Saturday 31 October, 2009

कनस्तर में आटा

---- चुटकी-----

जब से
ख़त्म हुआ है
कनस्तर में आटा,
तब से
पसरा हुआ है
घर में सन्नाटा।

Tuesday 27 October, 2009

मायका है एक सुंदर सपना


नारदमुनि कई दिन से अवकाश पर हैं। अवकाश और बढ़ने वाला है। जब तक नारदमुनि लौट कर आए तब तक आप यह पढो, इसमें विदा होती बहिन के नाम कुछ सीख है। मायके वालों का जिक्र भी है। जिक्र उस स्थिति का जब उनके घर से उनकी लड़की,बहिन,ननद.....कई रिश्तों में बंधी बेटी नए रिश्ते बनाने के लिए अपना घर झोड़ कर अंजान घर में कदम रखती है। उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह आप सबको बहुत ही भली लगेगी। क्योंकि यह तो घर घर की कहानी है।

Saturday 24 October, 2009

बीजेपी की पिटाई

----चुटकी-----

भाजपा की
पिटाई,
कांग्रेस
आई,
चौटाला की
लाज बची,
हुड्डा की
खिंचाई।
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भक्त जनों कई दिन से अपने प्रदेश की राजधानी गया हुआ था। इस लिए यहाँ से गायब रहा। कोशिश रहेगी आपके साथ हर पल जुड़े रहने की। नारायण नारायण ।

Monday 19 October, 2009

स्वाभिमान को भूल

---- चुटकी----

जिंदगी में
चाहता है
अगर तू
हर पल ऐश ,
स्वाभिमान को
भूल जा,
अपमान को
करा कैश।

Saturday 17 October, 2009

तालिबान का क्या कसूर

आज बस दिवाली की शुभकामना ही देना और लेना चाहता था। मगर क्या करूँ,पड़ौस में रहता हूँ इसलिए पड़ौसी पाकिस्तान याद आ गया। पाकिस्तान याद आया तो तालिबान को भी याद करना मज़बूरी थी। जब दोनों साथ हो तो न्यूज़ चैनल्स वाले आधे घंटे की स्पेशल रिपोर्ट दिखाते हैं। हमारी इतनी समझ कहाँ! हम केवल चुटकी बजायेंगे।
---- चुटकी----

बेचारे तालिबान का
इसमे क्या कसूर,
जिसने जो बोया
वह,वही काटेगा
यही तो है
प्रकृति का दस्तूर।

