Saturday, 22 September 2012

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखे.....


श्रीगंगानगर-अद्भुत। आश्चर्यजनक। अकल्पनातीत। वंडरफुल। अहा! क्या बात है। वाह! क्या संस्कार है,सोच है। मतलब परस्त,अविश्वास से भरी और भौतिकवादी सोच से लबरेज समझे जाने वाले इस समाज में ऐसा भी संभव है। पढ़ा हो तो कहानी समझ कर भूल जाएं। कोई सुनाए  तो विश्वास ही ना हो। लेकिन यह सब हुआ जो यहाँ लिखा गया है।  दोपहर 12 बजे का समय। पॉश क्षेत्र। एक बुजुर्ग साइकिल पर एक बैग टांगे किसी का घर पूछ रहा था। मुझसे भी पूछा,लेकिन मैं खुद उसका घर फोन पर पूछ रहा था जिसके पास जाना था। मुझे घर मिल गया क्योंकि वह बंदा बाहर आ गया, जिससे मिलना था। बुजुर्ग ने उससे भी ... का घर पूछा। बंदे ने बता दिया....लेकिन एक क्षण बाद ही वह बोला,बाबा आप धूप में हैं अंदर आ जाओ.... । आया तो मैं था मिलने...अब साथ में वह बुजुर्ग भी हो गया। थका सा। उदास चेहरा। निढाल। सजे धजे शानदार ड्राइंग रूम में बैठ गए। मुझसे बात शुरू होती इससे पहले उस बंदे ने बुजुर्ग का हाथ अपने हाथ लिया और बोला...आप उदास क्यों हो...क्या बात है...क्या परेशानी है...सब कुछ बताओ.....दिल खोल कर कहो....सब ठीक होगा। इतना बोल बंदा काम वाली को ठंडा दूध लाने की आवाज लगाता  हुआ कमरे से बाहर चला गया। बुजुर्ग की आँख भर आई। दिल रोने लगा..... मैंने पूछा....आप इसको कभी मिले। बुजुर्ग बोला नही,कभी नहीं। मेरा दूसरा सवाल था...आपको कैसा लगा जब उसने आपका हाथ अपने हाथ में लेकर परेशानी पूछी ? बुजुर्ग ने जेब से रुमाल निकाला। आँख में आए स्नेह और खुशी के आंसुओं को उसमें सहेजा और फिर बोला... आज तक मेरे किसी बच्चे ने इस प्रकार से मुझसे प्यार,अपनापन नहीं दिखाया। इसने बिना जान पहचान के यह किया। घर का मालिक वह बंदा वापिस ड्राइंग रूम में आया।  साथ में दो गिलास दूध लिए काम वाली भी थी। ठंडे दूध का गिलास उसको देकर  बंदा फिर बुजुर्ग से कहने लगा लगा....खोल दो मन की सारी गांठ....आज हँसना है...पिकनिक मनानी है। हालांकि बुजुर्ग ने बताया कि उसके तीन बच्चे हैं...सब सैट हैं। किन्तु उस बंदे ने बुजुर्ग का हाथ अपने हाथ में लेकर उसके चेहरे की उदासी में जैसे  कुछ पढ़ना शुरू किया।बंदा बोला,मेरी आँख में आँख डाल कर कहो सब ठीक है। बुजुर्ग की आँख फिर भीग गई...शब्द गले में रुक गए....उसने कुछ कहने की बजाए उस बंदे का हाथ स्नेह,लाड़,दुलार से चूम लिया। बंदे के स्नेह से लबरेज अपनेपन ने  बुजुर्ग का पीछा नहीं छोड़ा....आपका मोबाइल नंबर दो आपसे बात करूंगा....घर आऊंगा। यह सब कुछ मिनट में ही हो गया। जो कुछ मिनट पहले एक दूसरे से अंजान थे वे परिचित हो गए। दोनों की उम्र का फासला...स्टेटस में फर्क...किन्तु सब मिटा दिया उस बंदे ने। अपने शब्दों से। अपनेपन से।  ऐसा लगा जैसे कोई मासूम बालक अपने घर के किसी बुजुर्ग से जिद कर रहा है कुछ देने की,बड़ी ही मासूमियत के साथ। पता नहीं वह कौन है....कोई फ़ैमिली काउन्सलर या कोई टीचर। पथ  प्रदर्शक या फिर अपने मालिक (ईश्वर) की धुन में खोया कोई दीवाना। या इंसान के रूप में किसी मालिक का कोई दूत। मैंने कभी इस प्रकार से दो अंजान व्यक्तियों को परिचित होते नहीं देखा। मुझे तो उससे पहली बार मिलने का मौका मिला था। मिला क्या था! मिलना तो उनका ही था। मुझे तो बस साक्षी की भूमिका मिली थी यह सब लिखने के लिए।  उसी बंदे की दो लाइन से बात को विराम देंगे.... साड्डी दोस्ती है दोस्तो सवेरैयां दे नाल,कोई साड्डा कम्म नई अंधेरैयां दे नाल।
 



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