Monday 22 December, 2014

विशेष फाइल:मेरी मृत्यु के बाद काम आएगी



श्रीगंगानगर-मृत्यु एक मात्र सत्य है। ये सब जानते हैं। स्वीकार भी कर लेते हैं बहुत से। परंतु इस सच को अंगीकार कर उसके स्वागत की तैयारी विरले ही करते हैं। उस सच का इंतजार करने का हौसला किसी किसी मेँ होता है जिसका नाम मृत्यु है। मृत्यु से पूर्व की मैनेजमेंट भी कोई कोई ही कर पाता है। हालांकि किसी को नहीं पता कि कौन इस जग से कब प्रस्थान करेगा। बुजुर्ग का बुलावा पहले आएगा या नौजवान को मौत अपने साथ लेकर चली जाएगी। संभव है गंभीर रोगी खाट पर पड़ा रहे और चलता फिरता व्यति चलता बने। इसके बावजूद कभी कभी कोई ऐसा हो जाता है जो बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देता है। ऐसा ही हुआ है। इस सच का सामना करने के लिए एक व्यक्ति ने सालों पहले अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर लिया,जिसे मृत्यु कहा जाता है। इस व्यक्ति ने 25 जनवरी 2003 को एक विशेष फाइल बनाई। उस पर लिखा,मेरी मृत्यु के बाद काम आएगी। व्यक्ति लाईनदार पन्ने पर इन शब्दों से अपनी बात शुरू करता है,मृत्यु सत्य है। जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी अवश्य होती है। मेरी आयु 58 साल 6 माह और 22 दिन हो चुकी है। मेरा भी देहांत होगा। मरने से पूर्व परिवार को मार्ग दर्शन देना चाहता हूँ। मार्ग दर्शन के रूप मेँ इस व्यक्ति ने वह सब कुछ डिटेल मेँ लिखा जो परिजनों को करवाना होगा। मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बनाना है? क्या लिखवाना है? बैंक खाते के लिए क्या कैसे डाक्यूमेंट लगाने होंगे? गज़टेड ऑफिसर से हस्ताक्षर के लिए बाकायदा एक व्यक्ति का नाम लिख उसे बुला लेने के निर्देश बच्चों के लिए इस पन्ने पर है।जरूरी निर्देश और मार्ग दर्शन लाल स्याही से अंकित किए गए हैं। यहाँ तक कि पत्नी के नाम पेंशन करवाने मेँ बच्चों को परेशानी ना हो, भरा हुआ एक डमी फार्म भी फाइल मेँ रखा हुआ है। इस व्यक्ति ने बच्चों के लिए लिखा, बेईमानी से पैसा नहीं कमाना। कोई लेनदार हो तो उसे हाथ जोड़ कर देना। अगर पैसा हाथ मेँ हो तो कमजोर रिश्तेदार की मदद जरूर करना। और भी कई बात इस फाइल मेँ हैं। ऐसा नहीं कि फाइल तैयार करते ही मौत उनको लेने आ गई।यह सब लिखने के बाद भी व्यक्ति ने 11 साल 9 माह सुख पूर्वक बिताए। इतने समय तक उस सत्य का इंतजार किया जिसे मौत,मृत्यु के नाम से जाना जाता है। जब यह बात कोई नहीं जानता कि कौन पहले जाएगा उन्होने अपने प्रस्थान की तैयारी कर ली। इस बात का प्रबंध भी कर लिए कि उनके प्रस्थान के बाद बच्चों को कोई परेशानी ना हो। ऐसा करने वाले व्यक्ति का नाम था सुभाष अनेजा। रिटायर्ड आरईएस। जिनका पांच दिन पहले 11 अक्टूबर को निधन हो गया था। शोक ग्रस्त परिजन फाइल को पढ़ते हैं।

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