हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Friday, 31 October 2008
नारदमुनि ख़बर लाये हैं
देश,काल, धर्म, वक्त,परिस्थितियां कैसी भी हों एक दूसरे को गिफ्ट देने से आपस में प्यार बढ़ता है। यह बात माँ द्वारा अपने लाडले के गाल पर चुम्बन लेने से लेकर जरदारी का अमेरिका की उस से हाथ मिलाने तक सब पर एक सामान लागू होती है। जब सब ऐसा करते कराते हैं तो पत्रकारों ने क्या बुरा किया है। ऐसा ही सोचकर एक नेता ने पत्रकारों को गिफ्ट पैक बड़े स्टाइल से भिजवाए। ये पैक उनका छोटा भाई और उनका पी आर ओ कम प्रवक्ता कम खबरिया लेकर गए। पैक में एक डिब्बा काजू कतली का और एक शगुन वाला लिफाफा। लिफाफे में थी नकदी। किसी में ११०० रूपये,किसी में २१०० रूपये किसी में ५१०० रूपये भी थे। नेता जी की नजरों में जो जैसा था उसके लिए वैसा ही गिफ्ट। अब कईयों ने इसको स्वीकार कर लिया और कईयों ने वापिस लौटा दिया। सबके अपने अपने विवेक, इस लिए सबने अपनी ओर से ठीक ही किया। कोई इसको सही बता रहा है कोई ग़लत। दोनों सही है। नेता जी के पास फिल्ड में रहने वाले पत्रकारों से हाथ मिलाने का इस से अच्छा मौका और हो भी क्या सकता था। मालिक लोगों के पास तो बड़े बड़े विज्ञापन पहुँच जाते हैं। ऐसे में पत्रकारों ने लिफाफे लेकर अच्छा किया या नहीं किया, इस बारे में नारदमुनि क्यों कुछ कहे। नारदमुनि तो ख़ुद पत्रकारों से डरता है।
दोनों मस्ती करेंगे
कल अगर मैं मर भी जाऊँ
गम ना करना,
आंसू भी ना बहाना
मेरी अर्थी भी न उठाना
बस सीधे ऊपर चले आना
दोनों मस्ती करेंगे।
----
दुश्मनी के कदम कब तलक
मैं भी थक जाउंगी,तुम भी थक जाओगे।
---
बंद ओठों का सबब है कोई
वक्त आया तो हम भी बोलेंगें।
----
ऐसी दोस्ती हो हमारी तू हर राह हर डगर
हर सफर में मिले,
मैं मर भी जाऊँ तो भी दोस्ती की खातिर
तू बगल वाली कब्र में मिले।
----
गनीमत है नगर वालो
लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गाँव में अक्सर
दरोगा लूट जाता है।
गम ना करना,
आंसू भी ना बहाना
मेरी अर्थी भी न उठाना
बस सीधे ऊपर चले आना
दोनों मस्ती करेंगे।
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दुश्मनी के कदम कब तलक
मैं भी थक जाउंगी,तुम भी थक जाओगे।
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बंद ओठों का सबब है कोई
वक्त आया तो हम भी बोलेंगें।
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ऐसी दोस्ती हो हमारी तू हर राह हर डगर
हर सफर में मिले,
मैं मर भी जाऊँ तो भी दोस्ती की खातिर
तू बगल वाली कब्र में मिले।
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गनीमत है नगर वालो
लुटेरों से लुटे हो तुम,
हमें तो गाँव में अक्सर
दरोगा लूट जाता है।
Thursday, 30 October 2008
मेरा कुछ भी नहीं है
-जब तक विवाद रहा
तब तक आबाद रहा मैं।
----
देख लिया ना सूरज बनकर
अब सूरज की तरह जलाकर।
----
दुःख की नगरी कौन सी
आंसू की क्या जात,
सारे तारे दूर के
