Monday, 28 January 2013

सुनो गौरी! आइंदा मेरे सपने में मत आना


श्रीगंगानगर-तू सपने में क्या आई,मन के शांत समंदर में जैसे तूफान आ गया। बवंडर उठने लगे दिल के हर कोने में। अलमारी में  एक साइड में पड़ी  धूल में लिपटी पुरानी किताब के पन्ने अपने आप  ही खुलने लगे। उसमें लिखा हर एक शब्द याद आ गया।  वैसे का वैसे जैसा हम दोनों ने लिखा था, अपने मन को कलम बनाकर प्यार की स्याही से। हर एक शब्द केवल शब्द नहीं चित्र हैं तेरी-मेरी प्रीत के,मिलन के । किताब पूरी कैसे होती मुझ अकेले से। ठीक है तेरे मेरी बात तो एक है। सोच भी वही है लेकिन शब्दों को मिलकर लिखने में जो जान आती वह मुझ अकेले से ना होता।  ये तुझे खुश करने के लिए नहीं कह रहा कि  तू हर पल ख्याल में रही। यादों में बसी रही। दिल मेरे साथ साथ तेरे लिए भी उतना ही धड़कता था।  सपने में झलक भी दिखती रही। किन्तु आज तो जैसे इस नींद ने गज़ब कर दिया। अच्छा, ये तो बता,  तुझे ये पता कैसे लगा कि आज कल मैं बहुत अकेला अकेला रहता हूं, जो तू चली आई.....ये रात जैसे पूनम की रात बन गई। चाँदनी की शीतलता ने तेरे प्यार की मधुरता को और बढ़ा दिया। .....फिर तेरा आना वैसा नहीं था जैसे पहले था। तू जल्दी में नहीं थी। घबराहट भी नहीं दिखी। आज तो प्रीत  से लबरेज था तेरा  हर अंदाज। तू बेपरवाह थी इस संसार से। ऐसा इससे पहले  तो कभी नहीं हुआ। शब्दों में,आँखों में दिल में,चाल में दीवानगी थी। तुझे देखते ही मेरी बाहें खुद ही खुल गईं तुझे अपने अंदर समाहित कर लेने को और  देखो, तुमने भी एक पल नहीं लगाया, बाहों में चली आई ...तेरा मुझ से लिपट जाना जैसे किसी मासूम बच्चे का सुरक्षित  बाहों में समा जाना... दिलों का मिलना कैसे होता है पहली बार तूने और मैंने महसूस किया। हम तो चुप थे। बस देख रहे थे एक दूसरे के चेहरे को हाथ में लेकर...निहार रहे थे एक दूजे को। बात! सालों बाद मिले तब भी भूल गए कि  कितनी ही बातें थी करनी वाली, जो कभी अधूरी रह गई थी...यही सोचते थे कि  इस बार मिले तो बात पूरी करेंगे...लेकिन इस मिलन के दौरान फिर सब कुछ भूल गए।  याद रहा तो केवल इतना की देख लें एक दूसरे को। शायद ये सपना फिर कभी आए ही ना। हम तो आलिंगन में बस मुस्कुराते  रहे....दिल कुछ अधिक तेज थे....रूह अधिक चंचल थी।  वो मौका क्यों चूकती!...दिल ही दिल से बात करते रहे...तेरी मेरी आँखों ने एक दूसरे से क्या बात की, तू भी जानती है और मैं भी। शब्दों की जरूरत ही नहीं पड़ी....मन के भाव...आँखों की चमक...दिल की धड़कन....हाथों में हाथ ने जैसे वो सब बात कर ली जो सालों से करना चाहते थे। लेकिन कभी ऐसा मिलन हुआ ही नहीं था। कभी मौका मिला भी तो मर्यादा ने हर कदम को रोका होगा...टोका होगा....रुसवाई का डर  होगा....चर्चा का भय होगा। मन को मारा होगा। दूर दूर से एक दूसरे को निहारा होगा। बेशक तुम निर्मल हो....तुम्हारे भाव निर्मल हैं.....प्यार का अहसास निर्मल है....पर तुम फिर से मेरे सपने में मत आना....अब तूफानों को सहन करने की पहले जितनी हिम्मत नहीं है। बिखरा बिखरा ठीक हूं...फिर से जुड़ना नहीं चाहता....जुडने का मतलब है फिर कभी टूटना....जब टूटना ही है तो फिर टूटा हुआ तो हूं ही...इसलिए तुम फिर किसी राह में ना मिलना ...इस बार मिलेंगे तो वहां जहां फिर कभी मिलने और जुदा होने का रिवाज नहीं होता। ठीक।

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