकारियों में पर किसी का अंकुश नहीं है। किसी अधिकारी के खिलाफ किसी अख़बार में कुछ नहीं छपता। चाहे अधिकारी कितनी भी दादागिरी करे। गत दिवस एक अधिकारी की कार्यवाही का विरोध हुआ। उस अधिकारी ने अपनी जाति के संगठन को आगे कर दिया। उसके बाद अधिकारियों की बैठक हुई। एकजुटता दिखाई गई। ऐसा हुआ तो ये कर देंगे,वैसा हुआ तो वो कर देंगे, स्टाईल में बातें हुईं। जैसे माफिया होते हैं। इसका मतलब सीधा सा कि जनता को जूते के नीचे रखो, नेता जी कुछ करेंगें नहीं क्योंकि वही तो हमें लेकर आयें हैं। अधिकारियों के अन्याय का विरोध करो तो सब अधिकारी जनता के खिलाफ हो जाते हैं। कितनी हैरानी की बात है कि जिन अधिकारियों को जन हित के लिए सरकार ने लगाया,वही अधिकारी दादागिरी करतें हैं। एक परिवार ने एक अधिकारी द्वारा की गई दादागिरी दिखाने, बताने के लिए एक संपादक को फ़ोन किया। संपादक का कहना था कि आप किसी होटल में बुलाओ। पीड़ित ने कहा, सर हम तो मौका दिखाना चाहते हैं। लेकिन ना जी , संपादक ने यह कह कर मौके पर आने,अपना प्रतिनिधि भेजने से इंकार कर दिया कि आप हमें इस्तेमाल करना चाहते हैं। अब जनता किसके पास जाए। नेता के पास जाने से कुछ होगा नहीं। अधिकारी डंडा लिए बैठें हैं। संपादक जी मौके पर आना नहीं चाहते। ऐसी स्तिथि में तो जनता को ख़ुद ही कुछ करना होगा। जब जनता कुछ करेगी तो फ़िर वही होगा जो अक्तूबर २००४ में घड़साना-रावला में हुआ था। तब करोडों रुपयों की सम्पति जला दी गई थी। पुलिस की गोली से कई किसान मारे गए थे। हम ये नहीं कहते कि यह सही है,मगर जब सभी रास्ते बंद हो जायें ,कोई जायज बात सुनने को तैयार ही ना हो, अफसर केवल फ़ैसला सुनाये, न्याय न करे तो आख़िर क्या होगा? बगावत !काफी लोग कहेंगें कि आपने संपादक और अधिकारियों के नाम क्यों नहीं लिखे? इसका जवाब है , हम भी एक आम आदमी हैं, इसलिए इनसे डरते हैं, डरतें हैं।

Saturday, 23 May 2009

बारूद के ढेर पर श्रीगंगानगर

श्रीगंगानगर! भारत पाक सीमा के निकट महाराजा गंगा सिंह द्वारा बसाया गया एक नगर। साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल श्रीगंगानगर। यहाँ के सदभाव को ना तो गुजरात के दंगे तोड़ सके ना पंजाब का आतंकवाद। जबकि श्रीगंगानगर पंजाब से केवल ५ कीमी दूर है। मगर अब कहानी कुछ कुछ बिगड़ने लगी है। एक चिंगारी शोला बन जाती है। गत दिवस ऐसा ही हुआ। नगर में आगजनी हुई,तोड़फोड़ हुई। कई घंटे लोग टेंशन में रहे। लेकिन इस बात की चिंता अधिकारियों को तो होने क्यों लगी। चिंता नगर वालों को होनी चाहिए, उनको भी नहीं है। अगर बॉर्डर वाले नगर में जिसके तीन तरफ़ सैनिक छावनियां और एक तरफ़ पाकिस्तान हो वहां तो अधिक से अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, सभी पक्षों की ओर से। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह खतरनाक संकेत है इस नगर के लिए। अगर यही हाल रहा तो एक दिन सम्भव है ऐसा आए जब किसी के हाथ में कुछ नहीं होगा। जिसके हाथ में होगा वह बॉर्डर के उस पर बैठा हमारी नासमझी पर ठहाके लगा रहा होगा। बड़ी घटना की शुरुआत इसी प्रकार छोटी छोटी घटनाओं की रिहर्सल से ही तो होती है। अफसरों का क्या है श्रीगंगानगर नहीं तो और कहीं। मगर यहाँ के लोगों का क्या होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। यह कितना गंभीर मामला है लेकिन टीवी न्यूज़ चैनल्स वालों को इस प्रकार की ख़बर चाहिए ही नहीं। ये तो सब के सब सत्ता के आस पास रहे। । दिल्ली जयपुर के अख़बारों के लिए भी शायद यह कोई ख़बर नहीं थी। कितनी अचरज की बात है कि बॉर्डर पर बसे राजस्थान के इस श्रीगंगानगर के चिंता किसी को नहीं है। नारदमुनि तो केवल अपने प्रभु से प्रार्थना ही कर सकता है। पता नहीं प्रभु को भी समय है कि नहीं।

