Thursday, 31 December 2009

नकारात्मक सोच का बोलबाला

भड़ास फॉर मीडिया ने पत्रकार जरनैल सिंह को मीडिया हीरो चुना है। हीरो चुना गया उसको बधाई,जिसने चुना उसका आभार। कोई किसी की नज़रों में कुछ भी हो सकता है।किसी को क्या एतराज! सो हमें भी नहीं है। हो भी तो जरनैल सिंह या यशवंत जी का क्या! यहाँ सवाल एतराज का नहीं, दूसरा है। वह यह कि मीडिया में लगातार नकारात्मक को बढ़ावा मिल रहा है। कुछ भी बुरा करो, मीडिया उसे हाथों हाथ ले लेता है। लपक लेता है। मुद्दा बना देता है। बुरा करने वाला अख़बारों के पन्नों पर छाया रहता है। न्यूज़ चैनल पर दिखाई देता है। वह कितने दिन मीडिया में रहता है, यह उस बन्दे की समाज में पोजीशन तय करती है। बड़ा तो कई दिन सुर्ख़ियों में रहेगा,वरना दो चार दिन में निपटा दिया जायेगा। कोई इन्सान अच्छा काम करता है। उपलब्धि प्राप्त करता है। तब उसको अपनी तस्वीर अख़बार में छपवाने के लिए अख़बारों के दफ्तरों के चक्कर निकालने पड़ते हैं। चैनल के लिए तो ये कोई खबर ही नहीं होती। हाँ, कुछ बुरा कर दिया,सनसनी फैला दी,तो आपको किसी पत्रकार के आगे गिड़गिड़ाने की जरुरत नहीं है। सब भाई लोग विद कैमरे अपने आप आपको खोजते हुए आपके पास चले आयेंगें। आप कहोगे,प्लीज़ फोटो नहीं। किन्तु फोटो उतरेंगी,अख़बार में छपेंगी। आपका धेला भी खर्च नहीं होगा। इसमें किसी का कोई कसूर नहीं, जमाना ही ऐसा आ गया।
दुनिया भर में सकारात्मक सोच के पाठ पढाये जाते हैं। सेमीनार होते है। पता ही नहीं कितने ही आदमी इस सब्जेक्ट पर लिखकर नाम,दाम कमा चुके। यह सिलसिला समाप्त नहीं हुआ है। इसके बावजूद सब तरफ नकारात्मक सोच का बोलबाला है। कोई भी अख़बार चाहे वह कितने ही पन्नों का हो,उठाकर देखो,पहले से अंतिम पेज तक,आपको नकारात्मक समाचारों का जमघट मिलेगा। पोजिटिव समाचार होगा किसी कोने में। वह भी दो चार लाइन का। इसलिए नए साल में सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि आज से क्या अभी से केवल और केवल नेगेटिव काम ही करेंगे। जिस से हमारा भी नाम सुर्ख़ियों में रहे। हम भी यह बात साबित कर सकें कि बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा। होगा,जरुर होगा। सभी को नया साल मुबारक। हैपी न्यू इयर में सभी को हैपी हैपी न्यूज़ मिलती रहे।

Sunday, 27 December 2009

मान लिया गुरु जी

---- चुटकी----

शिबू सोरेन
अब
हो जाओ
शुरू जी,
भाजपा ने भी
मान लिया
अब तो
आपको गुरु जी।

Thursday, 24 December 2009

---- चुटकी----

नेता जी जीतेंगे
तुझे हारना है,
फिर भी
तुझे इस खेल को
लोकतंत्र के नाम से
पुकारना है।

Tuesday, 22 December 2009

भोजन की थाली

---- चुटकी----

जिनके भी हैं
पेट खाली,
सब मिल के
बजाओ ताली,
नेता जी को मिलेगी
बारह रूपये में
भोजन की थाली।

Saturday, 19 December 2009

---- चुटकी----

बीजेपी
में
बदलाव
ऐसे,
सर्दी
में
अलाव
जैसे।

Thursday, 17 December 2009

सवाल है जवाब नहीं

किसी गाँव से एक आदमी रोजगार के लिए परदेश जाने के लिए तैयार था। इस से पहले की वह अपना पहला कदम घर की देहली से बाहर रखता, उसकी पत्नी बोली, आप परदेश में कुछ भी करना मुझे कोई एतराज नहीं होगा लेकिन पानी केवल विवाहित महिला से ही पीना। पति ने ऐसा ही करने का वचन दिया और घर से रवाना हो गया। काफी लंबा रास्ता तय करने के बाद उसे प्यास लगी। कुछ दूर चला तो बस्ती दिखाई दी। बस्ती के पहले घर दस्तक दी। घर से एक आदमी निकला। उसने राहगीर से दस्तक का कारण पूछा। परदेशी ने पानी पीने की इच्छा के साथ यह भी बताया कि वह केवल विवाहित महिला के हाथ से ही पानी पीने हेतु वचनबद्ध है। घर का मालिक बोला, इस वक्त घर में कोई विवाहित महिला नहीं है। उसने राहगीर को दूसरे के घर भेज दिया। राहगीर ने दरवाजा खटखटाया,महिला ने दरवाजा खोला। राहगीर ने वही बात की। महिला घर के अन्दर गई। सोलह श्रृंगार कर हाथ में पानी का बर्तन लेकर लौटी। उसने राहगीर से कहा, मैं विवाहित हूँ लेकिन मेरे पति को मैंने केवल विवाहित पुरूष को ही पानी पिलाने का वचन दे रखा है। इसलिए आप अपने विवाहित होने का सबूत दो और पानी पी लो। राहगीर ने विवाहित होने का सबूत दिया और पानी पीकर अपने रास्ते चला गया।
सवाल ये कि राहगीर ने अपने विवाहित होने का क्या सबूत दिया,जिससे महिला संतुष्ट हो गई।
यह बात जिस ने मुझे बताई उसने उत्तर नहीं बताया। अब मुझे इस सवाल के उत्तर की तलाश है। आख़िर वह क्या सबूत था जो राहगीर ने अपने आप को विवाहित साबित करने के लिए दिया।

Wednesday, 9 December 2009

नारदमुनि ख़बर लाएं हैं

"आज राजेश यादव का जन्मदिन। राजेश यादव हैं अजमेर के जिला कलेक्टर। लोग दे रहें हैं शुभकामनायें।" ये किसी एस एम एस का हिस्सा नहीं है। किसी छोटे,बड़े अख़बार में भी ये प्रकाशित नहीं हुआ। ये पंक्तियाँ एक टीवी न्यूज़ चैनल पर थीं। आज दोपहर को ई टीवी राजस्थान पर समाचार देखने,सुनने समय नीचे ये पंक्तियाँ आ रही थी। कस्बे,नगर के किसी छोटे अख़बार में तो इस प्रकार की "न्यूज़" होती हैं। किंतु किसी न्यूज़ चैनल में ऐसा दिखाई देगा ये नहीं सोचा था। पता नहीं मेरा सोचना ग़लत है या समय के हिसाब से खबरें बदल गईं हैं। सचमुच अगर समय के हिसाब से खबरें बदल गईं हैं तो कुछ दिनों बाद ये पंक्तियाँ भी पढ़ने को मिलेगीं--".....सेठ की पुत्र वधु उम्मीद से। ......विधायक की पुत्र वधु के पाँव भारी।" ".... अधिकारी की पत्नी के लड़का होने की आस, टेस्ट में लड़का बताया। घर में खुशी का वातावरण। लोग दे रहें हैं बधाई।" " मंत्री को पोता चलने लगा। उसके पहला कदम उठाने की एक्सक्लूसिव न्यूज़ थोड़ी देर में। सिर्फ़ ..... पर। " इस तरह की असंख्य ख़बरें चाहो तो कोई भी चैनल दिखा सकता है। "
अब ऐसा करना आज के दौर में मज़बूरी है या यह सब उनका व्यवसाय इस बारे में तो हम कुछ भी नहीं कह सकते। कुछ ना कुछ तो होगा ही चाहे वह लल्ला चप्पी ही क्यों न हो। ख़बर है तो फ़िर हमें भी समय के साथ चलना पड़ेगा। वरना यहाँ तो वजूद बचाना मुश्किल हो जाएगा। चलो यह कुछ भी हो, हमारी ओर राजेश यादव को जन्म दिन की बधाई।

Tuesday, 8 December 2009

राहुल गाँधी जिंदाबाद

"मुस्लिम भी हो सकता है प्रधानमंत्री। " ये इस देश के "युवराज" राहुल गाँधी ने कहा है। जो युवराज के मुहँ से निकल गया, उसे सच्च होने में कितना समय लगेगा। कुछ दिन बाद वे ये कहते हुए दिखें कि हिंदुस्तान अब इस्लामिक देश कहलायेगा। हो सकता है, क्यों नहीं हो सकता। यहाँ हिंदू जमात की तो कोई कद्र है ही नहीं। हर कोई मुस्लिम समाज को ही वोट बैंक के रूप में जानता,मानता और पहचानता है। इस समाज को अपने पल्लू से बांधने के लिए ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता हिन्दुओं को कहीं भी धकेलने से गुरेज नहीं करेंगें। कभी आडवानी जी जिन्हा जी की शान में बोलते हैं। कभी कोई और नेता।
हे, मेरे देश के नेताओं इतना तो बता दो कि हिंदू इस देश में रह सकता है या नहीं। जिस प्रकार के हालत नेता पैदा कर रहें हैं उस से तो ऐसा लगता है कि जम्मू -कश्मीर की भांति हिंदुस्तान से भी हिन्दुओं के पलायन करने का समय आने वाला है। युवराज ने चेता दिया,आगे आपकी मर्जी।
आज हिन्दुओं की परवाह किसी को नहीं है। एक भी नेता,पार्टी उनकी वक्त,बेवक्त की मौत पर अपने "आंसू" नहीं बहाती। कोई दूसरी जात का मरे तो पूरी सरकार,उसके छोटे बड़े नेता शर्मिंदगी जताते हैं। उनके चरणों में बैठ कर "दया"[ वोट] की भीख मांगते हैं। कैसी विडम्बना है कि हिंदुस्तान में हिन्दुओं को ही धीरे धीरे दूसरे,तीसरे दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है। एक भी नेता,पार्टी उसके हक़ में नहीं है। कोई हक़ में आने के लिए कदम बढाता है तो उसको साम्पर्दायिक कह कर गाली दी जाती है। मुस्लिम हित की बात करने वाला यहाँ सच्चा-सुच्चा धर्मनिरपेक्ष बताया जाता है। सच में मेरा[पता नहीं है कि नहीं] भारत महान ।

Monday, 7 December 2009

वेश्यावृति त्यागने वाली युवतियों की शादी

डेरा सच्चा सौदा [सिरसा,हरियाणा]के संत गुरमीत राम रहीम सिंह इंसा द्वारा वेश्यावृति त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने वाली युवतियों के कल्याण के लिए चलाई गई मुहिम में १०११ युवक वेश्यावृति त्यागने वाली युवतियों से शादी करने को तैयार हैं। इन युवतियों को अपनी बहिन,बेटी बनाने के लिए ९४ तथा ९ परिवार उनके बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आए हैं। गुरु जी ने इन युवकों को भक्त योद्धाओं की संज्ञा दी है।
वेश्यावृति के अभिशाप से मुक्त होने वाली युवतियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए तीन चरण निर्धारित किए गए हैं। पहले चरण में देश के विभिन्न भागों में टीमे भेजी गई हैं। जो वेश्यावृति के अभिशाप से मुक्त होने की इच्छुक महिलाओं को लेकर आएगी। दूसरे चरण में इन युवतियों की चिकित्सीय जाँच व उपचार की व्यवस्था की जाएगी। पूर्ण रूप से स्वस्थ युवती की ही शादी करवाई जाएगी। अगर किसी युवती में एड्स जैसी बीमारी के लक्षण दिखाई दिए तो उसके उपचार के सभी प्रबंध किए जायेंगे। यह जानकारी डेरा के प्रवक्ता डॉ०पवन इंसा ने दी।
---दैनिक प्रशांत ज्योति, श्रीगंगानगर से साभार।

Wednesday, 2 December 2009

---- चुटकी----

मधु कोड़ा
बेहिसाब जोड़ा,
नीयत
ख़राब थी
इसलिए
यह भी लगा थोड़ा।

Tuesday, 1 December 2009

तू है तो तेरा फ़िक्र क्या

तू नहीं तो तेरा ज़िक्र क्या।

------

सीधे आए थे मेरी जां,औन्धे जाना

कुछ घड़ी दीदार और कर लूँ।

----

ये कहना है श्री रवीन्द्र कृष्ण मजबूर का।

Friday, 27 November 2009

----चुटकी----

लिब्रहान आयोग
की जाँच,
डोंट वरी
किसी पर भी
नहीं आएगी आंच।

Saturday, 21 November 2009

---- चुटकी----

राहुल थके
प्रियंका ने
चलाई कार,
अब तो
यह भी है
टीवी लायक
समाचार।

Thursday, 19 November 2009

----चुटकी----

चीन पंच
ओबामा सरपंच,
भारत के खिलाफ
शुरू हो गया
नया प्रपंच।

Tuesday, 17 November 2009

अब कोई टेंशन नहीं

फिज़ा में गूंजते देशभक्ति के तराने,चारों ओर नगर प्रेम,देश प्रेम का ठाठे मारता माहौल। दिल मेरा गार्डन गार्डन हो गया। इस पर शहर की चिंता में गली गली, घर घर घूमते दर्जनों लोग लुगाई,मेरा तो यह जीवन सफल हो गया। कलयुग में इस धरा पर आकर जिन्दगी जैसे सार्थक हो गई। जन्म लेना बोझ नहीं लगा। अपने नगर को गुले गुलजार बनने का जज्बा,क्या बताऊँ, हर एक लोग लुगाई के हाथ चूम लेने को मन करता है। जी करता है नारायण नारायण की जगह बस उनका जाप करूँ। ऐसा वातावरण देख कर तम मन को सुकून इतना मिला कि जिक्र करने को शब्द नहीं मिल रहे। मेरे शहर की चिंता,फ़िक्र में दुबले होते इतने लोग लुगाइयों को देख कर कहीं खुशी से मैं पागल ना हो जाऊँ। जरा संभाल लेना ताकि नगर में होने वाले बदलाव को मैं अपनी अपनी आंखों से देख सकूँ। उसके बाद यह जान भी चली जाए तो कोई गम नहीं।
आप भी हो गए ना हैरान,परेशान।ऐसे देवता तुल्य इन्सान इस धरती पर! साथियों,साथिनों ऐसा कुछ भी नहीं है। यह सब चुनाव जीतने के लिए हो रहा है। यहाँ नगर परिषद् के चुनाव है। ऐसा हर चुनाव में होता है। चलो छोड़ो "मजबूर" को पढो--
गंदगी पसंद है
न बंदगी पसंद है
दूध सी धुली-धुली
फूल सी खिली-खिली
प्यार में घुली-घुली
ज़िन्दगी पसंद है,

दोस्ती शर्त है
दोस्ती उसूल है
दोस्ती कुबूल है
रिश्ता गर्ज़-फ़र्ज़ का
बोझ है फुज़ूल है
वफ़ा नहीं तो कुछ नहीं
अपनी भी सौगंध है।

Monday, 16 November 2009

ये तो अन्याय है

हमारे राजनेताओं ने कुर्सी पर अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए बहुत से फैसले किए। ऐसे ही एक फैसले का नाम है आरक्षण! इसमे कोई दो राय नहीं कि हर वर्ग,जाति के व्यक्ति को राजनीति में बराबर का मौका मिलना चाहिए। सभी को मौका दिलाने के फेर में राजनेता सामान्य वर्ग[सवर्ण] से अन्याय करने लगे। दूसरों के लिए जिसे न्याय बताया जा रहा है वही सामान्य वर्ग के लिए अन्याय बन गया। उसी फैसले से इस वर्ग को अब गुलाम बनाने की ओर कदम बढाये जा रहें हैं। मकसद यही कि इस वर्ग को राजनीति से बिल्कुल अलग कर दिया जाए। हमारे श्रीगंगानगर में नगर परिषद् के चुनाव में सभापति का पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। इस से पहले यह ओबीसी ,अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। जाहिर सी बात है कि तब इस पद पर उसी जाति के लोग आसीन हुए। तब सभापति का चुनाव सामान्य वर्ग के लोग नहीं लड़ सके,क्योंकि वह ओबीसी,अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। मगर अब इसके विपरीत है। अब जब यह पद सामान्य वर्ग के लिए है। अब हर जाति का व्यक्ति इस पद पर चुनाव लड़ सकता है। जैसे एक जाट जाति का कांग्रेस नेता जगदीश जांदू। श्री जांदू ने उस समय सभापति का पद प्राप्त किया, जब यह पद ओबीसी के लिए आरक्षित था। अब फ़िर श्री जांदू को यह पद चाहिए। तो जनाब कूद पड़े चुनाव में। क्योंकि आरक्षण में इस बात की छूट है कि सामान्य वर्ग के लिए "आरक्षित" पद पर कोई भी चुनाव लड़ सकता है। मतलब ये कि बाकी सभी जातियों को तो हर बात पर सौ प्रतिशत मौका और सामान्य वर्ग को एक प्रतिशत भी नहीं। यह तो सरासर अन्याय है। सामान्य वर्ग की जनता को गुलाम बनाने का फार्मूला है। अगर कोई इसे सामान्य वर्ग के साथ अन्याय नहीं मानता तो वह इतना जरुर समझ ले कि यह न्याय तो बिल्कुल भी नहीं है। क्योंकि न्याय वह होता जब सभी पक्ष वाह! वाह! करें। यहाँ तो सामान्य वर्ग ओह!आह! कर रहा है और बाकी सभी अहा!,वाह! कर रहें हैं। सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीट/पद पर केवल और केवल सामान्य वर्ग के लोग ही चुनाव लड़ सकें। ऐसा कोई नियम कानून होना चाहिए ताकि सभी को बराबरी का मौका मिल सके। अगर ऐसा नहीं होता तो यह इस वर्ग के साथ घोर पक्षपात है।

