Saturday 15 June, 2013

गर्भ में ही शुरू हो जाती है जीव की यात्रा

श्रीगंगानगर- जीव के गर्भ में आते ही उसकी यात्रा शुरू हो जाती है। जीवन पूरा करने के बाद उसकी अंतिम यात्रा। इन दोनों यात्राओं के बीच जीव ना जाने कैसी कैसी यात्रा करता है। कोई काम की होती है कोई बेकाम ही। कई बार यात्रा निरर्थक हो जाती है तो बहुत दफा पूरी तरह सार्थक। कभी यात्रा का उद्देश्य होता है कभी ऐसे ही इंसान घूमता है बे मतलब ही। कभी अंदर की यात्रा तो कभी बाहर की। जीवन चलने का नाम जो है....जब जीवन में विभिन्न यात्राएं करनी ही है तो फिर सुराज  संकल्प यात्रा क्यों नहीं! यह वसुंधरा राजे सिंधिया की यात्रा है। इसके साथ साथ सभी बीजेपी नेताओं की अपनी अपनी यात्रा भी है अलग से। नेता छोटा हो या बड़ा सब यात्रा पर निकले हैं। कई दिनों से यात्रा कर रहा है हर नेता। जरूरी भी है। नहीं करेगा तो मंजिल पर कैसे पहुंचेगा। चलना तो पड़ेगा....एक गाना भी  तो है...तुझको चलना होगा,....तुझको चलना होगा। इसलिए चल रहे हैं....यात्रा कर रहे हैं। तो शब्द कह रहे हैं...सबकी अपनी अपनी यात्रा...इन नेताओं की यात्रा कहाँ जाकर रुकेगी ये वे खुद जानते हैं...या यात्रा के माध्यम से जान लेंगे। क्योंकि यात्रा से बहुत कुछ जाना जा सकता है। कितने ही विदेशियों ने  हिंदुस्तान को जानने के लिए यहाँ की यात्रा की। पहले विद्यार्थियों को देशाटन पर ले जाया  जाता था ताकि वे देश के बारे में जान सकें।.....तो साबित हुआ कि यात्रा जानकारी बढ़ाती  है। इसलिए नेता निकले हैं अपनी अपनी यात्रा पर। वसुंधरा राजे बड़ी हैं तो उनकी यात्रा भी बड़ी। ऐसी ही स्थानीय नेताओं के बारे में कहा जा सकता है। जो जैसा नेता...जिसकी  जैसी पकड़ उसकी वैसी ही यात्रा। किसी ने दो गली नापी   किसी ने दो गांव। कोई दो घर ही जा पाया कोई घर घर गया। किसी ने यात्रा पर काफिला बनाया किसी के साथ कोई नहीं आया। कोई यात्रा पर निकला तो सभी को बुला लिया। कोई ऐसा भी था जो बुलाने तो गया लेकिन लोग नहीं आए...आए तो दूसरे स्टेशन पर उतर गए। कितने ही यात्रा पूरी होने से पहले ही थक जाएंगे। हिम्मत छोड़ देंगे। अकेले रह जाएंगे। उनके साथी दूसरे के साथ चले जाएंगे। किसी की यात्रा आनंदमय होगी किसी की कष्टदायक। यात्रा होती ही ऐसी है। इसलिए फिलहाल जो किसी की यात्रा में शामिल नहीं हैं वे सभी की यात्रा का अवलोकन करें। देखें, किसका सांस  फूला। कौन सांस भूला। किसकी सांस में सांस आई। किस की धड़कन बढ़ी। किसकी लौटी। कौन थका। कौन बैठा। कौन कम है....किसमें दम है। याद रहे, ये छोटी छोटी यात्रा वसुंधरा की बड़ी यात्रा में विलीन हो जाएगी। ठीक वैसे जैसे नदियां समंदर में समा जाती हैं। समंदर मंथन हुआ तो बहुत कुछ निकला था। अब यात्रा का मंथन होगा। उसमें से टिकट निकलेगी। एक को मिलेगी। बाकी साथ हो जाएंगे या उत्पात मचाएंगे।.....तो यात्रा जारी है...नेताओं की भी और जीव की भी। 

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