Saturday, 31 July 2010

हंगामा तोड़फोड़ और कारोबार

प्राइवेट हॉस्पिटल के अन्दर बाहर हंगामे की खबर चंद पलों में ही शहर की हवा में घुल गई। गली,नेशनल हाई वे, गाँव, शहर के छोटे बड़े ,नामी बेनामी नेता हॉस्पिटल पहुँच गए। उनके आगे पीछे आये मीडिया कर्मी। हॉस्पिटल कैम्पस में स्ट्रेचर। उस पर एक पूरी तरह से ढका हुआ एक शव। स्ट्रेचर के निकट दर्जन भर लोग लुगाई। रोना पीटना, हल्ला गुल्ला। नेताओं के पहुंचते ही माहौल गरमा गया। प्रतीकात्मक तोड़ फोड़ हुई। मीडिया कर्मी जुट गए अपने काम में ,नेता अपने।फोटो,बातचीत,कमेन्ट,तर्क- वितर्क के साथ कुतर्क भी। तमाशबीनों की भीड़ आ डटी। पोलिसे अधिकारी भी आ गए दल बल के साथ। नगर के जाने माने नागरिक, डाक्टर के रिश्तेदार, मित्रों ने भी आना ही था। ऐसे मामले में नेताओं से वार्ता करने वाले भी आ गए, बुला लिए गए। नेताओं ने स्ट्रेचर के निकट खड़े लोगों से जानकारी ली और डाक्टर व उसके स्टाफ को दोषी करार देकर उनकी गिरफ्तारी की मांग कर डाली। मध्यस्थों ने डाक्टर से बात की। डाक्टर का कहना था कि उसने इनमे से किसी का या उसकर रिश्तेदार का इलाज नहीं किया। ना हॉस्पिटल में किसी की इलाज के दौरान मौत हुई है। लेकिन डाक्टर की बात सुनाने वाला वहां कोई नहीं था। डाक्टर की सफाई के बाद हंगामा और बढ़ गया। नारेबाजी में अधिक जोर लगा, तोड़ फोड़ फिर हुई। मीडिया कर्मियों को नए सीन मिले। पुलिस अलर्ट हुई। तमाशबीन थोडा पीछे हते, हटाये गए। कई घंटे इसी प्रकार गुजर गए। सयाने आदमी आगे आये। भीड़ से डाक्टर के प्रति कमेंट्स आने लगे। समझौता वार्ता आरम्भ हुई। माइक लग गया। नेता गला साफ करने लगे। हॉस्पिटल में जो भर्ती थे वे हाथों में ग्लूकोज की बोतल, पेशाब की थैली पकडे कहीं ओर चले गए। हॉस्पिटल में नेताओं ओर उनके समर्थकों का कब्ज़ा था। स्ट्रेचर के आस पास जितने लोग लुगाई शुरू में दिखे वे अब वहां नहीं थे। लम्बी वार्ता के बाद समझौता हो गया। डाक्टर आइन्दा लापरवाही नहीं करेगा। जो कुछ हुआ उसकी माफ़ी मांगेगा। पीड़ित पक्ष थाना में अर्जी देगा तो मुकदमा दर्ज किया जायेगा। वे चाहे तो पोस्टमार्टम करवा ले, पुलिस दवाब नहीं डालेगी। नेताओं ने माइक पर समझौते का ऐलान करते हुए अन्य अस्पतालों को सावचेत किया। अब शुरू हुआ शव के परिजनों को माइक पर बुलाने की कोशिश। किसी को मालूम ही नहीं था कि परिजन कौन है? शव किस का है? आदमी का या महिला का? तलाश आरम्भ। हॉस्पिटल की फाइल देखी गई। हर किसी की जुबान पर यही था कि शव को छोड़ कर उसके परिजन कहाँ चले गए ? एक दूसरे से पूछा , कोई जानता हो तो बताये । पुलिस हैरान। हॉस्पिटल का मालिक डाक्टर उनसे अधिक परेशान हैरान। पुलिस का कम बढ़ गया। वह आगे आई। अम्बुलैंस बुलाई गई। स्ट्रेचर से लाश उठाकर जब अम्बुलैंस में राखी जाने लगी तो हवा से कपड़ा क्या उड़ा कि साथ में सबके होश भी उड़ गए। वह कोई इंसानी लाश नहीं पुतला था। नया बखेड़ा खड़ा हो गया। नेता समझौता करवा के जा चुके थे। धीरे धीरे तमाशबीन भी चले गए। पुलिस, डाक्टर और उसके परिजन ही बाकी बचे थे। पुलिस पुतले को देख रही थी और डाक्टर अपने हॉस्पिटल तथा सबके सामने कटी जेब को। उन्होंने किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने से इंकार कर दिया। पुलिस पुतले का क्या करती! वहीँ सड़क पर फैंक कर लौट गई। पुतला पता नहीं कब तक सड़क पर पड़ा रहा।
एक काल्पनिक घटनाक्रम।