Sunday, 15 November 2009

राजनीति पर लोग अपने रिश्तों की बलि चढा देते हैं। ऐसा हमारे श्रीगंगानगर में देखने को मिल रहा है। यहाँ नगर परिषद् चुनाव में एक वार्ड में बहु और चाची सास के बीच मुकाबला है। सास को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने बहु को। दोनों परिवार कई दशकों से एक साथ एक बिल्डिंग में रह रहें हैं। दोनों के घर के बीच एक दीवार है। इस चुनाव के कारण यह दीवार अब भौतिक रूप से बेशक ऊँची ना हो लेकिन सम्बन्धों में आई दरार के रूप में बहुत ऊँची हो जायेगी। अब रिश्तेदारों के सामने असमंजस की स्थिति है कि वे क्या करें। यह बात समझ से परे है कि क्या राजनीति आपसी रिश्तों से भी अधिक महतवपूर्ण हो गई? बहु का ससुर इलाके का माना हुआ वकील है। लेकिन जब बेटा बाप से बड़ा हो जाए तो फ़िर कोई वकील बाप भी क्या कर सकता है। हाँ वह इतना तो जरुर कर सकता था कि घर में चुपचाप बैठ जाता और दोनों को अपने हाल पर छोड़ देता। आख़िर वह उस खानदान में सबसे बड़े हैं। जब बड़े हैं तो बडापन दिखाना ही चाहिए,वरना बड़ा तो दही में पड़ा रहता है।
जो बहु बीजेपी की उम्मीदवार है वह पहले कांग्रेस की टिकट मांग रही थी। कांग्रेस ने नहीं दी तो बीजेपी के दरबार में चले गए।

Tuesday, 10 November 2009

----चुटकी----

क्यों हुए महंगे
आटा,चीनी,दाल,
कौन जिम्मेदार है
किस से करें सवाल।

Monday, 9 November 2009

----चुटकी----

तेरे यहाँ
होते हैं
अब तो
रोज धमाके,
बता तो सही
पाक
तूने क्या पाया
पाप कमा के

Friday, 6 November 2009

प्रभाष जोशी को नमन

श्री प्रभाष जोशी चले गए। वह वहां चले गए जहाँ कोई जाना नहीं चाहता लेकिन सभी ने बारी बारी से जाना जरुर है। यह जाना किसी भी प्रकार की अप्रोच से रुक ही नहीं सकता। सब इस बात को जानते हैं। इस जाने पर कोई विवाद नहीं,कोई झगड़ा नहीं। बस, जैसे ही कोई गया उस के मुहँ पर चादर ढक देते हैं। कोई बड़ा हुआ तो उसकी मुहँ दिखाई अन्तिम दर्शनों के रूप में चलती रहती है। जाना इस जीवन का एक मात्र सत्य है। इसके बावजूद हम इस सच्चाई को भूल कर अपनी दिनचर्या को निभाते हैं। एक क्षण में आदमी है, दूसरे ही क्षण नहीं है। हैं ना कमाल की बात। हाँ, जाने का दुःख उतना होता है जितना जाने वाले से सम्बन्ध। थोड़ा सम्बन्ध तो क्षण भर का शोक,अधिक है तो दो चार दिन का। सम्बन्ध बहुत -बहुत अधिक है तो फ़िर यह शोक कई दिन, सप्ताह,महीने साल,सालों तक रह सकता है। समय धीरे धीरे इस शोक को आने वाली छोटी-बड़ी खुशी से कम करता रहता है। ऐसा ना हो तो जीवन चल ही नहीं सकता। बस इसी प्रकार से हम सब इस दुनिया में अपना पार्ट अदा करके इस रंग मंच से विदा हो जाते हैं। जैसे श्री प्रभाष जोशी चले गए। हमारा रोल अभी बाकी है इसलिए हम हैं। जब हमारा रोल समाप्त हो जाएगा तो हम भी चले जायेंगें श्री जोशी की तरह। उनकी तरह नहीं तो किसी आम आदमी की तरह। जाना तय है,जाना ही पड़ेगा। श्री जोशी को नमन। उनसे मिलने का अवसर कभी नहीं मिला। एक बार १९९६ में हमने श्रीगंगानगर में उनको एक पत्रकार सम्मलेन में आमन्त्रित किया था। लेकिन वे आ नहीं सके थे।

Saturday, 31 October 2009

कनस्तर में आटा

---- चुटकी-----

जब से
ख़त्म हुआ है
कनस्तर में आटा,
तब से
पसरा हुआ है
घर में सन्नाटा।

Tuesday, 27 October 2009

मायका है एक सुंदर सपना


नारदमुनि कई दिन से अवकाश पर हैं। अवकाश और बढ़ने वाला है। जब तक नारदमुनि लौट कर आए तब तक आप यह पढो, इसमें विदा होती बहिन के नाम कुछ सीख है। मायके वालों का जिक्र भी है। जिक्र उस स्थिति का जब उनके घर से उनकी लड़की,बहिन,ननद.....कई रिश्तों में बंधी बेटी नए रिश्ते बनाने के लिए अपना घर झोड़ कर अंजान घर में कदम रखती है। उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह आप सबको बहुत ही भली लगेगी। क्योंकि यह तो घर घर की कहानी है।

Saturday, 24 October 2009

बीजेपी की पिटाई

----चुटकी-----

भाजपा की
पिटाई,
कांग्रेस
आई,
चौटाला की
लाज बची,
हुड्डा की
खिंचाई।
--------
भक्त जनों कई दिन से अपने प्रदेश की राजधानी गया हुआ था। इस लिए यहाँ से गायब रहा। कोशिश रहेगी आपके साथ हर पल जुड़े रहने की। नारायण नारायण ।

Monday, 19 October 2009

स्वाभिमान को भूल

---- चुटकी----

जिंदगी में
चाहता है
अगर तू
हर पल ऐश ,
स्वाभिमान को
भूल जा,
अपमान को
करा कैश।

Saturday, 17 October 2009

तालिबान का क्या कसूर

आज बस दिवाली की शुभकामना ही देना और लेना चाहता था। मगर क्या करूँ,पड़ौस में रहता हूँ इसलिए पड़ौसी पाकिस्तान याद आ गया। पाकिस्तान याद आया तो तालिबान को भी याद करना मज़बूरी थी। जब दोनों साथ हो तो न्यूज़ चैनल्स वाले आधे घंटे की स्पेशल रिपोर्ट दिखाते हैं। हमारी इतनी समझ कहाँ! हम केवल चुटकी बजायेंगे।
---- चुटकी----

बेचारे तालिबान का
इसमे क्या कसूर,
जिसने जो बोया
वह,वही काटेगा
यही तो है
प्रकृति का दस्तूर।

Friday, 16 October 2009

जो बोया वही काटेंगे

बंगाल की टीवी रिपोर्टर शोभा दास के खिलाफ केस, चंडीगढ़ में प्रेस से जुड़े लोगों को कमरे में बंद किया, जैसी खबरें अब आम हो गई हैं। महानगरों में रहने वाले,बड़ी बड़ी तनख्वाह पाने वाले, ऊँचे नाम वाले पत्रकारों को कोई अचरज इन ख़बरों से हो तो हो हमें तो नहीं है। हो भी क्यूँ, जो बोया वही तो काट रहें हैं। वर्तमान में अखबार अखबार नहीं रहा एक प्रोडक्ट हो गया और पाठक एक ग्राहक। हर तीस चालीस किलोमीटर पर अखबार में ख़बर बदल जाती है। ग्राहक में तब्दील हो चुके पाठक को लुभाने के लिए नित नई स्कीम चलाई जाती है। पाठक जो चाहता है वह अख़बार मालिक दे नहीं सकता,क्योंकि वह भी तो व्यापारी हो गया। इसलिए उसको ग्राहक में बदलना पड़ा। ग्राहक को तो स्कीम देकर खुश किया जा सकता है पाठक को नहीं। यही हाल न्यूज़ चैनल का हो चुका है। जो ख़बर है वह ख़बर नहीं है। जो ख़बर नहीं है वह बहुत बड़ी ख़बर है। हर ख़बर में बिजनेस,सनसनी,सेक्स,सेलिब्रिटी,क्रिकेट ,या बड़ा क्राईम होना जरुरी हो गया। इनमे से एक भी नहीं है तो ख़बर नहीं है। पहले फाइव डब्ल्यू,वन एच का फार्मूला ख़बर के लिए लागू होता था। अब यह सब नहीं चलता। जब यह फार्मूला था तब अख़बार प्रोडक्ट नहीं था। वह ज़माने लद गए जब पत्रकारों को सम्मान की नजर से देखा जाता था। आजकल तो इनके साथ जो ना हो जाए वह कम। यह सब इसलिए कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गए हैं। मालिक को वही पत्रकार पसंद आता है जो या तो वह बिजनेस दिलाये या फ़िर उसके लिए सम्बन्ध बना उसके फायदे मालिक के लिए ले। मालिक और अख़बार,न्यूज़ चैनल के टॉप पर बैठे उनके मैनेजर,सलाहाकार उस समय अपना मुहं फेर लेते हैं जब किसी कस्बे,नगर के पत्रकार के साथ प्रशासनिक या ऊँची पहुँच वाला शख्स नाइंसाफी करता है। क्योंकि तब मालिक को पत्रकार को नमस्कार करने में ही अपना फायदा नजर आता है। रिपोर्टर भी कौनसा कम है। एक के साथ मालिक की बेरुखी देख कर भी दूसरा झट से उसकी जगह लेने पहुँच जाता है।उसको इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसके साथी के साथ क्या हुआ,उसे तो बस खाली जगह भरने से मतलब है। अब तो ये देखना है कि जिन जिन न्यूज़ चैनल और अख़बार वालों के रिपोर्टर्स के साथ बुरा सलूक हुआ है,उनके मालिक क्या करते हैं। पत्रकारों से जुड़े संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। अगर मीडिया मालिक केवल मुनाफा ही ध्यान में रखेंगें तो कुछ होनी जानी नहीं। संगठनों में कौनसी एकता है जो किसी की ईंट से ईंट बजा देंगे। उनको भी तो लाला जी के यहाँ नौकरी करनी है। किसी बड़े लाला के बड़े चैनल,अखबार से जुड़े रहने के कारण ही तो पूछ है। वरना तो नारायण नारायण ही है।

Thursday, 15 October 2009

पटाखे ना चलाने का संकल्प

बड़े से बड़े लक्ष्य को पाने के लिए जो सबसे जरुरी है, वह है एक कदम आगे की ओर बढ़ाना। ऐसा ही कुछ किया है यहाँ के तेरापंथ किशोर मंडल ने। मंडल के युवकों ने घर -घर,स्कूल-स्कूल जाकर बड़ों,छोटों को पटाखे ना चलने हेतु प्रेरित किया। विद्यार्थियों को पटाखे ना चलने का संकल्प करवाया। उनसे शपथ पत्र भरवाए। मंडल ने सभी को पटाखों से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। ऐसा नहीं है कि किशोर मंडल के इस अभियान से लोग पटाखे चलाना छोड़ देंगे। सम्भव है संकल्प करने वाले भी दिवाली के दिन अपने संकल्प को भूल जायें। हाँ, एक दो ने भी संकल्प की पूर्ति की तो यह किशोर मंडल के अभियान की सफलता की ओर पहला कदम होगा। मंजिल दूर है, रास्ता काफी कठिन है। मगर ये भी है कि आसान काम तो कमजोर लोग किया करते हैं। फ़िर जिसने चलाना शुरू कर दिया उसे मंजिल जरुर मिलती है। शर्त इतनी है कि वह रुके नहीं।

Wednesday, 14 October 2009

जो मर्जी हो वो कर

---- चुटकी----

तेरी जो मर्जी हो
वो कर ले चीन,
हमारी ओर से
डोंट वरी
हम तो
बजा रहें हैं बीन।

Sunday, 11 October 2009

बच गए महात्मा गाँधी

बच गए अपने महात्मा गाँधी। वरना आज कहीं मुहँ दिखाने लायक नहीं रहते। घूमते रहते इधर उधर नोबल पुरस्कार को अपनी छाती से लगाये हुए। क्योंकि वे भी आज बराक ओबामा के साथ खड़े होने को मजबूर हो गए होते। बच कर कहाँ जाते। उनको आना ही पड़ता। अब कहाँ अपने लंगोटी वाले गाँधी और कहाँ हथियारों के सौदागर,अमन के दुश्मन,कई देशों पर बुरी निगाह रखने वाले,पाक के सरपरस्त अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा। गाँधी जी के साथ खड़े होकर ओबामा की तो बल्ले बल्ले हो जानी थी।
बराक ओबामा को नोबल पुरस्कार की घोषणा के बाद अब यह बात मीडिया में आ रही है कि हाय हमारे गाँधी जी को यह ईनाम क्यों नहीं मिला। कोई इनसे पूछने वाला हो कि भाई क्या हमारे गाँधी जी को उनके शान्ति के प्रयासों के लिए किसी नोबल ईनाम वाले प्रमाण पत्र की जरुरत है! गाँधी जी तो ख़ुद एक प्रमाण थे शान्ति के, अहिंसा के। उनको किसी ईनाम की आवश्यकता नहीं थी। बल्कि नोबल शान्ति पुरस्कार को जरुरत थी गाँधी जी की चरण वंदना करने की। तब कहीं जाकर यह नोबल और नोबल होता। गाँधी जी तो किसी भी पुरस्कार से बहुत आगे थे। इसलिए यह गम करने का समय नहीं कि गाँधी जी को यह ईनाम नहीं मिला। आज तो खैर मनाने का दिन है कि चलो बच गए। वरना बराक ओबामा और गाँधी जी का नाम एक ही पेज पर आता, शान्ति के पुजारी के रूप में। नारायण नारायण।

Saturday, 10 October 2009

बराक ओबामा को नोबल

अमेरिका के प्रेजिडेंट बराक ओबामा को शान्ति के लिए नोबल पुरस्कार।
हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा
कमाल है! हर जगह हमारी जैसी ही है सरकार।

Wednesday, 7 October 2009

श्रृंगार में उलझी रही

---- चुटकी----

करवा चौथ का
रखा व्रत,
कई सौ रूपये
कर दिए खर्च,
श्रृंगार में
उलझी रही,
घर से भूखा
चला गया मर्द।

Tuesday, 6 October 2009

पुरूष करें पाँच व्रत

ये तो सब जानते हैं कि विवाहित महिलाएं हमेशा सुहागिन [सुहाग की लम्बी उम्र की कामना,मतलब, लंबे समय तक सुहागिन।] रहने के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। किंतु ये बात बहुत कम विवाहित पुरूष जानते होंगे कि अगर पुरूष ये व्रत करे तो क्या होता है। चलो हम बताते हैं आख़िर नारदमुनि किस काम आएगा। अगर पति -पत्नी में खिच-खिच होती हो तो पति को करवा चौथ का व्रत करना चाहिए। ये सिलसिला लंबे समय तक चल रहा है तो व्रत की संख्या अधिक हो जाती है। वैसे ये कहा सुना जाता है कि पति पाँच व्रत कर ले तो पत्नी से होने वाली खिच -खिच से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है। करने वाले ग्यारह भी करते हैं। नहीं भी विश्वाश तो करके देख लो। इसमे कोई नुक्सान तो है ही नहीं। अगले साल की करवा चौथ पर अपने अनुभव एक दूसरे से बाटेंगे। तब तक इस मुद्दे पर नारायण,नारायण।

Monday, 5 October 2009

सजनी और साजन


सजनी के प्यारे सजना
रहते हैं परदेश,
वहीँ से भेजा सजना ने
सजनी को संदेश,
तुम्हारे लिए मैं क्या भेजूं
दे दो ई मेल आदेश,
साजन की प्यारी
सजनी ने
भेज दिया संदेश,
रुखी-सूखी खा लेँगे
आ जाओ अपने देश।

Friday, 2 October 2009

बुत,विचार और तस्वीर

---- चुटकी-----

कौन ! महात्मा गाँधी
हम नहीं जानते हैं,
हम तो राहुल गाँधी को
अपना आदर्श मानते हैं,
एक यही गाँधी हमें
सत्ता का स्वाद चखाएगा,
महात्मा तो बुत है,
तस्वीर है,विचार है,
यूँ ही
पड़ा,खड़ा सड़ जाएगा।

Monday, 28 September 2009

महंगाई का रावण

----- चुटकी-----

महंगाई के रावण से
जनता हो गई त्रस्त,
मैडम की भक्ति में
मनमोहन जी मस्त,
उनकी कुर्सी बची हुई है
भज मैडम का नाम,
रावण का वध करने को
अब,कहाँ से लाएं राम।

केवल पिसे गरीब

श्री कबीर जी ने कहा था---
चलती चक्की देख कर
दिया कबीरा रोए,
दो पाटन के बीच में
साबुत बचा न कोए।

आज के संदर्भ में ---
चलती चक्की देखकर
अब रोता नहीं कबीर,
दो पाटन के बीच में
अब केवल पिसे गरीब।