सबके छोटे हाथ।
---
भाषा भाव पंगु बन जाते
कहने को आभार तुम्हारा।
----
पाक गईं आदतें बातों से दूर होगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं।
तब तक आबाद रहा मैं।
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देख लिया ना सूरज बनकर
अब सूरज की तरह जलाकर।
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दुःख की नगरी कौन सी
आंसू की क्या जात,
सारे तारे दूर के
सबके छोटे हाथ।
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भाषा भाव पंगु बन जाते
कहने को आभार तुम्हारा।
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पाक गईं आदतें बातों से दूर होगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं।
Wednesday, 29 October 2008
ये पब्लिक है सब जानती है
चुनाव में टिकट का बहुत अधिक महत्व होता है। टिकट मिलते ही नेता के चारों ओर हजारों लोगो का जमावड़ा हो जाता है। अगर टिकट उस पार्टी का हो जिसकी सरकार बनने के चांस हो तो भीड़ का अंत नही रहता। मगर नारदमुनि ने आज मामला उल्टा देखा। मीडिया से लेकर आम जन तक में यह बात आई कि भारत पाक सीमा पर स्थित श्री करनपुर विधानसभा क्षेत्र से इस बार शायद गुरमीत सिंह कुन्नर को कांग्रेस अपना उम्मीदवार न बनाये। बस फ़िर क्या था, जन जन का हजूम गुरमीत सिंह कुन्नर के समर्थन में उमड़ पड़ा। भीड़ ऐसी कि किसी दमदार पार्टी उम्मीदवार के यहाँ भी होनी मुश्किल है। शायद ही कोई ऐसा वर्ग या जाति होगी जो श्री कुन्नर से मिलने उनके पास न गया हो। सब का एक ही कहना था कि टिकट मिले न मिले हमारे उम्मीदवार तो आप ही हैं। भीड़ का समुद्र जैसे यहाँ से वहां तक कांग्रेस से बगावत करने को तैयार लगा। जन जन ने यह कहते सुना गया कि गुरमीत सिंह के सामने बीजेपी का कोई भी नेता टिकट लेने तो तैयार नहीं है। ऐसे में कांग्रेस पता नहीं क्यों ऐसे आदमी को उम्मीदवार बनाने पर तुली है जिसका इलाके में कोई जनाधार तो दूर की बात ठीक से जनता तक नहीं है। श्री कुन्नर के समर्थन में आई भीड़ ने साफ शब्दों में कहा कि हम लोग किसी के पास टिकट लेने नहीं जायेंगें , गुरमीत सिंह कुन्नर की टिकट जनता है। अगर कोई दूसरा टिकट लाया तो उसको रिटर्न टिकट साथ लानी होगी। पता नहीं कांग्रेस के लीडर ये बात जानते हैं या नहीं।
पत्थर दिल से प्यार किया
पत्थर दिल से प्यार किया
अपने को बरबाद किया,
कर ना सका आबाद किसी को
ख़ुद को ही बरबाद किया।
जब भी देखी उसकी सूरत
आंखों को हमने और खोल दिया
प्यार किया है हमने तुमसे
आंखों से उसको बोल दिया।
कुछ ना फ़िर वो कह पाए
बस पत्थर से सीसा तोड़ दिया।
वह पिघल सका ना प्यार आग में
हमने ख़ुद को जलाकर राख किया
खुशियाँ जल गईं उसमे मेरी
ग़मों का हमने साथ किया
गम ना देना उसको कभी तुम
हमने जी से प्यार किया।
--गोविन्द गोयल
अपने को बरबाद किया,
कर ना सका आबाद किसी को
ख़ुद को ही बरबाद किया।
जब भी देखी उसकी सूरत
आंखों को हमने और खोल दिया
प्यार किया है हमने तुमसे