Friday, 30 July 2010

भीगी गौरी

----तड़फ----

बैरी
सावन
रोज
बरसे,
भीगी
गौरी
पिया को
तरसे।

Thursday, 29 July 2010

सी पी जोशी


केंद्र सरकार के मंत्री हैं श्री सीपी जोशी। इनके पास ग्रामीण विकास और पंचायत राज विभाग है। केंद्र के मंत्री के नाते इन पर पूरे देश की जिम्मेदारी है। लेकिन हाय रे मन! इनका अधिक समय राजस्थान में बीतता है। २००८ में इनको राजस्थान में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाता था। केवल एक वोट से चुनाव हार गए। उसके बाद इनको भीलवाड़ा से लोकसभा का चुनाव लड़वाया गया। जीतने के बाद केंद्र में मंत्री बन गए। ऐसा लगता है कि जितना समय इन्होने मंत्री के रूप में अपने ऑफिस में नहीं बिताया होगा उतना राजस्थान में बिता दिया। राजस्थान के अख़बार देख लो आप को पता लग जायेगा कि जोशी राजस्थान के किस हिस्से में हैं। अख़बार में ना हो तो ई टीवी राजस्थान देख लेना, आपको उनकी पल पल की खबर मिल जाएगी। शायद ही कोई दिन ऐसा होगा जब ये मंत्री राजस्थान में ना होते हों। इनके पास राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी है। जोशी जी को चाहिए तो ये कि वे देश के ग्रामीण इलाकों का भ्रमण कर वहां के हालत देखें, किन्तु मन का क्या करे। वह तो राजस्थान में पड़ा हुआ है, मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहा है। सपने देखना तो अच्छी बात है, देखो, मगर उनके सपने तो पूरे करो जिनका मंत्रालय आपके पास है जनाब। आज जोशी जी का जन्मदिन है। उनको इस ये संकल्प लेना चाहिए कि वे आज से राजस्थान के साथ साथ देश भर के ख्याल करेंगे, उन गांवों की संभाल करेंगे, जिनके बारे में ये कहा जाता है वहां असली हिन्दूस्तान रहता है। ये ऐसा नहीं करते तो फिर सोनिया मैडम को कुछ करना चाहिए।

Friday, 23 July 2010

गाँव का कार्यकर्म,सरपंच नहीं

केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना का शुभारम्भ आज श्रीगंगानगर जिले के १८ बीबी गाँव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत,केंद्र के ग्रामीण विकास मंत्री सी पी जोशी और सामाजिक न्याय मंत्री मुकुल वासनिक ने किया। मंच पर राज्य के कई मंत्री, विधायक, चुनाव में हारे हुए कांग्रेस नेता सहित अनेक लोग थे। लेकिन विडम्बना ये थी कि समारोह में इस गाँव की सरपंच मौजूद नहीं थी। यहाँ की सरपंच महिला है। यूँ तो सभी महिलाओं के बारे में बड़ी बड़ी बात करते हैं लेकिन आयोजकों ने उस गाँव की सरपंच को भी बुलाना उचित नहीं समझा जिस गाँव को आदर्श ग्राम योजना के लिए चुना गया और जिसका शुभारम्भ करने के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री खुद यहाँ आये। पता नहीं कांग्रेस का यह कैसा पंचायती राज है। गाँव में इतना बड़ा कार्यकर्म हो और गाँव की संसद की मुखिया को बुलाया तक नहीं गया तो फिर कोई क्या कहे।

