Tuesday 19 October, 2010

मुलाकात महाराज राधाकृष्ण से


शायर मजबूर की पंक्तियाँ हैं--"सीधे आये थे मेरी जां, औन्धे जाना, कुछ घड़ी दीदार और कर लूँ।" उन्होंने ये संभव तय किसी प्रेम करने वाले के लिए लिखी हों। हम तो इनको "नानी बाई रो मायरो "सुनाने आये राधा कृष्ण महाराज के साथ जोड़ रहे हैं। श्रीगंगानगर में पहली बार मायरा हो रहा है। छोटे बड़े कथा वाचक महंगी गाड़ियों में आते हैं या उनको लाना पड़ता है। परन्तु राधाकृष्ण जी तो खुद ही पैसेंजर गाड़ी से यहाँ पहुँच गए, बिना किसी आडम्बर और दिखावे के।नगर भर में लगे पोस्टर,होर्डिंग में क्यूट से दिखने वाले महाराज जी से मिलने की इच्छा हुई। बिना किसी मध्यस्थ के उनसे मिला,बात की। वे केवल २७ साल के अविवाहित युवक हैं। वे कहते हैं कि शादी की इच्छा नहीं है, अगर ठाकुर जी की मर्जी हुई तो बात अलग है। उनका मानना है कि अगर बचपन में ही सत्संग मिल जाये तो देश की किशोर और युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट नहीं हो सकती। महाराज जी जोधपुर के हैं और इनके पिता अनाज का कारोबार करते हैं। जिसमे इनका छोटा भाई सहयोग करता है। तीन बहिन हैं जो अपने अपने ससुराल में सुखी हैं। राधाकृष्ण कहते हैं कि घर में मैं महाराज नहीं होता। पुत्र और भाई होता हूँ। जैसे आप रहते हैं मैं भी वैसे ही रहता हूँ। कथा में माता-पिता आये हों और वे व्यास गद्दी पर आकर आपकी चरण वंदना करें तो ! ऐसा नहीं होता। मैं उनको प्रणाम करके कथा शुरू करता हूँ। फिर भी ऐसा हो तो वे उनके भाव हैं। मेरे भाव तो यहीं हैं कि ऐसा ना करें। उन्होंने बताया, स्कूल कॉलेज की शिक्षा तो कोई खास नहीं है। साधू संतों के श्रीमुख से जो सुना वही सुनाता हूँ। एक पुस्तक भी लिखी है। श्रीमदभागवत और मायरा करते हुए सालों बीत गए। पहली बार तीन व्यक्तियों के सामने कथा की। अब यह संख्या हजारों में होती है।
महाराज जी ने कहा कि नानी बाई कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। यह सच्ची कथा है। इसे आम बोल चाल की भाषा में सुनाता हूँ तो सबके मन में बस जाती है, रस और भाव आते हैं। कथा में कोई चुटकुले,टोटके किसी प्रसंग को समझाने के लिए इस्तेमाल हों तो ठीक। केवल हंसाने के लिए हो तो अच्छा नहीं माना जाता।
राधाकृष्ण ने कहा कि मैं तो एक आम आदमी ही बना रहना चाहता हूँ। विशिष्ट नहीं बनना मुझे। विशिष्ट होने के बाद कई झंझट गले पड़ जाते हैं। राधाकृष्ण गौड़ ब्राहम्ण परिवार से हैं। खानदान में इनके अलावा कोई और इस लाइन में नहीं है। घर के पास मंदिर था, वहां जाया करता था। मन कृष्ण में ऐसा लगा कि बस इसी में राम गया। वे कहते हैं , यह मेरा व्यवसाय नहीं सेवा है। कथा करने का कुछ भी नहीं लिया जाता। अगर कोई देता भी है तो वह जन और गाय की सेवा में लगा देते हैं। मुलाकात के लिए उन्होंने काफी लम्बा समय दिया मगर उनका मोबाइल फोन इसमें से कुछ भाग ले गया। उनकी फोन पर बात चीत से ऐसा लगा कि अप्रैल तक उनके सभी दिन बुक हैं। कहीं श्रीमदभागवत है कहीं नानी बाई का मायरा। जोधपुर में २१-२२ अक्टूबर को कोई बड़ा कार्यकर्म करने की योजना भी है। राधाकृष्ण पहली बार श्रीगंगानगर आये हैं। उनका कहना था कि श्रीगंगानगर में मायरा करने में आनंद ही आनंद होगा ऐसा पहले दिन की भीड़ से लगता है। नर नारी कथा को भाव से सुनने के लिए आये थे। बातें बहुत थी। मगर यहाँ इतना काफी है। रमा सिंह की लाइन है--मैं तुझमे ऐसी रमी, ज्यों चन्दन में तीर, तेरे-मेरे बीच में, खुशबू की जंजीर। किसी कवि की दो लाइन महाराज जी के लिए--" शख्स तो मामूली सा था, दुनिया जेब में थी, हाथ में पैसा न था। ----गोविंद गोयल

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