Monday, 18 May 2009

श्रीगंगानगर में हुआ तिल का ताड़

भारत पाक सीमा पर बसा श्रीगंगानगर भगवान भरोसे है। प्रशासन.लीडर,आमजन तो इसकी ऐसी की तैसी करने में लगा रहता है। रात को एक छोटी सी चिंगारी ने नगर में दंगे का रूप ले लिया।नगर के एक इलाके में अराजकता हो गई। नेशनल राजमार्ग १५ पर कई घंटे दंगाइयों का राज रहा। बिजली के एक ट्रांसफार्मर में से निकली चिंगारी के कारण २ आदमी झुलस गए। बस उसके बाद दंगा भड़क गया। लोगो ने पत्थर बरसाए। पुलिस ने लाठी। दंगाइयों को जो मिला उसको आग के हवाले कर दिया। लोगो के घरों के बहार खड़े वाहनों को तोड़ दिया। जिस इलाके में यह सब हो रहा था वहां बिजली गुल कर दी गई। जिस से दंगा करने वालों को और अधिक शह मिल गई। इलाके की चारों ओर से नाकाबंदी कर दी गई। किसी को इस ओर आने की इजाजत नहीं दी गई। शहर में अफवाहों को दौर शुरू हो गया। किसी ने कहा दो मर गए,किसी ने मरने वालों की संख्या तीन बताई। इस संवेदनशील जिला मुख्यालय पर इस प्रकार का नकारा प्रशासन शायद ही पहले कभी आया हो। जिला कलेक्टर,पुलिस अधीक्षक तो शहर को शायद पूरा जानते भी न होंगें। इनमे इतना गरूर है कि क्या कहने। इनका नगर के लोगों से कोई लाइजनिंग नहीं हैं। शहर के हजारों लोग टेंशन में रहे। लोगों को नुकसान उठाना पड़ा। धन्य हैं वे नेता जो ऐसे महान अफसरों को श्रीगंगानगर में लेकर आयें हैं। जो प्रशासन एक राई को पहाड़ बनने से नहीं रोक सका उस से अधिक उम्मीद करना बेकार है। लेकिन क्या करें उम्मीद पर दुनिया कायम है। आज सुबह तो हालत काबू में बताये गएँ हैं।

Sunday, 17 May 2009

आडवानी जी जय सिया राम


---- चुटकी----
उम्र हो गई ज्यादा
अब आप करो आराम,
हमारा तो स्वीकार करो
जय जय जय सिया राम।

Saturday, 16 May 2009

पाँच साल बाद दिखे नेता जी

इस विडियो में श्रीगंगानगर के नव निर्वाचित सांसद भरत राम मेघवाल हैं। भरत राम बार हमें २००४ के लोकसभा चुनाव में नजर आए। तब वे बीजेपी के निहालचंद से ७३०० वोट से हार गए थे। उसके बाद वे २००९ में हमें दिखाई दिए तब, जब उनको कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया। आज भरत राम श्रीगंगानगर के सांसद निर्वाचित हो गए। उन्होंने बीजेपी के निहालचंद को १४०६६८ वोट के अन्तर से हराया। अब जीतने के बाद भरत राम जी कब दर्शन देंगे कहना बहुत मुश्किल है। क्योंकि अब तो उनकी व्यस्तता बढ़ जायेगी। २००४ में हारने के बाद भी जब उनको समय नहीं मिला तो अब कैसे सम्भव है। अब तो उनके कंधो पर देश की समस्याओं का बोझ आ गया। देखो अब इनके दीदार कब होतें हैं।