Thursday, 15 July 2010

एक बार बूढे दम्पति घर में अकेले बैठे अपने पुराने दिनों की यादें तजा कर रहे थे। अचानक वृद्ध पति बोला--चलो कहीं डेट पर चलते हैं। जैसे जवानी में जाते थे। पत्नी बड़ी रोमांचक अंदाज में बोली--हाँ बहुत आनंद आएगा। दम्पति ने स्थान तय किया। निश्चित तिथि पर पति उस स्थान पर पहुँच गया। पत्नी नहीं आई। पांच मिनट,दस मिनट, पंद्रह मिनट, आधा घंटा, एक घंटा और फिर दो घंटे बाद भी पत्नी नहीं आई तो पति उदास हो गया। घर आया तो देखा पत्नी सोफे पर उदास सी बैठी है। पति को गुस्सा आ गया, बोला - कमाल करती हो, तुम आई क्यों नहीं? पत्नी शरमा कर बोली- मम्मी ने आने ही नहीं दिया।

Monday, 12 July 2010

चैनल पर चर्चा

कल रात को स्टार न्यूज़ पर एक परिचर्चा हो रही थी। विषय, विषय तो ऑक्टोपस बाबा के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता था। उसमे कई ज्योतिषविद ,तर्क शास्त्री और वैज्ञानिक भाग ले रहे थे। चैनल का खेल संपादक उसका संचालन कर रहा था। सबकी अपनी अपनी राय, तर्क,कुतर्क थे। इसमें एक बात बड़ी जोरदार थी। जैसे ही संचालक किसी ज्योतिषाचार्य को अपनी बात कहने के लिए माइक देता, स्टूडियो में काम करने वाला एक बड़ा पत्रकार [ शायद ] आकर जबरदस्ती उससे माइक लेकर अपनी बात कहने लगता। बात भी पूरी गुस्से में कहता। एक बार नहीं ऐसा बार बार हुआ। परिचर्चा का संचालन करने वाला उसको बुलाता या नहीं वह आ जाता। ज्योतिषाचार्य अपनी बात शुरू भी नहीं कर पाते कि वह टपक पड़ता। संचालक भी उसको ऐसा करने से रोक नहीं रहा था। जब चैनल ने उनको बुलाया है, अपनी बात कहने के लिए तो उनको अपना कथन पूरा ना करने देना कहाँ की सभ्यता है। फिर ऐसे कार्यकर्म में तथाकथित नास्तिकों को हिन्दू धर्म, देवी देवताओं, उनसे जुड़ी मान्यताओं को गाली निकालने का खुला मौका मिल जाता है या ये कहें कि दिया जाता है।। गलत को गलत कहना बुरी बात नहीं लेकिन केवल अपनी ही बात को सच साबित करने के लिए जोर से बोलना, दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुँचाना कौनसा वैज्ञानिक तथ्य है। चैनलों पर बैठ कर हिन्दुओं, देवी-देवताओं को अपमानित करने वाले इस प्रकार से किसी और धर्म के बारे में एक शब्द भी बोल कर दिखाएँ। चैनल से लेकर सरकार तक की जड़ें हिल जाएँगी। बात कहने वालों का चैनल से बाहर आना मुश्किल हो जायेगा। आप सच्चें हैं, आपका तर्क वैज्ञानिक कसौटी पर खरा है। मगर चैनल वाले ने जिस को बुला रखा है वह भी तो कुछ ज्ञान रखता होगा। मेरी इस पोस्ट से भी ऐसे नास्तिकों के पेट में मरोड़ उठेगी। चलो ठीक है पेट साफ हो जायेगा। ऐसी वार्ता संचालन करने वालों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्टाफ को कोई बन्दा यूँ किसी की बात को ना काटे। अगर उसको बुलाना मज़बूरी है तो उसको भी परिचर्चा में शामिल कर लो। जिस से बीच बीच में माइक छीन कर वह किसी का अपमान ना कर सके। तर्क शास्त्रियों पर भी किसी धर्म की निंदा करने पर रोक होनी चाहिए। आप समालोचना करो, तर्क से अपने कथन की सार्थकता सिद्ध करो, ये क्या कि जब कोई बस ना चले तो आपे से बाहर होकर किसी का अपमान करना शुरू कर दो। ताकि दूसरा कोई जवाब ही न दे सके। नारायण,नारायण।