Wednesday, 23 September 2009

देश का सौदा कर प्यारे

---- चुटकी----

गाँधी जी के
पद चिह्नों पर चल प्यारे,
दूसरा गाल भी
चीन के आगे कर प्यारे।
अहिंसा परमो धर्म है
रटना तू प्यारे,
एक तमाचा और
तुम्हारे जब मारे।
ये बटेर हाथ में
तेरे फ़िर नहीं आनी है,
लगे हाथ तू
देश का सौदा कर प्यारे।

Sunday, 20 September 2009

श्रीगंगानगर टैक्स बार को सलाम

एक एडवोकेट की मौत हो गई। अब अन्य एडवोकेट तो यही सोचेगें कि उसके क्लाइंट हमारे पास आ जाएं। यह तब तो और भी अधिक होता है जब मरने वाले वकील के यहाँ कोई ऐसा उत्तराधिकारी नहीं होता जो उसका काम संभाल सके। किन्तू श्रीगंगानगर टैक्स बार संघ अब ऐसा नहीं होने देगा। इसी सप्ताह संघ के मेंबर वकील हनुमान जैन का निधन हो गया। इनके पिता जी भी नहीं है। बेटा वकालत कर रहा है। इस स्थिति में श्री जैन के क्लाइंट इधर उधर हो जाने स्वाभाविक हैं। इस से श्री जैन का पूरा काम समाप्त हो जाने की आशंका थी। टैक्स बार संघ ने बहुत ही दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय किया। अब कोई दूसरा वकील वह फाइल नहीं लेगा जो हनुमान जैन के पास थी। संघ श्री जैन के बेटे का कर सलाहाकार के रूप में पंजीयन करवाएगा। संघ की ओर से चार वकील उसके मार्गदर्शन,काम सिखाने,समझाने और क्लाइंट को संतुष्ट करने के लिए हर समय तैयार रहेंगें। जिस से कि कोई क्लाइंट किसी अन्य वकील के पास जाने की न सोचे या उसे दूसरे के पास जाने की जरुरत ना पड़े। इसके बावजूद अगर कोई क्लाइंट अपनी फाइल श्री जैन से लेकर अन्य को देना चाहे,आयकर,बिक्रीकर की रिटर्न भरवाना चाहे तो वकील ऐसा कर देंगे किन्तू उसकी फीस श्री जैन के उत्तराधिकारी उसके बेटे को दी जायेगी। टैक्स बार श्री हनुमान जैन को तो वापिस नहीं ला सकता लेकिन उसने इतना जरुर किया जिस से उनके परिवार को ये ना लगे कि वे इस दुःख की घड़ी में अकेले रह गए। वकील समुदाय उनके साथ खड़ा है।
वर्तमान में एक दूसरे को काटने,काम छीनने,नीचा दिखाने की हौड़ लगी है तब कुछ अच्छा होता है, अच्छा करने के प्रयास होते हैं तो उनको सलाम करने को जी चाहता है। नारदमुनि तो टैक्स बार के अध्यक्ष ओ पी कालड़ा,सचिव हितेश मित्तल,संयुक्त सचिव संजय गोयल सहित सभी पदाधिकारियों को बार बार सलाम करता है। उम्मीद है कि उनकी सोच दूर तक जायेगी। देश के दूसरे संघ भी इनसे प्रेरणा लेंगे।

Saturday, 19 September 2009

नारदमुनि का पैगाम मां के नाम


शक्ति की देवी के चरणों में नारदमुनि का प्रणाम। आपके आने से सब मंगल ही होगा,ऐसा हमें विश्वास है। आप तो माता हैं इसलिए आप से मांगने का अधिकार सब को है। हे मां, जो भी आपे द्वार पर आए आप उन सब की झोली भरें। चाहे वह पूत हो या कपूत। पूत तो कपूत हो सकता है पर माता नहीं कुमाता। अब असली बात पर आता हूँ मां।
कलयुग के इस दौर में आप ऐसी माताओं को थोड़ा समझाना जो अपने गर्भ में ही अपनी कन्या से छुटकारा पाने की कामना रखती हैं। उनसे कहना कि अगर बेटियों को मारोगे तो बहु कहाँ से लाओगे। ऐसी महिलाओं को भी सदबुद्धि देना जो कन्या को चलती ट्रेन से बहार फेंक देते हैं किसी कचरे की तरह। ऐसी माताओं के दिलों में ममता जगाना जो अपनी लाडली को पैदा होते ही किसी सड़क के किनारे या कचरे के डिब्बे में छोड़ जाती हैं।
मां, आप तप सब कुछ कर सकती हैं। इस बार ऐसा कुछ जरुर करना जिस से महिलाएं अपनी लड़कियों को ना "मारें"। उम्मीद हैं आप नारदमुनि की यह कामना अवश्य पूरी करेंगीं। सच में तो यह पूरे देश की ही कामना है।

Thursday, 17 September 2009

सोनिया की मज़बूरी


---- चुटकी----


सोनिया जी
ऐसी क्या
मज़बूरी है,
जो
शशि थरूर
जरुरी है।

Monday, 14 September 2009

जयराम रमेश को भारत रत्न

ख़बर--केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्य मन्त्री (स्वतन्त्र प्रभार) जयराम रमेश ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य देव भगवान शंकर के समान बताकर एक और अनावश्यक विवाद तो खड़ा किया ही है, हजारों साल पुरानी भारतीय संस्कृति के अपमान का अक्षम्य अपराध भी किया है। श्री रमेश ने शनिवार को अपनी भोपाल यात्रा के दौरान महात्मा गान्धी की तुलना ब्रह्मा और नेहरूजी की तुलना भगवान विष्णु से कर डाली।
---- चुटकी----

गाँधी ब्रह्मा
नेहरू विष्णु
जिन्ना महेश,
आपका तो
भारत रत्न
पक्का हुआ
जयराम रमेश।

Sunday, 13 September 2009

धन्य हमारे नेता

---- चुटकी----

पाक ने
भारत पर
रॉकेट दागे,
धन्य हमारे
नेता, जो
फ़िर भी
नहीं जागे।

Saturday, 12 September 2009

भारत में फुर्र

---- चुटकी-----

चिदम्बरम ने
न्यूयार्क में सीखे
सुरक्षा के गुर,
भारत आते ही
सब के सब
हो जाते हैं फुर्र।

Friday, 11 September 2009

था,है और रहेगा ओसामा

---- चुटकी----

जब तक
पाक है
तब तक
रहेगा ओसामा,
कुछ भी
कर ले भारत
चाहे कुछ भी
कर ले ओबामा।

Thursday, 10 September 2009

सत्ता का गरूर

---- चुटकी----

महंगे
होटल में
रहतें हैं
एस एम कृष्णा
शशि थरूर,
इसे ही तो
कहते हैं
सत्ता का गरूर।

Wednesday, 9 September 2009

ये क्या हो रहा है

---- चुटकी----

भारत में
ये,हो क्या
रहा है
बाबू,
सरकार के
तो कुछ भी
नहीं आ रहा
काबू।

Tuesday, 8 September 2009

अब यही है हिन्दूस्तान

---- चुटकी----

कैटरीना
धोनी
सलमान,
अब यही है
हमारा
प्यारा
हिन्दूस्तान।

भारत दीन


---- चुटकी----

पाक
नेपाल
चीन,
ताक़तवर
भारत
बन गया
दीन।

Monday, 7 September 2009

भगवान भला करे आपका


पोस्ट में जो कुछ दिख रहा है वह अख़बार में छपी खबरों के हैडिंग हैं। इस से बहुत कुछ साफ साफ पता लग रहा है कि श्रीगंगानगर में हो क्या रहा है। यहाँ किसी के साथ कुछ भी हो सकता है। बस, आप अपराधी किस्म के नहीं होने चाहिए। यहाँ के डीवाईएसपी हैं विपिन शर्मा। इनका बड़ा भाई नगर का कोतवाल है। ये दोनों आजकल यहाँ के एस पी की आँख और कान हैं। यहाँ की जनता सब जानती है मगर सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस नेताओं की आंखों को ना कुछ दिखता है,ना कानों से ऐसी बात सुनती है। "राजस्थान पत्रिका" अखबार किसी बड़े के खिलाफ लिखने से परहेज रखता है। किन्तू चार में से तीन कटिंग पत्रिका की ही हैं। मतलब, वह भी मजबूर हो गया लिखने के लिए। कौनसा झूठ लिखा। सच बात लिखने में क्या हर्ज। यहाँ तो आप सभी से इतना ही कहना है कि अगर किसी की राजस्थान की राजधानी जयपुर तक अप्रोच हो तो वह ये जानकारी सरकार तक पहुँचा दे। जिस से सरकार को पता लग सके कि श्रीगंगानगर में हो क्या रहा है। अखबार तो अब पूरी तरह से लोकल हो चुके हैं। इस लिए यहाँ की बात जयपुर तक पहुंचती ही नहीं। आम आदमी तो पुलिस के खिलाफ बोल नहीं सकता।[ भगवान ध्यान रखना, कहीं मैं लपेटे में ले लिया जाऊँ।] नेताओं को पता ही है। वे चुप ही रहेंगें। क्योंकि पुलिस में जो अधिकारी आज यहाँ लगे हुए हैं वह सब उनकी सिफारिश से ही तो हैं।
पता नहीं इस नगर का क्या होगा? ऐसी दुर्गति भी होगी, कभी सोचा नहीं था। नारायण, नारायण।

Saturday, 5 September 2009

टैंक की सवारी का आनंद

आप में से अधिकांश ने साइकिल से लेकर हवाई जहाज की सवारी कर रखी होगी। टैंक की सवारी किस किस ने की है ये जरुर बताना। इस मामले में श्रीगंगानगर के लोग "भाग्यशाली" हैं जो आजकल टैंक की सवारी का आनंद ले रहें हैं। वहां बताया गया कि टैंक चार लीटर पेट्रोल पीकर एक किलोमीटर का सफर तय करता है। श्रीगंगानगर में सेना की प्रदर्शनी को देखने के लिए आज तो जैसे जिले भर के स्टूडेंट्स आ गए। उस पर नगर निवासियों का जमघट। इतनी जबरदस्त भीड़ कि क्या कहने। आज तो सेना के जवानों ने हैरत में डाल देने वाले आइटम पेश किए। यहाँ के लोगों में से अधिकतर ने यह सब पहली बार देखा। फ़िर देखने का मौका कब मिलेगा कहना मुश्किल है।

Friday, 4 September 2009

एक दिन सेना के साथ

सेना आम जन मानस के लिए सदा से ही एक रहस्य रहा है। सेना से आम जन की दूरी केवल मन के भाव से मापी जा सकती है। मन की इस दूरी को बिल्कुल समाप्त करने के लिए श्रीगंगानगर में सेना ने "एक दिन सेना के साथ" प्रदर्शनी लगाई। भरी बरसात के बावजूद हर उमर के लोग प्रदर्शनी को देखने के लिए उमड़ पड़े। प्रदर्शनी स्थल बरसाती पानी से भरा था। मगर लोगों ने इसकी परवाह नहीं की। बंकर,टैंक,तोप,रॉकेट लॉन्चर सहित ना जाने कितने किस्म के हथियार जन जन ने निकट से देखे। श्रीगंगानगर भारत पाक सीमा के निकट है। यहाँ पहली बार इस प्रकार का आयोजन सेना ने किया था। सेना के बड़े से बड़े अधिकारी और एक छोटा जवान तक सभी आम जन से संवाद करते देखे गए। भीड़ के बावजूद किसी के चेहरे पर ना तो थकन थी ना झुंझलाहट। हमारा तो इस आयोजन को बार बार सलाम करने को जी करता है। सलाम सेना,सलाम जनता का जज्बा। जनता नहीं आती तो कोई मतलब ही नहीं निकलता। सेना ने जन को अपना समझ तो जनता ने अपनी उपस्थिति लगाकर उनको बता दिया कि वे उनके साथ हैं,हर हाल में हर वक्त.

Thursday, 3 September 2009

गणपति बप्पा की विदाई

श्रीगंगानगर से मुंबई बहुत दूर है। वहां गणेश उत्सव की धूम रहती है। यह गणेश उत्सव अब कई सौ मील दूर भारत-पाक सीमा पर स्थित श्रीगंगानगर में भी आ गया है। यहाँ भी कई घरों में गणपति की स्थापना की जाती है। हम इसका विधि विधान नही जानते इसके बावजूद हमने गणपति की स्थापना घर में की। बारह दिन घर में खूब धूम धाम रही। आज परिवार और निकट मित्रो के साथ गणपति को विदा किया ताकि अगले साल फ़िर से आ सकें। गणपति के साथ बड़ा ही आनंद मनाया। परिवार,सम्बन्धी,मित्रों के परिवार आए गए। जिस से सामाजिक संबंधों का निर्वहन हुआ। आज गणपति की विदाई के बाद घर एक बार तो सूना सूना लग रहा है।घर से कोई विदा होता है तो एक बार तो कुछ खाली पन सा लगता ही है। विदाई है ही ऐसी। चाहे वह किसी की भी हो। उम्मीद है कि गणपति अगले बरस फ़िर इसी प्रकार धूम मचाने के लिए,अपनों के साथ मिलने मिलाने का मौका देने के लिए आयेंगे। गणपति बाप्पा आपका इंतजार रहेगा हमें। आओगे ना! जरू र आना। अच्छा, भूलना नहीं।

Wednesday, 2 September 2009

अच्छी बात,बुरी बात

कोई भी अपनी पत्नी से पूछे कि वह आपके बारे में चार-पाँच अच्छी बात,आदत बताए। पत्नी सोचती रहेगी और आप उसके मुहं की तरफ़ देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकेंगें। अब आप उससे कोई पाँच बुरी बात,बुरी आदत बताने को कहो। आपको अपनी हकीकत पता चल जायेगी। [ हमें तो पता चल चुकी है।] इसी प्रकार भाई से बहिन की,बहिन से भाई की। एक दोस्त से दूसरे के बारे में, छात्र-छात्रा से टीचर के लिए,टीचर से स्टूडेंट्स के लिए पूछा जा सकता है। बड़ी स्तर पर हम देश के बारे में यह बात पूछ सकते हैं। कोई भी किसी के बारे में अच्छी बात,आदत बताने से पहले सोचेगा,चिंतन करेगा। वही बुरी बात एक पल में बिना रुके बता देगा। चलो उदाहरण देकर बताता हूँ।
वैज्ञानिक के० संथानम ने भारत द्वारा किए गए परमाणु विस्फोट पर सवालिया निशान लगा दिया। इस से ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है। एक निरक्षर परिवार भी अपने घर की कमजोरी को बाहर उजागर नहीं करता। यहाँ देश के जाने माने लोग हिंदुस्तान को "मेरा भारत महान" बनाने में लगे हुए है। देश के दुश्मनों के लिए इस से बढ़िया ख़बर और क्या हो सकती है। एक नेता जिन्ना की तारीफ करता है,एक वैज्ञानिक परमाणु विस्फोट की सफलता पर सवालिया निशान लगाता है। इसे भाई चारा तो कह ही सकते हैं।
अब परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व मुखिया होमी नुसरवानजी सेठना जी भी संथानम जी के साथ भाई चारा दिखाते हुए कह रहें हैं कि १९९८ का परमाणु परीक्षण विफल हो गया था। श्री सेठना तो ये भी कहतें है कि प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक ऐ पी जे अब्दुल कलाम विस्फोटकों के दोहन और विकास के बारे में कुछ नहीं जानते।
इन महान लोगों की बात कितनी सच है वही जानें। लेकिन क्या यह सब बोलना देश के हित में है? ये तो बहुत ऊँचे स्तर पर अपनी बात मजबूती से रख सकते हैं। सरकार बड़े बड़े वैज्ञानिकों को उनके साथ लगाकर सच्चाई का पता लगा सकती है। उनके इस प्रकार से करने की क्या जरुरत पड़ी?
वैसे एक बात है, इस देश में,वह यह कि रिटायर होने के बाद हर कोई अपने विभाग की, देश की, व्यवस्था की आलोचना शरू कर देता है। उस से पहले वह सरकारी सुविधाएँ भोगता है। बात वही कि हम सब बुरी बात तो झट से बोल देते हैं।

Tuesday, 1 September 2009

बड़ी विदाई की तैयारी

--- चुटकी----

बीजेपी में
जोर शोर से
मिलने-मिलाने का
दौर जारी है,
लगता है
किसी बड़ी
विदाई की
तैयारी है।

