Monday, 6 June 2011

जूता फिर हुआ महत्वपूर्ण

काँग्रेस मुख्यालय में हुई प्रेस कोंफ्रेंस में एक कथित पत्रकार द्वारा जनार्दन द्विवेदी को जूता दिखाने की घटना की निंदा की जानी चाहिए। वास्तव में यह पत्रकार नहीं है। हैरानी उस बात की है कि वह आदमी एक पत्रकार के रूप में वहां आया कैसे? ये अचरज नहीं तो और क्या है कि कोई भी इंसान पत्रकार बनकर प्रेस कोंफ्रेंस में बैठ गया। किसी ने पूछा तक नहीं। देश को चलाने वाली पार्टी की पीसी में ऐसी गफलत! इसने तो केवल जूता ही दिखाया। ऐसे हालत में तो कोई कुछ भी कर सकता है। इसका मतलब तो ये हुआ कि सुरक्षा नाम की कोई बात ही नहीं।चलो कुछ भी हुआ। इस घटना से जनार्दन द्विवेदी को बहुत नुकसान हुआ। उनकी बात तो पीछे रह गई। सुनील कुमार और उसका जूता छा गया। इस बात की तो जांच काँग्रेस को खुद भी करनी चाहिए कि कोई आदमी पत्रकार बन कर कैसे वहां आ गया।गत तीन दिनों से इस देश में वह हो रहा है जो नहीं होना चाहिएइसके बावजूद वह नहीं बोल रहा जिनको बोलना चाहिएआप सब जानते हैं हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बात कर रहे हैंजो बोल रहे हैं वे ऐसा बोल रहे है कि ना ही कुछ कहें तो बेहतरजब पूरा देश किसी बात का विरोध कर रहा हो तो देश को चलाने वाले का यह फर्ज है जनता से संवाद करेपरन्तु पता नहीं प्रधानमंत्री किस कार्य में व्यस्त हैं? ये तो हो नहीं सकता कि उनको किसी बात का पता ना होइसके बावजूद उनकी चुप्पी से जनता हैरान हैदेश में कुछ भी होता रहे ,मुखिया को कोई चिंता नहींउसका कोई कर्तव्य नहींउसकी कोई जवाबदेही जनता के प्रति नहींना जाने ये किस मिजाज के लोग हैं जो इस प्रकार से तमाम घटनाओं से अपने आप को दूर रखे हुए है

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