आंखों से उसको बोल दिया।
कुछ ना फ़िर वो कह पाए
बस पत्थर से सीसा तोड़ दिया।
वह पिघल सका ना प्यार आग में
हमने ख़ुद को जलाकर राख किया
खुशियाँ जल गईं उसमे मेरी
ग़मों का हमने साथ किया
गम ना देना उसको कभी तुम
हमने जी से प्यार किया।
--गोविन्द गोयल
Tuesday, 28 October 2008
जिस की है उसको ही अर्पित
१--वफ़ा के ख्वाब मुहब्बत का आसरा ले जा
अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया ले जा,
यही है किस्मत-ऐ- सहरा यही करम है तेरा
कि बूंद बूंद अता कर घटा घटा ले जा।
---
२-रास्ते को भी दोस दे, आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है पहले उसे निकाल।
----
३-हम मिट गए जहाँ से इसका गम नहीं
हम खुश हैं इस लिए कि उनको चोट आ गई।
---
४- अपने हाथ की लकीरों को क्या देखते हो
नसीब तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।
आप सब को जानकर अति प्रसन्नता होगी इन पंक्तियों से मेरा इतना ही लेना देना है कि मैं विभिन्न अखबारों, किताबों, और गुड गुड व्यक्तियों के द्वारा कोट की गई लाइन लिख लेता हूँ। ये वही लाइन हैं। अगर कोई कहता है कि ये मेरी है तो हम उस आदरणीय सज्जन का नाम तुंरत इसमे लिख देंगे। कल को कोई लफडा करे इस के लिए यह लिख रहा हूँ। नारदमुनि किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहता।
अगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया ले जा,
यही है किस्मत-ऐ- सहरा यही करम है तेरा
कि बूंद बूंद अता कर घटा घटा ले जा।
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२-रास्ते को भी दोस दे, आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है पहले उसे निकाल।
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३-हम मिट गए जहाँ से इसका गम नहीं
हम खुश हैं इस लिए कि उनको चोट आ गई।
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४- अपने हाथ की लकीरों को क्या देखते हो
नसीब तो उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।
आप सब को जानकर अति प्रसन्नता होगी इन पंक्तियों से मेरा इतना ही लेना देना है कि मैं विभिन्न अखबारों, किताबों, और गुड गुड व्यक्तियों के द्वारा कोट की गई लाइन लिख लेता हूँ। ये वही लाइन हैं। अगर कोई कहता है कि ये मेरी है तो हम उस आदरणीय सज्जन का नाम तुंरत इसमे लिख देंगे। कल को कोई लफडा करे इस के लिए यह लिख रहा हूँ। नारदमुनि किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहता।
Monday, 27 October 2008
इधर उधर से संग्रहित
इस नगर के लोग फिरते हैं मुखौटे ओढ़ कर,
सही लोगों को यहाँ खोजना mushkil है।
-----
जैसा bhee है इसमे नकली pan to नहीं
ये मेरा चेहरा है,बाबा तेरा क्या।
----
इश्क ना जाने bavla जाने इतनी बात
जो अपना सब यार का khaali अपने हाथ।
----
साहिब है अपनी जगह ma का अपना मान
फ़िर साहिब को janana pahle ma को जान।
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kathputali हर shakhs है साँस है लम्बी डोर
