Sunday 21 June, 2009

समय का फेर या भाग्य का खेल

किसी पेड़ की,किसी भी साख से
पत्ता भी गिरता,तो,हो जाती थी ख़बर,
अब तो तूफान भी, पास से
निकल जाए, तब भी, पड़ती नहीं नजर।
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ना जाने किस किस की ख़बर
रहती थी, जेब में हमारे,
अब तो, ख़ुद के बारे में भी
ख़ुद को, कुछ पता नहीं होता।
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ये समय का फेर है कोई
या फ़िर, भाग्य का कोई खेल,
जो मिलते थे बाहें पसार कर
होता नहीं कभी, अब, उनसे कोई मेल।

1 comment:

Dinesh Gharat said...

बहुत खुब कहा नारदमुनीजी आपने. यह समय का फेर और भाग्य का खेल दोनो है ।
दिनेश.
http://husgulle.blogspot.com