Sunday 19 October, 2008

मेरी पहली रचना

बात १९८० से १९८२ के बीच की है। तब मैं दिल्ली गया था। वहां लोकल बस में सफर किया। उसके बाद कुछ लाइन लिखी और श्रीगंगानगर के लोकल न्यूज़ पेपर प्रताप केसरी में छपी।

दिल्ली की लोकल बस......

दिल्ली की लोकल बस में जब मैं
एक सुंदर लड़की से टकराया
मेरा सर बड़ी जोर चकराया
मैंने सोचा न जाने क्या होगा
उसका सैंडिल मेरा सर होगा
मगर उस वक्त मेरी आंखों में चमक आई
जब वह मुझे देख कर मुस्कराई
मैंने भी अपना हौंसला बढाया
और उसको पिक्चर का ऑफर फ़रमाया
वह मेरा ऑफर ठुकरा नहीं पाई
मेरे साथ तुंरत थियेटर चली आई
थियेटर में उसे जब भूख ने सताया
मैंने उसे ब्रेक फास्ट लंच न जाने क्या क्या करवाया
फ़िल्म देख कर जब थियेटर से बाहर आया
to लड़की और पर्स दोनों को गायब पाया
फ़िर मुझे समझ आया की वह
बस में क्यों मुस्कराई थी
बस में उसकी नजर मुझसे नहीं
मेरे पर्स से टकराई थी।



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