khub nachakar वो hame khinche अपनी or।
सही लोगों को यहाँ खोजना mushkil है।
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जैसा bhee है इसमे नकली pan to नहीं
ये मेरा चेहरा है,बाबा तेरा क्या।
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इश्क ना जाने bavla जाने इतनी बात
जो अपना सब यार का khaali अपने हाथ।
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साहिब है अपनी जगह ma का अपना मान
फ़िर साहिब को janana pahle ma को जान।
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kathputali हर shakhs है साँस है लम्बी डोर
khub nachakar वो hame khinche अपनी or।
Sunday, 26 October 2008
इधर उधर की कतरने
याद नहीं क्या क्या देखा था
सारे मंजर भूल गए
उसकी गलियों से जब लौटे
अपना घर भी भूल गए
तुझको भी जब अपनी कसमे
अपने वादे याद नहीं
हम भी अपने ख्वाब तेरी
आंखों में रखकर भूल गए।
-----
खेत को खा गई
खेत की मुंडेर
बेटे की करतूत देख
बाप हो गया ढेर
समय का फेर देखो
गली के कुत्तों ने
शेर को लिया घेर।
सारे मंजर भूल गए
उसकी गलियों से जब लौटे
अपना घर भी भूल गए
तुझको भी जब अपनी कसमे
अपने वादे याद नहीं
हम भी अपने ख्वाब तेरी
आंखों में रखकर भूल गए।
-----
खेत को खा गई
खेत की मुंडेर
बेटे की करतूत देख
बाप हो गया ढेर
समय का फेर देखो
गली के कुत्तों ने
शेर को लिया घेर।
Saturday, 25 October 2008
राजनीति के माध्यम से सेवा
राजनीति का रास्ता बहुत अधिक काँटों वाला है। ये कहा जाता है कि राजनीति आम आदमी के बस की बात नहीं। इस में फ्रेश और गैर राजनीतिक परिवार के सदस्य को कोई नहीं पूछता। श्रीगंगानगर में इन बातों को झूठा साबित करने में लगे हैं प्रहलाद राय टाक। स्नातकोतर,विधि स्नातक प्रहलाद टाक राजनीति के पथरीले रास्ते पर बिल्कुल फ्रेश हैं। मगर उनको कोई कह नही सकता कि राजनीति में उनका ये पहला कदम है। उनका फ्रेश होना उनकी अतिरिक्त क्वालिटी बन गया है। प्रहलाद टाक समाज सेवा भावी तो पहले से ही हैं अब वे राजनीति को सेवा का माध्यम बना कुछ अधिक करना चाहते हैं। इस के लिए फिलहाल श्रीगंगानगर विधानसभा क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना है। उनके या उनके परिवार का इस से पहले राजनीति से कोई लेना देना नहीं था। प्रहलाद राय का परिवार कभी भी राजनीति में एक्टिव नहीं रहा। उन्होंने गत कई सप्ताह में अपने आप को बीजेपी के कार्यकर्त्ता के नाते इतना एक्टिव किया कि आज वे बीजेपी के बड़े लीडर्स की नजरों में हैं। राजनीति में किस तरह टिक पायेंगें इसके जवाब में प्रहलाद टाक कहते है- मेरा मकसद राजनीति को व्यवसाय बनाना नहीं है। मैं तो पहले भी सामाजिक रूप से एक्टिव था और अब और अधिक एक्टिव रहूँगा। मैं तो समाज सेवी ही कहलाना पसंद करता हूँ। मुझे आशा है कि जन जन फ्रेश को आगे बढने को मौका देगा । फोटो-१-बीजेपी के प्रदेश प्रभारी गोपी नाथ मुंडे के साथ प्रहलाद टाक। फोटो-२- बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष श्री माथुर के साथ प्रहलाद टाक।