Sunday, 11 July 2010

---- चुटकी-----

इंसानों ने
तोड़
दिया विश्वास,
इसलिए
जानवरों में
नजर आने
लगी आस।

Saturday, 10 July 2010



---- चुटकी----

हे आक्टोपस बाबा
हमारी
जान छुड़ाओ,
कुछ ना कुछ
इस
शरद पवार
के बारे में
भी बताओ।

Thursday, 8 July 2010

सरकार से भी बड़े डीएम

श्रीगंगानगर के डीएम आशुतोष एटी पेडणेकर राज्य सरकार के मंत्रियों,बड़े अफसरों से भी बहुत बड़े पद के हैं। इसी कारण उन्होंने अपने पास आने जाने वालों पर निगाह रखने के लिए पांच सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं। इनकी नजर से बचना बहुत ही मुश्किल है। एक अफसर के लिए इतने कैमरे दिल्ली में भी नहीं होंगे। डीएम से मिलने के लिए छोटा सा वेटिंग रूम है। वहां दो कैमरे हैं। एक वहां बरामदे में है जहाँ से वोटिंग रूम में दाखिल होते हैं। एक बरामदे से बाहर। इसके अलावा एक कैमरा उनके निजी सचिव के कमरे के बाहर है। इतने सीसीटीवी कैमरे जयपुर में किसी मंत्री,अधिकारी के ऑफिस या घर में नहीं मिलेंगे। पता नहीं डीएम को किस से क्या डर है जो इतने कैमरे लगाने की जरुरत पड़ी। डीएम इस बारे में कुछ भी नहीं कहते।
एक बात और, नव दम्पति विवाह का पंजीयन करवाने के लिए डीएम [मैरीज रजिस्ट्रार ] के समक्ष पेश होते हैं। ये जोड़े वहां से कोई अच्छी याद अपने साथ लेकर नहीं जाते। पेडणेकर जी पहले तो उनको लम्बा इंतजार करवाते हैं। जोड़े इंतजार के दौरान वहां आने आने वालों की नज़रों से अपने आप को असहज महसूस करते हैं। बहरहाल, यागल जब उनके दरबार में पहुँचते हैं तो डीएम उनसे उनके नाम पता यूँ जैसे नव विवाहित दम्पति नहीं बंटी-बबली जैसे कोई शातिर मुजरिम हों। या शादी करके उन्होंने कोई गुनाह कर लिया हो। पहले तो इंतजार के कारण मूड ऑफ़ उस पर पुलिसिया स्टाइल की पूछताछ । कोई कुंवारा साथ हो तो शादी करने से तोबा कर ले। साहब जी हमारी सलाह मानो तो ऐसे दम्पतियों को स्नेह से कुर्सी पर बिठाओ,उनका मुहं मीठा करवाओ। मिठाई ना हो तो मिश्री इलायची चलेगी। उनको दूधो नहाओ, पूतो फलो का आशीर्वाद दो। फिर देखो। कहने को तो ये केवल बात है। आपके मुहं से निकलेगी तो उनके लिए सोगात हो जाएगी। वे बाहर आकर हर जगह आपके गीत गायेंगे। अपने बच्चों को आपके बारे में बताएँगे। उनका ही नहीं आपका सुना चेहरा भी खिल उठेगा। डीएम जी बड़े वही होते हैं जो बड़ा पन दीखते हैं। वरना तो बड़े दही में पड़े होते है।
" कहना है इतना कुछ, मगर कह नहीं सकते,फितरत है अपनी भी चुप रह नहीं सकते।"
---- चुटकी----

कई नावों
पर सवार,
हमारे प्यारे
शरद पवार।

Monday, 5 July 2010

मां का आँचल

--------------
मां के आँचल
में सोने का सुख
अगली पीढ़ी
नहीं ले पायेगी,
क्योंकि
जींस पहनने वाली
मां आँचल
कहाँ से लाएगी।

मेरे मित्र राजेश कुमार द्वारा भेजा गया एक एस एम एस।

Sunday, 4 July 2010

---- चुटकी----

कल सगाई
आज धोनी का
ब्याह,
इस ख़ुशी में
देश के
सारे मुद्दे
स्वाह।

Saturday, 3 July 2010

---- चुटकी----

सिपाही मरें
तो
सोते
लम्बी तान,
नक्सली मरे
तो
करते
जाँच की मांग।