Monday, 31 August 2009

अब ये भी सुनो जनाब

प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक महिला पत्रकार के बैग में से सामान गायब हो गया। दो पत्रकारों ने एक दम्पती के बेडरूम की विडियो तैयार कर उसकी ख़बर बना टीवी पर चला दी। अब तीसरी बात हम बतातें हैं। श्रीगंगानगर के अनूप गढ़ कस्बे में एक पत्रकार के कारण हंगामा मच गया है। इस पत्रकार ने चिकित्सा विभाग को शिकायत की कि एक डॉक्टर ने लैब संचालक से मिलकर छः बच्चों को एच आई वी वाला रक्त चढा दिया। शिकायत ही ऐसी थी, हंगामा मचना था। मगर तुंरत हुई जाँच में पता लगा कि किसी को ना तो एच आई वी वाला रक्त चढाया गया ना किसी एच आई वी बीमारी वाले आदमी ने रक्त दिया। जाँच से पहले ही न्यूज़ चैनल वालों ने इसको लपक लिया। पता नहीं किस किस हैडिंग से ख़बर को चलाया गया। हमने चिकित्सा विभाग से जुड़े अधिकारियों से बात की। सभी ने कहा कि एच आई वी रक्त चढाने वाला मामला है ही नही। लेकिन अब क्या हो सकता था। पत्रकार अपना काम कर चुका था। टी वी न्यूज़ चैनल जबरदस्त तरीके से ख़बर दिखा और बता रहे थे। पुलिस ने लैब संचालक को हिरासत में ले लिया। डॉक्टर फरार हो गया। और वह करता भी क्या। जिस कस्बे की यह घटना है वहां ब्लड बैंक नहीं है। बतातें हैं कि जिस पत्रकार ने यह शिकायत की,उसके पीछे कुछ नेता भी हैं। मामला कुछ और है और इसको बना कुछ और दिया गया है। अब डॉक्टर के पक्ष में कस्बे के लोगों ने आवाज बुलंद की है। करते रहो, बेचारा डॉक्टर तो कहीं का नहीं रहा।
चलो, जो कागज चला है उसका पेट तो भरना ही होगा। मगर अब यह बहस तो होनी ही चाहिए कि किसी मरीज की जान बचाने के लिए उस वक्त मौके पर डॉक्टर को क्या करना चाहिए थे और उसने वह किया या नहीं। अगर उसने वह नहीं किया जो करना चाहिए था तो वह कसूरवार है। अगर किया तो फ़िर किस जुल्म की सजा। अगर डॉक्टर मरते मरीज को खून नहीं चढाता तो हल्ला मचता। रोगी के परिजन उसका हॉस्पिटल तोड़ देते। डॉक्टर अपनी जान बचाने के लिए रोगी को बड़े शहर के लिए रेफर कर देता तब भी ऐसा ही होना था। क्योंकि तब तक देर हो चुकी होती। डॉक्टर के लिए तो इधर कुआ उधार खाई होती।
यहाँ बात किसी का पक्ष करने की नहीं। न्याय की है। न्याय भी किसी एक को नहीं,सभी पक्षों को। एक सवाल यहाँ आप सभी से पूछना पड़ रहा है।
सवाल--एक मौके पर ऐसा हुआ कि पचास व्यक्तियों की जान बचाने के लिए एक आदमी को मरना/या मारना पड़ रहा था। आप बताओ, अब कोई क्या करेगा? जवाब का इंतजार रहेगा।

Saturday, 29 August 2009

एनसीसी कैडेट्स या वेटर

श्रीगंगानगर में आज हुए एक प्रोग्राम में एनसीसी कैडेट्स की वेटर के रूप में सेवा ली गई। इन कैडेट्स से चाय और कोल्ड ड्रिंक बंटवाया गया। जबरदस्त गर्मी में पसीने से लथ- पथ ये कैडेट्स वेटर की भांति प्रोग्राम में आए लोगों को चाय ठंडा बांटते रहे। किसी ने भी इनको इस काम से नहीं रोका। मेरे अपनी राय में एनसीसी कैडेट्स का काम कम से कम चाय ठंडा सर्व करना तो नहीं हो सकता। अगर इस प्रकार के संगठन से जुड़े युवकों से यह काम करवाया जाएगा तो आ गई उनमे देश प्रेम की भावना। ठीक है भारत में सेवा करने से मेवा मिलती है। किंतु सेवा किस की करने से मेवा मिलती है यह भी तो सोचना और देखना है।

Friday, 28 August 2009



आज कल लगभग सभी न्यूज़ चैनल्स पर मुंबई के गणपति उत्सव की धूम रहती है। इनमें लाल बाग के राजा वाले गणपति बप्पा की पूछ सबसे अधिक है। बताते हैं कि वहां लाखों लोग गणपति के दर्शनों को आते हैं। चलो अच्छी बात है। किसी को कहीं जाकर मन की शान्ति मिलती है,उसके बिगडे काम बनते हैं,रुके हुए काम होते हैं,तो इस में बुरा क्या है। गणपति राजा के पास फिल्मी सितारे भी आते हैं। बस उनके आते ही चैनल वालों को पता नहीं क्या हो जाता है कि वे गणपति को भूल कर उन्हें दिखाने लगते हैं। तब लाल बाग का राजा इन सितारों के सामने राजा नहीं रहता। सितारे के हर कदम को चैनल को इस प्रकार से दिखाते हैं जैसे वह सितारा गणपति के दर्शन करने नहीं,गणपति बाबा को दर्शन देने आया हो। एक तरफ़ तो गणपति को लाल बाग का राजा कहा जाता है। दूसरी तरफ़ सितारों के सामने राजा को कोई तवज्जो नहीं दी जाती। ठीक है फिल्मी सितारों का अपना महत्व है मगर ये भी तो सच है कि गणपति के दरबार में सब बराबर होते हैं। गणपति बप्पा किसी में कोई भेद नहीं करते। किंतु न्यूज़ चैनल वाले जो न करवा दे वही कम। इस में कोई संदेह नहीं कि न्यूज़ चैनल्स के कारण ही गणपति उत्सव महारास्ट्र से निकल कर देश भर में धूम मचने लगा है। भारत पाक सीमा पर बसे श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय पर कई स्थानों पर गणपति की स्थापना होती है। हमारे परिवार के लोग कभी मुंबई नहीं गए,इस के बावजूद हम गत तीन साल से गणपति की स्थापना करते आ रहें हैं। हम कोई इसका विधि विधान भी नहीं जानते। जैसा टीवी और अख़बारों में आता है वैसा कर लेते हैं।
किसी भी ख़बर में अगर मूल तत्व ही पीछे धकेल दिया जाए तो फ़िर वह ख़बर नहीं कुछ और ही हो जाता है। ठीक है फिल्मी सितारों को दिखो मगर उनके सामने लाल बाग के राजा को छोटा मत करो, उसका महत्व न घटाओ। बाकी आपकी मर्जी हमारे कहने से तो कुछ होने वाला नहीं। क्योंकि बाजार में तो जो दिखता है वही बिकता है। कुछ कहा हो तो गणपति बप्पा और न्यूज़ चैनल वाले दिल पर न लें।

Tuesday, 25 August 2009

कटी पतंग की किस्मत

---- चुटकी----

कटी पतंग की किस्मत
या तो निरर्थक
हवा में उडेगी,
या किसी पेड़ पर
लटकी रहेगी
उलटी-सीधी,
या फ़िर एक साथ
कई लोग उस पर
झपट्टा मारेंगें
उसको अपने
कब्जे में करने के लिए,
छीना झपटी में
वह हमेशा की तरह
तार तार हो जायेगी,
अब बीजेपी नामक
नई कटी पतंग का
क्या होगा
यह उसकी
लीडरशीप बताएगी।

Monday, 24 August 2009

गोविन्द गोयल की चुटकी

---- चुटकी----

कंधार के अपने
सम्बन्धों का
फायदा उठाओ,
अपना टैलेंट यहाँ
क्यों बरबाद करते हो
जसवंत जी,
आप तो तुंरत
पाक चले जाओ।

Sunday, 23 August 2009

विदेशी लीडर का इंतजाम

---- चुटकी----

देसी लीडर तो
अब
नहीं आ रहे काम,
भाजपा को भी
करना चाहिए
एक
विदेशी लीडर का इंतजाम।

Saturday, 22 August 2009

गणपति बाबा जी


फ़िर से आए
हमारे द्वार
गणपति बाबा जी,
चरण पखारूँ
बारम्बार
गणपति बाबा जी,
आप आए तो
रौणक लागी
रोज मनाएं
त्यौहार
गणपति बाबा जी।

Friday, 21 August 2009

चुटकी

----- चुटकी-----

भाजपा कहो
या फ़िर कहो
कांग्रेस आई,
नाम के अलावा
दोनों में अब
कोई
फर्क नहीं है भाई।

Tuesday, 18 August 2009

बिग बी की धमकी,खान के नखरे

ब्लॉगर्स के लिए बड़ा मुश्किल समय आने वाला है। जलजला आ जाएगा। धरती समन्दर बन जायेगी और समन्दर धरती। ऐसा तूफान आने वाला है कि ब्लॉग, इतिहास के किसी कौने में बड़ा कुचला पड़ा होगा। कोई मजाक की बात नहीं है। बिल्कुल सौ प्रतिशत वैसी ही सच्ची जैसी बढती हुई महंगाई।भाजपा में कलह,माया को राहुल की टेंशन,न्यूज़ चैनल पर स्वाइन फ्लू। ऐसा इस लिए होने वाला है कि बिग बी ने ब्लॉग ना लिखने की धमकी दी है। शायद वो ब्लॉग नहीं लिखेंगें तो धरती उलट पलट जायेगी। बिग बी, आपको कहा किसने था ब्लॉग लिखने को। जैसे हमने लिखना शुरू किया आपने भी कर दिया। कर दो लिखना बंद, किसी की सेहत पर क्या फर्क पड़ने वाला है। हाँ, उन फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं को थोडी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी जो आपके ब्लॉग से कुछ लेकर अपना काम चला लिया करते थे। बिग बी कुछ टिप्पणियों से आहात हैं। भाई, फूलों से खेलोगे तो कांटे तो लगेंगें ही। फूलों से मस्ती तो बिग बी करे और कांटे चुभें शाहरुख़ खान के , ऐसे कैसे हो सकता है। मीठा मीठा अहा! कड़वा कड़वा थू। ऐसे तो नहीं चलेगा। आपकी मर्जी ब्लॉग लिखो ना लिखो। बिग बी जी आप ब्लॉग अपनी ठरक के लिए,अपने नाम के लिए लिखते हैं। इस से कोई देश का भला नहीं होने वाला। लिखो, लिखो । ना लिखो,ना लिखो। हमारी बला से।अब बात शाहरुख़ खान की। उनसे पूछ ताछ क्या हो गई जैसे उनकी दुनिया उजड़ गई। वो अमेरिका है। वहां इंसान की हैसियत देख कर कानून को काम में नहीं लिया जाता। कानून के हिसाब से आदमी से बरताव किया जाता है। भारत में आदमी की पोस्ट और हैसियत के अनुसार कानून काम करता है। जितना बड़ा आदमी का कद कानून की पालना में लगे लोग कानून को उतना ही छोटा कर देते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता तो भारत वालों को तकलीफ होती है। कानून तो वही होता है जो सबके साथ बराबरी से पेश आए। शाहरुख़ खान को अमेरिकी कानून का सम्मान करते हुए सहयोग करना चाहिए था। इस से उनका सम्मान और बढता। बड़ा होना अच्छी बात है,बडापन दिखाना और भी अच्छा। सब जानते हैं कि बड़े तो बस दही में पड़े होते हैं।

Sunday, 16 August 2009

स्वाइन फ्लू हाय स्वाइन फ्लू

देश भर में मीडिया ने स्वाइन फ्लू का इस कद्र आतंक मचा रखा है कि लोग डरे और सहमे हुए हैं। देश के नामी गिरामी डॉक्टर भी चुप्पी साधे इन चैनलों के यस मैन बने हुए है। डॉक्टर जानते हैं कि यह स्वाइन फ्लू और कुछ नहीं केवल जुकाम का ही एक रूप है। लेकिन क्या मजाल कि कोई एन चैनल वालों के खिलाफ बोले। स्वाइन फ्लू की एक मौत से देश भर में हंगामा मचा देने वाले मीडिया ने कभी इस बात की पड़ताल कि है क्या कि निमोनिया से हर रोज कितने लोग मरते हैं। अगर डॉक्टर की माने तो स्वाइन फ्लू से अधिक मौत तो निमोनिया से होती है। निमोनिया ही क्यूँ ,कैंसर की बात कर लो। श्रीगंगानगर इलाके में ना जाने कितने लोग कैंसर से दम तोड़ चुके हैं और कितने ही अपनी बारी का इंतजार कर रहें हैं। मेरे ससुराल में दो साल में तीन मौत कैंसर से हुई हैं। न्यूज़ चैनल्स को या खबरें नहीं मिलती,या उनकी नजर खबरों पर हैं नहीं,या फ़िर वे खबरे देना नहीं चाहते। ऐसा लगता है कि किसी ना किसी प्रकार से मल्टी नेशनल कंपनियों ने ऐसा जाल बुना है कि सब चैनल स्वाइन फ्लू की चपेट में आ गये। मल्टी नेशनल वालों को इस से भोले भाले चैनल और कहाँ मिलेंगें। कुछ ही दिनों में अरबों खरबों का कारोबार करके अपने घर बैठ जायेंगें। उसके बाद ना तो स्वाइन होगा न फ्लू। कितने अफ़सोस की बात है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, जो चिकित्सकों की सबसे बड़ी और जानी मानी संस्था है, वह भी इस बारे में कुछ नहीं बोल रही। जबकि उनके पास तो प्रमाण सहित सब कुछ होगा। नेताओं की तो कुछ ना पूछो, उनको तो वोट बैंक से मतलब है। किंतु डॉक्टर तो सच्चाई का बयान कर ही सकते हैंशायद उनको लगता होगा कि नक्कार खाने में उनकी बात सुनेगा कौन। इस स्वाइन फ्लू ने ना कितने लोगों का धंधा एक दम से चमका दिया होगा।यूँ तो हम अपने आपको इक्कीसवीं सदी में बतातें है और काम करते हैं ऐसे जैसे हमने अपना दिमाग किसी मल्टी नेशनल कंपनी के यहाँ गिरवी रख दिया हो। उसके बाद वही देखेंगे,सुनेंगें,करेंगें जो वे कहेंगें। क्योंकि उनकी हाँ में हाँ मिलने में ही वारे न्यारे है। जय हो स्वाइन फ्लू की। भाड़ में जाए अन्य बीमारी, उनसे तो हर रोज़ लोग मरते हैं।

Friday, 7 August 2009

हिंदुस्तान मजबूर है

---- चुटकी----

पहले किसी
लाचार बूढे को
पी एम बनाते हैं,
फ़िर, अपने सहारे से
उसको चलाते हैं,
हिंदुस्तान मजबूर है
क्योंकि,
राजनीतिक दलों का
यही दस्तूर है।

Thursday, 6 August 2009

चुटकी


सरकार नींद में
जनता अचेत,
सब्जी,दाल,चीनी
हाथ से
ऐसे निकल गई,
जैसे
बंद मुट्ठी से रेत।

Tuesday, 4 August 2009

नींव कमजोर,कंगूरे खुबसूरत

आज अचानक एक गौशाला के निर्माणाधीन भव्य गेट पर निगाह थम गई। कई फुट ऊँचे उस गेट पर हजारों हजार रूपये लगेंगे। पता नहीं उस पर किस किस प्रकार की सजावट कर उसके दर्शनीय बनाया जाएगा। उसके पत्थर पर उनका नाम खुदेगा,जो धन देंगे। ताकि समाज में उनका रुतबा हो,नाम हो,लोग उनको धर्म प्रेमी,गोसेवक के रूप में जने,माने,उनका आदर करें। गौशाला प्रबंध समिति के पास करोडों की नहीं तो लाखों रुपयों की एफडी भी होगी। ऐसे ही शानदार आपको धर्मस्थल नजर आयेंगें। एक से एक देखने लायक। कीमती से कीमती सामान उस मन्दिर की शोभा बढ़ा रहा होता है। घर में पानी का गिलास ना लेने वाले लोग-लुगाई वहां सेवा करते दिखेंगें। सब कुछ होगा फ़िर भी भिखारियों की तरह भगवान से और मांगेगें। पता नहीं इनकी कामनाओं का अनत कब होगा? हम कहतें हैं ना हो इनकी कामनाओं का अंत। भगवान और दे इनको और देता ही रहे। इसके साथ थोड़ा सा दिमाग इनका जरुर बदल दे। ताकि ये जो कुछ गौशालाओं और धर्मस्थलों पर खर्च करतें हैं उसका कुछ अंश विद्या के मंदिरों पर भी खर्च करनेलग जायें। क्योंकि प्राइवेट स्कूल तो एक दुकान की तरह चलते हैं, इसलिए वहां तो सब सुविधा मालिक जुटाता है।लेकिन सरकारी स्कूल ऐसे नहीं होते। वहां स्टाफ तो ट्रेंड होता है मगर वह सब नहीं होता जिसकी जरुरत होती है। अब आप को ले चलते हैं एक सरकारी स्कूल के निकट। स्कूल का भव्य गेट तो क्या होना था, जो है उसका दरवाजा ऐसा कि कोई लात मार के तोड़ दे। स्कूल में सुविधा के नाम पर दुविधा ही दुविधा। सरकार ने वोट बैंक बढ़ाने के लिए मास्टर/मास्टरनी तो रख लीं, लेकिन स्कूल गौशाला जैसा भी नहीं है। समस्त काम सरकार नहीं कर सकती। नगर नगर में गौशालाएं सरकार तो नहीं बनवाती। यह सब नगर के वे लोग करते हैं जिनके पास धन और उसको समाज सेवा में लगाने का जज्बा होता है। क्या ही अच्छा हो कि गौशालाएं और धर्मस्थल बनाने वाले लोग स्कूलों पर भी ध्यान दे। इसके लिए सरकार को भी बहुत कुछ करना होगा। हर कोई अपने नाम और ख्याति के लिए धन लगाता है,समय देता है। सरकार ऐसे लोगों को खास तव्वजो दे जिस से ये लोग भारत के उस भवन कोशानदार,जानदार बनायें जहाँ नींव बने जाती है।

