श्रीगंगानगर-इंटरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया। एक डिब्बे में समेट दिया। सब कुछ कितना पास है हमारे। जिस से चाहो बात करो। जो चाहे प्रश्न पूछो। आपके प्रश्न समाप्त हो जाएंगे,यहा बताना बंद नहीं करेगा। बेशक दुनिया के नजदीक आए हैं हम सब। लेकिन पड़ौसी से कितने दूर हो गए यह किसी ने नहीं सोचा। जिसका रिश्तों में सबसे अधिक महत्व था। जो सबसे निकट था। वह बहुत दूर हो गया और हमें पता भी नहीं चला। दुनिया के बड़े से बड़े व्यक्ति के फोन नंबर हमारे मोबाइल फोन में होंगे।परंतु पड़ौसी के शायद ही हों। वो भी जमाना था जब पड़ौसी से एक कटोरी चीनी,एक चम्मच चाय पत्ती मांगना सामान्य बात थी। सब्जी का आदान प्रदान तो बड़ी आत्मीयता से होता था। “जा मोनु सरसों का साग रश्मि की माँ को दे आ उसे बड़ा चाव है सरसों के साग का।“ उधर से भी ऐसे ही भाव थे। कोई तड़के वाली दाल दे जाता तो कोई बाजरे की रोटी ले जाता। पड़ौसी भी रिश्ते की अनदेखी डोर से बंधे होते। चाची,मामी,ताई,दादी,नानी,भाभी,बुआ कौनसा रिश्ता था जो नहीं होता। अपने आप बन जाते ये रिश्ते। सात्विक प्रेम,अपनेपन से निभाए भी जाते थे ये रिश्ते। घर की बहिन,बेटी,बहू छत पर कपड़े सुखाने के समय ही पड़ौस की बहिन,बेटी,बहू खूब बात करतीं। बड़ी,पापड़,सेंवी बनाने के लिए बुला लेते एक दूसरे को। छत से ही एक दूसरे के आना जाना हो जाता। अब तो दो घरों के बीच दीवारें इतनी ऊंची हो गई कि दूसरे की छत पर क्या हो रहा है पता ही नहीं लगता। ऊंची एड़ी करके कोई देखने की कोशिश भी करे तो हँगामा तय है। ये कोई अधिक पुरानी बात नहीं जब घरों के बाहर चार दीवारी का रिवाज नहीं था। किसी भी स्थान पर एक खाट बिछी होती और फुरसत में मोहल्ले की औरतें की महफिल शुरू हो जाती। सर्दी में एक घर की धूप सबकी धूप थी। सूरज के छिपने तक जमघट। अब तो सबकी अपनी अपनी धूप छांव हो चुकी है। ना तो कोई किसी के जाता है नो कोई पसंद करे कि कोई आकर प्राइवेसी भंग करे। अब तो घर घर में सबके अलग अलग कमरे हैं। काम किया,चल कमरे में। सभी के अपने नाटक टीवी पर। सब के सब सिमटे हैं अपने आप में। समय ही नहीं है एक साथ बैठने का। बात करने का। चर्चा कर चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का। मुखड़ा बताता है कई झंझट है दिमाग में। तनाव है दिल में। परंतु रिश्ते तो रह गए केवल नाम के इसलिए दिल की बात कहें किस से और किस जुबान से। सच में नए जमाने ने दुनिया छोटी कर दी लेकिन उस दुनिया में इंसान दिनों दिन अकेला होता जा रहा है। इस दुनिया में खुद के अलावा किसी और के लिए ना तो कोई स्थान है और ना अपनापन। कितनी दूर आ गए हम अपने आप से।
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