Tuesday, 5 May 2009

इसका जवाब कौन देगा ?

स्कूल में कोई क्यूँ जाता है ? पढ़ने के लिए। अगर कोई कमजोर है,पढ़ाई लिखाई ठीक से नहीं कर पाता तो उसपर और अधिक ध्यान देने की जरुरत होती है। परन्तु आजकल जो कुछ हो रहा है उस से तो ऐसा लगता ही नहीं। अब तो दाखिले से पहले टेस्ट लिया जाता है। टोपर है तो अन्दर नहीं तो बाहर। अब कोई इनसे पूछने वाला हो तो भाई जो कमजोर है उसकी कमजोरी कौन दूर करेगा। स्कूल वाले फीस तो थैला भर कर लेते हैं, हम देते हैं। किसके लिए, जो होशियार है उसके लिए। पढ़ाई में कमजोर बच्चे को तो दूर से ही टा टा , बाए बाए कर देते हैं। हमारी भी मत मारी गई। हम भी झूठी सामाजिक शान के लिए इनके नखरे सहते हैं। जिस परिवार में कोई कमजोर बच्चा हो तो उसके लिए आज के दौर में रहना मुश्किल हो जाता है। प्राइवेट स्कूल लेता नहीं सरकारी स्कूल में भेजने से गली मोहल्ले में नाक नीची हो जाती है। सरकार के कोई नियम कानून इनपर लागू नहीं होते। बात बेशक साधारण सी लगती है, मगर है तो सोचनीय। आख़िर वह अभिभावक अपने बच्चे किस स्कूल में पढ़ने के लिए भेजें जिनके किसी कारण से पढ़ाई में कमजोर हैं। सरकार भी ना तो सरकारी स्कूलों की हालत ठीक कर पाती है ना ही प्राइवेट स्कूलों पर कोई अंकुश लगा पाती है। सरकारी स्कूल तो अब केवल नेताओं द्वारा लोगों को नौकरी देकर वाह वाही पाने का जरिया बन कर रह गए है। ताकि चुनाव में यह बताया जा सके कि हमने इतने लोगों को नौकरी दी। पढो,पढाओ के बारे में हर सरकार अरबों रुपया खर्च करती है। लेकिन इन रुपयों से पढ़ कौन रहा है? आम आदमी का लाडला तो आजादी के ६२ साल बाद भी वैसा का वैसा है जैसे उसके बाप दादा थे। यूँ कोई गुदड़ी में लाल निकल गया तो क्या खास बात है। उसमे सरकार का तो कोई योगदान होता ही नहीं। हर कोई उसी को चमकाने में लगा हुआ है जो पहले से चमक रहा है। क्या कभी कोई उस तरफ़ भी देखेगा जिसको सबसे ज्यादा स्कूल की जरुरत है।

3 comments:

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

आपका लेख काफी अच्छा हैं...लिखते रहिये बस इसी तरह सिर्फ सच लिखिएगा........बधाई

Urmi said...

मुझे आपका ब्लॉग बहुत ही अच्छा लगा!बहुत ही सुंदर लिखा है आपने और इसी तरह लिखते रहिये !मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!

admin said...

सही कहा आपने। पर जो जरूरी काम हैं, उनकी ओर ध्‍यान देने वाला कौन है।

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SBAI TSALIIM