Monday, 27 July 2009

आस्था के बहाने तोड़फोड़

हिन्दूस्तान के लोगों में प्रेम,स्नेह,लगाव,आस्था,श्रद्धा प्रकट करने का तरीका बहुत ही अलग है। हम प्राणी मात्र के प्रति अपने लगाव का प्रदर्शन भी इस प्रकार से करते हैं कि उसकी चर्चा कई दिनों तक रहती है। हमारे इस प्रदर्शन से किसको कितना दर्द, तकलीफ पहुंचती है,उससे हमें कोई लेना देना नही है। गत दिवस हमरे निकट एक कस्बे में चार सांड और दो बच्छियों की संदिग्ध मौत हो गई। वहां के थानेदार ने यह कह दिया कि यह तो रोड एक्सीडेंट से हुआ। बस, फ़िर क्या था। कस्बे में हंगामा हो गया। हिंसा, तोड़फोड़,पत्थर बाजी हुई। सरकारी बस को आग लगा दी गई। रेल गाड़ी को रोका गया। तोड़ फोड़ की गई। कई घंटे अराजकता रही। अब जिले के कई स्थानों पर गो भक्तों का आन्दोलन शुरू हो रहा है। कोई गिरफ्तारी देने की बात कर रहा है तो कोई बाज़ार बंद करवाने की। ठीक है, आस्था और श्रद्धा की बात है। मगर यह आस्था और श्रद्धा उन सांडों और गायों के प्रति क्यूँ नहीं दिखाई जाती जो गलियों में गन्दगी खाती घूमती हैं। ये धार्मिक लोग तब कहाँ चले जाते हैं जब लोग गलियों में इनपर लाठियाँ बरसाते हैं। ये प्रश्न इन लोगों से पूछा ही जाना चाहिए कि इतनी गोशालाएं, जिनके पास करोडों रुपयों की एफडी होती हैं, होने के बावजूद गायें,गोधे लावारिस क्यों घूमते हैं। इतने हमदर्द होने के बावजूद इनका दर्द क्यों नहीं दूर किया जाता? जब ये जिन्दा होते हैं तब तो गंदगी खाकर अपना जीवन बितातें हैं और जब किसी हादसे का शिकार हो जाते हैं तब इनके लिए हिंसा की जाती है। यह तो वैसा ही है जैसे हम बुजुर्ग माता पिता को दवा के अभाव में मरने देते हैं,मौत के बाद समाज को दिखाने के लिए हजारों हजार रूपये खर्च करते हैं उनके ही नाम पर। ये कैसा चरित्र है हमारा? बाहर से कुछ और अन्दर से और। इसमे कोई शक नहीं कि हम प्राणी मात्र के प्रति प्रेम करते हैं, किंतु यह प्रेम उनके मरने के बाद ही क्यूँ बाहर आता है?वह प्रेम किस काम का जिसके कारण सरकारी सम्पति बरबाद हो जाए,लोग तंग परेशान हों।

Thursday, 23 July 2009

हमको तो डरा ही दिया

कई दिनों से हमारे घर के एक कमरे में घुसते ही मैं डर जाता हूँ। ऐसे लगता है जैसे न्यूज़ चैनल्स के अन्दर बैठे विभिन्न प्रकार के पंडित,ज्ञानी,ध्यानी,ज्योतिषी बाहर निकल कर हमें बुरी नजर से बचाने के लिए नए नए अनुष्ठान शुरू करवा देंगे। एक दो आदर्शवादी चैनल को छोड़ कर, हर कोई इन बाबाओं के माध्यम से धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को डराने में लगा हुआ था। घर में जितने सदस्य उतनी राशियां। उनके अनुसार या तो किसी के लिए भी ग्रहण मंगलकारी नहीं और किसी की गणना के अनुसार सभी की पो बारह। अब जिसके लिए ग्रहण मंगलकारी नहीं उसका दिन तो हो गया ख़राब। वह तो उपाए के चक्कर में कई सौ रुपयों पर पानी फेर देगा। जिसके लिए ग्रहण चमत्कारी फायदा देने वाला है, वह कोई काम क्यूँ करने लगा। दोनों ही गए काम से। ना तो बाबाओं का कुछ कुछ बिगड़ा ना न्यूज़ चैनल के संचालकों का। हिन्दूस्तान में ग्रहण पहली बार लगा है क्या? सुना है हिन्दूस्तान तो पुरातन है। यहाँ तो सदियों से ग्रह -नक्षत्रों की खोज,उनके बारे में गहरी से गहरी बात जानने,समझने का काम चलता रहता है। घर के बड़े बुजुर्ग जानते हैं कि ग्रहण के समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं। उनको यह सीख न्यूज़ चैनल देख कर नहीं मिली। यह तो हमारे संस्कार हैं। पता नहीं ग्रहण के पीछे लग कर न्यूज़ चैनल वाले क्या संदेश देना चाहते हैं। इसमे कोई शक नहीं कि लोगों में उत्सुकता होती है हर बात को जानने की, उसको निकट से देखने की। किंतु इसका ये मतलब तो नहीं कि उसकी ज्ञान वृद्धि में सहायक होने वाली जिज्ञासा को डर में बदल दिया जाए,उसकी उत्सुकता को आशंका ग्रहण लगा दें। हम तो इतने ज्ञानी नहीं, मगर जो हैं वे तो जानते हैं कि मीडिया का काम लोगों का ज्ञान बढ़ाना,उनको सूचना देना,घटनाओं से अवगत करवाने के साथ साथ उनको जागरूक करना है। यहाँ तो आजकल कुछ और ही हो रहा है। ज्योतिषी,वास्तु एक्सपर्ट,बाबा अपनी दुकान इन न्यूज़ चैनल के माध्यम से चलाते है। जो इनके संपर्क में आते हैं उनका तो मालूम नहीं, हाँ ये जरुर फल फूल रहें हैं। ग्रहण ने सभी खबरों में ग्रहण लगा दिया। देश के कितने हिस्सों में लोग किस प्रकार जी रहें हैं?उनकी जिंदगी पर लगा महंगाई का ग्रहण ना तो उनको जीने दे रहा है ना मरने। कितने ही बड़े इलाके में पानी ना होने के कारण खेती संकट में पड़ी है। खेती नहीं हुई तो इन इलाकों की अर्थ व्यवस्था चौपट हो सकती है। उसके बाद वहां होगा अराजकता का राज। भूखे लोग क्या करेंगें? सरकार अपने अधिकारियों ,मंत्रियों,सांसदों,विधायकों का पेट और घर भरेगी या इनका? खैर फिलहाल तो आप और हम ग्रहण और उसका असर देखेंगें। आख़िर ऐसा ग्रहण हमको इस जिंदगी में दुबारा तो देखने को मिलने से रहा।

Monday, 13 July 2009

पत्रकारिता का नया स्टाइल

देश-विदेश के किसी और स्थान का तो मालूम नहीं लेकिन श्रीगंगानगर में पत्रकारिता का नया स्टाइल शुरू हो चुका है। स्टाइल अच्छा है या बुरा,सही है या ग़लत,गरिमा युक्त है या नहीं,इस बारे में टिप्पणी करने के लिए यह नहीं लिखा जा रहा। जब कहीं किसी नगर या महानगर में कोई फैशन आरम्भ होता है तो उसकी जानकारी दुनिया में पहुँच जाती है, पहुंचाई जाती है। बस, इसी मकसद से यह पोस्ट है। अरे नहीं भाई, हम पत्रकारिता को फैशन के समकक्ष नहीं रख रहे। हम तो केवल बता रहें हैं कि हमारे नगर में क्या हो रहा है। हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमारे शहर में एक दर्जन अखबार निकलते हैं,पूरी शानो-शौकत के साथ। इसके साथ अब स्कूल,कॉलेज,हॉस्पिटल जैसे कारोबार से जुड़े लोगों ने भी अपने अपने साप्ताहिक,पाक्षिक,मासिक अख़बार निकालने शुरू कर दिए हैं। इन अख़बारों में अपने संस्थान की उपलब्धियों का जिक्र इन मालिकों द्वारा किया जाता है। मतलब अपने कारोबार के प्रचार का आसन तरीका। स्कूल वाले अपने स्कूल के बच्चों की पब्लिसिटी करेंगें। हॉस्पिटल संचालक डॉक्टर द्वारा किए इलाज की। बीजवाला अपने खेत या प्लांट में तैयार किए गए बीज के बारे में बतायेंगें। जिन के पास अख़बार को संभालने वाले व्यक्ति होते हैं वे अपने स्तर पर इसको तैयार करवाते हैं। अन्य किसी पत्रकार की पार्ट टाइम सेवा ले लेता है। हालाँकि इन अख़बारों को अन्य अख़बारों की भांति बेचा नहीं जाता। ये सम्भव है कि स्कूल संचालक अख़बार की कीमत,टोकन मनी, फीस के साथ ले लेते हों। ये अखबार बिक्री के लिए होते ही नहीं। हाँ, स्कूल का अखबार जब बच्चे के साथ घर आएगा तो अभिभावक उसको देखेंगें ही। बच्चे की फोटो होगी तो उसको अन्य को भी दिखाएंगें,बतायेंगें। अब,जब अखबार है तो उसके लिए वही सब ओपचारिकता पूरी करनी होती हैं जो बाकी अख़बार वाले करते हैं। जब,सब ओपचारिकता पूरी करनी हैं तो फ़िर वह कारोबारी अपनी महंगी,सस्ती कार पर भी प्रेस लिखने का "अधिकारी" तो हो ही गया। बेशक इस प्रेस का दुरूपयोग ना होता हो, लेकिन प्रेस तो प्रेस है भाई। श्रीगंगानगर में यह स्टाइल उसी प्रकार बढ़ रहा है जैसे शिक्षा और चिकत्सा का कारोबार।

Sunday, 12 July 2009

विलाप के बीच सम्मान की खुशी

पड़ौस में गम हो तो खुशी छिपानी पड़ती है। स्कूल में कोई हादसा हो जाए तो बच्चों की मासूमियत पर ब्रेक लग जाता है। गाँव में शोक हो तो घरों में चूल्हे नहीं जलते। नगर में बड़ी आपदा आ जाए तो सन्नाटा दिखेगा। यह सब किसी के डर,दवाब या दिखावे के लिए नहीं होता। यह हमारे संस्कार और परम्परा है। समस्त संसार हमारा ही कुटुम्ब है, हम तो इस अवधारणा को मानने वाले हैं। इसलिए यहाँ सबके दुःख सुख सांझे हैं। परन्तु सत्ता हाथ में आते ही कुछ लोग इस अवधारणा को ठोकर मार देते हैं। अपने आप को इश्वर के समकक्ष मान कर व्यवहार करने लगते हैं।श्रीगंगानगर,हनुमानगढ़ में आजकल बिजली और पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई है। खेतों में खड़ी फसल बिन पानी के जल रही है। नगरों में बिजली के बिना कारोबार चौपट होने को है। कोई भी ऐसा वर्ग नहीं जो आज त्राहि माम,त्राहि माम ना कर रहा हो। त्राहि माम के इस विलाप को नजर अंदाज कर हमारे सांसद भरत राम मेघवाल अपने स्वागत सत्कार,सम्मान करवाने में व्यस्त हैं। एक एक दिन में गाँव से लेकर नगर तक कई सम्मान समारोह में वे फूल मालाएं पहन कर गदगद होते हैं।सम्मान पाने का अधिकार उनका हो सकता है। किंतु ऐसे वक्त में जब चारों ओर जनता हा हा कार कर रही हो, तब क्या यह सब करना और करवाना उचित है?सांसद महोदय, प्रोपर्टी और शेयर बाज़ार ने तो पहले ही लोगों की हालत बाद से बदतर कर रखी है। अगर खेती नहीं हुई तो खेती प्रधान इस इलाके में लोगों के पास कुछ नहीं बचेगा।

Friday, 10 July 2009

ईमानदारी और शराफत ko चाटें

ईमानदारी और शराफत, ये भारी भरकम शब्द आजकल केवल किताबों की शोभा के लिए ही ठीक हैं। ईमानदारी और शराफत के साथ कोई जी नहीं सकता। कदम कदम पर उसको प्रताड़ना और अभावों का सामना करना पड़ेगा। इनका बोझ ढोने वालों के बच्चे भी उनसे संतुष्ट नहीं होते। ईमानदार और शरीफ लोगों की तारीफ तो सभी करेंगें लेकिन कोई घास नहीं डालता। ईमानदार और शरीफ को कोई ऐसा तमगा भी नहीं मिलता जिसको बेच कर वह एक समय का भोजन कर सके। दुनियादारी टेढी हो गई, आँख टेढी करो,सब आपको सलाम करेंगें। वरना आँख चुरा कर निकल जायेंगें।
लो जी, एक कहानी कहता हूँ। एक निहायत ही ईमानदार और शरीफ आदमी को प्रजा ने राजा बना दिया। जन जन को लगा कि अब राम राज्य होगा। किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। राज के कर्मचारी,अफसर जनता की बात सुनेगें। दफ्तरों में उनका आदर मान होगा। पुलिस उनकी सुरक्षा करेगी। कोई जुल्मी होगा तो उसकी ख़बर लेगी। रिश्वत खोरी समाप्त नहीं तो कम से कम जरुर हो जायेगी। परन्तु, हे भगवन! ये क्या हो गया! यहाँ तो सब कुछ उलट-पलट गया। ईमानदार और शरीफ राजा की कोई परवाह ही नही करता। बिना बुलाए कोई कर्मचारी तक उस से मिलने नहीं जाता। राजा के आदेश निर्देश की किसी को कोई चिंता नहीं। अफसर पलट के बताते ही नहीं कि महाराज आपके आदेश निर्देश पर हमने ये किया। लूट का बाजार गर्म हो गया। कई इलाकों में तो जंगल राज के हालत हो गए। किसी की कोई सुनवाई नहीं। पुलिस और प्रशासन के अफसर,कर्मचारी हावी हो गए। जिसको चाहे पकड़ लिया,जिसको चाहे भीड़ के कहने पर अन्दर कर दिया।ख़ुद ही मुकदमा दर्ज कर लेते हैं और ख़ुद ही जाँच करके किसी को जेल भेज देते हैं। राजा को उनके शुभचिंतकों ने बार बार बताया। किंतु स्थिति में बदलाव नही आया। राजा शरीफ और निहायत ईमानदार है। वह किसी अफसर, कर्मचारी को ना तो आँख दिखाता है ना रोब। सालों से खेले खाए अफसर,कर्मचारी ऐसे शरीफ राजा को क्यों भाव देने लगे। उनकी तो मौज बनी है। राजा कुछ कहता नहीं,प्रजा गूंगी है, बोलेगी नहीं। ऐसे में डंडा चल रहा है,माल बन रहा है। उनका तो कुछ बिगड़ना नहीं। पद जाएगा तो राजा का, उनका तो केवल तबादला ही होगा। होता रहेगा,उस से क्या फर्क पड़ेगा। घर तो भर जाएगा।
बताओ,जनता ऐसे राजा का क्या करे? जनता के लिए तो राजा की ईमानदारी और शराफत एक आफत बन कर रह गई। उनकी आशाएं टूट गईं। उम्मीद जाती रही।राम राज्य की कल्पना, कल्पना ही है। राजा की ईमानदारी और शराफत पर उनके दुश्मनों को भी संदेह नहीं,लेकिन इस से काम तो नही चल रहा। राजा ईमानदार और शरीफ रहकर लगाम तो कस सकता है। लगाम का इस्तेमाल ना करने पर तो दुर्घटना होनी ही है

Thursday, 9 July 2009

सबसे बड़ा बोझ

श्रीगंगानगर से कुछ किलोमीटर दूर एक गाँव के एक मकान के बाहर हर वर्ग के लोगों की भीड़, इसके बावजूद वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। लोग बोलते भी थे तो एक दूसरे के कान में। खामोशी और सन्नाटे को, या तो आस पास के पेड़ों,मुंडेरों पर बैठे,आते जाते,उड़ते पक्षियों की चहचाहट तोड़ती या फ़िर चर्र,चूं। यह चर्र,चूं उन लोहे की पाइप की थी जिन पर चाँदनी बंधी थे,धूप से बचाव के लिए। हवा के झोंके से पाइप हिलती तो वह चर्र ,चूं बोलकर सन्नाटे तो तोड़ देती।हवा में उल्लास नहीं था। बस, उसके होने का पता लग रहा था। कभी कभी किसी के मोबाइल फोन की घंटी भी खामोशी को भंग कर देती थी। घर के बच्चों पर इस माहौल का कोई असर देखने में नहीं आया। मौत के नाम से अंजान बच्चे अपनी मस्ती में मस्त होकर खेल रहे थे,उनकी मासूम खिलखिलाहट इस बात की गवाही दे रही थी कि सचमुच बचपन हर गम से बेगाना होता है। बचपन को क्या मालूम कि आज सवेरे सवेरे उनके घर में इतने सारे लोग चुपचाप सर झुकाए क्यों बैठें हैं? बर्फ पर रखी जवान लाश का अर्थ इस बचपन को क्या मालूम! इसका मतलब तो वह जाने जिसने अपना बेटा खोया या वह औरत जिसने अपना पति। शोले फ़िल्म में ऐ के हंगल का एक डायलोग है-सबसे बड़ा बोझ होता है, बाप के कंधे पर बेटे का जनाजा। यही बोझ हमारे परिचित को उठाना पड़ा।जवान बेटे की मौत के गम में जब करतार सिंह बराड़ को बिलखते देखा तो पत्थर दिल की आँखे भी नम हो गई। ऐसे गमजदा माहौल में किसको किस प्रकार, किन शब्दों में सांत्वना दी जाए! बेशक देश में इस से भी अधिक दर्दनाक मौत हर रोज होती है, लेकिन मन उसी के लिए दुखता है जिस से किसी भी प्रकार का परिचय हो। असल में तो दुःख,शोक,गम,खुशी ही परिचय पर है। जिसको जानते हैं उसी के सुख-दुःख हमें अपने लगाते हैं। करतार सिंह बराड़ से आपका परिचय नहीं, मगर यहाँ ये जरुर कहना चाहूँगा कि जिसका भी हाथ इन्होने पकड़ा,उसको ख़ुद नहीं छोड़ा। बेटे का हाथ इनके हाथ से कैसे छूट गया ये सर्वशक्ति मान भगवन के अलावा कौन जान सकता है। क्योंकि होना तो वही है जो वह चाहता है। इन्सान तो केवल प्लान बनता है। कब, क्या, कैसे,कहाँ,किसके साथ क्या कुछ होगा वही जानता है।

