Saturday, 2 May 2009

आर वाले आगे बाकी सब पीछे

लंबे समय से प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए जबरदस्त मारा मारी मची है। जितनी पार्टी है उस से अधिक प्रधानमंत्री पड़ के दावेदार। आज बहुत से लोगों का तो किस्सा ही ख़तम कर देते हैं। तो सुनो! इस देश का प्रधानमंत्री वही बन सकता है जिसके नाम में कहीं ना कहीं "र" [ आर] अक्षर आता हो। आज तक जितने भी प्रधानमंत्री इस देश में हुए उनके नाम में कहीं ना कहीं र जरुर आया। अब संजय गाँधी नहीं बन सके। ऐसे ही देवी लाल ने १९८९ में अपना ताज वीपी सिंह को पहना दिया था। बहाना कोई भी रहा हो मगर उनके नाम में र नहीं था तो नहीं बने प्रधानमंत्री। अब यह चर्चा है कि सोनिया गाँधी आहत थी इसलिए प्रधानमंत्री नहीं बनीं। लेकिन असल बात ये कि उनके नाम में "र" नहीं है। अब मायावती हो या मुलायम सिंह अपने आप को प्रधानमंत्री का दावेदार बताते हैं मगर लगता तो नहीं कि वे सफल हो जायेंगें। अरे भाई इनके नाम में भी "र" नहीं है। हाँ, राहुल गाँधी हैं, प्रियंका गाँधी हैं, वरुण गाँधी है, शरद पवार भी खुश हो सकते है। नरेंद्र मोदी भी सपने ले सकते है। नारदमुनि के नाम से तो मैं भी ख्वाब देख सकता हूँ। गोविन्द गोयल के नाम से नहीं।हमारा तो यही कहना है कि जिन नेताओं के नाम में "र"[ आर] नहीं आता वे इस पद के लिए अपना समय ना ख़राब करें। ऐसे नेता किसी दूसरे मंत्रालय के लिए अपने आप को तैयार करें। ऐसे नेताओं को आगे आने दिया जाए जिनके नाम में कहीं ना कहीं "र" [ आर] अक्षर बैठा हुआ है। ये बात आज की नहीं है। १९८३ या १९८४ में मैंने एक लेख लोकल अखबार "सीमा संदेश" में लिखा था। जिसमे आर की बात कही थी। देखो कब तक चलता है ये "र" का चमत्कार। इसको संयोग कहें या टोटका, लेकिन अभी तक तो फिट है। अगर प्रधानमंत्री बनना है तो अपने नाम में कहीं ना कहीं "र"[आर] फिट करना ही पड़ेगा।

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