पप्पी डॉग की किस्मत
मिस वर्ल्ड के से साइज़ की
दो चोटी वाली एक कन्या
अपने ६ माह के पप्पी डॉग,
जिस पर एक ब्यूटी स्पॉट भी था
की जंजीर पकड़ कर
हर रोज मोर्निंग वाक को जाती
रास्ते में जब पप्पी डॉग
किसी वाहन,खंभे या
चारदीवारी पर
एक टांग उठाकर सू सू करता तो
कन्या मंद मंद मुस्कुराती
पार्क में पहुंचते ही कन्या
पप्पी डॉग की जंजीर खोल देती,
फ़िर एक बेंच पर बैठकर
उसे पुच्च पुच्च ,आ आ करके बुलाती
पप्पी डॉग तुंरत उछलकर
उसके शरीर पर चढ़ जाता
फ़िर आगे पीछे उछलकूद
करते हुए उसकी चोटियों से खेलता
कभी कभी तो वह कन्या की
चोटियाँ पकड़ कर झूलने भी लगता
इस तरह से वाक करने के बाद
वे दोनों घर लौट जाते,
शाम को दोनों फ़िर वाक पर आते
और लोगों का दिल बहलाते
सूत्र बतातें हैं कि वह पप्पी डॉग
रात को उसी कन्या के साथ है सोता,
इतना सुनने और जानने के बाद
मैं सोचता हूँ
काश! मैं पप्पी डॉग होता,
काश! मैं पप्पी डॉग होता।
दो चोटी वाली एक कन्या
अपने ६ माह के पप्पी डॉग,
जिस पर एक ब्यूटी स्पॉट भी था
की जंजीर पकड़ कर
हर रोज मोर्निंग वाक को जाती
रास्ते में जब पप्पी डॉग
किसी वाहन,खंभे या
चारदीवारी पर
एक टांग उठाकर सू सू करता तो
कन्या मंद मंद मुस्कुराती
पार्क में पहुंचते ही कन्या
पप्पी डॉग की जंजीर खोल देती,
फ़िर एक बेंच पर बैठकर
उसे पुच्च पुच्च ,आ आ करके बुलाती
पप्पी डॉग तुंरत उछलकर
उसके शरीर पर चढ़ जाता
फ़िर आगे पीछे उछलकूद
करते हुए उसकी चोटियों से खेलता
कभी कभी तो वह कन्या की
चोटियाँ पकड़ कर झूलने भी लगता
इस तरह से वाक करने के बाद
वे दोनों घर लौट जाते,
शाम को दोनों फ़िर वाक पर आते
और लोगों का दिल बहलाते
सूत्र बतातें हैं कि वह पप्पी डॉग
रात को उसी कन्या के साथ है सोता,
इतना सुनने और जानने के बाद
मैं सोचता हूँ
काश! मैं पप्पी डॉग होता,
काश! मैं पप्पी डॉग होता।
Friday, 24 October 2008
इधर उधर की कतरने
दुनिया में हर पल कुछ न कुछ लिखा जाता है। कोई ये कहे कि उसने सब पढ़ लिया तो समझो वह झूठा है। मैं इधर उधर से जहाँ भी मिलती है जानदार शानदार पंक्तियाँ नोट कर लेता हूँ। ऐसी ही कुछ लाइन यहाँ लिख रहा हूँ।
१-सारी दुनिया से दूर हो जाऊँ,
तेरी आंखों का नूर हो जाऊँ,
तेरी राधा बनू,बनू ना बनू
तेरी मीरा जरुर हो जाऊँ।
इस को सच्चे प्रेम की दास्ताँ ही कहेंगें कि कोई अपने प्यारे के लिए मीरा बनकर जहर का प्याला पीनेको तैयार है। अब इन लाइन को पढो और अहसास करो मिठास का।
२-धर्म का अर्थ धाम से पूछो
प्रेम का अर्थ श्याम से पूछो
कितने मीठे हैं बेर शबरी के
पूछना है तो श्रीराम से पूछो।
अब इन साहब की सुन लो क्या कहते हैं-
एक आदमी की बड़ी कदर है मेरे दिल में
भला तो वो भी नहीं मगर बुरा कम है।
१-सारी दुनिया से दूर हो जाऊँ,
तेरी आंखों का नूर हो जाऊँ,
तेरी राधा बनू,बनू ना बनू
तेरी मीरा जरुर हो जाऊँ।