Thursday, 2 July 2009

एक से नो तक

समय--१२.३४.५६
तारीख--७.८.९
मतलब , १,२,३,४,५,६,७,८,और ९ एक साथ। ऐसा दुबारा हमारे जीवन में तो होने वाला नहीं। इसलिए उस दिन कुछ ना कुछ तो अलग से होना ही चाहिए। जिस से इस पल की याद हमारे दिलों में रहे। क्या होना चाहिए? आप भी सोचो हम भी सोचतें हैं। जब इतने सब सोचेंगें तो हर हाल में नया विचार आएगा ही।

Monday, 29 June 2009



यह फोटो रिटायर्ड आई टी ओ सी एल वधवा ने भेजा। उनका आभार।

Thursday, 25 June 2009

आपातकाल का दिन

आज के ही दिन १९७५ में हिंदुस्तान में आपातकाल तत्कालीन सरकार ने लगा दिया था। तब से लेकर आज तक देश की एक पीढी जवान हो गई। इनमे से करोड़ों तो जानते भी नहीं होंगें कि आपातकाल किस चिड़िया का नाम है। आपातकाल को निकट से तो हम भी नहीं जानते,हाँ ये जरुर है कि इसके बारे में पढ़ा और सुना बहुत है। तब इंदिरा गाँधी ने एक नारा भी दिया था, दूर दृष्टी,पक्का इरादा,कड़ा अनुशासन....आदि। आपातकाल के कई साल बाद यह कहा जाने लगा कि हिंदुस्तान तो आपातकाल के लायक ही है। आपातकाल में सरकारी कामकाज का ढर्रा एकदम से बदल गया था। कोई भी ट्रेन एक मिनट भी लेट नहीं हुआ करती। बतातें हैं कि ट्रेन के आने जाने के समय को देख कर लोग अपनी घड़ी मिलाया करते थे। सरकारी कामकाज में समय की पाबन्दी इस कद्र हुई कि क्या कहने। इसमे कोई शक नहीं कि कहीं ना कहीं जयादती भी हुई,मगर ये भी सच है कि तब आम आदमी की सुनवाई तो होती थी। सरकारी मशीनरी को कुछ डर तो था। आज क्या है? आम आदमी की किसी भी प्रकार की कोई सुनवाई नहीं होती। केवल और केवल उसी की पूछ होती है जिसके पास या तो दाम हों, पैर में जूता हो या फ़िर कोई मोटी तगड़ी अप्रोच। पूरे देश में यही सिस्टम अपने आप से लागू हो गया। पता नहीं लोकतंत्र का यह कैसा रूप है? लोकतंत्र का असली मजा तो सरकार में रह कर देश-प्रदेश चलाने वाले राजनीतिक घराने ले रहें हैं। तब हर किसी को कानून का डर होता था। आज कानून से वही डरता है जिसको स्टुपिड कोमन मैन कहा जाता है। इसके अलावा तो हर कोई कानून को अपनी बांदी बना कर रखे हुए है। भाई, ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब जिससे कोई राहत आम जन को ना मिले। आज भी लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि इस से तो अंग्रेजों का राज ही अच्छा था। तब तो हम पराधीन थे।कोई ये ना समझ ले कि हम गुलामी या आपातकाल के पक्षधर हैं। किंतु यह तो सोचना ही पड़ेगा कि बीमार को कौनसी दवा की जरुरत है। कौन सोचेगा? क्या लोकतंत्र इसी प्रकार से विकृत होता रहेगा? कोमन मैन को हमेशा हमेशा के लिए स्टुपिड ही रखा जाएगा ताकि वह कोई सवाल किसी से ना कर सके। सुनते हैं,पढ़तें हैं कि एक राज धर्म होता है जिसके लिए व्यक्तिगत धर्म की बलि दे दी जाती है। यहाँ तो बस एक ही धर्म है और वह है साम, दाम,दंड,भेद से सत्ता अपने परिवार में रखना। क्या ऐसा तो नहीं कि सालों साल बाद देश में आजादी के लिए एक और आन्दोलन हो।

Tuesday, 23 June 2009

नो कमेन्ट प्लीज़

श्रीगंगानगर में नर्सिंग कॉलेज की एक छात्रा पर किसी ने तेजाब दल दिया। तेजाब उसके चेहरे और शरीर के अन्य हिस्से पर गिराया गया। लड़की की एक आँख तो ख़राब हो गई। बताया गया है कि तेजाब उस समय डाला गया जब लड़की अपने घर सो रही थी।

Sunday, 21 June 2009

समय का फेर या भाग्य का खेल

किसी पेड़ की,किसी भी साख से
पत्ता भी गिरता,तो,हो जाती थी ख़बर,
अब तो तूफान भी, पास से
निकल जाए, तब भी, पड़ती नहीं नजर।
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ना जाने किस किस की ख़बर
रहती थी, जेब में हमारे,
अब तो, ख़ुद के बारे में भी
ख़ुद को, कुछ पता नहीं होता।
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ये समय का फेर है कोई
या फ़िर, भाग्य का कोई खेल,
जो मिलते थे बाहें पसार कर
होता नहीं कभी, अब, उनसे कोई मेल।

Friday, 19 June 2009

पी,पी,पी और एक और पी


पब्लिक,पुलिस,प्रेस और पॉलिटिकल लोग। मतलब चार पी। आम तौर पर ये कहा,सुना जाता है कि इनमे आपस में खूब ताल मेल होता है। एक दूसरे के पूरक और एक दूसरे की जरुरत हैं,सभी पी। हाँ, ये जरुर हो सकता है कि कहीं कोई दो पी में अधिक घुटती हैं,कहीं किसी दो पी में। ऐसा तीन पी के साथ भी हो सकता है,चार पी के साथ भी। श्रीगंगानगर के बारे में थोड़ा बहुत हम समझने लगे हैं। सम्भव है हमारी सोच किसी और से ना मिलती हो। हमें तो ये लगता है कि हमारे यहाँ पुलिस और प्रेस का मेल मिलाप बहुत बहुत अधिक है। यूँ कहें कि इनमे चोली दामन का साथ है,दोनों में जानदार,शानदार,दमदार समन्वय,सामंजस्य है। यह सब लगातार देखने को भी मिलता रहता है।श्रीगंगानगर की पुलिस कहीं भी कोई कार्यवाही करे,केवल जाँच के लिए जाए,छापा मारी करे, प्रेस भी उनके साथ होती है। कई बार तो ऐसा होता है कि पुलिस कम और प्रेस से जुड़े आदमी अधिक होते हैं। कभी पुलिस आगे तो कभी प्रेस। कई बार तो ये भ्रम होता है कि पुलिस के कारण प्रेस वाले आयें हैं या प्रेस के कारण पुलिस। अब जहाँ भी ये दोनों जायेंगें,वहां के लोगों में घबराहट होना तो लाजिमी है। इन दो पी में ऐसा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है। प्रेस का तो काम है,एक्सक्लूसिव से एक्सक्लूसिव फोटो और ख़बर लाना,उसको अख़बार में छापना। काम तो पुलिस भी अपना ही करती है,लेकिन प्रेस के कारण उसको इतनी अधिक मदद मिलती है कि क्या कहने। एक तो अख़बारों में फोटो छप जाती हैं। दूसरा, प्रेस पर अहसान रहता है कि उनको मौके की तस्वीर पुलिस के कारण मिल गई। तीसरा,पुलिस अपराधी पर दवाब जबरदस्त तरीके से बना पाती है। सबसे खास ये कि पुलिस किसी नेता या अफसर का फोन सिफारिश के लिए आए तो उसे ये कह कर टरका सकती है-सर,आप जैसा कहो कर लेंगें मगर यह सब अख़बारों में आ गया। सर, अख़बारों में फोटो भी छप गई,पता नहीं प्रेस को कैसे पता लगा गया कार्यवाही का। सर....सर....सर..... । इसके अलावा अन्दर की बात भी होती है। जैसे,पुलिस जिनके यहाँ गई उनको ये कह सकती है कि भाई, प्रेस साथ में हैं हम कुछ नहीं कर सकते। अब कार्यवाही के समय कौनसी फोटो लेनी है, कौनसी नहीं। कौनसी व्यक्तिगत है,कौनसी नहीं, ये या तो पुलिस बताये[ कई बार संबंधों के आधार पर पुलिस ऐसा बताती भी है। तब प्रेस को फोटो की इजाजत नहीं होती] या फ़िर प्रेस ख़ुद अपने विवेक से निर्णय ले। पब्लिक को तो पता ही नहीं होता कि प्रेस कौनसी फोटो छाप सकता है कौनसी नहीं। इन सब बातों को छोड़कर इसी मुद्दे पर आतें हैं कि श्रीगंगानगर में प्रेस-पुलिस का आपसी प्रेम [ एक और पी] बना रहे। अन्य स्थानों के पी भी इनसे कुछ सीखें। इन पी को हमारा सलाम।

Thursday, 18 June 2009

आपातकालीन स्थिति के लिए

Dear All,We all carry our mobile phones with names & numbers stored in its memory। But nobody, other than ourselves, knows which of these numbers belong to our closest family or friends. If we were to be involved in an accident or were taken ill, the people attending on us would have our mobile phone but wouldn't know who to call. Yes, there are hundreds of numbers stored ; but which one is the contact person in case of an emergency? Hence this "ICE" (In Case of Emergency) Campaign. The concept of "ICE" is catching on quickly. It is a method of contact during emergency situations. As cell phones are carried by the majority of the population, all you need to do is store the number of a contact person or persons who should be contacted during emergency under the name "ICE" ( In Case Of Emergency).
यह पोस्ट मेरे किसी शुभचिंतक ने मेल की है। इसे यहाँ इसलिए पोस्ट किया गया है ताकि यह संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सके।
The idea was thought up by a paramedic who found that when he went to the scenes of accidents, there were always mobile phones with patients, but they didn't know which number to call. He therefore thought that it would be a good idea if there was a nationally recognized name for this purpose. In an emergency situation, Emergency Service personnel and hospital Staff would be able to quickly contact the right person by simply dialing the number you have stored as "ICE." For more than one contact name, simply enter ICE 1, ICE 2 and ICE 3 etc. A great idea that will make a difference!Let's spread the concept of ICE by storing an ICE number in our mobile phones today!!! ! Please forward this. It won't take too many "forwards" before everybody will know about this. It really could save your life, or put a loved one's mind at rest .

Wednesday, 17 June 2009

क्रिकेट की टेंशन तो समाप्त हुई

सुबह सुबह एक क्रिकेट प्रेमी मित्र मिल गए। मिलते ही बोले,चलो एक टेंशन तो मिटी। सोचा, रात को मिले तो ठीक थे। अचानक ऐसा रात को क्या हुआ और जो ठीक भी हो गया। मैंने पूछा,कौनसी टेंशन? वह बोला, भारत की क्रिकेट टीम टी-२० से बाहर हो गई। करोडों देशवासियों को चिंता रहती,क्या होगा? जीतेंगें, हारेंगें! अब ये चिंता तो समाप्त हुई। इतना कह कर वे चले गए। लेकिन मैं सोच रहा था कि उनकी एक ही टेंशन समाप्त हुई है। इसका मतलब उनको और भी टेंशन है। सचमुच और बहुत सी टेंशन हैं घर घर में। जैसे बालिका वधु में सुगना का क्या होगा? माँ सा का व्यवहार बदलेगा या नहीं? महलों वाली रानी कुंदन के घर चली गई! हाय अब क्या होगा?रानी उसको सुधार कर कब घर आयेगी?वैसे एक सड़क दुर्घटना के कारण ऐसा होता है यह पहली बार देखा।घर घर में इस बात की टेंशन भी है कि क्या ज्योति की जिंदगी में खुशियाँ फ़िर से आएँगी?क्या होगा जब अक्षरा और ऋतुराज आमने सामने होंगें? हमको ये टेंशन नहीं कि बुजुर्ग मम्मी-पापा को डॉक्टर के पास लेकर जाना है। उनके लिए आँख की दावा या चश्मा लाना है।हमारे मुहं में रोटी का निवाला होता है,आँख टीवी पर,एक हाथ रिमोट पर,दिमाग बाजार के किसी काम या दफ्तर में और कान वो सुन रहे होते हैं जो बीबी,मां या बच्चे कुछ बोल रहे हैं। फ़िर हम कहते हैं कि आजकल भोजन में स्वाद नहीं आता। स्वाद , स्वाद तो जब आएगा जब तुम भोजन करोगे। रिमोट हाथ में लेकर बार बार चैनल बदल रहें हैं। पता नहीं आपके अन्दर का आदमी कौनसा चैनल देखना चाहता है। जीरो से लेकर सौ तक देखा,फ़िर जीरो पर आ गए। उसके बाद वही एक,दो,तीन लगातार सौ तक। इसका कारण है कि हमारा दिमाग टीवी में नहीं कहीं ओर है।कल एक जैन मुनि श्री प्रशांत कुमार से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने एक पुस्तक"सफलता का सूत्र" दी। इस किताब में एक जगह लिखा है-शिक्षित सा दिखने वाला एक युवक दौड़ता हुआ आया और टैक्सी ड्राईवर से बोला-"चलो,जरा जल्दी मुझे ले चलो। " हाथ का बैग उसने टैक्सी में रखा और बैठ गया। ड्राईवर ने टैक्सी स्टार्ट कर पूछा ,साहब कहाँ जाना है?युवक बोला,सवाल कहाँ -वहां का नहीं है,सवाल जल्दी पहुँचने का है। बस हम जल्दी पहुंचना चाहते हैं, लेकिन लक्ष्य तय नहीं किया।

Tuesday, 16 June 2009

श्रीगंगानगर के नए कलेक्टर




श्रीगंगानगर को नया जिला कलेक्टर मिल गया। लंबे इंतजार के बाद आशुतोष एटी पेडणेकर श्रीगंगानगर में जिला कलेक्टर नियुक्त किए गए। उन्होंने कार्य संभालने के कुछ घंटे बाद ही प्रेस कांफ्रेंस की। लंबे समय के बाद ये पहले कलेक्टर हैं जिन्होंने मीडिया को बुलाया। इस से पहले कितने ही कलेक्टर आए चले गए,कभी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। ऐसा नहीं कि मीडिया से नहीं मिलोगे तो कलक्टरी नहीं होगी। वह तो होगी ही। लेकिन मीडिया प्रशासन और पब्लिक के बीच की कड़ी तो है ही। मीडिया में भी चाहे कितनी ही कमियां आ गईं हों, इसके बावजूद पब्लिक अब भी मीडिया पर विश्वास तो करती ही है। ऐसी जगह, जहाँ एक दर्जन दैनिक अखबार निकलते हों, वहां का मीडिया कुछ तो अवश्य होता होगा।
नए कलेक्टर ने अपनी बात कही। अपनी और सरकार की प्राथमिकताएं बताई। साथ में कहा कि रिजल्ट तुंरत देखने को मिलेंगें। श्री आशुतोष ने आने से पहले गूगल सर्च में श्रीगंगानगर के बारे में जाना,नगर का नक्शा देखा। नगर की तारीफ की। किंतु उनको ये नहीं मालूम कि श्रीगंगानगर के लोगों का स्वभावबिल्कुल अलग किस्म का है। यहाँ तो, जो जनता का हो गया वह सब कुछ पा जाता है। हेकड़ी में रहकर, केवल दफ्तर में बैठ कर कलक्टरी करने वाला यहाँ अधिक पापुलर नहीं होता। हाँ, यह तो सम्भव है कि बड़े अख़बार के संपादक उनके आजू बाजू बैठकर उनकी शान में कशीदे पढ़ें, उनको शब्दों के अलंकरण भेंट करें,उनकी बड़ी बड़ी फोटो छपकर अख़बार दिखाएँ। किंतु असली कलेक्टरी तो वह होगी जिसमे जनता को कुछ राहत मिलेगी,जनता बिना किसी टेंशन के रहेगी,उनको लगेगा कि यह कलेक्टर तो हमारे लिए ही है। फिलहाल गुड लक टू न्यू कलेक्टर। इस उम्मीद के साथ कि कुछ होगा। जैसे मीडिया को बुलाकर नई शुरुआत की।