Friday, 15 May 2009

पारा चढा बिजली कट शुरू

श्रीगंगानगर अपनी भयंकर गर्मी के लिए देश भर में जाना जाता है। यहाँ आजकल गर्मी का पारा ४६ डिग्री सेल्सियस से अधिक हो चुका है। चलो पारा तो चढ़ना था चढा, इस पर सरकार का पारा भी हाई हो गया। उसने इस भयंकर गर्मी में हर रोज चार घंटे बिजली कट लगा दिया। करलो जो करना है, चुनाव तो हो गए। कट भी दोपहर में लगता है। मर्जी है इनकी क्योंकि सरकार इनकी है। राजस्थान में श्री अशोक गहलोत के सीएम बनते ही यह सब शुरू हो जाता है। अब भला इतनी गर्मी में बिना बिजली के शहर में रहना कितना मुश्किल है। वह भी उस दशा में जब सूरज ढलते ही मच्छरों का राज सरकार के राज पर भरी हो जाता है। सरकार से तो मच्छर भी नहीं मरते। है कोई ऐसा सरकारी नेता जो यह कहता हो कि वह बिजली कट में आम जन की तरह रह कर दिखा सकता है। कोई तो बताये कि क्या सीएम,मुख्य सचिव,सरकार के मंत्रियों के घरों दफ्तरों की बिजली भी कटती है क्या? प्लीज जरुर जरुर बताना! ऐसा नहीं कि हम आपकी बिजली काट के खुश हैं। हम तो दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि देखो हमारा सीएम आम आदमी की भांति गर्मी में अपना समय गुजारता है। पता नहीं वह समय कब आएगा जब एक सीएम आम आदमी की तरह रहता दिखाई देगा। आम आदमी का सीएम बनना तो लोकतंत्र में कोई खास बात नहीं लेकिन सीएम का एक आम आदमी की तरह रहना जरुर खास और बहुत खास बात होगी। सॉरी, मैं तो सपने देखने लगा। वह भी इतनी गर्मी में जागते हुए। हाय ओ रब्बा मुझे माफ़ करना। मैंने भी क्या देख लिया । ऐसा भी कभी होता है क्या इस लोकतंत्र में। लोकतंत्र तो वही है जहाँ नेता राजा की भांति और आमजन निरीह प्राणी की भांति अपना समय काटें।

Tuesday, 12 May 2009

राजनीति के फ्रैंडली फाइट समाप्त

राजनीति की फ्रैंडली फाइट अब एक बार तो समाप्त हो गई। अब तो पोलाइट होने का वक्त है। यह समय की मांग भी है। जैसे--आप तो बड़े सुंदर लग रहे हो...... । आप कौनसे कम हो...... । आपकी चाल बहुत जानदार है.... । आप बोलते बहुत अच्छा हैं..... । आपकी साड़ी का जवाब नहीं। अरे साहब आप पर तो कुरता पायजामा बहुत ही फबता है.... । अरे यार तूने मेरे खिलाफ बहुत कुछ कहा.... । तो तूने भी कौनसी कसर रखी..... । अरे भाई तू तो मेरा स्वभाव जानता है....फ़िर जनता को संदेश भी तो देना था..... । लेकिन इन सब से वोटर तेरे खिलाफ हो गया.... । क्या हुआ , तेरे को तो फायदा हो गया.... । तेरा फायदा अपना ही तो है। हाँ यह बात तो है ही। आख़िर घी खिचड़ी में ही तो जाएगा। यही हम चाहते भी हैं। हम सब यही तो देख और पढ़ रहें हैं आजकल। जो कल तक एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे वही इनदिनों एक दूसरे की प्रशंसा करने में लगे हैं।अब तो सब के सब नेता अभिनेता बन कर एक दूसरे को रिझाने की कोशिश में लगे हैं। एक दूसरे के निकट आने के बहाने तलाश किए जा रहें हैं। प्रेमियों की तरह मिलने और बात करने के अवसर खोजे या खुजवाये जा रहें हैं। मीडिया भी इस काम में इनकी मदद करता दिखता है। पहला दूसरे से दूरी बनाये था, दूसरा तीसरे से । चौथा अकेला चलने के गीत गा रहा था। देखो वोटर का खेल खत्म हो गया। शुरू हो चुका है असली खेल। सत्ता को अपनी रखैल बनने का खेल, अपनी दासी,बांदी बनाने का खेल,कुर्सी को अपने या अपने परिवार में रखने का खेल। इन सबका एक ही नारा होगा, वही नारा जो शायद बचपन में सभी ने कहा या सुना होगा " हमें भी खिलाओ,वरना खेल भी मिटाओ"। सम्भव है कुछ लोग एक बार किसी के साथ सत्ता के खेल में शामिल हो जायें और बाद में अपना बल्ला और गेंद लेकर चलते बनें। खेल चल रहा है, देखना है कौन किसको खिलायेगा। हाँ इस खेल में देश की जनता का कोई रोल नहीं है। इस खेल से सबसे अधिक कोई प्रभावित होगा तो वह जनता ही है,किंतु विडम्बना देखो अब इस खेल में उसकी कोई भागीदारी नही है।