Tuesday 25 January, 2011

सम्मान! मगर किस बात का

श्रीगंगानगर--प्रशासन के छोटे -बड़े वे बाबू इसे अपने दिल पर ना लें जो मन,कर्म,वचन से भ्रष्ट आचरण से बचने की कोशिश में लगे रहते हैं। भ्रष्टाचार कभी का शिष्टाचार बन कर सिस्टम का जरुरी हिस्सा मान लिया गया है। आज २६ जनवरी है। गणतंत्र दिवस है। वह संविधान लागु हुआ जो राजनेताओं की वोटों की लालसा के चलते बार बार संशोधित होता रहा है। इसी दिन प्रशासन उन लोगों को सम्मानित करता है जिन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया हो। प्रशासन हर साल जिनको यह सम्मान देता है उनमे अधिकांश उसके अपने सरकारी कर्मचारी होते हैं। इस बार ३८ में से २१ प्रशासन के अपने हैं। कोई ये पूछने वाला नहीं कि इन्होने ऐसा क्या किया जिसके लिए इनको सम्मान के लायक समझा गया। सरकार का जो काम ये करते हैं उनकी तनख्वाह लेते हैं। जिसकी सेलरी लेते हैं उसका काम करना ही पड़ेगा। सरकारी काम के अलावा इन सम्मानित कर्मचारियों ने समाज,राज्य,देश के लिए क्या उल्लेखनीय,वन्दनीय,सराहनीय कर्म किया? अगर है तो फिर प्रशासन ही क्यों उसको तो हर स्थान पर सम्मान मिलना चाहिए।हर साल यही होता है। बारी बारी से सभी कर्मचारी सम्मानित हो जाने हैं। कितनी हैरानी की बात है कि इतने बड़े जिले में प्रशासन को केवल अपने कर्मचारी ही क्यों नजर आते हैं? जिले में अनेक प्रकल्प समाज के लिए चलाये जा रहे हैं। परिवार अपने परिजनों की मृत देह का संस्कार करने की बजाये शिक्षा के लिए उसको दान कर इस बात को झूठा साबित करने में लगे हैं की मरने के बाद आदमी किसी काम का नहीं रहता। मतलब पशु से भी गया बीता है। ये तो बस उदाहरण हैं। प्रशासन तो बहुत कुछ पता करवा सकता है। किन्तु वह अपने तालाब से बाहर निकले तभी ना।

निहाल हो गया-- गौड़ साहब के तीन ख्याल, बनवारी,जे पी ,शिवदयाल। शिवदयाल पहले निहाल हो चुका है।

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