Friday 16 October, 2009

जो बोया वही काटेंगे

बंगाल की टीवी रिपोर्टर शोभा दास के खिलाफ केस, चंडीगढ़ में प्रेस से जुड़े लोगों को कमरे में बंद किया, जैसी खबरें अब आम हो गई हैं। महानगरों में रहने वाले,बड़ी बड़ी तनख्वाह पाने वाले, ऊँचे नाम वाले पत्रकारों को कोई अचरज इन ख़बरों से हो तो हो हमें तो नहीं है। हो भी क्यूँ, जो बोया वही तो काट रहें हैं। वर्तमान में अखबार अखबार नहीं रहा एक प्रोडक्ट हो गया और पाठक एक ग्राहक। हर तीस चालीस किलोमीटर पर अखबार में ख़बर बदल जाती है। ग्राहक में तब्दील हो चुके पाठक को लुभाने के लिए नित नई स्कीम चलाई जाती है। पाठक जो चाहता है वह अख़बार मालिक दे नहीं सकता,क्योंकि वह भी तो व्यापारी हो गया। इसलिए उसको ग्राहक में बदलना पड़ा। ग्राहक को तो स्कीम देकर खुश किया जा सकता है पाठक को नहीं। यही हाल न्यूज़ चैनल का हो चुका है। जो ख़बर है वह ख़बर नहीं है। जो ख़बर नहीं है वह बहुत बड़ी ख़बर है। हर ख़बर में बिजनेस,सनसनी,सेक्स,सेलिब्रिटी,क्रिकेट ,या बड़ा क्राईम होना जरुरी हो गया। इनमे से एक भी नहीं है तो ख़बर नहीं है। पहले फाइव डब्ल्यू,वन एच का फार्मूला ख़बर के लिए लागू होता था। अब यह सब नहीं चलता। जब यह फार्मूला था तब अख़बार प्रोडक्ट नहीं था। वह ज़माने लद गए जब पत्रकारों को सम्मान की नजर से देखा जाता था। आजकल तो इनके साथ जो ना हो जाए वह कम। यह सब इसलिए कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गए हैं। मालिक को वही पत्रकार पसंद आता है जो या तो वह बिजनेस दिलाये या फ़िर उसके लिए सम्बन्ध बना उसके फायदे मालिक के लिए ले। मालिक और अख़बार,न्यूज़ चैनल के टॉप पर बैठे उनके मैनेजर,सलाहाकार उस समय अपना मुहं फेर लेते हैं जब किसी कस्बे,नगर के पत्रकार के साथ प्रशासनिक या ऊँची पहुँच वाला शख्स नाइंसाफी करता है। क्योंकि तब मालिक को पत्रकार को नमस्कार करने में ही अपना फायदा नजर आता है। रिपोर्टर भी कौनसा कम है। एक के साथ मालिक की बेरुखी देख कर भी दूसरा झट से उसकी जगह लेने पहुँच जाता है।उसको इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसके साथी के साथ क्या हुआ,उसे तो बस खाली जगह भरने से मतलब है। अब तो ये देखना है कि जिन जिन न्यूज़ चैनल और अख़बार वालों के रिपोर्टर्स के साथ बुरा सलूक हुआ है,उनके मालिक क्या करते हैं। पत्रकारों से जुड़े संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। अगर मीडिया मालिक केवल मुनाफा ही ध्यान में रखेंगें तो कुछ होनी जानी नहीं। संगठनों में कौनसी एकता है जो किसी की ईंट से ईंट बजा देंगे। उनको भी तो लाला जी के यहाँ नौकरी करनी है। किसी बड़े लाला के बड़े चैनल,अखबार से जुड़े रहने के कारण ही तो पूछ है। वरना तो नारायण नारायण ही है।

Thursday 15 October, 2009

पटाखे ना चलाने का संकल्प

बड़े से बड़े लक्ष्य को पाने के लिए जो सबसे जरुरी है, वह है एक कदम आगे की ओर बढ़ाना। ऐसा ही कुछ किया है यहाँ के तेरापंथ किशोर मंडल ने। मंडल के युवकों ने घर -घर,स्कूल-स्कूल जाकर बड़ों,छोटों को पटाखे ना चलने हेतु प्रेरित किया। विद्यार्थियों को पटाखे ना चलने का संकल्प करवाया। उनसे शपथ पत्र भरवाए। मंडल ने सभी को पटाखों से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। ऐसा नहीं है कि किशोर मंडल के इस अभियान से लोग पटाखे चलाना छोड़ देंगे। सम्भव है संकल्प करने वाले भी दिवाली के दिन अपने संकल्प को भूल जायें। हाँ, एक दो ने भी संकल्प की पूर्ति की तो यह किशोर मंडल के अभियान की सफलता की ओर पहला कदम होगा। मंजिल दूर है, रास्ता काफी कठिन है। मगर ये भी है कि आसान काम तो कमजोर लोग किया करते हैं। फ़िर जिसने चलाना शुरू कर दिया उसे मंजिल जरुर मिलती है। शर्त इतनी है कि वह रुके नहीं।

