Tuesday, 7 May 2013

अन्ना हज़ारे तो टीवी में ही बढ़िया लगते हैं!


 श्रीगंगानगर-कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो दूर से ही सुहानी लगती है। ठीक ऐसे, जैसे अन्ना हज़ारे टीवी पर ही सजते हैं। ऊंचे मंच पर तिरंगा फहराते अन्ना हर किसी को मोहित,सम्मोहित करते हैं।  चेहरे पर आक्रोश ला जब वे वंदे मातरम का नारा लगाते हैं तो जन जन की उम्मीद दिखते हैं। वे अपने लगते हैं...जो इस उम्र में लाखों लोगों की आँखों  में एक नए भारत की तस्वीर दिखाते हैं। अनशन के दौरान मंच पर निढाल लेटे अन्ना युवाओं के दिलों में चिंता पैदा करते हैं....हर ओर एक ही बात अन्ना का क्या हुआ? बड़े आंदोलन के  कारण अन्ना आज के दौर के गांधी हो गए। उनमें अहिंसक गांधी की छवि दिखने लगी। पर जब अन्ना निकट आए तो सब कुछ चकनाचूर हो गया। ऐसे लगा जैसे अन्ना हज़ारे को रिमोट से कोई चला रहा हो। उनकी केवल जुबां और शरीर...बाकी सब वे तय करते हैं जो उनके साथ हैं। सामने हष्ट पुष्ट बॉडी गार्ड का के घेरे में हैं अन्ना और भीतर किसी दूसरों के। दूसरी आजादी की बात करने वाले अन्ना हज़ारे रात को 12-35 पर कमरे में जाते हैं और अगले दिन सुबह 9-35 पर बाहर लाये जाते हैं। इस दौरान वे उन लोगों से तो नहीं मिले जो उनसे प्रभावित हैं। वे ना तो उनको दो शब्द  कहते हैं जो आधी रात को उनके लिए आए हैं और ना मीडिया कर्मियों को जो उनकी बात छापने के लिए लालायित हैं। भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु की शपथ दिलाते हैं और खुद जनता से मिलते नहीं। उनके आने से पहले उनका मीनू पहले पहुंचता हैं...कि अन्ना हज़ारे इडली खाएंगे या चपाती....दूध कितना ठंडा और कितना मीठा होगा। बाकी लोग सुबह फल लेंगे..नाश्ता....भोजन सब कुछ। इतिहास में इस बात का तो कहीं जिक्र नहीं है कि देश की आजादी के लिए निकले क्रातिकारियों से पहले उनका मीनू गया हो। उनके जीवन में आराम और स्वाद के लिए समय ही कहां था। जनता उनको देखने के लिए भी उतनी संख्या में नहीं आई जितना बड़ा इनका नाम हो चुका है। खुद तमाम पार्टियों को भ्रष्ट बताते हैं जब मीडिया आयोजकों की बात करे तो कहते हैं कि अपना चश्मा बदल लो। ये तो कमाल है ना। यहां ना आते तो कम से कम एक भ्रम तो रहता कि अन्ना हज़ारे ऐसे हैं...वैसे हैं...देश को बदल देंगे। उनके प्रति विश्वास था। उनके लिए श्रद्धा थी। उनको टीवी पर देख दिल में रोमांच का अनुभव होता था। अन्ना हज़ारे आए तो ये भ्रम भी नहीं रहे। 

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