हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Tuesday, 12 May 2009
राजनीति के फ्रैंडली फाइट समाप्त
राजनीति की फ्रैंडली फाइट अब एक बार तो समाप्त हो गई। अब तो पोलाइट होने का वक्त है। यह समय की मांग भी है। जैसे--आप तो बड़े सुंदर लग रहे हो...... । आप कौनसे कम हो...... । आपकी चाल बहुत जानदार है.... । आप बोलते बहुत अच्छा हैं..... । आपकी साड़ी का जवाब नहीं। अरे साहब आप पर तो कुरता पायजामा बहुत ही फबता है.... । अरे यार तूने मेरे खिलाफ बहुत कुछ कहा.... । तो तूने भी कौनसी कसर रखी..... । अरे भाई तू तो मेरा स्वभाव जानता है....फ़िर जनता को संदेश भी तो देना था..... । लेकिन इन सब से वोटर तेरे खिलाफ हो गया.... । क्या हुआ , तेरे को तो फायदा हो गया.... । तेरा फायदा अपना ही तो है। हाँ यह बात तो है ही। आख़िर घी खिचड़ी में ही तो जाएगा। यही हम चाहते भी हैं। हम सब यही तो देख और पढ़ रहें हैं आजकल। जो कल तक एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे वही इनदिनों एक दूसरे की प्रशंसा करने में लगे हैं।अब तो सब के सब नेता अभिनेता बन कर एक दूसरे को रिझाने की कोशिश में लगे हैं। एक दूसरे के निकट आने के बहाने तलाश किए जा रहें हैं। प्रेमियों की तरह मिलने और बात करने के अवसर खोजे या खुजवाये जा रहें हैं। मीडिया भी इस काम में इनकी मदद करता दिखता है। पहला दूसरे से दूरी बनाये था, दूसरा तीसरे से । चौथा अकेला चलने के गीत गा रहा था। देखो वोटर का खेल खत्म हो गया। शुरू हो चुका है असली खेल। सत्ता को अपनी रखैल बनने का खेल, अपनी दासी,बांदी बनाने का खेल,कुर्सी को अपने या अपने परिवार में रखने का खेल। इन सबका एक ही नारा होगा, वही नारा जो शायद बचपन में सभी ने कहा या सुना होगा " हमें भी खिलाओ,वरना खेल भी मिटाओ"। सम्भव है कुछ लोग एक बार किसी के साथ सत्ता के खेल में शामिल हो जायें और बाद में अपना बल्ला और गेंद लेकर चलते बनें। खेल चल रहा है, देखना है कौन किसको खिलायेगा। हाँ इस खेल में देश की जनता का कोई रोल नहीं है। इस खेल से सबसे अधिक कोई प्रभावित होगा तो वह जनता ही है,किंतु विडम्बना देखो अब इस खेल में उसकी कोई भागीदारी नही है।
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