Monday, 15 June 2009

बिरादरी ने दुत्कारा अपने ही पॉप को

श्रीगंगानगर के विधायक हैं,राधेश्याम गंगानगर। इन्होने १९७७ से लेकर २००८ के विधानसभा चुनाव तक अपनी अरोड़ा बिरादरी के दम पर राजनीति की। चार बार विधायक चुने गए। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। इनको इलाके में अरोड़ा बिरादरी के पॉप कहा जाता था। सच भी था, श्रीगंगानगर में कल से पहले अरोड़वंश का अध्यक्ष राधेश्याम के आशीर्वाद से ही बनता था। मगर कल उनको उनकी अरोड़ा बिरादरी ने ही दुत्कार दिया। अरोड़वंश समाज ने विधायक राधेश्याम गंगानगर के लड़के वीरेंद्र राजपाल को हराकर एक युवा अजय नागपाल को अपना प्रधान चुन लिया। राधेश्याम गंगानगर ने अपने राजनीतिक जीवन में छोटी बड़ी कई हार जीत का सामना किया। किंतु अपनी बिरादरी में इस प्रकार की हार से वे पहली बार दो चार हुए हैं। उनकी अब तक की राजनीति केवल और केवल अरोड़ा बिरादरी के दम पर ही रही। क्योंकि श्रीगंगानगर में इनकी बिरादरी के वोटों की संख्या सबसे अधिक है। अपनी बिरादरी के वोटों की संख्या के चलते उन्होंने गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट ना मिलने पर बीजेपी का दामन थामा और जीत हासिल की। लेकिन छः माह में बिरादरी ने उनसे किनारा कर लिया। जिस अजय नागपाल ने प्रधानगी का चुनाव जीता है,वह भी बीजेपी का है। लेकिन उसके साथ कांग्रेस के लीडर सबसे अधिक लगे हुए थे। राधेश्याम विरोधी तो उसके साथ थे ही।राधेश्याम गंगानगर अपने घर हुई इस हार को किस प्रकार लेंगें,फिलहाल कुछ कहना मुश्किल है। सम्भव है वे बीजेपी को अलविदा कहकर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में लौट जायें। राधेश्याम कांग्रेस को अपनी मां कहा करते थे। हो सकता है किसी दिन वे प्रेस कांफ्रेंस में यह कहते नजर आयें, सपने में मेरी कांग्रेस मां आई, कहने लगी,बेटा अब लौट आ मेरे पास। इसलिए मैं कांग्रेस में आ गया,मतलब मां के पास लौट आया। वे ये भी कह सकते हैं, माता कुमाता नहीं होती,बेटा कपूत हो सकता है। देखो, आने वाले दिनों में श्रीगंगानगर की राजनीति में नया क्या होता है। क्योंकि कोई ये सोच भी नहीं सकता था की राधेश्याम गंगानगर को अपनी बिरादरी में ही मात खानी पड़ सकती है। बिरादरी के दम पर जिसने हमेशा राजनीति की हो,उसको बिरादरी दुत्कार दे तो कुछ ना कुछ सोचना तो पड़ता ही है। जब राधेश्याम गंगानगर कुछ सोचेंगें तो तब कुछ न कुछ तो नया होगा ही। आख़िर उन्हें यहाँ की राजनीति का राज कपूर ऐसे ही तो नहीं कहा जाता। राज कपूर फिल्मो के शो मेन थे तो राधेश्याम यहाँ की राजनीति के।

Saturday, 13 June 2009

ऐसा क्यों होता है



आप नहीं होते तो
हम,खूब अंगडाई
लेते हैं,इठलाते हैं,
आपके आते ही
छुई-मुई की भांति
अपने आप में
सिमट जाते हैं।
ये क्या है
ऐसा क्यों होता है
हम नहीं जानते,
हाँ,इतना तो है
आप के सिवा
हम किसी को
अपना नहीं मानते।

Friday, 12 June 2009

ज़िन्दगी नहीं,मौत चाहिए

विडियो में जो बिस्तर पर दिख रहा है, वह है, सुशील कुमार। यह आजकल यहाँ, श्रीगंगानगर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज में भर्ती है। गर्दन से नीचे का उसका शरीर काम नही करता। उसकी यह हालत कई साल पहले हुई। उसकी गर्दन में कोई तकलीफ थी। उसने देश के जाने माने हॉस्पिटल, आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस,नई दिल्ली, में अपना इलाज करवाया। लगातार दो दिन दो ओपरेशन किए गए। यह युवक इसी प्रकार बिस्तर पर पड़ा भगवान और डॉक्टर से मौत मांग रहा है। जिस मेडिकल कॉलेज में यह भर्ती है,वहां इससे कोई पैसा नहीं लिया जा रहा। कॉलेज के एमडी घनश्याम शर्राफ ने बताया कि मैनेजमेंट इसके इलाज और भोजन का खर्च तो वहां कर ही रही है,इसके साथ साथ इसके बच्चे को भी संस्थान में फ्री शिक्षा दी जायेगी। समाजसेवा भावी कई नागरिक लाचार सुशील की मदद को आगे आ रहें हैं। आज श्रीराम तलवार,लालचंद,प्रेम तंवर आदि ने हॉस्पिटल जाकर सुशील को आर्थिक सहायता दी। उन्होंने और भी सहायता करने का वादा किया। सुशील का परिवार आर्थिक रूप से बिल्कुल टूट चुका है। आज परिवार पैसे पैसे को मोहताज हो गया। उसको आर्थिक मदद की जरुरत है।
नारदमुनि ने सुशील कुमार की तमाम रिपोर्ट्स एक बड़े डॉक्टर से कंसल्ट की। डॉक्टर ने बताया कि सुशील को जो तकलीफ है,वह गंभीर है। ऐसे में रोगी के बचने के चांस एक-दो प्रतिशत ही होते हैं। एम्स की बजाय कहीं ओर इलाज करवाता तो लाखों रुपये लग जाते। उनका कहना था कि आदमी को फांसी लगाने के बाद जिस हड्डी के टूटने से मौत होती है,वही हड्डी सुशील की टूटी हुई थी। एम्स की रिपोर्ट्स के अनुसार वहां इसी बीमारी का ओपरेशन किया गया। एम्स की रिपोर्ट्स में इस बात का उल्लेख है कि रोगी के हाथ-पाँव पहले ही ठीक से काम नहीं कर रहे थे।

Wednesday, 10 June 2009

ये कैसी विडम्बना है

एक घटना,जिसका मेरे,हमारे परिवार,हमारे खानदान से किसी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके बावजूद इस घटना ने मुझे विचलित कर दिया। बात को थोड़ा पीछे ले जाना होगा। एक मां-बाप ने एक घर में अपने बेटे -बेटियों को पाला, उनके विवाह कर उनको समाज में गृहस्थी चलाने के लिए स्वतन्त्र किया। मां-बाप एक बड़े मकान में रहते थे। ऊपर वाली मंजिल में उनका बेटा अपने परिवार के साथ। बाप रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी,जिसको अच्छी पेंशन मिलती है। घर में बाप-बेटे,सास-बहु में थोडी बहुत खटपट होती होगी, जैसी लगभग हर घर में होती रहती है। मकान बाप का। यह सब कुछ बाप ने अपनी मेहनत से बनाया। बेटों का इसमे कोई योगदान नहीं। एक दिन देखा कि उनके घर के आगे एक वाहन में घर का सामान लदान किया जा रहा था। सोचा, बेटा अपने परिवार को लेकर जा रहा होगा। लेकिन बाद में मालूम हुआ कि बेटा नहीं बाप अपना सामान लेकर कहीं ओर चला गया। छोड़ गया वह घर जो उसने सालों की मेहनत से बनाया था। इसी घर में उसने अपने बच्चों को खेलते,प्यार करते लड़ते देखा था। त्यागना पड़ा उस घर को, जिसके ईंट गारे में, उसकी ना जाने कितनी मधुर स्मृतियाँ रची-बसी थीं। वही घर उनके लिए अब पराया हो गया था।बाप होने का यह मतलब है कि वह सब कुछ खोता ही चला जाए! एक पिता होने कि इतनी बड़ी सजा कि उसको वह दर छोड़ के जाना पड़े जहाँ उसने अपनी पत्नी के साथ अपना परिवार बनाया,घर को उम्मीदों,सपनों से सजाया संवारा। फ़िर बाप भी ऐसा जो किसी बच्चे पर बोझ नहीं। उसकी पेंशन है। वैसे भी वह अपनी पत्नी के साथ अलग ही तो रहता था। क्या विडम्बना है कि आदमी को अपने ही घर से यूँ रुसवा होना पड़ता है। क्या मां-बाप इसलिए पुत्र की कामना करते हैं?केवल यह उनके घर का मामला है,यह सोचकर हम चुप नहीं रह सकते। क्योंकि यह हमारे समाज का मामला भी तो है। ठीक है हम कुछ कर नहीं सकते ,परन्तु चिंतन मनन तो कर सकते हैं,ताकि ऐसा हमारे घर में ना हो।सम्भव है कसूर मां-बाप का भी हो। हो सकता है उन्होंने संतान को सब कुछ दिया मगर संस्कार देना भूल गए हों।

Monday, 8 June 2009

कलेक्टर नहीं है


ख़बर---श्रीगंगानगर में सात दिनों से जिला कलेक्टर नहीं !
टिप्पणी--- जिला कलेक्टर था तो क्या खास बात थी !

श्रीगंगानगर के जिला कलेक्टर राजीव सिंह ठाकुर एक केन्द्रीय मंत्री के निजी सचिव बन गए। राजस्थान सरकार ने अभी तक नया कलेक्टर नही लगाया है। इस बात को सात दिन हो गए।

Sunday, 7 June 2009

मां तो मां है

कोई जवाब है क्या
मां तो मां है !
एक बार बरसात में भीगा हुआ मैं घर पहुँचा।
भाई बोला, छाता नहीं ले जा सकता था।
बहिन ने कहा, मुर्ख बरसात के रुकने तक इन्तजार कर लेता।
पापा चिल्लाये, बीमार पड़ गया तो भागना डॉक्टर के पास। सुनता ही नहीं।
मां अपने आँचल से मेरे बाल सुखाते हुए कहने लगी, बेवकूफ बरसात, मेरे बेटे के घर आने तक रुक नहीं सकती थी।
क्यों है कोई जवाब।
यह सब मेरे एक शुभचिंतक ने मुझे मेल किया है।
उनका दिल से धन्यवाद।

Friday, 5 June 2009

जस्ट फॉर चेंज, रस्ते का पत्थर


अगर तुम समझती हो
मैं रास्ते का पत्थर हूँ,
तो मार दो ठोकर मुझे
पत्थर की ही तरह,
ध्यान रखना तुम्हारे पैर में
कोई चोट ना लग जाए,
कहीं तुम्हारे दिल से
कोई आह ना निकल जाए,
निकली अगर आह तो
इस पत्थर को दुःख होगा,
हट गया रास्ते से
तो दोनों को ही सुख होगा,
फ़िर मैं सड़क के
किनारे पर पड़ा रहूँगा,
इस राह जाने वाले को
कुछ भी नहीं कहूँगा,
बस, मेरा इतना काम
तुम आते जाते जरुर करना,
उसके बाद मेरा फर्ज होगा
दुआ से तुम्हारा दामन भरना।

Thursday, 4 June 2009

राजशाही आने को है हिंदुस्तान में

हिंदुस्तान की संसद में ५४३ सदस्य हैं। इस बार इनमें से कितने ऐसे हैं जो अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहें हैं। इंदिरा गाँधी का तो जैसे सारा कुनबा ही आ गया। देश वासियों को इसकी जानकारी तो होनी ही चाहिए कि संसद में उन सांसदों की संख्या क्या है जिनका कोई रिश्तेदार ना तो पहले कभी सांसद रहा न विधायक। जिस प्रकार की खबरें पढ़ने और देखने में आ रही है उस से तो ऐसा लगता है कि इस बार ऐसे सांसदों की गिनती ज्यादा है जो परिवार वाद के कारण यहाँ तक आयें हैं। यही हाल रहा तो एक दिन संसद में केवल वही बैठे नजर आयेंगें जिनके परिजनों ने कभी यहाँ की शोभा बढाई होगी। इसका मतलब, राजशाही बदले हुए रूप में दिखने लगेगी। तब यहाँ लोकतंत्र की आड़ में राजशाही व्यवस्था काम करेगी। तमिलनाडू, उड़ीसा,पंजाब में तो इसके रंग दिखने लगे हैं।
बचपन में [मेरे बचपन में] मेरे दादा नगरपालिका के मेंबर रहे थे। अगर वे आगे बढ़ते और मैं या परिवार का कोई सदस्य उनका हाथ पकड़ कर आगे बढ़ता तो शायद हम भी इसका हिस्सा बन जाते। ऐसा हो ना सका। ऐसा होता तो यह सब लिखने के कहाँ से आता। तब तो कोई लिखता भी तो बुरा लगता।
खैर! प्रश्न वही कि कितने सांसद परिवार वाद को आगे बढ़ा रहें हैं? अगर किसी को पता हो तो जरुर बताये। जिससे हमारी जानकारी में बढोतरी हो सके।

Tuesday, 2 June 2009

बस , सौ सौ रूपये

बात पाँच चार साल पुरानी होगी। नगर के बहुत बड़े सेठ के यहाँ से शादी का कार्ड आया। कार्ड आया तो जाना ही था। चला गया। लिफाफा ना देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। दूसरे दिन बड़े भाई साहब ने घर पर कार्ड देखा और बोले, शादी में गया था? क्या दिया? मैंने बताया, इकतीस रूपये दिए। उन्होंने कहा, इतने बड़े सेठ के केवल इकतीस! मैंने उनसे कहा, भाई साहब मैंने उनकी हैसियत के हिसाब से नही अपनी हैसियत के अनुसार दिए हैं। उनकी हैसियत से तो जो भी देता कम ही पड़ते। यह सच्ची बात आज नॉएडा में हुई उस प्रेस कांफ्रेंस की भूमिका में जिसमे प्रेस नोट के लिफाफे में सौ सौ रूपये दिए गए पत्रकारों को। मेरे हिसाब से तो आयोजकों ने अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत से सौ सौ रूपये दिए। अगर उन्होंने पत्रकारों की हैसियत के अनुसार दिए तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। चिंता इसलिए कि जहाँ मीडिया की तोपें रहतीं हैं वहां प्रेस कांफ्रेंस में केवल सौ सौ रूपये! बड़े ही अफ़सोस की बात है। इतनी मंदी तो नहीं है कि केवल सौ सौ रूपये में काम चलाया जाए। एक टीवी चैनल पर मैंने ख़ुद देखा। लिफाफे में सौ का नोट था। अगर नॉएडा जैसे महानगर में प्रेस कांफ्रेंस का यह स्तर है तो हमारे शहर में क्या होगा? हे भगवन ! किसी लीडर ने यह ख़बर ना देखी हो,वरना यहाँ तो फ़िर पाँच-पाँच,दस -दस ही लिफाफे में आयेंगें। ऐसे में तो जीना मुश्किल हो जाएगा।चैनल वाले न्यूज़ एंकर ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि पत्रकार क्यों भड़के? केवल और केवल सौ रूपये देख कर या रूपये देख कर। वैसे जब चुनाव में खुल्लम खुल्ला रूपये लेकर खबरें छापी और छपवाई गई तो उसके बाद यही तो होना था। सब नेता जानते हैं कि ख़बर तो मालिक ने छापनी है। प्रेस कांफ्रेंस में आने वाले तो बस कर्मचारी हैं। इसलिए जो उनके दे दिया वह उनपर अलग से मेहरबानी ही तो है। इसमे इतना लफड़ा करने की क्या बात है। जिसने लेना है ले जिसने नही लेना ना ले।

राम राज्य है भाई

हाय राम ! ये लड़का। ये कोई कहानी नहीं, हकीकत है। एक लड़की के मुहं से ये शब्द तब निकले जब उसने अपनी बाइक पर एक पर्ची देखी। लड़की ने अपनी सहेली को बताया की लड़का आज फ़िर कुछ लिख कर बाइक पर रख गया। यह समस्या एक लड़की के साथ नहीं है। कुछ बनने की चाह में लड़कियां केवल ओह !,आह ! करके रह जाती हैं। क्या करियर अब हमारे सम्मान ,प्रतिष्ठा,चरित्र,स्वाभिमान से भी ऊँचा बहुत ऊँचा नहीं हो गया है?आत्म सम्मान ,मान अपमान तो अब दकियानूसी और पुराने ज़माने की बात हो गई। जिनका करियर के सामने अब कोई महत्व नहीं। किसी को बताएं तो अपमान का डर और ना बताएं तो हर रोज की प्रताड़ना।कुल्हे से नीचे गिरने को तैयार घीसी हुई जींस,पैरों में हवाई चप्पल या पट्टी वाले स्लीपर। बाल बिखरे हुए। ये वो लडकें हैं जो पैदल या बाइक पर आपको ऐसे स्थानों पर आते जाते दिखाई देंगे जहाँ लड़कियों का अधिक आना जाना होता है। ये लड़के लड़कियों का पीछा करतें हैं,उनको पीछे घूम कर देखते हैं,उन पर कमेंट्स करतें हैं,और किस्म किस्म की आवाज अपनी बाइक ने निकालते हैं। लड़कियों के निकट जाकर मुस्कुरातें हैं। लड़कियों के पास इनकी यह बदतमीजी सहने के अलावा कोई चारा नहीं होता। यह रोज होता है। अभिभावक कहाँ तक उनकी रक्षा करें? सम्भव है कुछ लड़के लड़कियों का आपस में दोस्ती का रिश्ता हो, लेकिन लड़कों की आवारा आंखों का सामना सभी लड़कियों को करना पड़ता है।कुछ बनने की चाह में लड़कियां किसी ने किसी कोचिंग सेंटर में कुछ पढ़ने जातीं हैं। कोई भी कोचिंग सेंटर ऐसा नहीं होगा जो लड़के लड़कियों को अलग अलग कोचिंग देता हो। लड़कियों को अलग कोचिंग हो तो लड़के नहीं आते। यह कोचिंग सेंटर चलाने वालों की मज़बूरी है। उनके तो बस धन चाहिए। पुलिस ने काफी हाय तौबा के बाद एक अभियान चलाकर कुछ आवारा लड़कों को पकड़ा। उनके माता पिता को थाने बुलाया और उनकी आवारा सम्पति उनको सौंप दी गई। पुलिस चाहती तो ऐसे लड़कों की फोटो अख़बारों में छपवा कर बता सकती थी,सावधान ये हैं आवारा लड़के! मगर पुलिस तो शरीफ है। वह ऐसा क्यों करने लगी। पुलिस अफसरों के परिवारों की लड़कियां तो गाड़ी में आती जाती हैं इसलिए उनकी बला से किसी और की लड़की के साथ कुछ भी हो उनको क्या! लड़कियों के परिजन मान,अपमान के डर,पुलिस के सौ प्रकार के सवाल जवाब,उनके झंझट के भय से कोई शिकायत नहीं करते। जब कोई शिकायत ही नहीं है तो शहर में राम राज्य है। नारायण नारायण।

