Tuesday 28 October, 2008

जिस की है उसको ही अर्पित

१--वफ़ा के ख्वाब मुहब्बत का आसरा ले जा
अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया ले जा,
यही है किस्मत-ऐ- सहरा यही करम है तेरा
कि बूंद बूंद अता कर घटा घटा ले जा।
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२-रास्ते को भी दोस दे, आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है पहले उसे निकाल।
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३-हम मिट गए जहाँ से इसका गम नहीं
हम खुश हैं इस लिए कि उनको चोट आ गई।
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४- अपने हाथ की लकीरों को क्या देखते हो
नसीब तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।

आप सब को जानकर अति प्रसन्नता होगी इन पंक्तियों से मेरा इतना ही लेना देना है कि मैं विभिन्न अखबारों, किताबों, और गुड गुड व्यक्तियों के द्वारा कोट की गई लाइन लिख लेता हूँ। ये वही लाइन हैं। अगर कोई कहता है कि ये मेरी है तो हम उस आदरणीय सज्जन का नाम तुंरत इसमे लिख देंगे। कल को कोई लफडा करे इस के लिए यह लिख रहा हूँ। नारदमुनि किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहता।

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