इस को सच्चे प्रेम की दास्ताँ ही कहेंगें कि कोई अपने प्यारे के लिए मीरा बनकर जहर का प्याला पीनेको तैयार है। अब इन लाइन को पढो और अहसास करो मिठास का।
२-धर्म का अर्थ धाम से पूछो
प्रेम का अर्थ श्याम से पूछो
कितने मीठे हैं बेर शबरी के
पूछना है तो श्रीराम से पूछो।
अब इन साहब की सुन लो क्या कहते हैं-
एक आदमी की बड़ी कदर है मेरे दिल में
भला तो वो भी नहीं मगर बुरा कम है।
Thursday, 23 October 2008
साजन जैसे हरजाई है
साजन जैसे हरजाई है
सावन के काले बादल,
रो रो कर यूँ बिखर गया
नैनों का सारा काजल।
----
यादों की तरह छा जाते हैं
मानसून के मेघ,
काँटों जैसी लगती है
हाय फूलों की सेज।
----
हिवड़ा मेरा झुलस रहा
ना जावे दिल से याद,
सब कुछ मिटने वाला है
जो नहीं सुनी फरियाद।
-----
नींद उड़ गई रातों की
उड़ गया दिन का चैन,
बादल तो बरसे नहीं
बरसत हैं मेरे नैन।
----
गोविन्द गोयल
सावन के काले बादल,
रो रो कर यूँ बिखर गया
नैनों का सारा काजल।
----
यादों की तरह छा जाते हैं
मानसून के मेघ,
काँटों जैसी लगती है
हाय फूलों की सेज।
----
हिवड़ा मेरा झुलस रहा
ना जावे दिल से याद,
सब कुछ मिटने वाला है
जो नहीं सुनी फरियाद।
-----
नींद उड़ गई रातों की
उड़ गया दिन का चैन,
बादल तो बरसे नहीं
बरसत हैं मेरे नैन।
----
गोविन्द गोयल
Wednesday, 22 October 2008
तुने तो अब आना नही
दो दो सावन बीत गए
मिला ना मन को चैन
बादल तो बरसे नहीं
बरसत है दो नैन,
---
भोला मन अब समझ गया
तेरे चालाक इरादे
तू ने तो अब आना नहीं
झूठे हैं तेरे वादे,
----
तिल तिल कर मैं जल रही
तू लिख ले मेरे बैन,
चिता को आग लगा जाना
बस मिल जाएगा चैन ।
----
तेरे दर्शन की आस में
जिन्दा है ये लाश,
इस से ज्यादा क्या कहूँ
समझ ले मेरी बात।
---
मिला ना मन को चैन
बादल तो बरसे नहीं
बरसत है दो नैन,
---
भोला मन अब समझ गया
तेरे चालाक इरादे
तू ने तो अब आना नहीं
झूठे हैं तेरे वादे,
----
तिल तिल कर मैं जल रही
तू लिख ले मेरे बैन,
चिता को आग लगा जाना
बस मिल जाएगा चैन ।
----
तेरे दर्शन की आस में
जिन्दा है ये लाश,
इस से ज्यादा क्या कहूँ
समझ ले मेरी बात।
---
Tuesday, 21 October 2008
भ्रष्टाचार की रेल
--- चुटकी----
राजनीति तो है
अब पैसों का खेल,
ऐसे में कौन रोकेगा
भ्रष्टाचार की रेल।
---गोविन्द गोयल
राजनीति तो है
अब पैसों का खेल,
ऐसे में कौन रोकेगा
भ्रष्टाचार की रेल।
---गोविन्द गोयल
फैशन के लफड़े
---- चुटकी-----
फैशन के भी
देखो लफड़े,
कपड़े हैं फ़िर
भी बिन कपड़े।
-----
चमके फीगर
दिखे कटाव
ये कैसा फैशन
ये क्या चाव।
----
कपडें हो टाईट
फीगर दिखे ब्राइट।
---गोविन्द गोयल
फैशन के भी
देखो लफड़े,
कपड़े हैं फ़िर
भी बिन कपड़े।
-----
चमके फीगर
दिखे कटाव
ये कैसा फैशन
ये क्या चाव।
----
कपडें हो टाईट
फीगर दिखे ब्राइट।
---गोविन्द गोयल
Monday, 20 October 2008
छुई मुई से भी नाजुक
मुझे देखकर तुम यूँ
अपने आप में सिमट जाती हो
जैसे अंगुली को देख
छुई मुई का पौधा,
ये ठीक है कि तुम