Wednesday 14 October, 2009

जो मर्जी हो वो कर

---- चुटकी----

तेरी जो मर्जी हो
वो कर ले चीन,
हमारी ओर से
डोंट वरी
हम तो
बजा रहें हैं बीन।

Sunday 11 October, 2009

बच गए महात्मा गाँधी

बच गए अपने महात्मा गाँधी। वरना आज कहीं मुहँ दिखाने लायक नहीं रहते। घूमते रहते इधर उधर नोबल पुरस्कार को अपनी छाती से लगाये हुए। क्योंकि वे भी आज बराक ओबामा के साथ खड़े होने को मजबूर हो गए होते। बच कर कहाँ जाते। उनको आना ही पड़ता। अब कहाँ अपने लंगोटी वाले गाँधी और कहाँ हथियारों के सौदागर,अमन के दुश्मन,कई देशों पर बुरी निगाह रखने वाले,पाक के सरपरस्त अमेरिकी प्रेजिडेंट बराक ओबामा। गाँधी जी के साथ खड़े होकर ओबामा की तो बल्ले बल्ले हो जानी थी।
बराक ओबामा को नोबल पुरस्कार की घोषणा के बाद अब यह बात मीडिया में आ रही है कि हाय हमारे गाँधी जी को यह ईनाम क्यों नहीं मिला। कोई इनसे पूछने वाला हो कि भाई क्या हमारे गाँधी जी को उनके शान्ति के प्रयासों के लिए किसी नोबल ईनाम वाले प्रमाण पत्र की जरुरत है! गाँधी जी तो ख़ुद एक प्रमाण थे शान्ति के, अहिंसा के। उनको किसी ईनाम की आवश्यकता नहीं थी। बल्कि नोबल शान्ति पुरस्कार को जरुरत थी गाँधी जी की चरण वंदना करने की। तब कहीं जाकर यह नोबल और नोबल होता। गाँधी जी तो किसी भी पुरस्कार से बहुत आगे थे। इसलिए यह गम करने का समय नहीं कि गाँधी जी को यह ईनाम नहीं मिला। आज तो खैर मनाने का दिन है कि चलो बच गए। वरना बराक ओबामा और गाँधी जी का नाम एक ही पेज पर आता, शान्ति के पुजारी के रूप में। नारायण नारायण।

Saturday 10 October, 2009

बराक ओबामा को नोबल

अमेरिका के प्रेजिडेंट बराक ओबामा को शान्ति के लिए नोबल पुरस्कार।
हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा हा, हा, हा, हा, हा, हा,हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा
कमाल है! हर जगह हमारी जैसी ही है सरकार।

Wednesday 7 October, 2009

श्रृंगार में उलझी रही

---- चुटकी----

करवा चौथ का
रखा व्रत,
कई सौ रूपये
कर दिए खर्च,
श्रृंगार में
उलझी रही,
घर से भूखा
चला गया मर्द।

Tuesday 6 October, 2009

पुरूष करें पाँच व्रत

ये तो सब जानते हैं कि विवाहित महिलाएं हमेशा सुहागिन [सुहाग की लम्बी उम्र की कामना,मतलब, लंबे समय तक सुहागिन।] रहने के लिए करवा चौथ का व्रत करती हैं। किंतु ये बात बहुत कम विवाहित पुरूष जानते होंगे कि अगर पुरूष ये व्रत करे तो क्या होता है। चलो हम बताते हैं आख़िर नारदमुनि किस काम आएगा। अगर पति -पत्नी में खिच-खिच होती हो तो पति को करवा चौथ का व्रत करना चाहिए। ये सिलसिला लंबे समय तक चल रहा है तो व्रत की संख्या अधिक हो जाती है। वैसे ये कहा सुना जाता है कि पति पाँच व्रत कर ले तो पत्नी से होने वाली खिच -खिच से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है। करने वाले ग्यारह भी करते हैं। नहीं भी विश्वाश तो करके देख लो। इसमे कोई नुक्सान तो है ही नहीं। अगले साल की करवा चौथ पर अपने अनुभव एक दूसरे से बाटेंगे। तब तक इस मुद्दे पर नारायण,नारायण।

Monday 5 October, 2009

सजनी और साजन


सजनी के प्यारे सजना
रहते हैं परदेश,
वहीँ से भेजा सजना ने
सजनी को संदेश,
तुम्हारे लिए मैं क्या भेजूं
दे दो ई मेल आदेश,
साजन की प्यारी
सजनी ने
भेज दिया संदेश,
रुखी-सूखी खा लेँगे
आ जाओ अपने देश।

Friday 2 October, 2009

बुत,विचार और तस्वीर

---- चुटकी-----

कौन ! महात्मा गाँधी
हम नहीं जानते हैं,
हम तो राहुल गाँधी को
अपना आदर्श मानते हैं,
एक यही गाँधी हमें
सत्ता का स्वाद चखाएगा,
महात्मा तो बुत है,
तस्वीर है,विचार है,
यूँ ही
पड़ा,खड़ा सड़ जाएगा।