Sunday, 31 May 2009

श्रीगंगानगर में जंगल राज


यह श्रीगंगानगर के एक आम आदमी का दर्द है जो यहाँ के "प्रशांत ज्योति" नामक अख़बार में एक पत्र के रूप छापा गया है।बॉर्डर से लगे इस जिला मुख्यालय पर एक समान जंगल राज है। आप की सुरक्षा आप को ही करनी है। अधिकारियों को बता भी दें तो कुछ होने की उम्मीद नहीं होती। यूँ तो पुलिस की गश्त भी होती है,हर गली मोहल्ले के लिए बीट अधिकारी होता है। लेकिन इसके बावजूद आवारा लोग सांड की तरह से दनदनाते घूमते हैं। कहने को तो यहाँ लोकतंत्र के वे सभी प्रकार के जनप्रतिनिधि भी हैं जो अन्य नगरों में पाए जाते हैं। यहाँ तो नेताओं और अधकारियों का ऐसा गठजोड़ होता है कि उसमे चुप्प रहा कर मीडिया भी अपना रोल शानदार ढंग से निभाता है। वह लल्लू पंजू, छोटे कर्मचारियों के खिलाफ तो लिख कर वाहवाही लूट लेते हैं। जिला कलेक्टर,एसपी के कामकाज पर कोई टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। उनकी नजरों में तो सब को भला बने रहना है। इसी कारण से श्रीगंगानगर के हालत दिन पर दिन बिगड़ रहें हैं ।

Saturday, 30 May 2009

श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र

कौरवों-पांडवों का महाभारत समाप्त हो चुका था। विजयी पांडवों में अब यह बात घर कर गई कि वे सबसे अधिक बलवान हैं। उन्होंने ना जाने कितने ही रथी,महारथी,वीर,महावीर,बड़े बड़े लड़ाकों को मृत्यु की शैया पर सुला दिया। मगर फैसला कौन करे कि जो हैं उनमे से श्रेष्ठ कौन है। सब लोग श्रीकृष्ण के पास गए। उन्होंने कहा, मैं भी मैदान में था, इसलिए किसी और से पूछना पड़ेगा। वे बर्बरीक के पास गए। जिन्होंने पेड़ से समस्त महाभारत देखा था। श्रीकृष्ण बोले, बर्बरीक बताओ क्या हुआ, किसने किस को मारा। बर्बरीक कहने लगा,मैंने तो पूरे महाभारत में केवल श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही देखा जो सब को मार रहा था। मुझे तो श्रीकृष्ण के अलावा किसी की माया, शक्ति,वीरता नजर नही आई। बर्बरीक का भाव ये कि जो कुछ महाभारत में हुआ वह श्रीकृष्ण ने ही किया। हाँ नाम अवश्य दूसरों का हुआ।
चलो अब हिंदुस्तान की बात करें। मनमोहन सिंह की सरकार बन गई। मंत्रियों को उनके विभाग दे दिए गए। लेकिन समझदार मीडिया बार बार यह प्रश्न कर रहा है कि राहुल गाँधी मंत्री क्यों नहीं बने? राहुल मंत्री कब बनेगें? अब कोई इनसे पूछने वाला हो कि भाई जो ख़ुद सरकार का मालिक है उसको छोटे मोटे मंत्रालय में बैठाने या बैठने से क्या होगा?जो समुद्र में कहीं भी जाने आने, किसी भी जलचर को कुछ कहने का अधिकार रखता है उसको पूछ रहें हैं कि भाई तुम तालाब में क्यों नहीं जाते? क्या आज के समय प्रधानमंत्री तक राहुल गाँधी को किसी बात के लिए ना कह सकते हैं? और राहुल गाँधी ने जिसके लिए ना कह दिया उसको हाँ में बदल सकते हैं? बेशक राहुल गाँधी किसी को कुछ ना कहें, मगर ये ख़ुद सोनिया गाँधी भी जानती हैं कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं जो राहुल गाँधी को इग्नोर कर सके। आज हर नेता राहुल गाँधी का सानिध्य पाने को आतुर है ताकि उसका रुतबा बढे। एक टीवी चैनल पर पट्टी चल रही थी। " शीश राम ओला राहुल गाँधी से मिले। ओला ने राहुल के कान में कुछ कहा। " श्री ओला राजथान के जाट समुदाय से हैं। उनकी उम्र राहुल गाँधी की उम्र से दोगुनी से भी अधिक है। जब ऐसा हो रहा हो तब राहुल गाँधी को किसी एक महकमे के चक्कर में पड़ने की क्या जरुरत है। हिंदुस्तान की समस्त धरती, आकाश उनका है। वे किसी झोंपडी में सोयें या महल में क्या अन्तर पड़ता है। ये तो जस्ट फॉर चेंज। मनमोहन सिंह सरकार के प्रधान मंत्री हैं, कोई शक नही। सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष और यू पी ऐ की चेयरपर्सन हैं। मगर इस सबसे आगे राहुल गाँधी सीईओ हैं। आज के ज़माने में सीईओ से महत्व पूर्ण कोई नहीं होता। इसलिए राहुल गाँधी मंत्री बनकर पंगा क्यों लेने लगे। भाई सारा जहाँ हमारा है। समझे कि नहीं।

Thursday, 28 May 2009

हीरे और लोहे में अन्तर

एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई। उसके चेहरे आक्रोश साफ दिखाई दे रहा था। उसके साथ आए उसके परिजनों ने उसको बिठाने की कोशिश की,लेकिन बालिका नहीं मानी। संत ने कहा, बोलो बालिका क्या बात है?। बालिका ने कहा,महाराज घर में लड़के को हर प्रकार की आजादी होती है। वह कुछ भी करे,कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो,यहाँ मत जाओ,घर जल्दी आ जाओ। आदि आदि। संत ने उसकी बात सुनी और मुस्कुराने लगे। उसके बाद उन्होंने कहा, बालिका तुमने कभी लोहे की दुकान के बहार पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? ये गार्डर सर्दी,गर्मी,बरसात,रात दिन इसी प्रकार पड़े रहतें हैं। इसके बावजूद इनकी कीमत पर कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों की फितरत कुछ इसी प्रकार की है समाज में। अब तुम चलो एक जोहरी की दुकान में। एक बड़ी तिजोरी,उसमे फ़िर छोटी तिजोरी। उसके अन्दर कोई छोटा सा चोर खाना। उसमे से छोटी सी डिब्बी निकालेगा। डिब्बी में रेशम बिछा होगा। उस पर होगा हीरा। क्योंकि वह जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी। समाज में लड़कियों की अहमियत कुछ इसी प्रकार की है। हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसका और उसके परिवार के पास कुछ नहीं रहता। बस यही अन्तर है लड़ियों और लड़कों में। इस से साफ है कि परिवार लड़कियों की परवाह अधिक करता है।इसी के संदर्भ में है आज की पोस्ट। जिन परिवारों की लड़कियां प्लस टू में होती हैं। उनके सामने कुछ नई परेशानी आने लगी है। होता यूँ है कि कोई भी कॉलेज वाले स्कूल से जाकर लड़कियों के घर के पते,फ़ोन नम्बर ले आता है। स्कुल वाले भी अपने स्वार्थ के चलते अपने स्कूल की लड़कियों के पते उनको सौंप देतें हैं। उसके बाद घरों में अलग अलग कॉलेज से कोई ना कोई आता रहता है। कभी कोई स्टाफ आएगा कभी फ़ोन और कभी पत्र। यह सब होता है शिक्षा व्यवसाय में गला काट प्रतिस्पर्धा ले कारण। स्कूल वालों को कोई अधिकार नहीं है कि वह लड़कियों के पते,उनके घरों के फोन नम्बर इस प्रकार से सार्वजनिक करें। ये तो सरासर अभिभावकों से धोका है। ऐसे तो ये स्कूल लड़कियों की फोटो भी किसी को सौंपने में देर नहीं लगायेंगें। जबकि स्कूल वालों की जिम्मेदारी तो लड़कियों के प्रति अधिक होनी चाहिए। अगर इस प्रकार से स्कूल, छात्राओं की निजी सूचना हर किसी को देते रहे तो अभिवावक कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। आख़िर लड़कियां हीरे की तरह हैं, जिनकी सुरक्षा और देखभाल उसी के अनुरूप होती है। नारदमुनि ग़लत है क्या? अगर नहीं तो फ़िर करो आप भी हस्ताक्षर।

Sunday, 24 May 2009

अधिकारियों का माफिया ग्रुप

राजस्थान में जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा,पुलिस सेवा और राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं उनमे से अधिकांश एक बार अपनी पोस्टिंग श्रीगंगानगर जिले में होने की तमन्ना रखते हैं। इसके लिए मैंने ख़ुद अधिकारियों को नेताओं के यहाँ हाजिरी लगाते,मिमियाते देखा है। कितने ही अधिकारी हमारे जिले में सालों से नियुक्त हैं। सरकार किसी की हो,ये कहीं नहीं जाते। वैसे तो ये सरकार की ओर से जनता की सेवा और उनके काम के लिए होतें हैं। अधिकारी की कोई जाति भी नहीं होती, क्योंकि उनको तो सब के साथ एक सा व्यवहार करना होता है। किंतु श्रीगंगानगर में ये सब कुछ नहीं रहता। यहाँ इन अधिकारियों की जितनी मनमर्जी चलती है उतनी राजस्थान में कहीं नहीं चलती। यहाँ एक दर्जन से अधिक दैनिक अख़बार निकलते हैं,इसके बावजूद अधिकारियों में पर किसी का अंकुश नहीं है। किसी अधिकारी के खिलाफ किसी अख़बार में कुछ नहीं छपता। चाहे अधिकारी कितनी भी दादागिरी करे। गत दिवस एक अधिकारी की कार्यवाही का विरोध हुआ। उस अधिकारी ने अपनी जाति के संगठन को आगे कर दिया। उसके बाद अधिकारियों की बैठक हुई। एकजुटता दिखाई गई। ऐसा हुआ तो ये कर देंगे,वैसा हुआ तो वो कर देंगे, स्टाईल में बातें हुईं। जैसे माफिया होते हैं। इसका मतलब सीधा सा कि जनता को जूते के नीचे रखो, नेता जी कुछ करेंगें नहीं क्योंकि वही तो हमें लेकर आयें हैं। अधिकारियों के अन्याय का विरोध करो तो सब अधिकारी जनता के खिलाफ हो जाते हैं। कितनी हैरानी की बात है कि जिन अधिकारियों को जन हित के लिए सरकार ने लगाया,वही अधिकारी दादागिरी करतें हैं। एक परिवार ने एक अधिकारी द्वारा की गई दादागिरी दिखाने, बताने के लिए एक संपादक को फ़ोन किया। संपादक का कहना था कि आप किसी होटल में बुलाओ। पीड़ित ने कहा, सर हम तो मौका दिखाना चाहते हैं। लेकिन ना जी , संपादक ने यह कह कर मौके पर आने,अपना प्रतिनिधि भेजने से इंकार कर दिया कि आप हमें इस्तेमाल करना चाहते हैं। अब जनता किसके पास जाए। नेता के पास जाने से कुछ होगा नहीं। अधिकारी डंडा लिए बैठें हैं। संपादक जी मौके पर आना नहीं चाहते। ऐसी स्तिथि में तो जनता को ख़ुद ही कुछ करना होगा। जब जनता कुछ करेगी तो फ़िर वही होगा जो अक्तूबर २००४ में घड़साना-रावला में हुआ था। तब करोडों रुपयों की सम्पति जला दी गई थी। पुलिस की गोली से कई किसान मारे गए थे। हम ये नहीं कहते कि यह सही है,मगर जब सभी रास्ते बंद हो जायें ,कोई जायज बात सुनने को तैयार ही ना हो, अफसर केवल फ़ैसला सुनाये, न्याय न करे तो आख़िर क्या होगा? बगावत !काफी लोग कहेंगें कि आपने संपादक और अधिकारियों के नाम क्यों नहीं लिखे? इसका जवाब है , हम भी एक आम आदमी हैं, इसलिए इनसे डरते हैं, डरतें हैं।

Saturday, 23 May 2009

बारूद के ढेर पर श्रीगंगानगर

श्रीगंगानगर! भारत पाक सीमा के निकट महाराजा गंगा सिंह द्वारा बसाया गया एक नगर। साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल श्रीगंगानगर। यहाँ के सदभाव को ना तो गुजरात के दंगे तोड़ सके ना पंजाब का आतंकवाद। जबकि श्रीगंगानगर पंजाब से केवल ५ कीमी दूर है। मगर अब कहानी कुछ कुछ बिगड़ने लगी है। एक चिंगारी शोला बन जाती है। गत दिवस ऐसा ही हुआ। नगर में आगजनी हुई,तोड़फोड़ हुई। कई घंटे लोग टेंशन में रहे। लेकिन इस बात की चिंता अधिकारियों को तो होने क्यों लगी। चिंता नगर वालों को होनी चाहिए, उनको भी नहीं है। अगर बॉर्डर वाले नगर में जिसके तीन तरफ़ सैनिक छावनियां और एक तरफ़ पाकिस्तान हो वहां तो अधिक से अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, सभी पक्षों की ओर से। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह खतरनाक संकेत है इस नगर के लिए। अगर यही हाल रहा तो एक दिन सम्भव है ऐसा आए जब किसी के हाथ में कुछ नहीं होगा। जिसके हाथ में होगा वह बॉर्डर के उस पर बैठा हमारी नासमझी पर ठहाके लगा रहा होगा। बड़ी घटना की शुरुआत इसी प्रकार छोटी छोटी घटनाओं की रिहर्सल से ही तो होती है। अफसरों का क्या है श्रीगंगानगर नहीं तो और कहीं। मगर यहाँ के लोगों का क्या होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं। यह कितना गंभीर मामला है लेकिन टीवी न्यूज़ चैनल्स वालों को इस प्रकार की ख़बर चाहिए ही नहीं। ये तो सब के सब सत्ता के आस पास रहे। । दिल्ली जयपुर के अख़बारों के लिए भी शायद यह कोई ख़बर नहीं थी। कितनी अचरज की बात है कि बॉर्डर पर बसे राजस्थान के इस श्रीगंगानगर के चिंता किसी को नहीं है। नारदमुनि तो केवल अपने प्रभु से प्रार्थना ही कर सकता है। पता नहीं प्रभु को भी समय है कि नहीं।

Monday, 18 May 2009

श्रीगंगानगर में हुआ तिल का ताड़

भारत पाक सीमा पर बसा श्रीगंगानगर भगवान भरोसे है। प्रशासन.लीडर,आमजन तो इसकी ऐसी की तैसी करने में लगा रहता है। रात को एक छोटी सी चिंगारी ने नगर में दंगे का रूप ले लिया।नगर के एक इलाके में अराजकता हो गई। नेशनल राजमार्ग १५ पर कई घंटे दंगाइयों का राज रहा। बिजली के एक ट्रांसफार्मर में से निकली चिंगारी के कारण २ आदमी झुलस गए। बस उसके बाद दंगा भड़क गया। लोगो ने पत्थर बरसाए। पुलिस ने लाठी। दंगाइयों को जो मिला उसको आग के हवाले कर दिया। लोगो के घरों के बहार खड़े वाहनों को तोड़ दिया। जिस इलाके में यह सब हो रहा था वहां बिजली गुल कर दी गई। जिस से दंगा करने वालों को और अधिक शह मिल गई। इलाके की चारों ओर से नाकाबंदी कर दी गई। किसी को इस ओर आने की इजाजत नहीं दी गई। शहर में अफवाहों को दौर शुरू हो गया। किसी ने कहा दो मर गए,किसी ने मरने वालों की संख्या तीन बताई। इस संवेदनशील जिला मुख्यालय पर इस प्रकार का नकारा प्रशासन शायद ही पहले कभी आया हो। जिला कलेक्टर,पुलिस अधीक्षक तो शहर को शायद पूरा जानते भी न होंगें। इनमे इतना गरूर है कि क्या कहने। इनका नगर के लोगों से कोई लाइजनिंग नहीं हैं। शहर के हजारों लोग टेंशन में रहे। लोगों को नुकसान उठाना पड़ा। धन्य हैं वे नेता जो ऐसे महान अफसरों को श्रीगंगानगर में लेकर आयें हैं। जो प्रशासन एक राई को पहाड़ बनने से नहीं रोक सका उस से अधिक उम्मीद करना बेकार है। लेकिन क्या करें उम्मीद पर दुनिया कायम है। आज सुबह तो हालत काबू में बताये गएँ हैं।