उस पौधे की तरह
अधिक शर्मीली ,संवेदनशील
और ज्यादा नाजुक हो,
लेकिन मुझे तुमसे अच्छा
वह छुई मुई का
पौधा लगता है,
क्योंकि वह कुछ पल बाद
अंगडाई लेकर
अपने हुस्न का जलवा
दिखा देता है
मगर तुम
अपने आप को
अपने ही अन्दर
समेटे हुए
बैठी रहती हो
मेरे जाने तलक।
---गोविन्द गोयल
मुझे देखकर तुम यूँ
अपने आप में सिमट जाती हो
जैसे अंगुली को देख
छुई मुई का पौधा,
ये ठीक है कि तुम
उस पौधे की तरह
अधिक शर्मीली ,संवेदनशील
और ज्यादा नाजुक हो,
लेकिन मुझे तुमसे अच्छा
वह छुई मुई का
पौधा लगता है,
क्योंकि वह कुछ पल बाद
अंगडाई लेकर
अपने हुस्न का जलवा
दिखा देता है
मगर तुम
अपने आप को
अपने ही अन्दर
समेटे हुए
बैठी रहती हो
मेरे जाने तलक।
---गोविन्द गोयल
Sunday, 19 October 2008
मेरी पहली चुटकी
बात उस समय की है जब हिंदुस्तान के श्री राकेश शर्मा अन्तरिक्ष में गए थे। तब यह चुटकी पंजाब केसरी अखबार में प्रकाशित हुई थी। तब से आज तक नहरों -नदियों में ना जाने कितना पानी बह गया।
---चुटकी-----
राकेश शर्मा की
अन्तरिक्ष यात्रा ,
मात्र है ये एक बात
चार दिन की चाँदनी
फ़िर अँधेरी रात।
---गोविन्द गोयल
---चुटकी-----
राकेश शर्मा की
अन्तरिक्ष यात्रा ,
मात्र है ये एक बात
चार दिन की चाँदनी
फ़िर अँधेरी रात।
---गोविन्द गोयल
मेरी पहली रचना
बात १९८० से १९८२ के बीच की है। तब मैं दिल्ली गया था। वहां लोकल बस में सफर किया। उसके बाद कुछ लाइन लिखी और श्रीगंगानगर के लोकल न्यूज़ पेपर प्रताप केसरी में छपी।
दिल्ली की लोकल बस......
दिल्ली की लोकल बस में जब मैं
एक सुंदर लड़की से टकराया
मेरा सर बड़ी जोर चकराया
मैंने सोचा न जाने क्या होगा
उसका सैंडिल मेरा सर होगा
मगर उस वक्त मेरी आंखों में चमक आई
जब वह मुझे देख कर मुस्कराई
मैंने भी अपना हौंसला बढाया
और उसको पिक्चर का ऑफर फ़रमाया
वह मेरा ऑफर ठुकरा नहीं पाई
मेरे साथ तुंरत थियेटर चली आई
थियेटर में उसे जब भूख ने सताया
मैंने उसे ब्रेक फास्ट लंच न जाने क्या क्या करवाया
फ़िल्म देख कर जब थियेटर से बाहर आया
to लड़की और पर्स दोनों को गायब पाया
फ़िर मुझे समझ आया की वह
बस में क्यों मुस्कराई थी
बस में उसकी नजर मुझसे नहीं
मेरे पर्स से टकराई थी।
दिल्ली की लोकल बस......
दिल्ली की लोकल बस में जब मैं
एक सुंदर लड़की से टकराया
मेरा सर बड़ी जोर चकराया
मैंने सोचा न जाने क्या होगा
उसका सैंडिल मेरा सर होगा
मगर उस वक्त मेरी आंखों में चमक आई
जब वह मुझे देख कर मुस्कराई
मैंने भी अपना हौंसला बढाया
और उसको पिक्चर का ऑफर फ़रमाया
वह मेरा ऑफर ठुकरा नहीं पाई
मेरे साथ तुंरत थियेटर चली आई
थियेटर में उसे जब भूख ने सताया
मैंने उसे ब्रेक फास्ट लंच न जाने क्या क्या करवाया
फ़िल्म देख कर जब थियेटर से बाहर आया
to लड़की और पर्स दोनों को गायब पाया
फ़िर मुझे समझ आया की वह
बस में क्यों मुस्कराई थी
बस में उसकी नजर मुझसे नहीं
मेरे पर्स से टकराई थी।
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